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Home » Comics Review: क्या आप जानते हैं ‘इन्द्र का जलजला’ का असली रहस्य? दोस्ती और विज्ञान की जंग में जन्मा भारत का रोबोकॉप!
Hindi Comics World Updated:8 November 2025

Comics Review: क्या आप जानते हैं ‘इन्द्र का जलजला’ का असली रहस्य? दोस्ती और विज्ञान की जंग में जन्मा भारत का रोबोकॉप!

मनोज कॉमिक्स की साइंस-फिक्शन कृति ‘इन्द्र का जलजला’ एक ऐसी कहानी है जहाँ इंसानियत, तकनीक और प्रतिशोध आमने-सामने आते हैं।
ComicsBioBy ComicsBio8 November 2025Updated:8 November 2025010 Mins Read
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Comics Review: इन्द्र का जलजला | Manoj Comics Sci-Fi Masterpiece of Friendship and Revenge
‘इन्द्र का जलजला’ — जब दोस्ती ने विज्ञान को पार कर दिया और एक वैज्ञानिक बना भारत का अपना रोबोकॉप।
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मनोज कॉमिक्स द्वारा प्रकाशित ‘इन्द्र का जलजला’ (संख्या 877) भारतीय कॉमिक्स इतिहास के उस दौर का बेहतरीन उदाहरण है, जब साइंस फिक्शन, थ्रिलर और सामाजिक ड्रामा — तीनों का ज़बरदस्त मिश्रण एक साथ दिखाया जाता था। नाज़रा खान की लिखी कहानी और चव्हाण के शानदार चित्रांकन ने इसे एक ऐसी भावनात्मक कहानी बना दिया है, जिसमें दोस्ती, देशभक्ति और गहरे विश्वासघात की भावनाएँ जुड़ी हुई हैं। यही बातें इसे सिर्फ एक ‘एक्शन कॉमिक्स’ नहीं बल्कि दिल को छू लेने वाली कहानी बना देती हैं।

यह कॉमिक्स अपने नाम को पूरी तरह सही साबित करती है — ‘जलजला’ यानी ज़मीन हिला देने वाला भूकंप या तूफान। कहानी में वैज्ञानिक इन्द्र के जीवन में भी ऐसा ही तूफान आता है। और फिर जब वही इन्द्र ‘रोबोकॉप’ के रूप में वापस आता है, तो उसका प्रतिशोध का जलजला पाठकों को आख़िर तक बांधे रखता है।

इस समीक्षा में हम बात करेंगे — कहानी की गहराई, किरदारों की भावनाओं, कलाकृति (Artwork) की खूबसूरती और उस वक्त के सामाजिक माहौल की, जिसने इस कॉमिक्स को इतना खास और यादगार बना दिया।

दोस्ती, विज्ञान और विश्वासघात

कहानी की शुरुआत होती है राजनगर के गृह मंत्रालय के एक बेहद गोपनीय मीटिंग रूम से। यहाँ देश के तीन बड़े अधिकारी मौजूद हैं — गृहमंत्री विनय प्रभाकर, सी.बी.आई. डायरेक्टर कृष्ण सुन्दरम और पुलिस कमिश्नर आलोक सिन्हा। इनके साथ मौजूद हैं दो युवा और होनहार वैज्ञानिक — इन्द्र सहनी और विशाल कुमार सक्सेना।

द रोबोकॉप प्रोजेक्ट (The Robocop Project)

इन्द्र और विशाल ने मिलकर एक अत्याधुनिक रोबोट बनाया है — ‘रोबोकॉप’। ये मशीन उड़ भी सकती है, ज़मीन पर चल भी सकती है, और सबसे खास बात — इसमें एक कृत्रिम दिमाग (Artificial Brain) लगा है जो इसे इंसानों की तरह सोचने-समझने की क्षमता देता है। यह प्रोजेक्ट देश की सुरक्षा को समर्पित किया जाना था, और अगले दिन इसका भव्य अनावरण होने वाला था। कहानी यहीं से बहुत बड़े दांव पर पहुँच जाती है — क्योंकि ये सिर्फ एक आविष्कार नहीं, बल्कि देश की ताकत और सम्मान का प्रतीक है।

दुर्घटना और खलनायक का आगमन:

रात में, जब कृत्रिम ब्रेन प्लेट को रोबोट में फिट किया जा रहा होता है, तभी एक शॉर्ट सर्किट हो जाता है। उसी वक्त इन्द्र को एक अंजान खलनायक (जिसे सिर्फ ‘डॉन’ कहा गया है) का फ़ोन आता है। हैरानी की बात ये है कि उसे इस गुप्त प्रोजेक्ट की पूरी जानकारी होती है। वो धमकी देता है कि वह किसी भी कीमत पर रोबोकॉप को खरीदना चाहता है, और अगर मना किया गया तो इन्द्र और विशाल दोनों को मरवा देगा।

इन्द्र का जवाब गुस्से और देशभक्ति से भरा होता है — वो साफ़ कहता है कि देश की सुरक्षा को बेचने का सवाल ही नहीं उठता। वहीं विशाल को शक होता है कि इस प्रोजेक्ट के पाँच गोपनीय सदस्यों में से कोई एक गद्दार है, जिसने सारी जानकारी बाहर लीक की है। यही पल कहानी में सस्पेंस और तनाव को बढ़ा देता है।

भावनात्मक मोड़ — इन्द्र का बलिदान और विशाल का हौसला:

इसके बाद खलनायक के गुंडे लैब पर हमला कर देते हैं। यह हिस्सा कहानी का सबसे भावनात्मक और यादगार मोमेंट है। लड़ाई में इन्द्र बुरी तरह घायल हो जाता है। मरते हुए वह अपने दोस्त विशाल से वादा करवाता है कि चाहे कुछ भी हो जाए, वह ‘रोबोकॉप’ को ज़रूर पूरा करेगा। यह दृश्य पाठकों को झकझोर देता है और कहानी को एक नए भावनात्मक मोड़ पर ले आता है।

यहाँ विशाल कुमार सक्सेना का किरदार एक अविस्मरणीय ऊँचाई छू लेता है। अपने जिगरी दोस्त की मौत से टूट चुका विशाल, एक ऐसा कदम उठाता है जो विज्ञान और इंसानियत — दोनों की सीमाओं को पार कर देता है। वह इन्द्र के अधूरे सपने को पूरा करने के लिए, उसके दिमाग और आँखों को रोबोकॉप के मशीन वाले शरीर में ट्रांसप्लांट कर देता है। विशाल के लिए यह सिर्फ एक वैज्ञानिक प्रयोग नहीं, बल्कि दोस्ती का सबसे बड़ा सबूत और प्यार का आख़िरी इज़हार है। वह मानता है कि इन्द्र जैसा दिमाग व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। यही मोड़ इस कहानी को भावनात्मक गहराई देता है — क्योंकि अब ‘रोबोकॉप’ सिर्फ एक मशीन नहीं, बल्कि इन्द्र की आत्मा, यादों और जज़्बातों वाला ‘जीवित इंसान’ बन चुका है। उसकी नीली आँखें खुलती हैं, और उसमें इन्द्र की चेतना जाग उठती है। यह पल कॉमिक्स का सबसे इमोशनल और यादगार दृश्य बन जाता है।

सरकारी प्रतिक्रिया और रोबोकॉप का उदय:

जल्द ही पुलिस कमिश्नर आलोक सिन्हा (जो शुरू से ही शक के घेरे में था) मौके पर पहुँचता है। सरकार को लगता है कि इन्द्र की हत्या का जिम्मेदार विशाल है। लेकिन विशाल सच साबित करने के लिए ‘रोबोकॉप’ को सबके सामने पेश करता है। और फिर जो होता है, वह सबको हैरान कर देता है — रोबोकॉप गोलियाँ पकड़ता है, आसमान में उड़ता है, और सड़कों पर अपराधियों का पीछा करता है। अब वह सिर्फ एक मशीन नहीं, बल्कि ‘इन्द्र का जलजला’ है — न्याय और बदले की आग में जलता हुआ एक जिंदा तूफान।

व्यक्तित्व की परतें

इन्द्र सहनी / रोबोकॉप: इन्द्र एक आदर्शवादी वैज्ञानिक और सच्चा देशभक्त है। उसका जीवन एक दुखद कहानी से भरा है — उसकी प्रेमिका शालिनी उसे उसके जन्मदिन पर भूल जाती है, जिससे वह दुखी होता है, और इसके थोड़ी देर बाद उसकी हत्या हो जाती है। ये दोनों घटनाएँ उसके जीवन को एक गहरी ट्रेजेडी बना देती हैं। लेकिन जब वह ‘रोबोकॉप’ के रूप में लौटता है, तो अपने इंसानी जज़्बात और वैज्ञानिक सोच — दोनों को साथ लेकर आता है। यही चीज़ उसे एक अनोखा और ज़्यादा मानवीय हीरो बनाती है — जो मशीन है, फिर भी दिल से इंसान है।

विशाल कुमार सक्सेना: विशाल इस कॉमिक्स का असली हीरो है। वो सिर्फ एक दोस्त नहीं, बल्कि वो इंसान है जो किसी भी हालत में अपने दोस्त का सपना पूरा करने के लिए तैयार है। उसका इन्द्र के दिमाग को मशीन में डालने का फ़ैसला जहाँ वैज्ञानिक दुस्साहस (Courage) दिखाता है, वहीं यह उसकी सच्ची दोस्ती और निस्वार्थ प्रेम का भी प्रमाण है। विशाल की वफ़ादारी ही है जिसने इन्द्र के सपने को ज़िंदा रखा और उसे ‘रोबोकॉप’ के रूप में फिर से जन्म दिया।

गृहमंत्री विनय प्रभाकर (खलनायक):कहानी का सबसे बड़ा ट्विस्ट तब आता है जब असली खलनायक का पर्दाफाश होता है — और वो निकलता है देश का गृहमंत्री खुद, यानी विनय प्रभाकर! ये खुलासा पाठकों को हिला देता है। गृहमंत्री का ‘डॉन’ या ‘बॉस’ निकलना उस दौर के भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग को उजागर करता है। उस समय की कई कॉमिक्स की तरह, यहाँ भी दिखाया गया है कि देश के दुश्मन अक्सर ऊँचे पदों पर बैठे लोग ही होते हैं। गृहमंत्री का लाल चोगा पहनकर उड़ना और रोबोकॉप से भिड़ना उसकी ‘डबल लाइफ़’ का प्रतीक है — दिन में नेता, रात में अपराध का राजा।

कला शैली और चित्रांकन: इस कॉमिक्स की सबसे बड़ी ताकत है — चव्हाण जी का शानदार चित्रांकन। इसमें 90 के दशक की मनोज कॉमिक्स की असली झलक मिलती है। हर फ्रेम में गजब की एनर्जी (Dynamism) है — खासकर जब रोबोकॉप उड़ता है, लड़ता है या जीप उठाता है। उन दृश्यों में ‘धड़ाम’, ‘तड़ाक’, ‘आहऽऽ’ जैसे साउंड इफेक्ट्स एक्शन को और ज़्यादा ज़िंदा कर देते हैं। किरदारों की भावनाएँ बहुत साफ़ दिखती हैं — इन्द्र के चेहरे की निराशा, विशाल का डर, और गृहमंत्री के चेहरे की चालाकी, सब कुछ बेहद प्रभावशाली ढंग से बनाया गया है।

रंगों का इस्तेमाल (Color Scheme) भी कमाल का है — गहरे, बोल्ड और कॉन्ट्रास्टिंग रंग कहानी को जीवंत बना देते हैं। जैसे रोबोकॉप का चमकीला नीला सूट और खलनायक का लाल चोगा तुरंत नज़र पकड़ते हैं। वहीं पृष्ठभूमि (Background) के दृश्य जैसे गृह मंत्रालय, लैब या शहर की गलियाँ, सब कुछ इतना डिटेल्ड है कि कहानी का माहौल एकदम असली लगता है।

कहानी का विश्लेषण और असर

‘इन्द्र का जलजला’ भारतीय साइंस फिक्शन कॉमिक्स के लिए एक मिसाल साबित होती है। इसका सबसे बड़ा आकर्षण इसका भावनात्मक दिल है — इसमें सिर्फ एक रोबोटिक हीरो की कहानी नहीं, बल्कि एक ऐसे दोस्त की कहानी है जो अपने वादे को निभाने के लिए हर हद पार कर देता है। हॉलीवुड की ‘Robocop’ फिल्म की तरह इसमें भी मशीन और इंसान का मेल दिखता है, लेकिन यहाँ बात सिर्फ न्याय या एक्शन की नहीं, बल्कि दोस्ती और इंसानियत की भी है।

शक्ति (Strengths):

तेज़ रफ्तार और रोमांच (Pacing and Thrill): कहानी की शुरुआत से ही गति इतनी तेज़ है कि पाठक की नज़रें एक पल के लिए भी कॉमिक्स से हटती नहीं। इन्द्र की हत्या, उसका रोबोकॉप बनना और आखिर में गृहमंत्री का असली चेहरा सामने आना — हर मोड़ पर कहानी में नया झटका और रोमांच है।

मानवीयता का सवाल: जब इन्द्र का दिमाग रोबोकॉप के शरीर में लगाया जाता है, तो कहानी एक बड़ा सवाल खड़ा करती है — अगर मशीन में इंसान की चेतना और भावनाएँ हों, तो क्या वह मशीन कहलाएगी या इंसान? यही विचार इसे साधारण एक्शन थ्रिलर से उठाकर एक सोचने पर मजबूर कर देने वाली कहानी बना देता है।

सामाजिक टिप्पणी: कहानी का असली खलनायक गृहमंत्री निकलना उस दौर की राजनीति पर एक तीखी टिप्पणी करता है। यह दिखाता है कि कैसे सत्ता में बैठे लोग कभी-कभी देश के लिए सबसे बड़ा खतरा बन जाते हैं। उस समय के समाज में जनता का भरोसा टूटना आम बात थी, और यह कॉमिक्स उसी सच्चाई को साहस से सामने रखती है।

कमियाँ (Weaknesses):

प्रेम कहानी का पहलू (The Girlfriend Plot): इन्द्र की प्रेमिका शालिनी का उसे जन्मदिन पर छोड़ जाना कहानी का थोड़ा पुराना तरीका (ट्रॉप) लगता है, जिसे हमने फिल्मों में भी बहुत बार देखा है। लेकिन इसका एक अच्छा पक्ष यह है कि यही घटना इन्द्र के अंदर देशभक्ति और समर्पण की भावना को और मजबूत कर देती है।

अति-नाटकीयता: कुछ दृश्य थोड़े ज़्यादा नाटकीय लगते हैं — जैसे इन्द्र पर गुंडों का हमला या रोबोकॉप का जीप उठा लेना। लेकिन यह भी मानना पड़ेगा कि 90 के दशक की मनोज कॉमिक्स की यही खासियत थी — ओवरड्रामैटिक लेकिन मज़ेदार एक्शन! उस समय के पाठक इन्हीं बातों पर वाह-वाह करते थे।

निष्कर्ष:

‘इन्द्र का जलजला’ मनोज कॉमिक्स की उन बेहतरीन कृतियों में से एक है जो आज भी अपने एक्शन, इमोशन और रोमांच के लिए याद की जाती है। यह कहानी हमें सिखाती है कि दोस्ती और देशभक्ति की ताकत विज्ञान से भी बड़ी होती है, और कभी-कभी मौत से भी आगे निकल जाती है।

इन्द्र भले ही अपने मानव शरीर में मर गया, लेकिन उसके दोस्त विशाल की वफ़ादारी और इन्द्र की चेतना ने उसे ‘रोबोकॉप’ के रूप में फिर से जीवित कर दिया। अब उसका मकसद सिर्फ अपराधियों को पकड़ना नहीं था, बल्कि अपने देश के साथ हुए विश्वासघात का बदला लेना और अपने वादे को पूरा करना था — एक ऐसी उन्नत तकनीक बनाकर जो राष्ट्र की रक्षा करे।

इस कॉमिक्स ने उस वक्त के पाठकों को एक ऐसा नायक दिया जो पूरी तरह भारतीय मूल्यों से भरा था, भले ही उसका शरीर विदेशी साइंस फिक्शन से प्रेरित हो। यही वजह है कि यह कॉमिक्स भारतीय सुपरहीरो शैली में एक बड़ा कदम साबित हुई — एक मील का पत्थर, जिसे आज भी पुराने कॉमिक्स प्रेमी बड़े शौक से याद करते हैं।

‘इन्द्र का जलजला’ हमें याद दिलाती है कि दोस्ती, कर्तव्य और देशभक्ति की भावना जब एक साथ मिल जाएँ, तो कोई भी तूफान — चाहे वह इंसानों का हो या मशीनों का — उसे रोक नहीं सकता।

यह कॉमिक्स सिर्फ मनोरंजन नहीं करती, बल्कि एक बड़ा सवाल भी छोड़ जाती है — जब देश की सुरक्षा दाँव पर हो, तो क्या एक वैज्ञानिक अपने सपने और अपने जीवन को कुर्बान करने के लिए तैयार हो सकता है? और यही सवाल, यही ‘जलजला’, आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना उस समय था।

देशभक्ति और तकनीक की टकराहट ने जन्म दिया ‘इन्द्र का जलजला’ जैसे भावनात्मक नायक को; इस कॉमिक्स ने 90 के दशक के भारतीय कॉमिक्स युग को एक नया आयाम दिया। यह मनोज कॉमिक्स की रोमांचक साइंस-फिक्शन समीक्षा है जहाँ दोस्ती
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