राज कॉमिक्स के स्वर्णिम दौर की सबसे लंबी और सबसे ज़्यादा परतों वाली गाथा का आखिरी पड़ाव, ‘महारावण’, सिर्फ एक युद्ध का अंत नहीं है। यह महाबली भोकाल के सफर की पूरी होने वाली कहानी और इंसानियत के लिए एक बड़ी नैतिक जीत की दास्तान है। संजय गुप्ता द्वारा लिखी और कदम स्टूडियो द्वारा बनाई गई यह विशेषांक, पिछली तीन कड़ियों — ‘कपालिका’, ‘कलंका’ और ‘महायुद्ध’ — की लड़ाइयों को एक ऐसे मुकाम पर पहुँचाता है, जहाँ मामला सिर्फ ताकत का नहीं, बल्कि गुरु का आशीर्वाद, खुद पर भरोसा और बलिदान से तय होता है।
इस अंक की सबसे बड़ी चुनौती है महारावण की अमरता, जो उसके शरीर में बह रहे ‘अमृत’ के कारण है। भोकाल ने पिछली कहानी में अपने अहंकार को पीछे छोड़ दिया था, लेकिन अब उसके सामने एक ऐसा दुश्मन खड़ा है, जो दैवी वरदानों, धोखे और मायाजाल की हदें पार कर चुका है। यह कहानी महारावण के मायावी हथियारों की कमजोरी, उसकी पत्नियों के भावुक मोड़, हनुमान की छुपी आखिरी चाल और भोकाल के चमत्कारिक ‘पुनर्जनन’ को सामने लाती है, जो इसे भारतीय कॉमिक्स में सचमुच एक ऐतिहासिक कृति बना देती है।
रक्त और संकल्प का द्वंद्व
‘महारावण’ का कवर पेज कहानी के असली टकराव को सीधा दिखाता है। खून से लथपथ महारावण भोकाल पर अपनी आखिरी वार करने जा रहा है, जबकि भोकाल पूरी हिम्मत और दृढ़ता के साथ उसका मुकाबला कर रहा है। महारावण का नीला-जामुनी रंग उसकी दानवी ताकत और अमरता का अहसास दिलाता है, जबकि भोकाल का गुलाबी/लाल जाँघिया उसकी बहादुरी और जुनून को दर्शाता है।

कदम स्टूडियो ने इस बार भावनाओं और तनाव को दिखाने में कमाल कर दिया है। महारावण के चेहरे पर ग़ुरूर और गुस्सा, कुरूपा की आँखों में बेबसी, और हनुमान के होंठों पर हल्की सी रहस्यमयी मुस्कान—ये सारी बारीकियाँ कहानी को और भारी बनाती हैं। खासकर महारावण के प्रचंडास्त्र और भोकाल की ‘ज्वालाशक्ति’ के दृश्य इतनी ऊर्जा और भव्यता से भरे हैं कि यह आखिरी युद्ध लंबे समय तक याद रहता है।
छल, संहार और अमरता का रहस्य
‘महारावण’ की कहानी बेहद घनी और तेज़ है। लगभग हर पेज पर एक नई मुश्किल और एक नया खुलासा सामने आता है। मुख्य कहानी दो हिस्सों में चलती है—एक तरफ महारावण की घटती शक्तियाँ, और दूसरी तरफ भोकाल के अस्त्रों का खत्म होना, ताकि जीत आख़िर में जोर-ज़बरदस्ती से नहीं, बल्कि अंदर की ताकत से हो सके।
दिव्यास्त्रों की अंतिम परीक्षा और समर्पण:

कहानी वहीं से आगे बढ़ती है जहाँ ‘महायुद्ध’ खत्म हुई थी। महारावण अपने मायावी और दैवी ताकतों वाले अस्त्रों का अंतिम बार इस्तेमाल करता है, और भोकाल, हनुमान के दिशा-निर्देश पर, हर हथियार का तोड़ ढूंढ लेता है।
प्रचंडास्त्र पर हनुमान का त्याग:
पिछले अंक में प्रचंडास्त्र को रोकने के लिए हनुमान ने अपने शरीर के ‘रामपाश’ का बलिदान दिया था।
शिव-त्रिशूल और नंदी पर प्रहार:
महारावण शिव का त्रिशूल उठाकर नंदी पर हमला करता है। बाद में भोकाल उसी त्रिशूल को हनुमान की रणनीति के तहत कलंका की ओर फेंकता है, जिससे महारावण की शक्ति कमजोर होने लगती है।
भयंकरा और मोहिनी सम्मोहक (The Skull Demons):
महारावण भयंकर खोपड़ी-दानव (भयंकरा) और मोहिनी-सम्मोहक (सम्मोहक मुंड) बुलाता है, जो भोकाल और उसके साथियों को सम्मोहित कर मानसिक रूप से बेअसर कर देते हैं। इस मुसीबत को महारावण की पत्नी कुरूपा तोड़ती है—उसी कुरूपा को जिसे महारावण ने खुद काली की कपालफोड़ शक्ति दी थी। लेकिन अब वह धर्म और अपने पुत्र अतिक्रूर के पक्ष में खड़ी हो जाती है।
पत्नियों का विश्वासघात और आत्म-बलिदान:
कहानी का सबसे मानवीय और दिल छू लेने वाला मोड़ महारावण की पत्नियों का संघर्ष है। महारावण, अपनी ताकत और अहंकार में डूबा हुआ, अपनी पत्नियों (जिन्हें वह ‘शूल रस्सी’ और ‘हड्डल शक्ति’ जैसी मायावी शक्तियाँ देकर अपनी गुलाम बना चुका है) और अपने बच्चों को भोकाल के खिलाफ मानव-ढाल की तरह इस्तेमाल करता है। उसे पता है कि भोकाल कभी अपने परिवार पर वार नहीं करेगा।

इसी बीच, महारावण अपनी अगली शक्ति—विषभुजंगा (एक बेहद विषैला मायावी सर्प)—का उपयोग करता है। कुरूपा, अपने बच्चों और इंसानियत की रक्षा के लिए, उस सर्प के सामने खुद को बलिदान करने को तैयार हो जाती है। ठीक उसी वक्त हनुमान की छुपी रणनीति काम करती है: भोकाल विषभुजंगा से लड़ने के लिए मत्स्यकेतु (पिछली कड़ी से) की विषग्रंथि का इस्तेमाल करता है। ‘विष को विष काटता है’ के सिद्धांत पर, विषभुजंगा नष्ट हो जाता है और कुरूपा बच जाती है।
मोहिनी मूर्तियों का खेल और महारावण की गलती:
अपनी लगातार हो रही हार से तिलमिलाया महारावण, कपट-चालों का उस्ताद तुषाराचार्य को दोबारा बुलाता है। हनुमान, इस नए खतरे को समझकर, एक और गुप्त योजना पर काम करते हैं। वह मोहिनी मूर्तियों को खुद महारावण के हाथों में सौंप देते हैं। महारावण फैसला करता है कि वह इन मूर्तियों को भोकाल पर फेंकेगा, ताकि वे मूर्तियाँ भोकाल की पत्नी और बच्चों में समा जाएँ और हमेशा के लिए उन्हें अपने वश में कर लें।
लेकिन जैसे ही महारावण मूर्तियाँ भोकाल की तरफ फेंकने जाता है, हनुमान की योजना अपना कमाल दिखाती है:
महारावण की ही ताकत से उसके वश में की गई शूल रस्सी और हड्डल शक्ति, भोकाल पर वार करते हुए उन्हीं मूर्तियों से टकरा जाती हैं और खुद ही नष्ट हो जाती हैं। यह आत्म-विनाश की स्थिति थी, जहाँ महारावण की अपनी बनाई शक्तियाँ उसी पर भारी पड़ जाती हैं।

इस टकराव से मूर्तियों का सम्मोहक प्रभाव भी टूट जाता है। जैसे ही वे मूर्तियाँ कुरूपा और सलोनी के शरीर में प्रवेश करती हैं, वे पहले से चल रहे सम्मोहन से मुक्त हो जाती हैं।
अपने ही अहंकार और चालाकी का बोझ आखिरकार महारावण पर गिरता है। गुस्से में अंधा होकर, वह तुषाराचार्य को भी सिंह शक्ति से मार डालता है।
भोकाल का शून्य पर पहुँचना और पुनर्जनन (The Path to Zero):
एक-एक करके महारावण की शक्तियाँ कम होती जाती हैं, लेकिन इसके साथ ही भोकाल के दिव्यास्त्र भी खत्म होते रहते हैं।
सुदर्शन चक्र पिशाच रक्त से भरे कटोरे को नष्ट करता है, लेकिन खुद ही विलीन हो जाता है।
गणेश का अंकुश मकर शक्ति को खत्म करता है और खुद भी समाप्त हो जाता है।
रामबाण, महारावण के अंतिम अस्त्र से टकराकर अपनी शक्ति खो देता है और विलीन हो जाता है।
अब भोकाल अपने सारे दिव्यास्त्र खो देता है और ‘शून्य’ की अवस्था में पहुँच जाता है। जब वह अपने महागुरु (वही दैवीय इकाई ‘भोकाल’, जिसके नाम पर उसे शक्तियाँ मिली थीं) का आह्वान करता है, तो महारावण उसकी हालत का मज़ाक उड़ाता है। भोकाल का शरीर ‘रेत के भोकाल’ में बदल जाता है—यह उसकी शारीरिक मृत्यु थी।
ज्वालाशक्ति का उदय और महारावण का अंत:
भोकाल का रेत में बदल जाना इस पूरी गाथा का सबसे बड़ा ट्विस्ट है। महारावण अपनी जीत का जश्न मनाता है, उसे पूरा विश्वास है कि रेत में तब्दील भोकाल कभी वापस नहीं आएगा।
लेकिन तभी वृद्ध-रूप में हनुमान असली रहस्य बताते हैं: “मृत्यु को चुनौती देने वाले भोकाल ने नया जीवन पा लिया है।” धरती माँ खुद रेत में बिखरे भोकाल को नया जीवन देती हैं। वह उसे उसकी अंतिम और सबसे बड़ी शक्ति सौंपती हैं—ज्वालाशक्ति (अग्नि-शक्ति से भरी तलवार)।

यही वह निर्णायक लम्हा था। ज्वालाशक्ति ही अकेली ऐसी शक्ति थी जो महारावण के शरीर में बह रहे अमृत को सुखा सकती थी, जिससे वह अमरता खोकर एक साधारण नश्वर बन सके। ज्वालाशक्ति के वार से महारावण के शरीर का पूरा अमृत जल जाता है, और वह कमजोर पड़कर सामान्य नश्वर बन जाता है।
अब, भोकाल अपने गुरु की दी हुई ज्वालाशक्ति तलवार से उसका अंतिम वार करता है और उसे टुकड़ों में काटकर इस भयानक अध्याय का अंत कर देता है।
निष्कर्ष: गुरु-कृपा और आत्म-ज्ञान की जीत
‘महारावण’ गाथा का अंत सिर्फ एक ताकतवर खलनायक की मौत नहीं है; यह इस बात का सबूत है कि अहंकार और अमरता दोनों ही सच्चाई और आत्म-त्याग से हराए जा सकते हैं।
भोकाल ने इस पूरी यात्रा में खुद को एक शक्तिशाली योद्धा से एक आत्म-ज्ञान वाला शिष्य बनने तक का सफर तय किया। उसे अपनी सारी बाहरी शक्तियाँ (दिव्यास्त्र) खोनी पड़ी, ताकि वह अपनी अंदर की असली शक्ति—ज्वालाशक्ति—को पहचान सके। अंत में, महारावण के अंत के बाद हनुमान अपने असली ‘बजरंगबली’ रूप में प्रकट होते हैं। वह भोकाल को बताते हैं कि हमेशा उसके दिल में रहेंगे, और फिर ‘जय श्री राम’ कहते हुए विदा लेते हैं। यह विदाई एक गुरु का अपने शिष्य के प्रति अंतिम संतोष और आशीर्वाद है।
यह कॉमिक्स यह भी दिखाता है कि राज कॉमिक्स ने अपनी पौराणिक कहानियों में कितनी गहराई और दर्शन छुपाए हैं। भोकाल का ज्वालाशक्ति के रूप में पुनर्जनन, अमरता पर नश्वरता की विजय का सबसे बड़ा और भव्य प्रतीक है।
