90 का दशक भारतीय कॉमिक्स का सच में सुनहरा समय था। उसी दौर में राज कॉमिक्स ने हमें कई ऐसे हीरो दिए जो आज भी लोगों के दिलों में बसते हैं। लेकिन उन सबमें एक हीरो सबसे अलग, सबसे खतरनाक और शायद सबसे ज्यादा रियल था – डोगा। डोगा कोई चमकदार सुपरहीरो नहीं था, वो एक एंटी-हीरो था। अपराधियों के लिए वो कानून नहीं, बल्कि सीधी मौत का फरमान था। वह “मुंबई का बाप” था, जिसके नाम से ही गुंडे कांप जाते थे।
आज हम जिस कॉमिक्स की बात कर रहे हैं, वह है “डोगा हरण” (अंक संख्या 2235)। यह सिर्फ एक और डोगा कॉमिक्स नहीं है, बल्कि यह डोगा के “आतंक” वाले कॉन्सेप्ट को ही एक नए ढंग से चुनौती देती है। लेखक तरुण कुमार वाही, परिकल्पना विवेक मोहन, और चित्रांकन मनु रंग व सुनील पाण्डेय की टीम ने एक ऐसी कहानी बनाई है जो डोगा फैंस के लिए यादगार अनुभव बन जाती है।
कॉमिक्स का नाम “डोगा हरण” सुनते ही एक अजीब सा विरोधाभास खड़ा हो जाता है। ‘हरण’ मतलब अपहरण – वही जुर्म जिसने बचपन में डोगा की ज़िंदगी को तोड़कर रख दिया था। जैसा कि पहले पन्ने पर लिखा है – “डोगा के बचपन का हरण हुआ। फिरौती में वसूली गई उसकी जवानी।” तो सवाल उठता है – अगर अपराधी उसी आतंक का अपहरण करने निकलें जो उनकी नींद उड़ा देता है, तो क्या होगा? यही इस कहानी की असली जड़ है।
कथानक और कहानी: जुर्म का नया ‘सेफ’ धंधा और डोगा की छाया
कहानी की शुरुआत अपराध की एक नई सोच से होती है। पेशेवर अपराधी अब “अपहरण” को एक आसान और सुरक्षित धंधा मानने लगे हैं। क्यों? क्योंकि इसमें रिस्क कम है और पैसा ज्यादा। कहानी हमें बिहार ले जाती है, जहाँ ‘बिहारी भाई’ नाम का एक दबंग अपहरण के धंधे का बड़ा खिलाड़ी है। उसके पास पावर है – मतलब पुलिस और नेताओं का आशीर्वाद। वह अपने गुर्गों को समझाता है कि यह धंधा कितना ‘सेफ’ है।

तभी उसे मुंबई में बैठे अपने साथी ‘मुन्ना भाई’ का फोन आता है। मुन्ना भाई की आवाज़ से ही उसकी हताशा समझ में आ जाती है। वह कहता है, “अरे कहाँ भाई। मुंबई में डोगवा ने डुगडुगिया बजा रखी है।” डोगा ने उनका “मटका पानी” का धंधा चौपट कर दिया है, इसलिए वह भी बिहार की तरह मुंबई में ‘अपहरण’ का सेफ धंधा शुरू कर रहा है। उसने एक करोड़पति के ‘बचवा’ (बेटे) को उठा लिया है।
यहां से कहानी मुंबई की तरफ मुड़ती है। हम विशाल नाम के एक दुखी पिता को देखते हैं, जिसके बेटे मोनू का अपहरण हो गया है। अपहरणकर्ता फिरौती मांगते हैं और पुलिस को खबर न करने की धमकी देते हैं। विशाल जानता है कि इस अंधेरे में असली उम्मीद पुलिस नहीं, बल्कि डोगा है।
डोगा से मुलाकात का अनोखा तरीका
कहानी का एक शानदार मोड़ यह है कि विशाल डोगा तक कैसे पहुँचता है। वह जानता है कि डोगा को खुद ढूंढना लगभाग नामुमकिन है। इसलिए वह एक अजीब मगर समझदार तरीका निकालता है। वह खुद को अपराधी जैसा दिखाता है – चेहरे पर कपड़ा बांधकर, सड़कों पर ऐसे दौड़ता है जैसे कोई वारदात की हो। उसे भरोसा है कि डोगा की नज़र उस पर ज़रूर पड़ेगी।
और ऐसा ही होता है। डोगा उसे अपराधी समझकर पकड़ लेता है। तब विशाल अपनी पूरी कहानी बताता है। यह पूरा सीन डोगा की मौजूदगी और उसकी चौकसी को दिखाता है – वह कहीं भी हो सकता है और अपराध की बू उसे खींच लाती है। विशाल की मजबूरी और उसकी चाल देखकर डोगा मदद करने को तैयार हो जाता है।
द रेस्क्यू: ‘फाइटर’ की नाक का कमाल और डोगा का कहर
डोगा विशाल से बच्चे का रुमाल लेता है और अपने कुत्ते ‘फाइटर’ (डोगा की डॉग-स्क्वाड का मेंबर) को सूंघाता है। फाइटर गंध के सहारे उन्हें एक पुराने ‘मुंबई हाइड’ (चमड़े के) गोदाम तक ले जाता है। डोगा पहले ही बता देता है कि गंध में चमड़े और केमिकल की मिली-जुली महक है।

गोदाम के अंदर का एक्शन सीन पूरी तरह डोगा स्टाइल में है। न कोई लंबी बातचीत, न चेतावनी। सिर्फ तेज, बेरहम और सीधा न्याय। डोगा बिजली की तरह गिरोह पर टूट पड़ता है और कुछ ही पलों में उन्हें ढेर कर देता है। वह बच्चे मोनू को सुरक्षित बाहर निकाल लेता है।
कहानी का असली मोड़: ‘डोगा’ का ही अपहरण
अब तक तो कहानी एक आम ‘रेस्क्यू’ जैसी लगती है, लेकिन असली धमाका अभी बाकी है। मुंबई में अपना धंधा चौपट होते देख मुन्ना भाई दोबारा बिहारी भाई को फोन करता है। इस बार बिहारी भाई गुस्से से भर जाता है। वह कहता है कि अब वह खुद मुंबई आएगा। और उसका प्लान?
वह ऐलान करता है, “कोई शख्स नहीं कोई ‘चीज़’! सिर्फ ‘डोगा’ नाम का ‘आतंक’! अपहरण कर का हम सिर्फ फिरौती थोड़ी मांगत है।”
यह इस कॉमिक्स का सबसे धांसू मोड़ है। विलेन का प्लान हीरो को मारना नहीं, बल्कि उसका ‘अपहरण’ करना है। वह डोगा के आतंक को तोड़कर साबित करना चाहता है कि इस शहर का असली बाप कोई और है – और वह डोगा नहीं है।
सूरज का अपहरण: डोगा की सबसे बड़ी ‘कमजोरी’
बिहारी भाई मुंबई आता है। लेकिन डोगा को पकड़ने का तरीका क्या होगा? यहीं कहानी डोगा के अल्टर-ईगो ‘सूरज’ का इस्तेमाल करती है। हम सूरज को ‘लायन’ जिम में देखते हैं – एक सरल, मददगार लड़का, जिसे कोई नहीं जानता कि वही असल में डोगा है। वह अदरक चचा (जो डोगा के लिए अल्फ्रेड जैसे हैं) से मिलता है, और सोनिया (अदरक की भतीजी) से उसकी हल्की-फुल्की नोकझोंक होती रहती है।

बिहारी भाई के आदमी सूरज को डोगा की कमजोरी समझकर उसके लिए जाल बिछाते हैं। वे एक एक्सीडेंट का ड्रामा करते हैं और इसी झमेले में विशाल (वही पिता) और सूरज को उलझा देते हैं। इस अफरा-तफरी में वे सूरज का ‘अपहरण’ कर लेते हैं।
उन्हें लगता है कि उन्होंने डोगा को पकड़ लिया है, या कम से कम उसके सबसे करीबी इंसान को। लेकिन उन्हें पता नहीं कि उन्होंने बारूद के ढेर में माचिस डाल दी है।
क्लाइमेक्स: जब सूरज के अंदर का ‘डोगा’ फट पड़ता है
सूरज को किसी अनजान जगह पर बांधकर रखा जाता है। उधर विशाल अपने दोस्त सूरज को बचाने के लिए खुद उस अड्डे तक पहुँच जाता है, लेकिन वह भी पकड़ा जाता है। बिहारी भाई के गुंडे विशाल को बुरी तरह मारते हैं, यह सोचकर कि सूरज डरकर टूट जाएगा।
वे सूरज को चिढ़ाते हैं, उसका मज़ाक उड़ाते हैं, और उसके दोस्त को उसके सामने पीटते हैं। लेकिन यह सब सूरज सहन नहीं कर पाता।

वह पल जब सूरज अपनी रस्सियाँ तोड़ देता है, वह डोगा कॉमिक्स के सबसे दमदार पलों में से एक है। उसके चेहरे पर अब मासूमियत नहीं, बल्कि डोगा का खौलता गुस्सा है।
वह गुंडों से कहता है, “डोगा का पता-ठिकाना… ‘मौत’ है!”
इसके बाद जो होता है, वह सीधी तबाही है। बिना डोगा की पोशाक पहने भी सूरज उन गुंडों पर ऐसे टूटता है जैसे असल डोगा सामने आ गया हो। वह उन्हें एक-एक कर इतनी बेरहमी से मारता है कि वे दहशत में आ जाते हैं। उन्होंने सोचा था कि उन्होंने “सूरज” का अपहरण किया है, लेकिन असल में उन्होंने “डोगा” को आज़ाद कर दिया था।
अंजाम: एक ऐसा संदेश जो बिहार तक जाएगा
लड़ाई के आखिरी दौर में, सूरज (जो अब पूरी तरह डोगा के रूप में जाग चुका है) बिहारी भाई के खास गुर्गे को पकड़ लेता है, जो उसी समय फोन पर बिहारी भाई से बात कर रहा होता है। डोगा फोन हाथ में लेता है, लेकिन कुछ बोलता नहीं। वह उस गुर्गे को एक साफ और कड़क संदेश देता है:
“बिहारी भाई को बोलना… वापस बिहार लौट जाए… और अगर फिर कभी मुंबई का रुख किया… तो डोगा खुद बिहार आकर उसके पूरे धंधे का हरण कर लेगा।”
कॉमिक्स का अंत सूरज के मजबूत, शांत और जीत भरे चेहरे के साथ होता है। ‘डोगा हरण’ का प्लान बुरी तरह फेल हो चुका था।
चरित्र-चित्रण: दो चेहरे, एक ही असली पहचान
डोगा/सूरज: इस कॉमिक्स में सूरज और डोगा के बीच का फर्क और टकराव बेहतरीन तरीके से दिखाया गया है। यह बताता है कि ‘डोगा’ सिर्फ एक मास्क या पोशाक नहीं है; वह सूरज के अंदर बरसों से जल रही नफरत और दर्द की आग का चेहरा है। अपराधियों की सबसे बड़ी गलती यह थी कि उन्होंने सूरज को एक आम लड़का समझ लिया। उन्होंने उसके अंदर छुपे जानवर को जगाने की भूल कर दी।
बिहारी भाई: एक चालाक, संगठित और दिमाग से खेलने वाला विलेन। वह आम गुंडों की तरह नहीं सोचता। उसका प्लान (डोगा का अपहरण) ही उसे बाकी विलेन से अलग और ज्यादा खतरनाक बनाता है। वह पावर के नशे में डूबा हुआ है और उसे लगता है कि ताकत से कुछ भी हासिल किया जा सकता है।

विशाल: यह आम इंसान की उम्मीद और भरोसे का प्रतीक है। उसका डोगा पर विश्वास, और बाद में अपने दोस्त सूरज के लिए उसकी जान लगाने वाली वफादारी, उसे कहानी का जरूरी किरदार बनाती है।
कला और चित्रांकन: तस्वीरें जो खुद बोलती हैं
मनु रंग और सुनील पाण्डेय का आर्टवर्क कहानी के डार्क और ग्रिट वाले मूड को बखूबी पकड़ता है। एक्शन सीन बेहद शानदार और dynamic हैं। चाहे डोगा का गुस्सा हो, बिहारी भाई का घमंड हो या सूरज की मासूमियत—हर भाव चेहरे पर साफ झलकता है।
सबसे बड़ा कमाल यह है कि आर्टिस्ट ने डोगा का गुस्सा सिर्फ उसके कॉस्टयूम में नहीं, बल्कि सूरज के चेहरे पर भी उतार दिया है। खासकर क्लाइमेक्स में, जब सूरज लड़ता है, तो उसकी बॉडी लैंग्वेज और आँखें साफ बता देती हैं—यह अब सूरज नहीं, डोगा है।
लेखन और संवाद: छोटे, चुभने वाले और याद रहने वाले
तरुण कुमार वाही का लेखन इस कॉमिक्स की रीढ़ है। कहानी की रफ्तार बिल्कुल सही है। यह एक साधारण अपहरण से शुरू होकर धीरे-धीरे एक बड़े और खतरनाक प्लान तक पहुँच जाती है।
संवाद छोटे लेकिन दमदार हैं। बिहारी भाई के डायलॉग्स में उसका बिहारी अंदाज़ (“हमरा,” “ससुरा,” “बचवा”) कहानी को मजेदार स्वाद देते हैं। और डोगा? वह कम बोलता है, लेकिन जब बोलता है तो हर शब्द में डर और गुस्सा टपकता है। “डोगा का पता-ठिकाना… ‘मौत’ है!” — यह लाइन आज भी फैंस की फेवरिट है।
क्यों ‘डोगा हरण’ एक क्लासिक है?
“डोगा हरण” सिर्फ एक एक्शन कॉमिक्स नहीं है। यह एक गहरी मनोवैज्ञानिक कहानी है जो डोगा की कमजोरियों, उसके डर और उसकी असली ताकत को सामने लाती है। यह बताती है कि डोगा सिर्फ एक इंसान नहीं, बल्कि एक ‘आइडिया’ है—एक ऐसा खौफ जिसे अपराधी भले पकड़ लें, लेकिन उसे काबू नहीं कर सकते।
अपराधी सूरज (इंसान) का अपहरण कर सकते थे, लेकिन डोगा (आतंक) को कैद नहीं कर सकते। उल्टा, उसे कैद करके उन्होंने उसके गुस्से को और ज्यादा भड़का दिया।
यह कॉमिक्स डोगा के चरित्र की गहराई, उसके दोहरे जीवन की तकलीफ और अपराधियों के मन में बैठे उसके डर को शानदार तरीके से दिखाती है। यह राज कॉमिक्स के उस दौर की याद दिलाती है जब कहानियों में सिर्फ फाइट नहीं, दिल और दिमाग भी होता था। अगर आप डोगा फैन हैं या बढ़िया क्राइम-थ्रिलर पढ़ना चाहते हैं, तो “डोगा हरण” आपके लिए एक ‘मस्ट रीड’ है।
