राज कॉमिक्स के इतिहास में कुछ कहानियाँ ऐसी होती हैं जो सिर्फ एक एडवेंचर नहीं रहतीं, बल्कि एक बड़ा सा “इवेंट” बन जाती हैं। “कोलाहल” भी उन्हीं में से एक है। यह केवल नागराज और ध्रुव की जोड़ी वाली कहानी नहीं है, बल्कि ऐसी कहानी है जहाँ पूरा राज कॉमिक्स यूनिवर्स एक साथ खड़ा नजर आता है।
‘कोलाहल’ राज कॉमिक्स की बहुचर्चित ‘ड्रैकुला सीरीज’ की एक महत्वपूर्ण कड़ी है। यह विशेषांक पिछली कड़ियों (ड्रैकुला का हमला, नागराज और ड्रैकुला, ड्रैकुला का अंत) की घटनाओं को आगे बढ़ाता है और एक महागाथा का रूप लेता है।
इस कॉमिक का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि यह ‘ड्रैकुला सीरीज़’ का आख़िरी अध्याय है। ड्रैकुला, जो राज कॉमिक्स के सबसे खतरनाक और ताकतवर विलेन में गिना जाता है, उसे हराने के लिए सिर्फ नागराज या ध्रुव काफी नहीं थे। इसी वजह से यहाँ एक पूरी टीम मैदान में उतरती है—नागराज, ध्रुव, परमाणु, शक्ति, इंस्पेक्टर स्टील और लोरी। यह कुछ-कुछ भारतीय “एवेंजर्स” जैसा एहसास देता है, जहाँ हर किरदार अपनी खास ताकत के साथ कहानी में शामिल होता है।
कथासार (Plot Summary)
कहानी की शुरुआत एक बेहद गंभीर और रोमांचक हालात से होती है। पिछले विशेषांकों में नागराज और ध्रुव मिलकर ड्रैकुला के नश्वर शरीर को ज्वालामुखी में फेंक कर नष्ट कर चुके थे। लेकिन जैसा कि बड़े विलेन के साथ अक्सर होता है, शरीर खत्म हो सकता है, आत्मा नहीं।

कहानी का एक बड़ा हिस्सा मृत्युलोक में घटित होता है, जो पृथ्वी और परलोक के बीच का संसार है। यहीं ड्रैकुला की आत्मा पहुँचती है। लेकिन वहाँ उसका स्वागत उसके पुराने वफादार नहीं करते, बल्कि उसके खिलाफ बगावत होती है। ‘गुण’ नाम का एक प्रेत, जिसने पहले ड्रैकुला से गद्दारी की थी, अब खुद को मृत्युलोक का नायक बनाने की कोशिश में लगा है। गुण को लगता है कि ड्रैकुला अब कमजोर हो चुका है, क्योंकि उसका शरीर नष्ट हो गया है और उसके सेवक भी कम रह गए हैं।
यह हिस्सा काफी मनोवैज्ञानिक है। गुण, ड्रैकुला को जंजीरों में जकड़कर और ‘घूर्ण स्तंभ’ जैसे यातना यंत्र का डर दिखाकर उसे मानसिक रूप से तोड़ने की कोशिश करता है। गुण का घमंड साफ नजर आता है, वह ड्रैकुला को ऐसे देखता है जैसे कोई बच्चा बोतल में बंद पत्थर पर मार रहा हो। लेकिन ड्रैकुला, जो सदियों पुराना पिशाच है, यह साबित कर देता है कि उसका डर सिर्फ उसके शरीर तक सीमित नहीं था। वह गुण की चुनौती स्वीकार करता है और यही टकराव कहानी को एक नई दिशा में ले जाता है।
ड्रैकुला धीरे-धीरे वहाँ फिर से अपनी दहशत कायम करता है, गुण को हरा देता है और मृत्युलोक का राजा बन बैठता है। उसका मकसद बिल्कुल साफ है—पृथ्वी पर वापस लौटना, अपना शरीर फिर से पाना और पूरी दुनिया को प्रेतों का गुलाम बना देना।
इसी बीच एक और अहम किरदार सामने आता है—‘बोर्डेलो’। बोर्डेलो एक प्राचीन और बेहद शक्तिशाली आत्मा है, जिसका ड्रैकुला से सदियों पुराना दुश्मनी का रिश्ता है। वह ड्रैकुला को रोकना चाहता है, लेकिन ड्रैकुला की बढ़ती ताकत के आगे वह भी कमजोर पड़ जाता है।

उधर पृथ्वी पर भी हालात तेजी से बदलते हैं। समुद्र के नीचे जिस ज्वालामुखी में ड्रैकुला का शरीर गिरा था, वहाँ हलचल शुरू हो जाती है। यह मोड़ बेहद दिलचस्प है, जहाँ लेखक दिखाता है कि कैसे शरीर और आत्मा एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। जैसे ही ज्वालामुखी फटता है और ड्रैकुला का शरीर लावे के साथ बाहर आता है, मृत्युलोक में उसकी आत्मा को भी नई शक्ति मिलने लगती है। इस दृश्य से पाठकों को साफ एहसास हो जाता है कि “पाप और आतंक का राज” अभी खत्म नहीं हुआ है।
ड्रैकुला के प्रेत सेवक पृथ्वी पर, खासकर महानगर और राजनगर में, भारी कोलाहल मचाना शुरू कर देते हैं। वे मासूम लोगों के शरीरों पर कब्जा कर लेते हैं और चारों तरफ तबाही फैल जाती है। नागराज और ध्रुव इस अदृश्य दुश्मन से लड़ने की कोशिश करते हैं, लेकिन जल्दी ही समझ आ जाता है कि शारीरिक ताकत आत्माओं पर बेअसर है।
तभी लोरी, जो तांत्रिक और मंत्रिक शक्तियों वाली महिला है, उनकी मदद के लिए सामने आती है। लोरी ही वह कड़ी है जो नागराज और ध्रुव को मृत्युलोक की यात्रा कराने या प्रेतों से लड़ने का सही तरीका बताने में सक्षम है।
ड्रैकुला को पृथ्वी पर लौटने के लिए एक नए शरीर की जरूरत होती है। वह ज्वालामुखी के लावे से अपना शरीर फिर से बनाता है। यह दृश्य अनुपम सिन्हा की जबरदस्त कल्पनाशीलता को दिखाता है—लावे से बना एक दैत्य, जो धीरे-धीरे ड्रैकुला का रूप ले लेता है।

लेकिन ड्रैकुला की पूरी ताकत वापस पाने के लिए इतना काफी नहीं होता। वह शीना (परमाणु की दोस्त और प्रेमिका) के शरीर पर कब्जा कर लेता है। अब परमाणु के सामने सबसे बड़ा धर्मसंकट खड़ा हो जाता है। उसे ड्रैकुला को खत्म करना है, लेकिन ऐसा करने पर शीना की जान भी जा सकती है। यहीं से कहानी भावनात्मक और तनावपूर्ण मोड़ पर पहुँच जाती है।
पात्र विश्लेषण (Character Analysis)
ड्रैकुला (The Antagonist)
इस कॉमिक का असली केंद्र बिंदु ड्रैकुला ही है, और एक तरह से कहा जाए तो वही कहानी का सबसे बड़ा आकर्षण भी है। लेखक ने उसे सिर्फ एक आम राक्षस की तरह नहीं दिखाया, बल्कि एक घमंडी, चालाक और बेहद तेज दिमाग वाले रणनीतिकार के रूप में पेश किया है। उसकी इच्छाशक्ति इतनी मजबूत है कि मृत्युलोक में पहुँचने के बाद भी वह टूटता नहीं है। जंजीरों में जकड़ा होने के बावजूद उसका यह संवाद—“ड्रैकुला के सामने प्रेतों की सिर्फ दुमें हिलती हैं, जुबानें नहीं!”—उसके आत्मविश्वास और डर पैदा करने वाली शख्सियत को साफ दिखा देता है। उसके दिल में नागराज और ध्रुव के लिए बदले की आग लगातार जल रही है। वह यह बात खुले तौर पर मानता है कि दो “मामूली इंसानों” ने उसे तीन बार मौत दी, और यही बात उसके अहंकार को सबसे ज्यादा चुभती है। अंत में गुण के साथ उसका संघर्ष केवल लड़ाई नहीं, बल्कि शक्ति का प्रदर्शन बन जाता है, जहाँ यह साफ हो जाता है कि बिना शरीर के भी ड्रैकुला कितना खतरनाक हो सकता है, क्योंकि वह उन्हीं जंजीरों को अपने इशारे पर नचा देता है जिन्हें गुण ने उसके लिए बुलवाया था।
गुण (The Rival Spirit)
गुण का किरदार एक ऐसे छोटे लेकिन महत्वाकांक्षी खलनायक का है, जो सत्ता में आए खालीपन को भरना चाहता है। उसका सबसे बड़ा दुश्मन वही खुद है—उसका घमंड। वह ड्रैकुला को कमजोर और शक्तिहीन समझने की गलती कर बैठता है, लेकिन यह नहीं समझ पाता कि ड्रैकुला की असली ताकत उसकी सदियों पुरानी चालाकी, अनुभव और लोगों के दिलों में बैठा डर है। दृश्य रूप में गुण का चित्रण भी उसे खास बनाता है। उसे नीले रंग के प्रेत के तौर पर दिखाया गया है, जो हैट और कोट जैसे आधुनिक कपड़े पहनता है, और इसी वजह से वह पारंपरिक भूतों से अलग नजर आता है।

नागराज और सुपर कमांडो ध्रुव
हालाँकि पूरी कॉमिक का फोकस ड्रैकुला की वापसी पर ज्यादा है, फिर भी नागराज और ध्रुव की मौजूदगी कहानी में संतुलन बनाए रखती है। ध्रुव हमेशा की तरह अपनी समझदारी और दिमाग का इस्तेमाल करता है। वह हालात को परखता है और जल्दी समझ जाता है कि यह लड़ाई सिर्फ ताकत से नहीं जीती जा सकती। दूसरी ओर नागराज एक्शन का मोर्चा संभालता है। उसकी शक्तियाँ ड्रैकुला जैसी अलौकिक ताकतों के सामने इंसानी दुनिया की एक मजबूत ढाल बनकर सामने आती हैं।
परमाणु
इस कॉमिक में परमाणु का रोल सबसे ज्यादा भावनात्मक बनकर उभरता है। शीना के शरीर पर ड्रैकुला के कब्जे के कारण वही सबसे ज्यादा दर्द और तनाव झेल रहा है। उसका गुस्सा, उसकी बेबसी और उसका डर कहानी को एक इंसानी एहसास देता है। जब वह ड्रैकुला को चेतावनी देता है—“अगर शीना को खरोंच भी आई, तो मैं दुनिया जला दूंगा”—तो यह सिर्फ धमकी नहीं, बल्कि उसके दिल की चीख बन जाती है।

शक्ति और इंस्पेक्टर स्टील
इन दोनों की भूमिका भले ही सपोर्टिंग हो, लेकिन कहानी में इनका योगदान जरूरी है। शक्ति का आध्यात्मिक और रहस्यमय पक्ष प्रेतों से लड़ने में काम आता है, जबकि इंस्पेक्टर स्टील अपनी तकनीकी समझ और आधुनिक साधनों से भौतिक खतरों का सामना करता है। दोनों मिलकर टीम को मजबूती देते हैं।
लोरी और बोर्ड़ेलो
लोरी और बोर्ड़ेलो इस कहानी के असली ‘की-फैक्टर्स’ हैं। लोरी पाठकों को तंत्र-मंत्र और रहस्यमय शक्तियों की दुनिया से जोड़ती है। वहीं बोर्ड़ेलो एक दिलचस्प और अलग तरह का किरदार है—एक ऐसी बुराई, जो उससे भी बड़ी बुराई को रोकने के लिए अच्छाई का साथ देती है। यही बात उसे खास बनाती है।
कला और प्रस्तुति (Artwork and Presentation)
अनुपम सिन्हा का चित्रांकन राज कॉमिक्स की पहचान रहा है, और ‘कोलाहल’ में उनका काम अपने शिखर पर नजर आता है। कॉमिक के शुरुआती पन्नों में मृत्युलोक का चित्रण बेहद प्रभावशाली है। गहरे रंगों का इस्तेमाल, अजीब और डरावनी आत्माएँ, और ‘घूर्ण स्तंभ’ का दृश्य सच में सिहरन पैदा करता है। एक्शन सीन काफी विस्तार से बनाए गए हैं। ज्वालामुखी का फटना और लावे के बीच से ड्रैकुला के शरीर का बाहर आना देखने लायक है। पैनल लेआउट भी काफी गतिशील है, जिससे कहानी की रफ्तार बनी रहती है। पात्रों के हाव-भाव पर खास ध्यान दिया गया है—ड्रैकुला के चेहरे का गुस्सा, गुण के चेहरे का डर और नायकों के चेहरे का संकल्प साफ झलकता है। खासकर पेज 5 और 6 पर ड्रैकुला के भाव बेहद असरदार लगते हैं।
संवाद और लेखन (Dialogue and Writing)

जॉली सिन्हा के संवादों में वही नाटकीय अंदाज है, जो 90 के दशक की राज कॉमिक्स की पहचान रहा है। यहाँ संवाद सिर्फ कहानी आगे बढ़ाने के लिए नहीं हैं, बल्कि किरदारों की शख्सियत को और ऊँचा उठाने का काम भी करते हैं।
ड्रैकुला का यह संवाद—“झूठ के पैर चाहे छोटे होते हों, लेकिन पाप की उम्र बड़ी लंबी होती है”—उसके सोचने के तरीके और दर्शन को साफ बयान करता है। वहीं गुण का ताना—“तुम उस बच्चे की तरह खुश हो रहे हो ड्रैकुला, जो पत्थर से एक बोतल को फोड़कर अपने-आप को निशानेबाज समझने लगता है”—काफी तीखा और व्यंग्य से भरा हुआ है।
कहानी में नरेशन का इस्तेमाल भी सही जगह और सही मात्रा में किया गया है। जैसे यह बताना कि “जिस लोक को मृत्युलोक कहते थे… पृथ्वीलोक और परलोक के बीच में स्थित एक ऐसा लोक…”—इससे नए पाठकों को भी कहानी और उसके संसार को समझने में आसानी होती है।
कहानी की गति (Pacing) और संरचना
‘कोलाहल’ की रफ्तार काफी संतुलित और सोच-समझकर रखी गई है। कहानी कहीं भी बेवजह तेज या सुस्त नहीं लगती।
शुरुआती 10–12 पेज पूरी तरह ड्रैकुला और गुण के बीच के टकराव को समर्पित हैं। इसका मकसद साफ है—पाठकों को फिर से यह याद दिलाना कि ड्रैकुला आखिर कितना ताकतवर और खतरनाक है। यहाँ लेखक ने कोई जल्दबाजी नहीं दिखाई, बल्कि माहौल बनाने में पूरा वक्त लिया है।

जैसे ही ड्रैकुला पृथ्वी पर लौटता है, कहानी का रंग बदल जाता है और हर तरफ अराजकता फैलने लगती है। इसी मोड़ पर नागराज और ध्रुव की एंट्री होती है। यहाँ कहानी धीरे-धीरे हॉरर से निकलकर सुपरहीरो एक्शन की ओर बढ़ जाती है।
अंतिम टकराव सिर्फ मार-धाड़ तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यह समय के खिलाफ एक दौड़ बन जाता है। नायकों के सामने चुनौती यह है कि ड्रैकुला पूरी तरह से पुनर्जीवित न हो पाए और अपनी पूरी ताकत हासिल न कर सके। यही बात क्लाइमेक्स को और ज्यादा रोमांचक बना देती है।
कहानी की मुख्य विशेषताएं (Highlights)
टीम-अप का जादू पाठकों को हमेशा रोमांचित करता है, और “कोलाहल” इस फॉर्मूले का शानदार इस्तेमाल करता है। यहाँ हर हीरो को अपनी चमक दिखाने का मौका मिलता है। कहानी में विज्ञान और जादू का दिलचस्प मेल देखने को मिलता है। ध्रुव और परमाणु विज्ञान का पक्ष संभालते हैं, जबकि नागराज, शक्ति और लोरी जादू और अध्यात्म का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन दोनों धाराओं का संतुलन कहानी को मजबूत बनाता है।
कहानी का दायरा रोमानिया तक फैलना इसे एक तरह का ‘ग्लोबल एडवेंचर’ बना देता है, जिससे इसकी पृष्ठभूमि और भी बड़ी और प्रभावशाली लगती है। इसके साथ ही परमाणु और शीना का सब-प्लॉट कहानी में भावनात्मक गहराई जोड़ता है, जिससे यह सिर्फ एक्शन और लड़ाई तक सीमित नहीं रहती।
आलोचनात्मक विश्लेषण (Critical Analysis)
सकारात्मक पक्ष (Positives):
इस कॉमिक की सबसे बड़ी खूबी यह है कि इसमें विलेन को पूरा महत्व दिया गया है। भारतीय कॉमिक्स में अक्सर खलनायक सिर्फ हारने के लिए होते हैं, लेकिन यहाँ ड्रैकुला को पूरी गंभीरता और सम्मान के साथ पेश किया गया है। वह डर पैदा करता है, जीतता है और कई जगह कहानी पर हावी भी रहता है, जिससे वह एक सशक्त विरोधी बनकर उभरता है।

कंटिन्यूटी का स्तर भी काफी अच्छा है। यह कॉमिक पिछली कहानियों से मजबूत तरीके से जुड़ी हुई है। नागराज और ध्रुव द्वारा ड्रैकुला को “तीन बार मौत” देने का जिक्र पुराने पाठकों की यादें ताज़ा कर देता है। पूरी कॉमिक में एक डरावना और रहस्यमय माहौल बना रहता है, जो इसकी सफलता का एक बड़ा कारण है।
नकारात्मक पक्ष (Negatives):
कुछ कमियाँ भी हैं, जिन्हें नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। नए पाठकों के लिए यह कहानी थोड़ी मुश्किल हो सकती है। अगर किसी ने ड्रैकुला सीरीज़ के पहले भाग नहीं पढ़े हैं, तो उसे कई संदर्भ समझने में परेशानी आ सकती है, हालाँकि लेखक ने बीच-बीच में कहानी समझाने की कोशिश जरूर की है।
विज्ञान के लिहाज़ से भी कुछ जगह सवाल उठते हैं। कहीं-कहीं विज्ञान और जादू का मेल थोड़ा अजीब लग सकता है। जैसे ज्वालामुखी के अंदर शरीर का बार-बार बनना और नष्ट होना वैज्ञानिक रूप से संभव नहीं है, लेकिन कॉमिक्स की फैंटेसी दुनिया में इसे स्वीकार किया जा सकता है।
विषय-वस्तु (Themes)
‘कोलाहल’ सिर्फ लड़ाई-झगड़े की कहानी नहीं है, इसके अंदर कुछ गहरे विषय भी छिपे हुए हैं। गुण और ड्रैकुला की लड़ाई असल में सत्ता की लड़ाई है। ड्रैकुला के पतन के बाद गुण खुद राजा बनना चाहता है। यह दिखाता है कि बुराई की दुनिया में वफादारी नहीं होती, वहाँ सिर्फ ताकत की पूजा होती है।
ड्रैकुला का पूरा मकसद उन लोगों से बदला लेना है, जिन्होंने उसे कमजोर समझकर धोखा दिया। उसका संवाद—“सभी गद्दार बन गए… तुम सबको सजा मैं दूंगा!”—उसके प्रतिशोध की भावना को बहुत प्रभावशाली ढंग से सामने लाता है।

मृत्युलोक की अवधारणा, जहाँ आत्माएँ अपनी अधूरी इच्छाओं के कारण भटकती रहती हैं, कहानी को एक दार्शनिक गहराई देती है और इसे सिर्फ एक एक्शन स्टोरी से आगे ले जाती है।
निष्कर्ष (Conclusion)
राज कॉमिक्स का विशेषांक ‘कोलाहल’ एक पूरा एंटरटेनमेंट पैकेज है। यह हिंदी कॉमिक्स के स्वर्ण युग का शानदार उदाहरण माना जा सकता है। इसमें वो हर चीज़ मौजूद है, जिसकी उम्मीद एक पाठक करता है—दो बड़े सुपरहीरो, एक बेहद खतरनाक और लगभग अमर विलेन, जादू, एक्शन और ड्रामा।
अनुपम सिन्हा की कला और जॉली सिन्हा की लेखनी का मेल यहाँ कमाल का है। ड्रैकुला के किरदार को जिस गहराई और डर के साथ पेश किया गया है, वह इस कॉमिक को सिर्फ बच्चों की कहानी नहीं रहने देता, बल्कि एक ग्राफिक नॉवेल के स्तर तक ले जाता है। 1500 से ज्यादा पन्नों की इस पूरी महागाथा में ‘कोलाहल’ वह अध्याय है, जहाँ दांव सबसे ऊँचे हैं।
अगर आप सुपरहीरो कहानियों के शौकीन हैं और भारतीय कॉमिक्स की उस शैली को पसंद करते हैं, जहाँ अच्छाई और बुराई की टक्कर महाकाव्य स्तर पर होती है, तो ‘कोलाहल’ आपके लिए एक अनिवार्य कॉमिक है। यह सिर्फ कोलाहल नहीं मचाती, बल्कि पाठकों के दिलों में रोमांच का तूफान भी खड़ा कर देती है।
अंतिम शब्द:
‘कोलाहल’ यह साबित करता है कि ड्रैकुला जैसा विलेन कभी सच में मरता नहीं है, वह बस सही वक्त पर वापसी का इंतज़ार करता है। और जब वह लौटता है, तो नायकों को अपनी सारी सीमाओं से आगे जाना पड़ता है। नागराज और ध्रुव की जोड़ी और ड्रैकुला का आतंक—यह कॉम्बिनेशन कभी निराश नहीं करता।
क्यों पढ़ें?
- अगर आप ‘एवेंजर्स’ स्टाइल की भारतीय टीम-अप देखना चाहते हैं।
- अगर आप ड्रैकुला की कहानी का अंत जानना चाहते हैं।
- अगर आप अनुपम सिन्हा की बेहतरीन कलाकारी का आनंद लेना चाहते हैं।
रेटिंग: ⭐⭐⭐⭐⭐ (5/5)
