एक विस्फोटक आरम्भ
राज कॉमिक्स के इतिहास में ‘वंडरमैन परमाणु’ की कहानियाँ हमेशा अपनी टेक्निकल स्टाइल और जासूसी माहौल की वजह से पहचानी जाती रही हैं। “बारूद का खिलाड़ी” भी ऐसी ही एक कहानी है—जिसमें बारूद की बू भी है, पुरानी दुश्मनी की आग भी है, और साथ ही एक ऐसा खेल भी, जहाँ परमाणु को अपनी जान भी बचानी है और दिल्ली को जलते हुए नरक में बदलने से भी रोकना है।
इस कहानी की सबसे बड़ी खूबी इसके विलेन हैं—हाँ, एक नहीं बल्कि दो। एक दिमाग वाला मास्टरमाइंड (अजगर पटेल) और दूसरा उसका हथियार (आतिशबाज)। इन दोनों का साथ परमाणु के लिए अब तक की सबसे मुश्किल चुनौतियों में से एक बन जाता है।
कथानक और कहानी का विस्तृत विश्लेषण
मौत का फंदा (ओपनिंग सीन)
कहानी की शुरुआत ही एक जबरदस्त सीन से होती है। परमाणु ऐसी हालत में फंसा है जहाँ से बच निकलना लगभग नामुमकिन लगता है। उसे एक बड़े आतिशबाजी रॉकेट पर रस्सियों से बाँध दिया गया है। खलनायक आतिशबाज ने परमाणु के पूरे शरीर पर बहुत तेज़ ज्वलनशील लेप लगा दिया है और उसे आसमान में उड़ा देता है।

यहाँ लेखक ने बहुत समझदारी से परमाणु की शक्ति की सीमा (limitation) दिखाई है। हम जानते हैं कि परमाणु अपनी बेल्ट के ‘वॉयस एक्टिवेटर’ से अणुओं को कंट्रोल करता है। लेकिन यहाँ समस्या ये है कि अगर वह बोलता है तो लेप कंपन से जल उठेगा, और अगर नहीं बोलता है तो रॉकेट फटने पर उसकी मौत पक्की है। आख़िरकार परमाणु अपनी छाती फुलाकर उस लेप को तोड़ता है और फिर अपनी बेल्ट को एक्टिवेट करता है।
शीना और अतीत का दर्दनाक अध्याय
परमाणु के बच जाने के बाद कहानी फ्लैशबैक में जाती है—और यहीं से इस पूरी साज़िश की भावनात्मक जड़ सामने आती है। शीना, जो परमाणु के जीवन में बेहद अहम है, वेलेंटाइन डे पर परमाणु का इंतज़ार कर रही थी। इसी दौरान हमें पता चलता है कि शीना के माता-पिता की मौत कैसे हुई थी।
वे शिवकाशी (तमिलनाडु) की एक पटाखा फैक्ट्री में काम करते थे। लेखक यहाँ एक सामाजिक मुद्दा भी उठाता है—”ग़ैरकानूनी पटाखा फैक्ट्रियों में सुरक्षा की कमी”। उसी फैक्ट्री में लगी भयानक आग में शीना के माता-पिता मारे गए थे, और उस सदमे ने शीना के दिमाग पर गहरा असर छोड़ा। वैज्ञानिकों के अनुसार, उस हादसे ने उसके कुछ न्यूरॉन्स को इतना संवेदनशील बना दिया कि वह अनजाने में अपनी सोच से विस्फोट कर सकती है। इसीलिए उसे एक तरह से ‘जीवित बम’ कहा जा सकता है। आगे चलकर यही बात विलेन की योजना का हिस्सा बनती है।
खलनायकों का द्वंद्व: अजगर पटेल और आतिशबाज
अब आते हैं उस हिस्से पर जहाँ लोग अक्सर कन्फ्यूज़ हो जाते हैं। इस कहानी में दो तरह की बुराई है:
अजगर पटेल:
यह असली ब्रेन, असली मास्टरमाइंड है। पेज 4 और पेज 19 पर उसका किरदार साफ दिखता है। वह एक ख़ूँख़ार आतंकवादी है जिसके चेहरे पर एक गहरा घाव है। उसका इरादा सिर्फ तबाही मचाना नहीं, बल्कि बदला लेना भी है।
अजगर पटेल का भाई, ‘कोबरा पटेल’, पहले शिवकाशी में अवैध हथियार और बम बनाने की फैक्ट्री चलाता था—जिसे बाहर से पटाखा फैक्ट्री दिखाया जाता था। परमाणु ने ही उस फैक्ट्री का पर्दाफाश किया था, जिसमें कोबरा पटेल मारा गया था। भाई की मौत और अपने साम्राज्य के खत्म होने का गुस्सा अजगर को परमाणु का कट्टर दुश्मन बना देता है।

आतिशबाज:
यह अजगर का हथियार है—फील्ड में काम करने वाला। आतिशबाज विस्फोटकों, केमिकल्स और पटाखों का एक्सपर्ट है। लंबे बालों वाला, स्टाइलिश लेकिन बेहद खूँख़ार। अजगर ने उसे दिल्ली में तबाही मचाने और परमाणु को खत्म करने का पूरा कॉन्ट्रैक्ट दिया है।
आतिशबाज आगे से हमला करता है, जबकि अजगर पीछे से सारी डोरियाँ खींचता है।
जब ये दोनों आमने-सामने बैठकर बात करते हैं, तो उनकी बातचीत से ही उनके रिश्ते का पूरा अंदाज़ा लग जाता है। अजगर, आतिशबाज से पूछता है कि शिवकाशी में आग का असली गुनहगार कौन था—और जवाब खुद ही देता है—”परमाणु”। इससे साफ हो जाता है कि अजगर, आतिशबाज को सिर्फ अपने बदले की आग ठंडी करने के लिए इस्तेमाल कर रहा है।
फ्लैशबैक: परमाणु बनाम कोबरा पटेल
अजगर पटेल पुरानी यादों में जाता है और बताता है कि कैसे परमाणु ने उसके भाई कोबरा पटेल को मारा था। कोबरा पटेल पटाखों की आड़ लेकर असल में आतंकियों के लिए बम बनाता था। परमाणु वहाँ पहुँचता है और कोबरा की पूरी चाल खत्म कर देता है। वह एक जलता हुआ अनार (firework) बारूद के ढेर पर फेंक देता है, जिससे पूरी फैक्ट्री उड़ जाती है और कोबरा पटेल मारा जाता है।
यही घटना अजगर पटेल को अपराध की राह पर ले आती है। अब वह चाहता है कि दिल्ली में चुनाव के दौरान वही तबाही दोहराई जाए।
चुनावी रंजिश और आतिशबाज का आतंक
फिर कहानी वापस वर्तमान में आती है। दिल्ली में चुनाव का माहौल गरम है। अजगर की योजना है कि चुनाव में अराजकता फैलाई जाए ताकि माहौल खराब हो और देश कमजोर पड़े। इस काम के लिए वह आतिशबाज का इस्तेमाल करता है।
आतिशबाज का निशाना बनता है एक प्रत्याशी — ‘हिम्मतलाल आशावादी’। यहाँ लेखक ने थोड़ा व्यंग्य भी डाला है। आशावादी जी का चुनाव चिन्ह ‘बतख’ है और वे बड़े-बड़े वादे कर रहे हैं। तभी आतिशबाज की दहशत शुरू होती है।

आतिशबाज का तरीका (Modus Operandi) बड़ा अजीब लेकिन खतरनाक है। वह आम चीजों को बम में बदल देता है। नेताजी जब पानी की बोतल मुंह से लगाते हैं, बोतल फट जाती है। वह उनकी कार पर एक खास स्प्रे छिड़क देता है, जो हवा के घर्षण (friction) से जल उठता है।
पिघलती कार और परमाणु का संघर्ष
कॉमिक का सबसे धमाकेदार हिस्सा इसका क्लाइमेक्स है। आतिशबाज के केमिकल की वजह से नेताजी की कार मोमबत्ती की तरह पिघलने लगती है। कार के हैंडल, स्टेरिंग और बॉडी से चिंगारियाँ उड़ रही हैं। यह पूरा सीन चित्रकार सुरेश डींगवाल की शानदार कला का नमूना है।
परमाणु सही वक़्त पर वहाँ पहुँचता है। वह अपनी रस्सियों से तेज़ भागती कार को रोकता है। लेकिन असली मुसीबत यह है कि कार पिघल रही है और नेताजी अंदर फँसे हुए हैं। परमाणु अपनी जान की परवाह किए बिना पिघलती कार के नीचे घुस जाता है और फ्लोर तोड़कर नेताजी को बाहर निकाल लेता है।
रहस्यमय अंत (Cliffhanger)
कहानी के अंत में परमाणु नेताजी को तो बचा लेता है, लेकिन वह खुद बुरी तरह घायल हो जाता है। वह बेहोश होकर एक फव्वारे में गिर जाता है। उधर, अजगर पटेल और आतिशबाज अपनी जीत का जश्न मना रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि परमाणु या तो मर गया या लड़ाई हार गया।
लेकिन पाठकों को एक डरावना दृश्य दिखाया जाता है — “हर घर बारूद”। पूरे शहर के घरों पर रॉकेट और बम लगे दिखते हैं, जो बताते हैं कि असली तबाही तो अब शुरू होगी। अगली कॉमिक का टीज़र यह साफ कर देता है कि यह जंग अभी खत्म नहीं हुई है।
पात्र विश्लेषण (Character Analysis)
परमाणु (विनय):
इस कहानी में परमाणु को शारीरिक और मानसिक—दोनों रूपों में बड़ी चुनौती मिलती है। शुरुआत में उसका फँसना बताता है कि वह अजेय नहीं है। लेकिन उसकी समझदारी (जैसे छाती फुलाकर लेप तोड़ना) उसे खास बनाती है। शीना के लिए उसका प्यार और उसके प्रति चिंता उसे एक मानवीय सुपरहीरो बनाती है। वह सिर्फ अपराध नहीं रोक रहा, वह अपने अपने लोगों के लिए भी लड़ रहा है।

अजगर पटेल (The Mastermind):
अजगर क्लासिक बदले की आग में जलता विलेन है। उसका किरदार बहुत डार्क है। वह भाई की मौत को नहीं भूल पाया है। उसे लगता है कि कोबरा पटेल का काम “ईमानदारी” से था (उसकी नज़र में)। वह मानता है कि परमाणु ने उसका सब कुछ छीन लिया। उसकी चालाकी यही है कि वह खुद सामने नहीं आता — बल्कि आतिशबाज को आगे करता है।
आतिशबाज (The Executor):
आतिशबाज एक रंगीन, खतरनाक, केमिकल-एक्सपर्ट विलेन है। उसे पटाखे, रसायन और विस्फोटों के बारे में गहरी जानकारी है। उसका ओवरकॉन्फिडेंस ही उसकी सबसे बड़ी ताकत है। वह परमाणु को ‘फुस्स पटाखा’ मानता है। उसका लुक — लंबे बाल, लेदर जैकेट और हाथों में अजीब गैजेट — उसे 90s का एक जबरदस्त स्टाइलिश खलनायक बनाता है।
शीना:
शीना इस कहानी की ‘त्रासदी’ का प्रतीक है। वह उन मासूम लोगों का चेहरा है जो हीरो-विलेन की लड़ाई में दब जाते हैं। उसकी मानसिक स्थिति पूरे प्लॉट में सस्पेंस और खतरे का माहौल बनाए रखती है।
कला और प्रस्तुति (Art and Presentation)
कवर पेज काफी ध्यान खींचने वाला है। एक तरफ परमाणु है और नीचे गिरता हुआ आदमी शायद आतिशबाज या उसका गुर्गा है। पीछे पटाखा फैक्ट्री का माहौल दिखाया गया है। सुरेश डींगवाल और मनु की जोड़ी ने एक्शन सीन्स में जान डाल दी है। खासकर कार के पिघलने वाला सीन — उसका ‘मेल्टिंग इफेक्ट’ कमाल का है।

रंगों का चुनाव (लाल, पीला, नारंगी) पूरी कॉमिक में गर्मी और खतरे का एहसास करवाता है।
शीना और कोबरा पटेल के फ्लैशबैक में पैनलों का लेआउट बदल जाता है, जिससे पाठक आसानी से समझ जाते हैं कि कहानी अतीत में जा रही है।
संवाद और लेखन (Writing and Dialogue)
तरुण कुमार वाही की लिखाई यहाँ कसी हुई है। उन्होंने खलनायकों को मज़बूत संवाद दिए हैं।
अजगर का संवाद:
“परमाणु! तुम्हारे परिवार की बर्बादी का अकेला कारण है परमाणु!”
यह दिखाता है कि अजगर किस तरह अपनी गलतियों को नजरअंदाज करके दोष दूसरों पर डालता है।
शीना का दर्द:
“दिवाली के पटाखे लेने मैं भी उस दिन मम्मी–पापा के साथ वहाँ आ गई थी…”
यह संवाद पाठकों को भावुक कर देता है और कहानी को और गहरा बना देता है।
निष्कर्ष और समीक्षात्मक टिप्पणी
“बारूद का खिलाड़ी” एक शानदार शुरुआत है, जो आगे आने वाले बड़े धमाके की जमीन तैयार करती है। इस कॉमिक से साफ पता चलता है कि अच्छा विलेन सिर्फ ताकत से नहीं, बल्कि अपने पक्के मकसद से डर पैदा करता है। अजगर पटेल का मकसद (अपने भाई का बदला) और आतिशबाज़ की खतरनाक तकनीक (केमिकल वेपन्स) मिलकर परमाणु के लिए ऐसा जाल बुनते हैं जिसमें फँसना आसान है, लेकिन निकलना मुश्किल।
सकारात्मक पक्ष (Positives):
अजगर और आतिशबाज़ का अलग-अलग होना कहानी में कई लेयर्स जोड़ देता है। इससे यह बात और पक्की होती है कि असली दुश्मन अभी भी पर्दे के पीछे बैठा है। परमाणु की कॉमिक्स की खासियत हमेशा से इसका विज्ञान रहा है। यहाँ ‘घर्षण से जलने वाला स्प्रे’ और ‘आवाज़ से चलने वाली बेल्ट’ जैसी चीज़ें (भले ही काल्पनिक हों) कहानी को मज़ेदार बनाती हैं।
शीना की कहानी भी सिर्फ भराव नहीं है—वह इस पूरी कहानी की असली भावना है। वही पूरी प्लॉट को भावनात्मक गहराई देती है।
नकारात्मक पक्ष (Negatives):
कहानी यहाँ खत्म नहीं होती, इसलिए जिन पाठकों को पूरी कहानी एक ही बार में पढ़ने की आदत है, उन्हें अगली कॉमिक “हर घर बारूद” का इंतज़ार करना पड़ेगा।
कभी-कभी आतिशबाज़ के गैजेट्स इतने जादुई लगते हैं कि उनका वैज्ञानिक आधार समझ में नहीं आता, जो थोड़ी कमी महसूस करवाता है।
अंतिम निर्णय:
अगर आपको एक्शन और सस्पेंस पसंद है, तो यह कॉमिक आपके लिए बिल्कुल सही है। अजगर की चालाकी और आतिशबाज़ का पागलपन इस कॉमिक को काफी मज़बूत बनाते हैं। परमाणु को सिर्फ ताकत से नहीं, बल्कि दिमाग और हिम्मत से लड़ते देखना काफी अच्छा लगता है।
मेरी सलाह: इसे पढ़ते ही अगला भाग “हर घर बारूद” जरूर उठाएँ, क्योंकि असली लड़ाई तो अब शुरू होने वाली है।
रेटिंग: 4.5 / 5
