राज कॉमिक्स, डायमंड कॉमिक्स और मनोज कॉमिक्स के धूम-धड़ाके के बीच, किंग कॉमिक्स ने भी अपनी एक अलग पहचान बनाने की कोशिश की। हांलाकि बहुत लोगो को शायद ये बात पता नही की किंग कॉमिक्स भी राज कॉमिक्स का ही पार्ट था और इसी कड़ी का एक बेमिसाल हीरो था ऑलराउंडर वक्र। जहाँ अन्य सुपरहीरो अलौकिक शक्तियों, विज्ञान या जादुई ताकतों से लैस थे, वहीं वक्कू का जन्म समाज की गंदगी, खेल के प्रति जुनून और दिल में जलती प्रतिशोध की आग से हुआ था।
ऑलराउंडर वक्र का यह अंक (संख्या 10) सिर्फ एक कॉमिक बुक नहीं, बल्कि एक डार्क, ग्रिटी और भावनात्मक रूप से झकझोर देने वाली ओरिजिन स्टोरी (उत्पत्ति की कहानी) है। यह उस दौर की कहानी है जब कॉमिक्स बच्चों के मनोरंजन से कहीं आगे बढ़कर, सामाजिक कुरीतियों और अपराध की दुनिया पर भी टिप्पणी कर रही थीं। यह समीक्षा उस कॉमिक के कथानक, चरित्रों, कला और उसके गहरे संदेशों का विस्तृत विश्लेषण करेगी।
विस्तृत कथानक और कहानी का विश्लेषण
यह कहानी दो पटरियों पर एक साथ शुरू होती है – एक तरफ एक मासूम बच्चे का संघर्ष है और दूसरी तरफ खेल की दुनिया में फैलता अपराध।
वक्कू का अंधकारमय बचपन: कहानी की शुरुआत राजनगर की एक झोपड़-पट्टी में “दादू साइकिल वर्क्स” की दुकान से होती है। यहाँ हम एक मासूम लड़के ‘वक्कू’ से मिलते हैं। वक्कू गुमसुम सा, दिन-रात साइकिल के पंचर जोड़ता है। लेकिन उसकी खामोशी के पीछे खेल के मैदान के बड़े-बड़े अरमान छिपे हैं। वह क्रिकेट, फुटबॉल, हॉकी – हर खेल का दीवाना है। वह दुकान में लगे घिसे-पिटे टेलीविज़न पर चुपके से मैच देखता है और कल्पना करता है कि एक दिन वह भी टीवी पर आएगा।

लेकिन उसका मालिक ‘दादू’ एक बेहद क्रूर और हिंसक आदमी है। टीवी देखने पर वह वक्कू को झन्नाटेदार तमाचा जड़ देता है। वक्कू यह सब अपमान और आँसू पीकर सह जाता है। रात में जब दादू सो जाता है, तब वक्कू का असली रूप सामने आता है। वह अख़बारों से काटकर चिपकाए गए खिलाड़ियों के चित्रों को अपनी थाली से खाना खिलाता है और कसम खाता है कि एक दिन वह भी “ऑलराउंडर” बनेगा। उसका यह सपना ही उसे जिन्दा रखे हुए है। वह रोज़ रात को चुपके से भागकर ‘राजनगर स्टेडियम’ को दूर से देखता है, मानो वह उसका मंदिर हो।
आग का ज्वालामुखी: जलता बल्ला कहानी में भयावह मोड़ तब आता है जब एक सुबह दादू, वक्कू पर एक सूखा पेड़ काटने का इल्जाम लगाता है। उसे वक्कू के पास लकड़ी का एक बल्ला (बैट) मिलता है, जिसे वक्कू ने खुद बनाया था। वक्कू डर के मारे झूठ बोल देता है कि यह बैट उसके दोस्त ‘छंगू’ का है। दादू का पारा सातवें आसमान पर पहुँच जाता है। वह वक्कू को सज़ा देने के लिए उस बल्ले पर तेल छिड़कता है और उसमें आग लगा देता है।
यह वक्कू के सब्र का अंतिम पल था। अपने सपने को, अपने दोस्त की अमानत को जलता देख, वक्कू के अंदर वर्षों से दबा क्रोध का ज्वालामुखी फट पड़ता है। वह जलता हुआ बैट उठाता है और पूरी ताकत से दादू के सिर पर दे मारता है।
जन्म एक भगोड़े का: दादू के सिर से खून बहता देख वक्कू घबरा जाता है। “पकड़ो-पकड़ो” का शोर मचता है और पूरी झोपड़-पट्टी उसके पीछे लग जाती है। वक्कू उस जलते बल्ले को बचाने के लिए उसे लेकर भागता है और भीड़ से बचने के लिए नदी में छलांग लगा देता है। जब तक वह किनारे पहुँचता है, बल्ला जलकर कोयला बन चुका होता है। यह दृश्य दिल दहला देने वाला है।

वह अपने दोस्त छंगू (जो कबाड़ बीनता है) से अपने गुप्त अड्डे (एक पुराने पानी के टैंकर) में मिलता है और उसे जला हुआ बैट दिखाकर फूट-फूट कर रोता है। यह वक्कू के बचपन का अंत था।
समानांतर कहानी: ईमानदार अम्पायर ठीक इसी समय, राजनग स्टेडियम में एक और कहानी चल रही है। कोच और मशहूर अम्पायर ‘कृष्णकांत ठाकुर’ एक ईमानदार और उसूलों के पक्के इंसान हैं। उन्हें मैच फिक्सिंग सिंडिकेट से 50,000 रुपये की घूस की पेशकश की जाती है, ताकि वे आने वाले मैचों से हट जाएँ। ठाकुर साहब उस पेशकश को अपने बूट की ठोकर से “ना” लिखकर वापस भेज देते हैं।
वक्र और कृष्णकांत का मिलन: सिंडिकेट के गुंडे (राजन और उसके साथी) वक्कू को, जो वहीं से गुज़र रहा था, ठाकुर का जासूस समझकर उस पर हमला कर देते हैं। वक्कू, जो पहले से ही गुस्से में था, अपनी फुटबॉल स्किल का बेजोड़ प्रदर्शन करता है और गुंडों की धुनाई कर देता है। फटी हुई फुटबॉल से वही धमकी भरा पर्चा निकलता है और वक्कू समझ जाता है कि अम्पायर की जान खतरे में है।
वह ठाकुर साहब को बचाने उनके घर पहुँचता है, जहाँ ‘रंगा’ नाम का एक और गुंडा उन्हें धमका रहा होता है। वक्कू इस बार हॉकी स्टिक, क्रिकेट बॉल और अपनी फुर्ती से गुंडों को धूल चटा देता है। कृष्णकांत ठाकुर एक छोटे से लड़के में इतना हुनर (‘आलराउंडर’ वाली बात) और “आग” देखकर स्तब्ध रह जाते हैं। वक्कू उन्हें अपनी दर्दभरी कहानी सुनाता है। ठाकुर साहब फैसला करते हैं कि वह इस ‘आग’ को सही दिशा देंगे और वे वक्कू को गोद ले लेते हैं।
त्रासदी और प्रतिशोध: ठाकुर साहब वक्कू को ट्रेनिंग देना शुरू करते हैं, लेकिन सिंडिकेट का ‘बॉस’ चुप नहीं बैठता। वह स्टेडियम में प्रैक्टिस के दौरान ठाकुर साहब पर जानलेवा हमला करवाता है। गुंडे ट्रक, चाकू और हथियारों से लैस होते हैं। वक्कू बहादुरी से लड़ता है, लेकिन ठाकुर साहब उसे बचाते हुए गंभीर रूप से घायल हो जाते हैं।
‘वक्र’ का जन्म: फाइनल मैच शुरू होता है। ठाकुर साहब की जगह एक बिकाऊ अम्पायर को खड़ा किया गया है। मैच खुलेआम ‘फिक्स’ है। एक ईमानदार खिलाड़ी को गलत ‘आउट’ दे दिया जाता है। अस्पताल में टीवी पर यह सब देख रहे वक्कू का खून खौल उठता है। कृष्णकांत उसे रोकते हुए कहते हैं, “क्रोध तेरा सबसे बड़ा शत्रु है… मत जा।”
लेकिन वक्कू नहीं रुकता। वह कहता है, “मेरा मैच शुरू हो चुका है।” वह एक नए, विचित्र कॉस्टयूम (क्रिकेट पैड, हेलमेट, और एक बल्ला) में स्टेडियम पहुँचता है। यह ‘ऑलराउंडर वक्र’ का जन्म था। वह मैदान में घुसकर बिकाऊ अम्पायर और गुंडों को मारना शुरू कर देता है। वह क्रूर है, हिंसक है, और उसे किसी कानून की परवाह नहीं।
कहानी के अंत में, पुलिस वक्र को पकड़ने आती है, लेकिन कृष्णकांत ठाकुर उसे बचा लेते हैं। पर जब वे वक्कू के हाथ में खूनी हॉकी स्टिक देखते हैं, तो वे उसे रोकते हैं। वक्कू जवाब देता है, “मैं न क्रन्तिकारी हूँ न अपराधी… मैं एक आलराउंडर हूँ… और आज से मेरा हर मैच अपराध के खिलाफ होगा।”

कहानी का अंत वक्र और कृष्णकांत के आमने-सामने खड़े होने के साथ होता है, जहाँ गुरु को अहसास हो जाता है कि उसका शिष्य अब एक अलग, हिंसक रास्ते पर निकल चुका है।
चरित्र चित्रण (Character Analysis)
वक्कू / ऑलराउंडर वक्र: यह भारतीय कॉमिक्स के सबसे जटिल और दुखद नायकों में से एक है। वह कोई आदर्शवादी हीरो नहीं है। उसका जन्म ही हिंसा और क्रोध से हुआ है। उसने अपने अत्याचारी मालिक का सिर फोड़ा है। वह कानून को हाथ में लेता है क्योंकि उसे सिस्टम पर भरोसा नहीं है। उसका हथियार कोई फैंसी गैजेट नहीं, बल्कि खेल का सामान (बल्ला, हॉकी स्टिक) है, जो उसके जुनून और उसके क्रोध, दोनों का प्रतीक है। ‘वक्र’ नाम ही उसकी टेढ़ी-मेढ़ी, असामाजिक न्याय-प्रणाली को दर्शाता है।
कृष्णकांत ठाकुर: वे कहानी के नैतिक ध्रुव हैं। वे ‘खेल की पवित्र भावना’ के प्रतीक हैं। वे एक आदर्श गुरु हैं जो वक्कू की प्रतिभा को पहचानते हैं और उसकी ‘आग’ को सही दिशा देना चाहते हैं। लेकिन उनकी त्रासदी (पैर खोना) उन्हें लाचार बना देती है और वे वक्कू को अँधेरे के रास्ते पर जाने से रोक नहीं पाते। वे वक्र के लिए एक पितातुल्य मार्गदर्शक हैं।
दादू और सिंडिकेट बॉस: ये दोनों खलनायक दो स्तरों पर काम करते हैं। ‘दादू’ जमीनी स्तर के, व्यक्तिगत अत्याचार का प्रतीक है। वह उस क्रूरता का चेहरा है जिसने वक्कू को तोड़ा। दूसरी ओर, ‘बॉस’ संगठित अपराध (Organized Crime) का चेहरा है, जो खेल जैसी पवित्र चीज को भी अपने पैसे से दूषित कर रहा है।
कला (Artwork) और लेखन (Writing)
लेखन (टीकाराम): टीकाराम का लेखन इस कॉमिक की जान है। कहानी बेहद कसी हुई, तेज-रफ्तार और भावनाओं से ओत-प्रोत है। संवाद तीखे और दमदार हैं। “तेरी हार का मतलब है… तेरी जिंदगी का खेल खत्म!” या “क्रोध एक बहुत खूबसूरत आग है… बस इसे सही दिशा की जरूरत है,” जैसे संवाद कहानी को गहराई देते हैं। सबसे बड़ी बात, यह कॉमिक ‘खेल में भ्रष्टाचार’ जैसे गंभीर मुद्दे को उस समय उठा रही थी, जब यह विषय मुख्यधारा में इतना चर्चित नहीं था।

कला (धीरज और वर्मा): धीरज की पेंसिल और वर्मा की फिनिशिंग उस युग के हिसाब से बेहतरीन है। कला ‘ग्रिटी’ (gritty) है, जो कहानी के डार्क टोन से मेल खाती है। वक्कू के चेहरे पर गुस्सा, बेबसी और दर्द के भाव बहुत स्पष्टता से दिखाए गए हैं। एक्शन सीन (वक्कू का फुटबॉल से लड़ना, या हॉकी स्टिक से गुंडों की पिटाई) बहुत गतिशील और प्रभावी हैं। वक्र का कॉस्टयूम थोड़ा अजीब लग सकता है (क्रिकेट गियर पहनकर लड़ना), लेकिन यह उसकी थीम और उसकी पहचान “ऑलराउंडर” से पूरी तरह मेल खाता है।
समग्र विश्लेषण और निष्कर्ष
“ऑलराउंडर वक्र” एक टिपिकल सुपरहीरो कॉमिक नहीं है; यह एक ‘विजिलान्ते’ (vigilante) की कहानी है, जो ‘बैटमैन’ या ‘डेयरडेविल’ की डार्क टोन के करीब है। यह कहानी दिखाती है कि कैसे सिस्टम की विफलता और व्यक्तिगत त्रासदी एक आम इंसान को नायक (या एंटी-हीरो) बनने पर मजबूर कर देती है।
यह कॉमिक खेल को जीवन के एक रूपक के तौर पर इस्तेमाल करती है। वक्र का मानना है कि जीवन एक खेल है और अपराधी बेईमान खिलाड़ी हैं, जिन्हें मैदान (समाज) से बाहर करना जरूरी है।
अंतिम फैसला: “ऑलराउंडर वक्र” भारतीय कॉमिक्स का एक छिपा हुआ रत्न है। यह एक साहसी, परिपक्व और भावनात्मक रूप से सशक्त कहानी है। यह अफ़सोस की बात है कि यह किरदार राज कॉमिक्स के नायकों जितनी ख्याति प्राप्त नहीं कर सका। यदि आप सिर्फ हंसी-मजाक या सीधी-सादी ‘बुराई पर अच्छाई की जीत’ वाली कहानियों से अलग कुछ डार्क और यथार्थवादी पढ़ना चाहते हैं, तो यह कॉमिक आपके लिए है।
यह सिर्फ एक कॉमिक नहीं, बल्कि एक जलते हुए बल्ले से लिखी गई गुस्से, जुनून और न्याय की एक अंधेरी गाथा है।
