मनोज कॉमिक्स का मशहूर और दमदार विशेषांक ‘नागबाज़’ ‘युगान्धर’ श्रृंखला का एक जलता-धधकता अध्याय है। इसे संदीप गुप्ता और राही ने लिखा है, जबकि विजय कदम और नीता बोराडे ने अपनी शानदार कलाकारी से इसे जीवंत बना दिया है। यह कॉमिक्स उस दौर की तमाम खासियतों को समेटे हुए है — एक धर्मपरायण और ताकतवर नायक, खतरनाक और अजीबोगरीब खलनायक, तेज़ रफ्तार कहानी, और अच्छाई की बुराई पर जीत का सदाबहार संदेश।
‘नागबाज़’ सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि उस समय की रचनात्मक सोच और कला का ज़िंदा उदाहरण है, जो आज भी अपने रोमांचक प्लॉट और दमदार चित्रों से पाठकों को बाँधकर रखती है।
कहानी और किरदार: धर्म बनाम अधर्म की भिड़ंत
‘नागबाज़’ हमें एक पौराणिक और काल्पनिक दुनिया में ले जाती है — जहाँ राज्य हैं, राजा हैं, राक्षस हैं और इंसानियत की रक्षा करने वाले नायक भी। कहानी का मूल आधार है अच्छाई और बुराई की लड़ाई, जिसे अलग-अलग पात्रों और घटनाओं के ज़रिए बखूबी बुना गया है।
इस कहानी का नायक ‘युगान्धर’ अपने नाम की तरह ही एक युग का आधार है। वह सिर्फ एक राजकुमार नहीं, बल्कि इंसानियत का रक्षक और दुष्टों का विनाशक है। उसका व्यक्तित्व आदर्शवाद, बहादुरी और अटूट हिम्मत से भरा है। युगान्धर के पास एक खास रथ है, जिसे उसका जादुई लकड़ी का घोड़ा ‘अमोघ’ खींचता है। अमोघ न सिर्फ उड़ सकता है, बल्कि अपने मालिक के हर इशारे को समझकर काम भी करता है। युगान्धर शांत, गंभीर और संयमी स्वभाव का है, लेकिन जब वह रणभूमि में उतरता है, तो उसकी तलवार की चमक और उसकी शक्ति दुश्मनों के दिलों में डर भर देती है।

इस कॉमिक्स की सबसे दिलचस्प बात है इसके खलनायकों की पूरी चेन, जहाँ एक नहीं बल्कि कई विलेन जुड़े हुए हैं। कहानी की शुरुआत होती है ‘नागराक्षस’ और उसके भाइयों के आतंक से। नागराक्षस पूरी धरती पर राज करना चाहता है, और उसके इरादों को पूरा करने के लिए उसका छोटा भाई ‘नागासुर’ और उसका साथी ‘खतरनाक’ मैदान में उतरते हैं। ये आधे इंसान और आधे सर्प जैसे जीव हैं, जो अपनी क्रूरता और ताकत के लिए जाने जाते हैं। ‘खतरनाक’ का काम है शांति देश में आतंक फैलाना और बलि के लिए लोगों को पकड़ना।
इसी बीच कहानी में एक दूसरा खलनायक गुट भी आता है, जिसका सरदार है ‘बाजदाना’ — एक बाज जैसी शक्ल वाला राक्षस। वह अपने गुरुदेव के आदेश पर युगान्धर की खोज में निकला है। उसका दूत ‘भूचाल’ भी उतना ही निर्दयी है, जो पंपापुर में नरसंहार मचाकर युगान्धर का पता लगाने की कोशिश करता है। इन दोनों खलनायक-गुटों की मौजूदगी कहानी को और भी पेचीदा और मजेदार बना देती है।
कहानी में कुछ ऐसे सहायक किरदार भी हैं जो घटनाओं को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाते हैं। शांति देश का राजा ‘शांतिराज’ और उसकी बहन ‘चारुलता’ कहानी में एक अहम मोड़ लेकर आते हैं। चारुलता ने कसम खाई है कि जो ‘खतरनाक’ का अंत करेगा, वही उसका जीवनसाथी बनेगा। इसके अलावा ‘शैल’ नाम की एक पात्र भी है, जो युगान्धर को बाजदाना के बढ़ते खतरे के बारे में चेतावनी देती है।
कुल मिलाकर, ‘नागबाज़’ एक ऐसी कॉमिक्स है जिसमें मिथक, एक्शन, भावना और रोमांच का परफेक्ट मिश्रण है — और यही इसे मनोज कॉमिक्स की सबसे यादगार कहानियों में से एक बनाता है।
कहानी का विस्तृत विश्लेषण: गति, रोमांच और रहस्य
‘नागबाज़’ की कहानी किसी रोलर-कोस्टर राइड से कम नहीं लगती — शुरू से लेकर आखिर तक एक पल के लिए भी रुकने का नाम नहीं लेती। हर पन्ने पर कुछ नया होता है, जो पाठक को बांधे रखता है।
कहानी की शुरुआत होती है शांति देश में मची अफरातफरी से। नाग-मानव ‘खतरनाक’ अपने भाई नागासुर के लिए एक मानव की बलि लेने आया है। वह निर्दोष लोगों पर कहर बरपा रहा है। तभी इंसानियत का रक्षक युगान्धर अपने अमोघ रथ पर सवार होकर वहाँ पहुँचता है। लेखक ने युगान्धर की एंट्री को जिस अंदाज़ में दिखाया है, वह सचमुच दमदार है — एक सच्चे नायक जैसी।

इसके बाद होता है युगान्धर बनाम खतरनाक का भयंकर युद्ध। युगान्धर न सिर्फ अपनी तलवार से खतरनाक की पूंछ काट देता है, बल्कि उसी कटी हुई पूंछ को हथियार बनाकर उसे धूल चटा देता है। यह सीन युगान्धर की अक्लमंदी और ताकत दोनों को दिखाता है। अंत में, वह खतरनाक के दोनों हाथ काटकर उसे मरने के लिए छोड़ देता है।
खतरनाक की हार के बाद कहानी दो रास्तों पर आगे बढ़ती है।
एक तरफ, राजकुमारी चारुलता के प्रण की वजह से राजा शांतिराज युगान्धर के लिए शादी का प्रस्ताव भेजते हैं — जिससे कहानी में थोड़ा भावनात्मक और राजनीतिक मोड़ आता है।
दूसरी तरफ, घायल और अपमानित खतरनाक अपने भाई नागासुर के पास पहुँचता है। नागासुर गुस्से से भर जाता है और युगान्धर से बदला लेने की कसम खा लेता है।
इसके बाद कहानी में एंट्री होती है बाजदाना की — एक बाज जैसे दिखने वाले खलनायक की, जो अपने रहस्यमयी गुरुदेव के आदेश पर युगान्धर को जिंदा पकड़ना चाहता है। उसका साथी भूचाल पंपापुर पहुँचता है, युगान्धर का पता पूछता है, और जवाब न मिलने पर निर्दोष लोगों का कत्ल शुरू कर देता है।
जब युगान्धर को अपनी दोस्त शैल के ज़रिए ये खबर मिलती है, तो वह बिना देर किए पंपापुर पहुँचता है और भूचाल से भिड़ जाता है। लेकिन भूचाल युगान्धर से लड़ने की बजाय भाग निकलता है। युगान्धर उसका पीछा करते-करते एक रहस्यमयी गुफा में पहुँचता है — जो असल में एक मायावी जाल होता है, जिसे ‘खालीश्शान’ नाम का विशाल राक्षस नियंत्रित करता है। युगान्धर इस जाल में फँस जाता है और उसे कैद कर लिया जाता है।
कहानी का अंत एक ज़बरदस्त क्लिफहैंगर पर होता है।
शांति देश का दूत जब युगान्धर के पिता राजा नागराज के पास चारुलता के विवाह प्रस्ताव के साथ पहुँचता है, तो राजा अपने बेटे को बुलाते हैं। लेकिन दरबार में आने वाला युगान्धर असली नहीं, बल्कि एक बहरूपिया होता है — जिसे शायद खलनायकों ने भेजा है। असली युगान्धर तो अभी भी कैद में है!
यह अंत पाठकों के मन में कई सवाल छोड़ जाता है —
असली युगान्धर कैसे बचेगा?
यह नकली युगान्धर कौन है?
और ‘नागबाज़’ का असली खेल क्या है?
कला और चित्रांकन: एक्शन से भरपूर पैनल
‘नागबाज़’ की जान है इसका चित्रांकन, जिसे विजय कदम और नीता बोराडे ने बखूबी जीवंत बनाया है। 90 के दशक की उस पहचान वाली बोल्ड लाइनें, नाटकीय चेहरे के भाव, और पौराणिक माहौल का मेल इसे एक विजुअल ट्रीट बनाता है।
एक्शन सीन इतने दमदार हैं कि लगता है जैसे तलवारों की आवाज़ (“स्वचाक!”) और प्रहारों की गूंज (“धड़ाम!”) कानों में सुनाई दे रही हो। किरदारों की मुद्राएँ इतनी जीवंत हैं कि हर पैनल एक छोटे सीन की तरह महसूस होता है।

युगान्धर का डिज़ाइन एक आदर्श नायक जैसा है — मजबूत काया, तेज नज़रें, और आत्मविश्वास से भरा चेहरा।
वहीं दूसरी ओर, खलनायक — जैसे खतरनाक, नागासुर और भूचाल — को डरावना और वीभत्स रूप देकर उनकी बुराई को दृश्य रूप में ज़ाहिर किया गया है।
रंगों का प्रयोग भी खास है — लाल, पीला और नीला जैसे चमकीले रंगों का भरपूर इस्तेमाल किया गया है, जो 90 के दशक की कॉमिक्स की पहचान हुआ करता था।
कुल मिलाकर, ‘नागबाज़’ न सिर्फ एक रोमांचक कहानी है, बल्कि उस दौर के शानदार आर्टवर्क और विजुअल स्टाइल का भी बेहतरीन उदाहरण है।
लेखन शैली और संवाद: आसान, साफ़ और असरदार
संदीप गुप्ता और राही की लेखन शैली इस कॉमिक्स की असली ताकत है। उन्होंने कहानी की रफ़्तार को कहीं भी धीमा नहीं पड़ने दिया। उनके संवाद सरल और सुसंस्कृत हिंदी में हैं — जो सीधे बात पर आते हैं, ज़रूरत से ज़्यादा भारी-भरकम नहीं लगते, और फिर भी असर छोड़ते हैं।
इन संवादों में शायद गहरी फिलॉसफी न हो, लेकिन ये कहानी को आगे बढ़ाने और किरदारों के इरादों को साफ़ दिखाने में पूरी तरह सफल हैं।
जैसे जब युगान्धर कहता है —
“तेरे जैसे मानवता के दुश्मनों का दुश्मन हूँ मैं।”

यह एक लाइन ही युगान्धर के पूरे व्यक्तित्व को परिभाषित कर देती है — उसकी दृढ़ता, उसका संकल्प और उसका नायकत्व।
लेखन का अंदाज़ सीधा-सादा और प्रभावी है। हर उम्र का पाठक इसे आसानी से समझ सकता है और इसका मज़ा ले सकता है। कहीं भी ऐसा नहीं लगता कि भाषा बोझिल या बनावटी है — यही बात इसे और भी पढ़ने लायक बनाती है।
निष्कर्ष: एक क्लासिक जो आज भी ताज़ा महसूस होती है
‘युगान्धर: नागबाज़’ भारतीय कॉमिक्स के सुनहरे दौर का शानदार नमूना है — जब कहानियाँ सरल होती थीं, लेकिन मनोरंजन से भरपूर। यह अच्छाई, वीरता, दोस्ती और न्याय जैसे हमेशा प्रासंगिक विषयों को एक रोमांचक फैंटेसी के रूप में पेश करती है।
तेज़ कहानी, दमदार एक्शन, अलग-अलग खलनायक और शानदार आर्टवर्क इसे आज भी उतना ही मज़ेदार बनाते हैं, जितना यह पहली बार छपने के वक्त रही होगी।
यह कॉमिक्स सिर्फ पुराने पाठकों के लिए नॉस्टैल्जिया ट्रिप नहीं है, बल्कि नई पीढ़ी के लिए भी एक मौका है यह देखने का कि कभी भारतीय कॉमिक्स कितनी कल्पनाशील और ज़मीन से जुड़ी हुआ करती थीं।
अगर आपको एक्शन, फैंटेसी और हीरोइक स्टोरीज़ पसंद हैं, तो ‘नागबाज़’ आपके लिए एकदम परफेक्ट है।
यह मनोज कॉमिक्स की ऐसी क्लासिक रचना है जिसे हर कॉमिक्स प्रेमी को ज़रूर पढ़ना चाहिए — क्योंकि कुछ कहानियाँ सिर्फ पढ़ी नहीं जातीं, महसूस की जाती हैं, और ‘नागबाज़’ उन्हीं में से एक है।
