राज कॉमिक्स के ब्रह्मांड में ‘डोगा’ सिर्फ एक सुपरहीरो नहीं, बल्कि एक सोच है। वह एक ऐसी प्रतिक्रिया है उस सड़ी-गली व्यवस्था के खिलाफ, जो आम इंसान को सही न्याय नहीं दे पाती। ‘नासूर डोगा’ संजय गुप्ता और तरुण कुमार वाही की एक ऐसी ही दमदार कहानी है। यह कॉमिक्स आपको सिर्फ मार-धाड़ का मज़ा नहीं देती, बल्कि ये सोचने पर भी मजबूर करती है—एक अपराधी बनता कैसे है? क्या इंसान पैदा ही बुरा होता है, या हमारा समाज और उसकी “सुधार” वाली जगहें ही उसे गलत रास्ते पर धकेल देती हैं?
यह कॉमिक्स डोगा के किरदार का अंदरूनी दर्द और मजबूत इमोशन्स तो दिखाती ही है, साथ में समीर नाम के एक ऐसे युवक की दुख भरी कहानी भी बताती है, जिसे हालात ने मजबूर कर दिया। कहानी आपको “अपराध” और “न्याय” के बीच की उस पतली, धुंधली लाइन पर ले जाती है जहाँ फर्क करना मुश्किल हो जाता है।
यह कॉमिक्स पिछले विशेषांक “डोगा तेरे कारण” की अगली कड़ी (Sequel) है। पिछली कहानी में हमने देखा था कि कैसे डोगा की जल्दबाजी, उसके अंधाधुंध न्याय और पुलिसिया सिस्टम के भ्रष्टाचार ने एक निर्दोष छात्र ‘समीर’ को जेल की सलाखों के पीछे धकेल दिया था। “नासूर डोगा” उसी बीज के वृक्ष बनने की कहानी है—एक ऐसा वृक्ष जिसकी जड़ों में नफरत का जहर है और जिसकी शाखाओं पर अपराध के फल लगे हैं। यह कहानी केवल एक सुपरहीरो की जीत की गाथा नहीं है, बल्कि यह एक सिस्टम की हार और एक रक्षक के आत्मग्लानि की यात्रा है।
कथानक (Storyline): अतीत और वर्तमान का संगम
कहानी की शुरुआत डोगा की क्लासिक एंट्री के साथ होती है, लेकिन इससे पहले हमें डोगा के अतीत (सूरज) की एक झलक मिलती है। यह फ्लैशबैक रोंगटे खड़े कर देता है।
बाल सुधार गृह की क्रूरता (फ्लैशबैक):
कहानी के शुरुआती पन्ने हमें सूरज (यानी डोगा के बचपन) के उन दिनों में ले जाते हैं जब वह ‘बाल सुधार गृह’ में रहता था। यहाँ का वार्डन ‘शेर सिंह’ एक बेहद क्रूर इंसान है, जो बच्चों को सुधारने के नाम पर उन्हें जानवरों की तरह पीटता है। उसका एक संवाद—“मुझे आवारा कुत्तों का वार्डन बनाकर यहाँ भेज दिया”—उसकी सोच और गुस्से को साफ दिखाता है।

सूरज को वह रोज़ अमानवीय तरीके से तड़पाता है। लेखकों ने बहुत सटीक तरीके से दिखाया है कि कैसे ‘सुधार गृह’ असल में कई बार अपराध की फैक्ट्री बन जाता है। सूरज का वहाँ से भागना और बदले की आग को अपने अंदर दबाए रखना ही आगे जाकर डोगा के बनने की नींव रखता है। सोनिका नाम की बच्ची वाला हिस्सा भी सूरज की मासूमियत और उसके दिल के कोमल हिस्से को सामने लाता है।
समीर और डोगा का टकराव:
वर्तमान में कहानी उस सीन से शुरू होती है जहाँ डोगा एक ट्रक रोकता है। यह ट्रक समीर चला रहा है। बाहर से यह सरकारी राशन वाला ट्रक लगता है जो जेल जा रहा है, लेकिन डोगा अपनी तेज नज़र और सूंघने की शक्ति से पकड़ लेता है कि दाल के पैकेटों के बीच बीड़ी, सिगरेट और नशीली चीज़ें छुपाकर जेल में तस्करी की जा रही है।
यहाँ डोगा और समीर के बीच की बातचीत बेहद अहम है। समीर कोई बड़ा अपराधी नहीं लगता। उसकी आँखों में मजबूरी और डर साफ झलकता है। डोगा उसे समझाता है कि यह रास्ता गलत है, लेकिन समीर कहता है कि ज़िंदगी चलाने के लिए वह मजबूर है।
डोगा जब ट्रक के फ्यूल टैंक की तलाशी लेता है, तो उसे असली सामान मिलता है—मोबाइल, ड्रग्स, और बाकी अवैध चीज़ें। यह देखकर डोगा समीर को पकड़ने भागता है, लेकिन तब तक समीर ट्रक लेकर भाग जाता है। इसे देखकर डोगा की आँखों में खून उतर आता है।
यहीं से कहानी में नया मोड़ आता है। शहर में एक नया ‘विजिलांटे’ (अपनी तरह से न्याय करने वाला) जन्म लेता है। हरे रंग के सूट में यह शख्स खुद को “नासूर” कहता है। उसका तरीका थोड़ा अलग है, लेकिन उसका निशाना वही लोग हैं—भ्रष्ट अधिकारी और सिस्टम को बेचने वाले लोग।

कॉमिक्स का वह सीन बहुत दमदार है जहाँ डोगा जेल सुपरिटेंडेंट के घर में घुसता है। वह सुपरिटेंडेंट को मारता नहीं है, बल्कि उसकी उन कीमती चीज़ों को तोड़ता है जो उसने रिश्वत से कमाई गई धन से खरीदी हैं—महंगा क्रिस्टल झूमर, 50 हज़ार का सोफ़ा, 14–15 लाख की इंपोर्टेड कार।
डोगा का तर्क साफ है:
“मैं ये साबित करना चाहता हूँ कि भ्रष्टाचार से कमाई हुई दौलत का लिबास अपनी फैमिली को मत पहनाओ… वरना जिस दिन किस्मत की हवा का एक थपेड़ा भी पड़ा, ये लोग दो कौड़ी के भी नहीं रहेंगे।”
डोगा का यह रूप पढ़कर एक अलग ही तरह की संतुष्टि मिलती है, क्योंकि वह भ्रष्ट लोगों को वहीं चोट करता है जहाँ उन्हें सबसे ज़्यादा दर्द होता है—उनके पैसे और उनकी शान।
समीर की त्रासदी:
जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, हमें पता चलता है कि समीर ही असल में नासूर है। समीर की पुरानी जिंदगी बिल्कुल एक आम मध्यमवर्गीय लड़के जैसी थी। लेकिन एक छोटी सी सड़क दुर्घटना ने उसकी जिंदगी को पूरी तरह उलट दिया। उसे जेल भेज दिया गया। और वहाँ उसे एहसास हुआ कि जेल की दुनिया बाहर की दुनिया से भी ज्यादा अंधेरी और डरावनी है।

जेल में ‘बॉडी दादा’ और ‘नेपाली उस्ताद’ जैसे गुंडों का राज चलता है। ये लोग जेल प्रशासन की मिलीभगत से अपना अलग ही साम्राज्य चला रहे होते हैं।
समीर के जेल में कदम रखते ही उसका स्वागत फूल-मालाओं से नहीं, बल्कि लात-घूंसों से होता है। बॉडी दादा और उसके गुर्गे उसे बेरहमी से पीटते हैं। समीर, जो एक पढ़ा-लिखा और अपनी इज़्ज़त पर जीने वाला लड़का था, उसे जेल के गंदे शौचालय साफ करने पर मजबूर किया जाता है।
सबसे बेचैन कर देने वाला पल तब आता है जब उसे बॉडी दादा की चप्पलें अपने सिर पर रखकर खड़ा होना पड़ता है और उन्हें दंडवत प्रणाम करना पड़ता है। जब भी समीर विरोध करता है या भागने की कोशिश करता है, ‘मंकी दादा’ और बाकी कैदी अगरबत्ती से उसे दागते हैं। यह दृश्य सच में झकझोर देता है।
यहीं साफ हो जाता है कि समीर के अंदर का सीधा-सादा इंसान जेल की इन चारदीवारों के अंदर ही मर चुका था। जो जगह उसे सुधारने वाली थी, वही जगह उसे एक कठोर, टूटा हुआ और अंदर से गुस्से से भरा इंसान बना देती है। समीर ने जेल में जो नरक झेला, उसने उसे पूरी तरह बदल दिया।
तीन महीने की सजा पूरी करने के बाद जब वह जेल से बाहर आता है, तो उसकी पूरी दुनिया बिखरी हुई मिलती है। उसकी बहन गायब हो चुकी है। घर हाथ से निकल चुका है। और समाज उसे अपनाने के बजाय उसे घूरता है, ताने देता है, दुत्कारता है। समीर के पास अब न घर है, न परिवार, न उम्मीद। इसी अँधेरे वक्त में उसकी मुलाकात ‘बिग बॉस’ से होती है, जो एक बड़ा अंडरवर्ल्ड डॉन है। बिग बॉस समीर के अंदर जलती नफरत को पहचान लेता है और उसे अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करने की सोचता है।
चरमोत्कर्ष (Climax):
आखिर में, बिग बॉस को पता चल जाता है कि समीर ने उसके भरोसे को तोड़ दिया है—क्योंकि उसने किल्ली, बिल्ली और चिल्ली को मार दिया था। इसके बाद डोगा और समीर (जो अब नासूर बन चुका है) दोनों एक साथ बिग बॉस के लोगों से लड़ते हैं।

डोगा चाहता है कि समीर कानून के दायरे में रहे, लेकिन समीर के लिए कानून बहुत पहले ही मर चुका है।
क्लाइमेक्स में एक हेलीकॉप्टर से जबरदस्त हमला होता है। लड़ाई में समीर बुरी तरह घायल हो जाता है। डोगा, जो उससे लड़ भी रहा था और उसे रोकने की कोशिश भी, आखिरकार उसे बचाता है और अस्पताल ले जाता है।
यहाँ कहानी एक बहुत भावुक मोड़ लेती है। अस्पताल में समीर की बहन श्रुति, डोगा को देखती है। वह मान लेती है कि उसके भाई की इस हालत के पीछे डोगा ही जिम्मेदार है। वह उसे श्राप देती है और बदला लेने की कसम खाती है।
डोगा हमेशा की तरह गलत समझ लिया जाता है। किसी से कुछ कहे बिना, वह चुपचाप वहाँ से चला जाता है। उसे पता है कि उसने एक और दुश्मन बना लिया है, जबकि उसके इरादे सिर्फ मदद करने के थे।
पात्र विश्लेषण (Character Analysis)
डोगा (सूरज):
इस कॉमिक्स में डोगा का एक बहुत ही成熟 और संवेदनशील रूप देखने को मिलता है। वह सिर्फ गोलियां चलाने वाला लड़ाका नहीं है, बल्कि वह इंसानों के दर्द को भी समझता है। जब वह ट्रक में समीर को पकड़ता है, तो वह उसे तुरंत मारने की कोशिश नहीं करता। वह पहले उसे समझाने की कोशिश करता है। डोगा समझ जाता है कि समीर असल में कोई जन्मजात अपराधी नहीं है, बल्कि हालात और सिस्टम का शिकार है। उसका यह संवाद—”अपराध को समाज भुगतता है और डोगा को अपराधी… क्योंकि डोगा ने उसी समाज से अपराध की जड़ें उखाड़ देने की सौगंध खाई है”—उसकी सोच और उसके मिशन को और साफ करता है।
समीर (नासूर):
समीर इस कहानी का सबसे गहरा और सबसे दर्द भरा किरदार है। वह एक एंटी-हीरो है—वह बुरा बनना नहीं चाहता था, लेकिन जिंदगी और सिस्टम ने उसे उस रास्ते पर धकेल दिया। ‘नासूर’ के रूप में उसका गुस्सा गलत नहीं लगता, बल्कि जायज लगता है। वह समाज को यह आईना दिखाता है कि जब एक अच्छा इंसान टूट जाता है, तो वह खुद भी खतरनाक रूप ले सकता है। समीर का अपने पिता के लिए प्यार, अपनी बहन के लिए चिंता और उसके अंदर छिपी संवेदनशीलता उसे इंसानी और relatable बनाती है।

खलनायक (सिस्टम के प्रतीक):
कहानी के खलनायक—वार्डन शेर सिंह, बॉडी दादा, बिग बॉस और भ्रष्ट जेल सुपरिटेंडेंट—सिर्फ बुरे लोग नहीं हैं, बल्कि वे उस सड़े-गले सिस्टम का प्रतीक हैं जो अंदर से ही टूट चुका है। सुपरिटेंडेंट का अपने ही परिवार के सामने बेनकाब होना कहानी का एक दमदार पल है। यह बताता है कि भ्रष्ट लोग अपने घरों में कितने सभ्य और नैतिक बनने का दिखावा करते हैं, लेकिन असल में अंदर से कितने खोखले होते हैं।
विषय और सामाजिक संदेश (Themes & Social Commentary)
‘नासूर डोगा’ सिर्फ एक एक्शन कॉमिक्स नहीं है, बल्कि यह एक समाजिक सच्चाई को सामने रखने वाला दस्तावेज जैसा है। इसमें कई ऐसे मुद्दे उठाए गए हैं जो हमारे समाज की कड़वी हकीकत को दिखाते हैं।
बाल सुधार गृहों की हालत इस कहानी में साफ सामने आती है—कैसे शेर सिंह जैसे वार्डन बच्चों की जिंदगी सुधारने की जगह उन्हें और बिगाड़ देते हैं। कहानी पूछती है कि हम बच्चों को सही रास्ते पर ला रहे हैं या उन्हें और गहरे अंधेरे में ढकेल रहे हैं?
जेल सुधार की बात भी बहुत गहराई से दिखाई गई है। कॉमिक्स बताती है कि जेल अब इंसान को सुधारने की जगह नहीं, बल्कि अपराध का स्कूल बन गई है, जहाँ सीधा-सादा इंसान भी सिर्फ अपनी जान बचाने के लिए जानवर जैसी जिंदगी जीने पर मजबूर हो जाता है।
भ्रष्टाचार का चक्र कहानी में कई जगह उभरता है। बिग बॉस के पिता की कहानी दिखाती है कि ईमानदारी कभी-कभी बेहद महँगी पड़ जाती है—दो लाख की रिश्वत न देने पर एक इंस्पेक्टर को अपनी जान तक गंवानी पड़ी। यह हमारे सिस्टम की विफलता का सबसे कड़वा सच है।
डोगा द्वारा कीमती सामान तोड़ना सिर्फ गुस्से का प्रदर्शन नहीं है, बल्कि यह एक जोरदार संदेश है—कि भ्रष्टाचार से कमाई हुई चमक-दमक टिकाऊ नहीं होती, और इसका कोई नैतिक मूल्य नहीं होता।
चित्रांकन और कला (Artwork)
मनु का चित्रांकन इस कॉमिक्स की असली ताकत है।
एक्शन वाले दृश्य—डोगा और नासूर की भिड़ंत, और आखिर में हेलीकॉप्टर वाला सीन—बहुत दमदार और तेज़-तर्रार तरीके से बनाए गए हैं।
चेहरों के भाव इतने जीवंत दिखाए गए हैं कि आप समीर की लाचारी और क्रोध और श्रुति के डर व नफरत को महसूस कर सकते हैं।
पूरे कॉमिक्स का माहौल—जेल का अंदरूनी अंधेरा, ट्रक वाला सीन, और रात में मुंबई की सड़कों का चित्रण—कहानी के नॉयर मूड से पूरी तरह मेल खाता है।
रंगों का इस्तेमाल भी बहुत सोच-समझकर किया गया है। फ्लैशबैक के लिए अलग टोन, वर्तमान में गहरे colors, और नासूर का हरा सूट उसे विजुअली डोगा के बैंगनी-पीले पैलेट से अलग खड़ा करता है।
संवाद और लेखन (Dialogue & Writing)

संजय गुप्ता और तरुण कुमार वाही की जोड़ी ने बेहतरीन काम किया है। संवाद चुटीले और भारी-भरकम हैं। कुछ यादगार संवाद:
“पाँव में कांटा चुभ जाए तो उसे फौरन निकालना पड़ता है, वरना वो जख्म को नासूर बना देता है, जो सारी उम्र दर्द देता है!”
“झूठ को भी ईमानदारी से बोलने के लिए जुबान को शब्द नहीं मिलते!”
“ये सच है कि मौत इंसान से उसके सोचने के सभी अधिकार छीन लेती है! मगर जिन्दा रहने के लिए सोचना पड़ता है!”
ये संवाद सिर्फ लाइन्स नहीं हैं, बल्कि पूरी कहानी का सार हैं। लेखकों ने समीर की मनोवैज्ञानिक स्थिति को बहुत अच्छे से शब्दों में पिरोया है।
समीक्षात्मक विश्लेषण (Critical Analysis)
सकारात्मक पक्ष:
यह डोगा की उन कहानियों में से एक है जहाँ सिर्फ मारपीट नहीं, बल्कि एक मजबूत भावनात्मक जुड़ाव (Emotional connect) है। समीर का कैरेक्टर आर्क (Character Arc) बहुत मजबूत है। पाठक उसके दर्द को महसूस कर पाते हैं। अंत को ‘हैप्पी एंडिंग’ न रखकर, एक नए संघर्ष (Conflict) की शुरुआत करना (श्रति का डोगा से नफरत करना) कहानी को यथार्थवादी बनाता है।

नकारात्मक पक्ष (यदि कोई हो):
कहानी का प्रवाह (Pacing) बीच में थोड़ा धीमा लग सकता है जब समीर अपनी पूरी फ्लैशबैक कहानी सुनाता है, लेकिन यह चरित्र निर्माण के लिए आवश्यक था। इसके अलावा, बिग बॉस का चरित्र थोड़ा और विकसित किया जा सकता था, वह एक सामान्य विलेन की तरह ही लगा।
निष्कर्ष (Conclusion)
“नासूर डोगा“ राज कॉमिक्स के इतिहास में एक बेहतरीन कहानी के रूप में दर्ज है। यह डोगा को एक ऐसे रक्षक के रूप में स्थापित करती है जो न केवल अपराधियों को मारता है, बल्कि सिस्टम की कमियों को भी उजागर करता है।
समीर ‘नासूर’ क्यों बना—यह सवाल पूरी कॉमिक्स पढ़ने के बाद पाठकों के मन में गूंजता रहता है। “नासूर” केवल समीर का कोडनेम नहीं है, बल्कि यह उस “भ्रष्टाचार” का प्रतीक है जो हमारे समाज को अंदर ही अंदर खाए जा रहा है। डोगा बाहर के अपराधियों से लड़ सकता है, लेकिन इस “नासूर” का इलाज करना बहुत मुश्किल है।
अंत में, श्रति का डोगा को गलत समझना यह दिखाता है कि सुपरहीरो होना कितना मुश्किल काम है। आप सबकी जान बचाकर भी कभी-कभी विलेन बन जाते हैं।
रेटिंग: 4.5/5
सिफारिश: यदि आप डोगा के फैन हैं, या एक ऐसी कॉमिक्स पढ़ना चाहते हैं जिसमें एक्शन के साथ-साथ गहरा सामाजिक संदेश और भावनात्मक ड्रामा हो, तो “नासूर डोगा” आपके लिए अनिवार्य (Must Read) है। यह कहानी आपको लंबे समय तक याद रहेगी।
यह कॉमिक्स साबित करती है कि भारतीय कॉमिक्स उद्योग में कहानियों का स्तर कितना ऊंचा हो सकता है। यह केवल बच्चों के लिए नहीं, बल्कि परिपक्व पाठकों के लिए एक गंभीर साहित्य है।
