भारतीय कॉमिक्स के इतिहास में अगर कोई ऐसा किरदार है जो हीरो न होते हुए भी सबसे ज़्यादा पसंद किया जाता है, तो वह है ‘बांकेलाल’। राज कॉमिक्स की दुनिया में जहाँ नागराज, ध्रुव और डोगा जैसे सुपरहीरो दुनिया को बचाने में लगे रहते हैं, वहीं बांकेलाल का एकमात्र सपना यही है कि किसी तरह अपने ही राजा (विक्रम सिंह) को मरवा दे और विशालगढ़ की गद्दी पर खुद बैठ जाए। यही उसकी उलटी-पुलटी सोच उसे भारतीय कॉमिक्स का सबसे प्यारा ‘खलनायक-नायक’ (Anti-Hero) बना देती है।
कॉमिक्स “शनि की छाया“ बांकेलाल सीरीज़ की एक बेहतरीन और यादगार कड़ी है। जैसा कि हम सब जानते हैं, भारतीय मान्यताओं में शनि देव को न्याय और कर्मफल देने वाले देवता के रूप में माना जाता है। शनि की साढ़े साती या ढैया का नाम सुनकर अच्छे-अच्छे लोग डर जाते हैं। लेकिन क्या होगा जब शनि देव का सामना बांकेलाल जैसे चालाक, फनी और टेढ़े दिमाग से हो जाए? पूरी कॉमिक्स इसी मज़ेदार और हँसी से भरी स्थिति को दिखाती है। लेखक तरुण कुमार वाही और चित्रकार बेदी की जोड़ी ने इस कहानी में हास्य और पौराणिक रंग को जिस मज़ेदार अंदाज़ में मिलाया है, वो पढ़ने में बहुत मज़ा देता है।
बांकेलाल और शनि देव का आमना–सामना

कहानी की शुरुआत स्वर्ग लोक से होती है, जहाँ शनि देव यह तय करते हैं कि वे पृथ्वी पर जाकर अपने प्रभाव को खुद महसूस करेंगे। उनका मानना होता है कि उनके क्रोध से देवता और दानव तक डरते हैं, तो इंसान तो बिल्कुल नहीं बचेंगे। वे अपना रूप बदलकर एक आम से भिक्षु/तेल मांगने वाले इंसान के रूप में पृथ्वी पर उतरते हैं।
शनि देव का आगमन और बांकेलाल की मूर्खता:
शनिवार के दिन शनि देव तेल और दान लेने के लिए नगर में घूम रहे होते हैं। लोग डर के कारण तुरंत दान दे देते हैं ताकि शनि की नज़र उन पर न पड़े। लेकिन बांकेलाल तो बांकेलाल है—उल्टा-सीधा करने का उस्ताद। जब शनि देव (भिखारी के भेष में) उसके दरवाज़े पर पहुँचते हैं, तो बांकेलाल चिढ़ा हुआ होता है। दान देने के बजाय, वह उनके कटोरे को लात मार देता है और उन्हें डाँटकर भगा देता है।
यहीं से कहानी की असली टक्कर शुरू होती है। शनि देव भड़क जाते हैं और बांकेलाल को शाप दे देते हैं कि अब उस पर “शनि की छाया” पड़ चुकी है। यानी अब उसके हर कदम पर मुसीबत आएगी। शनि देव उसे सबक सिखाना चाहते थे।
शाप या वरदान? (The Irony):
बांकेलाल की कहानियों की सबसे मज़ेदार बात उसका ‘उलट-फेर’ है। वह जो भी बुरा करने की कोशिश करता है, अंत में वही अच्छे में बदल जाता है। और यहाँ तो कमाल ही हो जाता है। शनि देव उसे नुकसान पहुँचाना चाहते हैं, लेकिन बांकेलाल के साथ होने वाली हर “बुरी घटना” उल्टा राजा विक्रम सिंह के लिए फायदेमंद और बांकेलाल के लिए निराशाजनक साबित होती है।
जूतियों का रहस्य और राजा षड्यंत्र सिंह

बांकेलाल, राजा विक्रम सिंह के पास पहुँचता है। वहाँ कमरे के बाहर रखी जूतियाँ देखकर उसे गुस्सा आ जाता है (शनि की छाया के असर से)। वह गुस्से में जूतियाँ उठाकर बाहर फेंक देता है। ठीक उसी समय राजा विक्रम सिंह अपने मित्र “राजा षड्यंत्र सिंह” से गले मिलने वाले होते हैं।
जैसे ही बांकेलाल जूतियाँ फेंकता है, वे जाकर षड्यंत्र सिंह को लगती हैं और उसके कपड़ों में छिपी खंजर (कटार) नीचे गिर जाती है।
तभी पता चलता है कि राजा षड्यंत्र सिंह, विक्रम सिंह की हत्या करने आया था। लेकिन बांकेलाल की इस हरकत से राजा की जान बच जाती है। शनि देव ने सोचा था कि जूतियाँ फेंककर बांकेलाल मुसीबत में फँसेगा, लेकिन हुआ उल्टा—उसे तो राजा की जान बचाने का श्रेय मिल जाता है।
बांकेलाल अंदर-ही-अंदर दुखी होकर सोचता है—
“हाय! मेरा शिकार (विक्रम सिंह) फिर बच गया…”
और बाहर उसे इनाम और तारीफ़ मिल रही होती है।
कुएं का राक्षस
बांकेलाल प्यासा होता है और एक कुएं पर पानी पीने जाता है। शनि की छाया के कारण उसे पानी नहीं मिलता, और गुस्से में वह वहां उगी जहरीली ‘बिच्छू बूटी’ तोड़कर कुएं में डाल देता है। बांकेलाल को पता नहीं था कि कुएं में एक राक्षस छिपा हुआ है, जो औरतों का अपहरण करना चाहता था।

जहरीली पत्तियाँ राक्षस पर गिरती हैं, और वह तड़पते हुए बाहर आता है और मर जाता है। शनि देव चाहते थे कि बांकेलाल प्यासा रहकर परेशान हो, लेकिन अनजाने में उसने राक्षस को मार दिया और फिर से ‘महानायक’ बन गया।
विशाल चपाती और डोसा
बांकेलाल एक हलवाई की दुकान पर जाता है। वहां भी शनि का असर जारी रहता है, और उसे खाने को कुछ नहीं मिलता। इसी बीच एक और राक्षस ‘भुख्खड़’ आता है, जो इंसानों को चटनी में डुबोकर ‘डोसा’ बनाना चाहता है। बांकेलाल अपनी जान बचाने और हताशा में जो भी करता है—जैसे जलती अगरबत्तियाँ फेंकना या कोई और वस्तु—उससे राक्षस भी परास्त हो जाता है।
गरुड़ का अंडा
कहानी के अंत में बांकेलाल को एक विशाल मादा उकाब का अंडा मिलता है। वह उसे फोड़ने की कोशिश करता है, लेकिन अंडा उसके हाथ से छूटकर एक अन्य राक्षस के सिर पर गिरता है और उसका भी अंत हो जाता है।

अंत में शनि देव भी अपना सिर पकड़ लेते हैं कि उन्होंने बांकेलाल को नुकसान पहुँचाना चाहा था, लेकिन उसकी किस्मत (या बदकिस्मती) ऐसी है कि उसका हर बुरा काम राज्य के लिए फायदेमंद साबित हो जाता है।
चरित्र चित्रण और विश्लेषण
बांकेलाल:
इस कॉमिक्स में बांकेलाल अपने चरम रूप में है। उसका चरित्र बहुत ही सुसंगत और मज़ेदार है। वह लालची, ईर्ष्यालु और सत्ता का भूखा है। शनि देव के शाप के बाद जब उसे चोट लगती है, भूख लगती है या अपमान होता है, तो उसके चेहरे के भाव देखने लायक होते हैं। पाठकों को उस पर दया नहीं आती, बल्कि हँसी आती है। उसकी सबसे बड़ी परेशानी यह नहीं कि उसे चोट लगी, बल्कि यह कि राजा विक्रम सिंह फिर बच गया।
शनि देव:
लेखक ने शनि देव को बहुत ही मानवीय रूप में दिखाया है। वे गंभीर हैं और अपनी शक्ति पर अहंकारी भी। लेकिन बांकेलाल की हरकतों के सामने उनकी शक्तियों का ‘बैकफायर’ होना कहानी का मुख्य हास्य बिंदु है। एक देवता का आम इंसान की किस्मत बिगाड़ने में असफल होना बड़ा मज़ेदार है।

राक्षस:
कॉमिक्स में दिखाए गए राक्षस (भुख्खड़, षड्यंत्र सिंह, कुएं वाला राक्षस) पारंपरिक डरावने राक्षस नहीं हैं। ये कॉमिकल विलेन हैं। उनका उद्देश्य और बांकेलाल द्वारा उनका अंत पूरी तरह ‘स्लैपस्टिक कॉमेडी’ पर आधारित है। उदाहरण के लिए इंसान का डोसा बनाने वाला राक्षस—यह सोचते ही हँसी आ जाती है।
कला पक्ष (Artwork) और संवाद
चित्रांकन (बेदी):
बेदी जी का आर्टवर्क बांकेलाल सीरीज़ की जान है, और इस कॉमिक्स में भी उन्होंने कमाल किया है। उनकी सबसे बड़ी खूबी चेहरे के भाव हैं; जब बांकेलाल अनजाने में राजा को बचा देता है, तो उसकी झुंझलाहट और रोती हुई सूरत हास्य पैदा करती है। एक्शन सीन जैसे जूतियाँ फेंकना, राक्षस का कुएं से निकलना या गरुड़ का उसे उठा लेना—इनमें गति (Movement) बहुत अच्छे से दिखाई गई है, जिससे दृश्य जीवंत बनते हैं। शनि देव को पारंपरिक नीले रंग और राजसी वस्त्रों में दिखाया गया है, जो कॉमिक्स में अलग से चमकता है।
संवाद (Dialogue):
तरुण कुमार वाही के संवाद बहुत ही चुटीले हैं, जो कॉमिक्स की हास्य प्रकृति को बनाए रखते हैं। बांकेलाल का अपने आप से बात करना (Monologue) हास्य का मुख्य स्रोत है, जैसे—
“हे भोले शंकर! ये क्या अनर्थ हो गया, राजा फिर बच गया!”
यह निराशा और झुंझलाहट का मजेदार मिश्रण है। संवादों में कंट्रास्ट का बेहतरीन इस्तेमाल है—शनि देव के भारी और क्रोध से भरे संवाद और बांकेलाल के हल्के, डरपोक संवादों के बीच संतुलन बहुत प्रभावी है। साथ ही, “शनि की छाया“ जैसे वाक्यांश का बार-बार इस्तेमाल पूरे कॉमिक्स में हास्य बनाए रखता है।
कहानी के पीछे का संदेश और सामाजिक व्यंग्य

हालांकि ‘बांकेलाल’ एक हास्य कॉमिक्स है, लेकिन इसमें गहरे व्यंग्य भी हैं। इसका मुख्य संदेश यह है कि नियति (Destiny) सबसे बड़ी होती है। शनि देव जैसा ग्रह देवता भी अगर किसी का बुरा करना चाहे, लेकिन नियति में अच्छा लिखा हो, तो वही होगा—बांकेलाल का बुरा सोचने पर भी अनजाने में अच्छा कर देना इसी को दिखाता है।
यह कहानी अंधविश्वास पर भी हल्का व्यंग्य करती है—बांकेलाल किसी ग्रह या नक्षत्र से डरता नहीं, जो शनि के डर पर मज़ेदार कटाक्ष है। साथ ही, यह नेताओं और राजाओं की सुरक्षा पर भी व्यंग्य करती है; राजा विक्रम सिंह की भोलीपन और बांकेलाल पर आंख मूँदकर भरोसा करना, सत्ता में बैठे लोगों की वास्तविकता से अनभिज्ञता पर व्यंग्य है।
क्यों पढ़ें यह कॉमिक्स?
यह कॉमिक्स शुद्ध मनोरंजन का एक बेहतरीन ज़रिया है। अगर आप तनाव में हैं और खुलकर हँसना चाहते हैं, तो बांकेलाल की ‘किस्मत की खोट’ और उसके अनजाने में किए गए नेक काम आपको हँसी से लोटपोट कर देंगे। यह उन 90 के दशक के बच्चों के लिए भी नॉस्टेल्जिया का बढ़िया मौका है, जो उस समय की सरल और सीधे-साधे कहानियों को आज भी याद करते हैं।
कहानी का प्रवाह बहुत तेज और मज़ेदार है; एक घटना से दूसरी घटना इतनी जल्दी जुड़ती है कि बांकेलाल को साँस लेने का मौका नहीं मिलता और पाठक पन्ना पलटते-पलटते कहानी में खो जाता है। इस वजह से बोरियत का कोई मौका नहीं मिलता।
निष्कर्ष
“शनि की छाया“ राज कॉमिक्स की बांकेलाल श्रृंखला का एक अनमोल रत्न है। यह कॉमिक्स साबित करती है कि विलेन हमेशा डरावना नहीं होना चाहिए; कभी-कभी परिस्थितियां खुद सबसे बड़ी विलेन बन जाती हैं। यहाँ शनि देव विलेन नहीं हैं और बांकेलाल हीरो नहीं है, फिर भी परिणाम हमेशा ‘हीरो’ के पक्ष में जाता है।
बांकेलाल का यह दुर्भाग्य कि “वह चाहकर भी बुरा नहीं कर पाता”, इस चरित्र की सबसे बड़ी खासियत (USP) है और लेखक ने इस कॉमिक्स में इसका भरपूर मज़ा लिया है।
10 रुपये (मूल कीमत) में मिलने वाला यह मनोरंजन आज भी अनमोल है। अगर आपने बांकेलाल पहले कभी नहीं पढ़ा, तो इसे शुरू करने के लिए यह सबसे बढ़िया कॉमिक्स है। और अगर आप पुराने पाठक हैं, तो इसे दोबारा पढ़कर आप बांकेलाल की उस ‘मनहूसियत’ को याद करके मुस्कुरा उठेंगे, जो पूरे विशालगढ़ के लिए वरदान साबित होती है।
रेटिंग: 4.5/5
(हास्य, पटकथा और बेदी जी के शानदार चित्रांकन के लिए)
