‘इंस्पेक्टर स्टील’ एक ऐसा पुलिस अफसर है जिसका दिमाग तो इंसान का है, लेकिन शरीर पूरी तरह लोहे जैसा मजबूत। स्टील की कॉमिक्स अपनी तेज रफ्तार, रहस्य और दमदार एक्शन के लिए मशहूर रही हैं। आज हम जिस कॉमिक्स की बात करने वाले हैं, वह है जनरल कॉमिक्स (GENL-0801) के तहत छपी “डायल 100″, जिसे लिखा है हनीफ अजहर ने और तस्वीरें बनाई हैं नरेश कुमार ने। यह कॉमिक्स सिर्फ एक सुपरहीरो कहानी नहीं है, बल्कि सिस्टम पर एक तीखा तंज भी है—वो सिस्टम, जिसकी एक गलती किसी आम इंसान को एक खतरनाक अपराधी में बदल सकती है।
रहस्य, रोमांच और दहशत का कॉकटेल
“डायल 100” की कहानी की शुरुआत एक बहुत ही साधारण और रोज होने वाली घटना से होती है। पुलिस कंट्रोल रूम में एक कॉल आती है, जिसमें बताया जाता है कि एक मंदिर में चोरी हुई है। पुलिस की एक टीम तुरंत वहां पहुँचती है, लेकिन उन्हें कुछ भी शक की चीज नहीं मिलती। उन्हें लगता है कि किसी ने मज़ाक किया है। लेकिन जैसे ही वे वापस लौटने लगते हैं, अचानक कुछ ऐसा होता है जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी—मंदिर के गीले फर्श में दौड़ रहे हाई-वोल्टेज करंट की चपेट में आकर पूरी टीम मारी जाती है।
यह कोई एक बार की बात नहीं थी। जल्दी ही यह एक पैटर्न बन जाता है। राजनगरी में ‘डायल 100’ पुलिसवालों के लिए मौत का दूसरा नाम बन जाता है। कोई अंजान आदमी फर्जी कॉल करके पुलिस टीमों को खाली जगहों पर बुलाता है और पहले से लगाए हुए खतरनाक जालों में फंसाकर उन्हें मार देता है। शहर के रक्षकों पर हो रहे लगातार हमलों से पूरे पुलिस डिपार्टमेंट में डर बैठ जाता है। पुलिस का हौसला टूटने लगता है।

ऐसे समय में पुलिस कमिश्नर यह केस अपने सबसे भरोसेमंद और समझदार अफसर—इंस्पेक्टर स्टील—को देते हैं। स्टील के साथ होती है उसकी बहादुर साथी, सब-इंस्पेक्टर सलमा। कहानी यहीं से एक तेज रफ्तार वाले थ्रिलर का रूप ले लेती है। अपराधी फिर एक कॉल करता है—इस बार एक सुनसान गली में पड़ी लाश की। स्टील और सलमा वहां पहुँचते हैं। जैसे ही सलमा लाश को उठाने की कोशिश करती है, स्टील के रोबोटिक सेंसर लाश के नीचे छुपे एक ताकतवर प्रेशर बम का पता लगा लेते हैं। स्टील अपनी फौलादी बॉडी को ढाल बनाकर सलमा को एक भयानक धमाके से बचा लेता है।
अब साफ हो चुका था कि इन सारी हत्याओं के पीछे एक ही चालाक और ख़तरनाक दिमाग है—और उसका एक ही मकसद है: पुलिसवालों को मारना। स्टील अपनी तेज निगरानी और समझ का इस्तेमाल करते हुए इस नतीजे पर पहुँचता है कि अपराधी का पुलिस विभाग से कोई गहरा पुराना झगड़ा है। जांच करते-करते वे पिछले दो सालों में ऐसे तीन लोगों तक पहुँचते हैं, जिन्होंने ‘डायल 100’ पर कॉल करने के बावजूद पुलिस के देर से पहुँचने के कारण हुए नुकसान के चलते विभाग पर केस किया था।
कहानी में बड़ा मोड़ तब आता है जब पुलिस विभाग का ही एक लालची सिपाही कुछ पैसों के लालच में अपराधी को स्टील की जांच की जानकारी दे देता है। लेकिन अपराधी इतना बेरहम होता है कि वह उस गद्दार सिपाही को भी मार डालता है—ये दिखाने के लिए कि वह अपने रास्ते में आने वाले किसी को नहीं छोड़ेगा।
स्टील और सलमा यह तय करते हैं कि वे तीनों संदिग्धों से एक-एक करके मिलेंगे। पहला संदिग्ध, व्यापारी मेहता, उन्हें अपने घर में ही पूरे परिवार सहित बंधा हुआ मिलता है। अपराधी ने अंदाज़ा लगा लिया था कि स्टील वहाँ आएगा, इसलिए उसने पहले से ही यह जाल बिछा दिया था। दूसरा संदिग्ध, जगदीश, अपनी कुर्सी से एक टाइम बम के साथ बंधा हुआ मिलता है। यहाँ अपराधी स्टील को एक मुश्किल में डाल देता है—वह चाहे तो जगदीश को बचा ले या फिर अपराधी का पीछा करे। लेकिन स्टील अपनी जबरदस्त क्षमताओं की मदद से जगदीश को बचा लेता है। दोनों ही संदिग्धों की कहानी एक जैसी निकलती है—पुलिस की देर ने उनकी ज़िंदगी पूरी तरह बर्बाद कर दी थी।

आखिरकार, सारे सुराग स्टील को तीसरे और आखिरी संदिग्ध, प्रोफेसर वर्मा तक ले जाते हैं। प्रोफेसर वर्मा ही असल में वह खतरनाक अपराधी “मिस्टर 100” था। क्लाइमैक्स में वर्मा अपनी दर्दनाक कहानी बताता है। कुछ साल पहले उसके घर में आग लगी थी। उसने ‘डायल 100’ पर कॉल किया, लेकिन पुलिस और फायर ब्रिगेड बहुत देर से पहुँचे, और उसकी आँखों के सामने उसका पूरा परिवार आग में जलकर मर गया। इस हादसे ने एक सम्मानित प्रोफेसर को एक मानसिक रूप से टूटे हुए, बेरहम हत्यारे में बदल दिया, जिसका एक ही मकसद था—उस पुलिस व्यवस्था को बर्बाद करना जिसे वह अपने परिवार की मौत का जिम्मेदार मानता था।
चरित्र–चित्रण: नायक, खलनायक और इंसानियत
इंस्पेक्टर स्टील: स्टील इस कहानी का मुख्य आधार है। वह कानून और व्यवस्था का एक ऐसा रूप है जो इंसानी दिमाग और मशीन की ताकत दोनों का मेल है। वह भावनाओं से ज़्यादा तर्क पर काम करता है, और उसकी रोबोटिक क्षमताएँ उसे आम इंसानों से कहीं ऊपर खड़ा करती हैं। लेकिन जब वह सलमा को बचाने के लिए खुद को ढाल बना देता है, तो उसके अंदर की इंसानियत और जिम्मेदारी साफ दिखाई देती है। वह एक परफेक्ट क्राइम-फाइटिंग मशीन होने के साथ-साथ एक अच्छा इंसान भी है।
सब–इंस्पेक्टर सलमा: सलमा स्टील की मानवीय साथी है। वह बहादुर है, समझदार है, लेकिन साथ ही एक सामान्य इंसान होने की कमजोरियाँ भी उसके अंदर हैं। कहानी में वह पाठक को स्टील की मशीन जैसी दुनिया से जोड़ने का काम करती है। प्रेशर बम वाले सीन में उसकी घबराहट और बेबसी उस असली खतरे को दिखाती है, जिसका सामना हर पुलिसवाला अपनी ड्यूटी के दौरान करता है।

मिस्टर 100 (प्रोफेसर वर्मा): इस कॉमिक्स की सबसे बड़ी ताकत इसका खलनायक है। हनीफ अजहर ने उसे सिर्फ एक सादा विलेन नहीं बनाया, बल्कि एक दुख भरा, ट्रैजिक किरदार दिया है। वह जन्म से बुरा नहीं था; सिस्टम की गलती और उसकी निजी त्रासदी ने उसे राक्षस बना दिया। उसकी प्रेरणा समझ आने वाली है, भले ही उसके तरीके बेहद क्रूर हैं। यही चीज़ उसे एक ऐसा खलनायक बनाती है जिससे नफरत भी होती है और थोड़ी सहानुभूति भी।
कला और प्रस्तुतिकरण
नरेश कुमार की कला राज कॉमिक्स के सुनहरे दौर की खास पहचान है। उनके चित्रों में इतनी ऊर्जा और मूवमेंट है कि कहानी का हर एक्शन, हर थ्रिल साफ महसूस होता है। पैनलों का बंटवारा कहानी की रफ्तार को बहुत अच्छे से संभालता है। चाहे मंदिर में करंट फैलने वाला सीन हो, बम को निष्क्रिय करने का तनाव भरा पल हो, या फिर स्टील और मिस्टर 100 की आखिरी भिड़ंत—हर सीन बहुत खूबसूरती से खींचा गया है। कैलीग्राफी (टी.आर. आज़ाद) और एडिटिंग (मनीष गुप्ता) की बदौलत यह कॉमिक्स एक पूरा, मज़ेदार और यादगार अनुभव बनती है।
विषय और सामाजिक टिप्पणी
“डायल 100” सिर्फ एक एक्शन कॉमिक्स नहीं है। यह अपने समय की व्यवस्था पर एक गहरी बात भी कहती है।
व्यवस्था की विफलता: कहानी का मूल संदेश यह है कि अगर इमरजेंसी में मदद समय पर न पहुँचे, तो नुकसान कितना भयानक हो सकता है। पूरी कॉमिक्स इसी मुद्दे के इर्द-गिर्द घूमती है।

न्याय बनाम बदला: यह कॉमिक्स दिखाती है कि न्याय और बदले के बीच कितनी पतली रेखा होती है। प्रोफेसर वर्मा न्याय चाहता था, लेकिन जब उसे सिस्टम से न्याय नहीं मिला, तो वह बदले की राह पर चल पड़ा—और वहीं से उसका पतन शुरू हुआ।
मानव बनाम मशीन: इंस्पेक्टर स्टील आधा इंसान और आधी मशीन है। वह उस आदर्श सिस्टम का प्रतीक है जिसमें इंसानी गलतियाँ नहीं होतीं। वहीं मिस्टर 100 वह इंसान है जिसे इंसानी सिस्टम की गलतियों ने तहस-नहस कर दिया। यह टकराव कहानी को एक गहरी सोच भी देता है।
निष्कर्ष
“डायल 100” राज कॉमिक्स के खजाने का एक ऐसा अनमोल रत्न है जिसे आज भी पढ़ने में उतना ही मज़ा आता है। इसकी मजबूत पटकथा, लगातार बना रहने वाला रहस्य, और एक ऐसा खलनायक जिसकी कहानी दिल छू ले—इन सब वजहों से यह कॉमिक्स आज भी उतनी ही असरदार और मनोरंजक है। हनीफ अजहर और नरेश कुमार की जोड़ी ने मिलकर एक ऐसी कहानी दी है जो शुरुआत से लेकर आख़िर तक पाठक को बांधे रखती है। यह सिर्फ एक्शन और साइंस का मेल नहीं है, बल्कि इसमें इंसानी भावनाएं, दुख-दर्द, और सिस्टम की कमियों का बहुत ही असरदार चित्रण है।
अगर आप भारतीय कॉमिक्स के फैन हैं या फिर एक अच्छी थ्रिलर कहानी पढ़ना पसंद करते हैं, तो इंस्पेक्टर स्टील की “डायल 100” आपको ज़रूर पढ़नी चाहिए। यह आपको वापस उस दौर में ले जाएगी जब राज कॉमिक्स की कहानियाँ सिर्फ मज़ा ही नहीं देती थीं, बल्कि आपको सोचने पर भी मजबूर करती थीं।
