राज कॉमिक्स ने भारतीय कॉमिक्स की दुनिया में कई यादगार नायक और खलनायक दिए हैं, लेकिन सुपर कमांडो ध्रुव की जगह हमेशा खास रही है। ध्रुव अपनी ताकत से ज्यादा अपनी समझदारी, वैज्ञानिक सोच और शांत स्वभाव के लिए जाना जाता है। “गुप्त” राज कॉमिक्स का ऐसा ही एक खास अंक है, जो सिर्फ ध्रुव के दिमाग और स्किल्स ही नहीं, बल्कि उसकी भावनाओं और अंदर छिपी कमजोरियों को भी सामने लाता है। जॉली सिन्हा की लिखी हुई और अनुपम सिन्हा के जबरदस्त चित्रों से सजी यह कॉमिक सिर्फ एक मार-धाड़ वाली कहानी नहीं है, बल्कि यह “गुप्त” शब्द की कई परतें खोलती है—चाहे वह खलनायक की गुप्त पहचान हो, ध्रुव के परिवार की सुरक्षा का गुप्त जिम्मा हो, या अपराध से लड़ने की उसकी कोई गुप्त योजना। यह समीक्षा इसी स्पेशल इश्यू की कहानी, पात्रों, कला और इसके मुख्य थीम की गहराई से बात करेगी।
कथानक और पटकथा: एक बहु–स्तरीय षड्यंत्र
“गुप्त” की कहानी एक सधे हुए शतरंज के खेल की तरह रखी गई है, जहाँ हर किरदार एक बड़ी चाल का हिस्सा है। कहानी की शुरुआत राजनगर के एक सुनसान समुद्री किनारे से होती है, जहाँ तस्करों का एक गिरोह (मिर्ज़ा जौनपुरी के लीड में) एक पुरानी चूना पत्थर की खान के ज़रिए हथियारों की तस्करी कर रहा है। यहीं सुपर कमांडो ध्रुव की शानदार एंट्री होती है। वह अचानक वहाँ नहीं पहुँचा—पिछले छापे में डॉन शार्की के गोदाम में मिले सुरागों—बक्सों में लगी खारे पानी की गंध और चूने की धूल—को जोड़कर उसने इस गुप्त रास्ते का पता लगाया था। ध्रुव तस्करों के एक बक्से में छिपकर उनके अड्डे तक पहुँच जाता है।

यहीं कहानी पहला बड़ा मोड़ लेती है। ध्रुव तस्करों पर भारी पड़ने ही वाला होता है कि अचानक एक नया और रहस्यमयी खलनायक “अलकेमिस्ट” सामने आता है। नाम से ही पता चलता है कि वह रसायनों का मास्टर है। वह शार्की को अपने साथ ले जाने आया है। अलकेमिस्ट की असली ताकत उसकी केमिकल पोटलियाँ हैं। वह ध्रुव को फँसाने के लिए चूना पत्थर और एक दूसरे रसायन को मिलाकर एक खतरनाक फोम बनाता है, जो ध्रुव को जकड़ लेता है और खान में पानी भरने लगता है। लेकिन ध्रुव अपनी तेज़ समझ और एक डॉल्फिन की मदद से वहाँ से निकलने में सफल हो जाता है।
पटकथा का असली कमाल यहाँ से शुरू होता है। अलकेमिस्ट की मंशा सिर्फ तस्करी या शार्की को छुड़ाने तक सीमित नहीं है। उसका निशाना कहीं बड़ा है। इसके बाद कहानी ध्रुव के निजी जीवन की ओर मुड़ती है। हम ध्रुव को उसके परिवार के साथ देखते हैं—उसकी बहन श्वेता, जिसने परीक्षा में टॉप किया है और एक नामी यूनिवर्सिटी में एडमिशन पाया है, और उसके पिता कमिश्नर राजन मेहरा। यह खुशनुमा माहौल कहानी में आने वाले तूफान का इशारा करता है।
अब अलकेमिस्ट का असली खेल शुरू होता है। वह ध्रुव की सबसे बड़ी ताकत और उसकी सबसे बड़ी कमजोरी—उसके परिवार—को निशाना बनाता है। वह पहले एक सोची-समझी योजना से पूरे शहर में ट्रैफिक जाम करवाता है ताकि ध्रुव और श्वेता दोनों फँस जाएँ। फिर वह अपने एक आदमी को “जेल-जेली” नाम के एक दैत्य में बदल देता है, जो प्रोटीन और रसायनों से बना है। यह एक्शन सीन शानदार है (जहाँ चंडिका भी ध्रुव की मदद के लिए पहुँचती है)। ध्रुव और चंडिका मिलकर उस दैत्य को एक रेफ्रिजरेटेड वैन में बंद कर ठंडा कर देते हैं।

लेकिन यह सब सिर्फ ध्यान भटकाने की चाल थी। अलकेमिस्ट का अगला निशाना कमिश्नर राजन मेहरा होते हैं। वह उनकी कार में एक उन्नत “केमिकल टाइम बम” लगा देता है। यह बम पेट्रोल टैंक में डाले गए फॉस्फोरस और एक केमिकल पेलेट के टकराते ही फट जाता है। इस धमाके में कमिश्नर मेहरा बुरी तरह घायल हो जाते हैं। यह हादसा ध्रुव को अंदर तक हिला देता है। अस्पताल में अपने पिता को मौत और जिंदगी के बीच झूलते देख ध्रुव का गुस्सा, दर्द और बेबसी चरम पर पहुँच जाती है।
लेकिन अलकेमिस्ट यहीं नहीं रुकता। वह ध्रुव की बहन श्वेता पर हमला करने के लिए “अमला” नाम के एक और गुर्गे को भेजता है, जो एसिड गैस के बुलबुले छोड़ने वाले खास सूट से लैस है। ध्रुव और श्वेता मिलकर उससे भिड़ते हैं, लेकिन जैसे ही लड़ाई खत्म होने को आती है, अलकेमिस्ट खुद आता है और एक “वायरल रसायन” वाला कैप्सूल फेंकता है, जिससे श्वेता भी घायल हो जाती है।
अब हालात और खराब होते जाते हैं—एक तरफ पिता और दूसरी तरफ बहन, दोनों अस्पताल में। ध्रुव को महसूस होने लगता है कि उसके सुपरहीरो होने की कीमत उसका परिवार चुका रहा है। इसी वजह से वह राजनगर छोड़ने का फैसला कर लेता है। और यही तो अलकेमिस्ट की असली योजना थी। जैसे ही ध्रुव दूर जाता है, अलकेमिस्ट राजनगर इंटरनेशनल गोल्ड एक्सचेंज में इतिहास की सबसे बड़ी चोरी की अपनी अंतिम योजना शुरू कर देता है। वह सिल्वर आयोडाइड का इस्तेमाल करके एक कृत्रिम “फ्लेक्स-फ्लड” (Flex-Flood) पैदा करता है, ताकि बाढ़ जैसी अफरा-तफरी में सोना आसानी से लूटा जा सके।

कहानी का क्लाइमेक्स गोल्ड एक्सचेंज के वॉल्ट में होता है, जहाँ अलकेमिस्ट और उसका गैंग सोना समेट रहा होता है। तभी ध्रुव वहाँ पहुँच जाता है। सच यह है कि ध्रुव शहर छोड़कर गया ही नहीं था। उसे पहले ही शक हो गया था कि उसके परिवार पर हमले सिर्फ उसे असली लक्ष्य से हटाने के लिए थे। यहीं अलकेमिस्ट अपना सबसे खतरनाक दांव चलता है—एक ऐसा दैत्य, जो “कैंसर-सेल” और अलग-अलग रसायनों से बना है और ऑक्सीजन पर जिंदा रहता है। यह दैत्य इतना भयानक है कि अपने ही साथियों को निगलने लगता है।
ध्रुव यहाँ भी अपनी वैज्ञानिक समझ का इस्तेमाल करता है। उसे याद आता है कि अलकेमिस्ट ने श्वेता पर जो “वायरल रसायन” फेंका था, वह ऑक्सीजन का दुश्मन था। वही रसायन वह इस दैत्य पर इस्तेमाल करता है, और अंत में उसे खत्म कर देता है।
चरित्र–चित्रण
सुपर कमांडो ध्रुव: यह कॉमिक्स ध्रुव के किरदार को एक नई गहराई देती है। वह सिर्फ एक अजेय योद्धा नहीं है। वह एक बेटा है, एक भाई है, जो अपने परिवार पर संकट आने पर अंदर से टूट जाता है। उसके अंदर चल रहा भावनात्मक संघर्ष—एक सुपरहीरो के फर्ज़ और एक बेटे की जिम्मेदारी के बीच—बहुत खूबसूरती से दिखाया गया है। लेकिन उसकी असली ताकत उसकी समझदारी ही है। वह भावनात्मक रूप से टूटने के बावजूद, अलकेमिस्ट की चालों को समझ लेता है और हर समय उससे एक कदम आगे रहता है।
अलकेमिस्ट: एक ऐसा खलनायक जिसे याद रखना आसान है। उसकी ताकत सिर्फ उसकी क्रूरता नहीं है, बल्कि उसका तेज दिमाग है। वह रसायनों का बादशाह है। उसकी हर योजना सोची-समझी और कई परतों वाली होती है। वह ध्रुव की भावनाओं से खेलता है। उसका मकसद (बदला) उसे एक निजी स्तर देता है, जो उसे आम खलनायकों से अलग बनाता है। उसके रासायनिक हथियार—जेल-जेली, एसिड-सूट, वायरल रसायन—काफी रचनात्मक और अनोखे हैं।
श्वेता: ध्रुव की बहन श्वेता को सिर्फ एक ‘damsel in distress’ (मदद का इंतज़ार करने वाली अबला) की तरह नहीं दिखाया गया है। वह समझदार है (परीक्षा में टॉप करती है) और बहादुर भी (अमला के खिलाफ लड़ाई में ध्रुव का साथ देती है)। वह ध्रुव के लिए प्रेरणा का एक अहम हिस्सा है।
कमिश्नर राजन मेहरा: इस कॉमिक्स का सबसे बड़ा “गुप्त” कमिश्नर मेहरा से जुड़ा हुआ है। वह सिर्फ एक ईमानदार पुलिस अफसर नहीं, बल्कि एक असली “क्राइम-फाइटर” हैं। कहानी के अंत में उनका किरदार एक बड़ा ट्विस्ट लेकर आता है, जो पूरी कहानी को एक नया मतलब देता है।
थीम और विश्लेषण: “गुप्त” का सही अर्थ
कॉमिक्स “गुप्त” का नाम ही कहानी के असली थीम के रूप में सामने आता है, और इसे कई अलग-अलग स्तरों पर सही साबित करता है।
पहला—यह खलनायकों की गुप्त पहचान को दिखाता है, जहाँ डॉन शार्की नकाब के पीछे छिपता है और अलकेमिस्ट अपनी नकाब और नकली मौत के जरिए सबको भ्रमित करता है।
दूसरा—यह नायक के लिए एक भावनात्मक “गुप्त” पहलू लाता है, क्योंकि सुपर कमांडो ध्रुव की कोई सीक्रेट पहचान नहीं है, लेकिन वह अपने परिवार को अपनी सबसे बड़ी गुप्त कमजोरी मानता है। उसी कमजोरी पर अलकेमिस्ट अपनी सबसे बड़ी चोट करता है।
तीसरा—यह अलकेमिस्ट की पूरी योजना को “गुप्त” रखता है। वह ध्रुव को भटकाने के लिए कई छोटी-छोटी चालें चलता है, जबकि उसका असली लक्ष्य गोल्ड एक्सचेंज की बड़ी चोरी होती है।
कला और चित्रांकन

अनुपम सिन्हा का आर्टवर्क हमेशा की तरह बेहतरीन है। उनकी लाइनें साफ, मज़बूत और ऐक्शन से भरपूर हैं। एक्शन सीन—जैसे ट्रैफिक जाम के बीच जेल-जेली वाली लड़ाई, या बाढ़ में हुआ अंतिम मुकाबला—उन्होंने इतने जीवंत तरीके से खींचे हैं कि हर फ्रेम चलता हुआ सा लगता है। ध्रुव की पीड़ा, गुस्सा, और उसके अंदर की जिद—इन सबको उन्होंने बहुत खूबसूरती से आर्ट में उतारा है।
अलकेमिस्ट, जेल-जेली और कैंसर-सेल मॉन्स्टर के डिज़ाइन रचनात्मक और डराने वाले हैं। विनोद कुमार की इंकिंग और सुनील पांडेय का रंग-काम कहानी के माहौल को और भी गहरा बना देता है—चाहे वह खान का अंधेरा हो या अस्पताल के दृश्यों की उदासी।
निष्कर्ष
“गुप्त” सुपर कमांडो ध्रुव के बेहतरीन विशेषांकों में से एक है। यह कॉमिक्स एक जटिल और अच्छी तरह बुनी हुई कहानी को भावनात्मक गहराई के साथ सामने रखती है। यह सिर्फ ऐक्शन और विज्ञान का तड़का नहीं है, बल्कि इसमें परिवार, कर्तव्य और समझदारी का भी मजबूत संदेश छिपा है। जॉली सिन्हा की कहानी शुरू से आखिर तक बांधे रखती है, और आखिरी पन्नों में आने वाला ट्विस्ट पाठकों को हैरान कर देता है। यह कॉमिक्स ध्रुव को एक आम सुपरहीरो से ऊपर उठाकर एक “सुपर कमांडो” की जगह पर मजबूती से बैठाती है—जो जानता है कि असली लड़ाई सिर्फ ताकत से नहीं, दिमाग से भी जीती जाती है। यह भारतीय कॉमिक्स का एक ऐसा नगीना है, जिसे हर कॉमिक प्रेमी को ज़रूर पढ़ना चाहिए।
