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Home » ड्रैकुला का अंत (ड्रैकुला सीरीज पार्ट-3): नागराज और ध्रुव की लड़ाई अब किस मोड़ पर जाएगी?
Hindi Comics World Updated:12 December 2025

ड्रैकुला का अंत (ड्रैकुला सीरीज पार्ट-3): नागराज और ध्रुव की लड़ाई अब किस मोड़ पर जाएगी?

जब नागराज, ध्रुव और वेदाचार्य अमर ड्रैकुला का सामना अंतिम और निर्णायक युद्ध में करते हैं
ComicsBioBy ComicsBio12 December 2025Updated:12 December 2025012 Mins Read
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Dracula Series Part-3 – Dracula Ka Ant Review | Raj Comics Issue 400 Finale
The concluding chapter of Raj Comics’ Dracula Series where Nagraj, Dhruv and Vedacharya face the deadliest immortal vampire in a spiritually charged finale.
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राज कॉमिक्स के इतिहास में कुछ कहानियाँ ऐसी होती हैं जो एक बार पढ़ने के बाद पाठकों के दिल में हमेशा के लिए जगह बना लेती हैं। “ड्रैकुला सीरीज” भी ऐसी ही एक यादगार सीरीज है। “ड्रैकुला का अंत” इस पूरी महागाथा का वह अध्याय है जहाँ रोमांच, डर और हीरोइज़्म अपने पूरे शबाब पर दिखाई देता है। यह कॉमिक सिर्फ एक कहानी नहीं है, बल्कि राज कॉमिक्स के स्वर्ण युग (Golden Era) की पहचान भी है। संख्या 400 होने की वजह से यह अपने आप में एक ऐतिहासिक और मील का पत्थर साबित होने वाला विशेषांक है। इस कहानी में नागराज और सुपर कमांडो ध्रुव जैसे दिग्गज हीरो दुनिया के सबसे खतरनाक पिशाच, काउंट ड्रैकुला के खिलाफ अपनी आखिरी और निर्णायक जंग लड़ते नजर आते हैं।

यह कहानी पिछली कॉमिक्स “ड्रैकुला का हमला” और “नागराज और ड्रैकुला” की घटनाओं को आगे बढ़ाती है। जहाँ पहले के हिस्सों में ड्रैकुला के खौफ और आतंक को मजबूती से स्थापित किया गया था, वहीं इस भाग में, जैसा कि नाम से ही साफ है, उस आतंक को पूरी तरह जड़ से खत्म करने की कोशिश की गई है।

कथानक: विनाश और प्रतिशोध की एक जटिल गाथा

कहानी की शुरुआत ठीक वहीं से होती है जहाँ पिछली कॉमिक्स खत्म हुई थी। वेदाचार्य अपनी तिलिस्मी शक्तियों का इस्तेमाल करके खून के प्यासे ड्रैकुला को एक अनजान और सुनसान आयाम में फेंक देते हैं। ड्रैकुला खुद को एक ऐसी उजड़ी हुई दुनिया में पाता है जहाँ न जीवन का कोई नामो-निशान है और न ही मृत्यु का कोई संकेत। उसकी सारी शक्तियाँ उससे छिन चुकी हैं और वह लगभग पूरी तरह असहाय हो चुका है। लेकिन यहीं से कहानी एक चौंकाने वाला मोड़ लेती है।

ड्रैकुला को धीरे-धीरे यह एहसास होता है कि नागपाशा का अमृत मिला हुआ रक्त पीने की वजह से वह अब सच में अविनाशी बन चुका है। उसका शरीर कटने या नष्ट होने के बाद भी अपने आप फिर से जुड़ जाता है। यह सच्चाई उसे एक नई और और भी डरावनी ताकत देती है—अमर होने का घमंड। वह समझ जाता है कि अब उसे कोई भी मार नहीं सकता। इसी भरोसे और अहंकार के साथ वह उस वीरान आयाम में मौजूद भयानक जीवों से अपनी चालाकी, क्रूरता और ताकत के दम पर लड़ना शुरू कर देता है।

दूसरी तरफ, पृथ्वी पर हालात और भी डरावने हो चुके हैं। नागपाशा, जिसे ड्रैकुला पहले ही काट चुका था, अब खुद एक खतरनाक वैम्पायर बन गया है और अपने ही गुरु का खून पीने के लिए तैयार खड़ा है। ठीक वक्त पर नागराज और वेदाचार्य पहुँचकर उसे रोक लेते हैं, लेकिन यह साफ है कि यह सिर्फ एक अस्थायी समाधान है।

इसी बीच, वैम्पायरों के हमले की खबर सुनकर सुपर कमांडो ध्रुव महानगर पहुँचता है। उसके साथ लोरी भी है, जो संत यूलोजियन की वंशज है और जिसके खून में वैम्पायरों की ताकत को खत्म करने की क्षमता मौजूद है। लेकिन यहाँ कहानी एक और झटका देती है—लोरी का रक्त नागपाशा पर कोई असर नहीं दिखाता। वेदाचार्य बताते हैं कि ड्रैकुला हर बार अपनी कमजोरियों से बचने का तरीका सीख चुका है और उसने उनके खिलाफ प्रतिरोधक शक्ति विकसित कर ली है। अब पुराने और आज़माए हुए तरीके बेकार साबित हो रहे हैं।

वेदाचार्य अपनी गहरी साधना के जरिए यह पता लगाते हैं कि ड्रैकुला मरा नहीं है, बल्कि वह महानगर के ही किसी समानांतर आयाम में कैद है। इसके बाद उसे वापस लाने और हमेशा के लिए खत्म करने की योजना बनाई जाती है। लेकिन ड्रैकुला भी हाथ पर हाथ रखकर बैठा नहीं है। वह उस दूसरे आयाम से ही पृथ्वी पर अपनी शैतानी शक्तियों का असर भेजना शुरू कर देता है। अचानक महानगर में विशाल और राक्षसी पेड़ उगने लगते हैं, जो इमारतों को तोड़ रहे हैं और मासूम लोगों को अपनी जड़ों में जकड़ रहे हैं।

यहीं से कहानी कई मोर्चों पर एक साथ आगे बढ़ने लगती है। एक तरफ नागराज और ध्रुव इन राक्षसी पेड़ों और उनकी खतरनाक जड़ों से लड़ते हैं, वहीं दूसरी तरफ वेदाचार्य और दूसरे तांत्रिक ड्रैकुला को वापस बुलाने के लिए एक बेहद जटिल और खतरनाक तिलिस्म की रचना में जुट जाते हैं। इसी दौरान ड्रैकुला उस दूसरे आयाम में शुमा नाम के एक शक्तिशाली तांत्रिक और उसके अश्वारोही दानवों को अपना साथी बना लेता है।

कहानी का मध्य हिस्सा पूरी तरह से एक विशाल युद्धभूमि में बदल जाता है। शुमा और उसके दानव तिलिस्मी द्वार के जरिए पृथ्वी पर आ जाते हैं और चारों तरफ तबाही मचाने लगते हैं। सुपर कमांडो ध्रुव अपनी कमांडो फोर्स के साथ उनका सामना करता है, जबकि नागराज अपनी सर्प-शक्तियों का इस्तेमाल करके पेड़ों के इस आतंक को रोकने की कोशिश करता है। यह कॉमिक का वही हिस्सा है जहाँ एक्शन, खतरा और रोमांच अपने शिखर पर पहुँच जाता है।

आखिरकार, वेदाचार्य की योजना सफल होती है, लेकिन इस सफलता की कीमत बहुत भारी होती है। ड्रैकुला वापस पृथ्वी पर लौट आता है, लेकिन अब वह पहले से कहीं ज़्यादा शक्तिशाली और लगभग अजेय बन चुका है। उसे हराने के लिए अब सिर्फ ताकत या साधारण तिलिस्म काफी नहीं रह गए हैं।

चरमोत्कर्ष (क्लाइमेक्स): शक्ति नहीं, ‘कृपा’ की आवश्यकता

इस कॉमिक्स का क्लाइमेक्स भारतीय कॉमिक्स के इतिहास के सबसे अलग, गहरे और सोचने पर मजबूर करने वाले क्लाइमेक्स में से एक है। यहीं पर कहानी में एक बेहद अहम किरदार, नोस्ट्रॉडॉमस, की एंट्री होती है। नोस्ट्रॉडॉमस ब्रह्मांड के संतुलन का रक्षक है। वह सबको समझाता है कि ड्रैकुला अब सिर्फ एक वैम्पायर नहीं रह गया है, बल्कि वह एक ऐसी नकारात्मक शक्ति बन चुका है जिसे पूरी तरह नष्ट नहीं किया जा सकता। उसे सिर्फ संतुलित किया जा सकता है। उसे हराने के लिए ताकत (Power) की नहीं, बल्कि कृपा (Grace) की जरूरत है।

यह ‘कृपा’ कोई साधारण शक्ति नहीं, बल्कि एक दिव्य ऊर्जा है, जिसे केवल एक विशेष अनुष्ठान के जरिए ही जगाया जा सकता है। इस अनुष्ठान के लिए नागराज, ध्रुव, वेदाचार्य, लोरी और नोस्ट्रॉडॉमस के वंशज—सभी को एक साथ मिलकर अपनी-अपनी ऊर्जा को एक ही केंद्र पर केंद्रित करना होता है। यह प्रक्रिया बेहद खतरनाक होती है, क्योंकि अनुष्ठान के दौरान ये सभी लगभग पूरी तरह असुरक्षित और कमजोर हो जाते हैं।

ड्रैकुला अपनी आने वाली हार को भांप लेता है और अपनी पूरी ताकत झोंक कर उन पर हमला कर देता है। एक तरफ अनुष्ठान चल रहा होता है, वहीं दूसरी तरफ नागराज और ध्रुव अपनी बची-खुची अंतिम शक्ति के साथ ड्रैकुला और उसकी सेना को उलझाए रखते हैं। यह आखिरी लड़ाई सिर्फ शरीर की ताकत की नहीं होती, बल्कि इच्छाशक्ति और विश्वास की भी परीक्षा होती है।

आखिरकार अनुष्ठान पूरा होता है। आकाश से एक दिव्य प्रकाशपुंज उतरता है और ड्रैकुला को अपने घेरे में ले लेता है। ड्रैकुला दर्द से चीखता नहीं है, बल्कि हैरानी और विस्मय के साथ उस ऊर्जा को देखता रहता है, क्योंकि यह ऊर्जा उसे मार नहीं रही होती। वह उसके अस्तित्व से उस बुराई को धीरे-धीरे खींच रही होती है, जिसने उसे ड्रैकुला बनाया था। उसका शरीर धीरे-धीरे विलीन हो जाता है और इस बार उसका अंत सच में हमेशा के लिए हो जाता है। यह अंत विनाश से नहीं, बल्कि शुद्धि से होता है।

ड्रैकुला के खत्म होते ही नागपाशा भी पूरी तरह ठीक हो जाता है और महानगर पर छाया हुआ संकट अंततः टल जाता है।

चरित्र–चित्रण: नायक, खलनायक और उनकी जटिलताएँ

ड्रैकुला: इस कॉमिक्स का सबसे ताकतवर और प्रभावशाली किरदार खुद ड्रैकुला ही है। वह सिर्फ खून का प्यासा एक राक्षस नहीं है। वह बेहद चालाक, समझदार और हालात के हिसाब से खुद को ढाल लेने वाला खलनायक है। जब उसकी शक्तियाँ छिन जाती हैं, तो वह अपनी क्रूरता को ही अपना सबसे बड़ा हथियार बना लेता है। और जब उसे अमरता का वरदान मिलता है, तो उसका घमंड उसे और भी खतरनाक बना देता है। लेखक ने उसे एक साधारण हॉरर विलेन से ऊपर उठाकर एक ऐसे खतरे के रूप में दिखाया है, जो पूरे ब्रह्मांड के संतुलन को बिगाड़ सकता है, और यही बात उसे खास बनाती है।

नागराज: इस कहानी में नागराज अपने पूरे शौर्य और पराक्रम में नजर आता है। वह ताकत और साहस का प्रतीक है। लेकिन यहाँ उसकी सिर्फ शारीरिक शक्ति ही नहीं, बल्कि उसकी सहनशीलता और मजबूत इच्छाशक्ति की भी कड़ी परीक्षा होती है। वह यह बात समझता है कि यह लड़ाई केवल ताकत के दम पर नहीं जीती जा सकती, और इसलिए वह वेदाचार्य की योजना पर पूरा भरोसा करता है।

सुपर कमांडो ध्रुव: जहाँ नागराज शक्ति का प्रतीक है, वहीं ध्रुव बुद्धि और रणनीति का। उसके पास कोई जन्मजात सुपरपावर नहीं है, लेकिन उसका तेज दिमाग, वैज्ञानिक आविष्कार और मार्शल आर्ट्स का ज्ञान उसे किसी भी सुपरहीरो से कम नहीं बनाता। वह हर स्थिति को समझता है, उसका विश्लेषण करता है और फिर एक ठोस योजना के साथ आगे बढ़ता है। नागराज और ध्रुव की जोड़ी की यही सबसे बड़ी खूबी है—एक की ताकत दूसरे की बुद्धि को पूरा करती है।

वेदाचार्य: वे इस पूरी कहानी की रीढ़ हैं। उनका ज्ञान और उनकी तिलिस्मी शक्तियाँ ही कथा को आगे बढ़ाती हैं। वे एक सच्चे पारंपरिक गुरु की भूमिका निभाते हैं, जो अपने शिष्यों को सही दिशा दिखाते हैं और हमेशा बड़ी तस्वीर को समझकर फैसले लेते हैं।

अन्य पात्र: लोरी, नोस्ट्रॉडॉमस, नागपाशा और शुमा जैसे सहायक पात्र कहानी को और ज्यादा गहराई और विस्तार देते हैं। लोरी की मजबूरी और फिर उसकी अहम भूमिका कहानी में भावनात्मक जुड़ाव लाती है। वहीं नोस्ट्रॉडॉमस का चरित्र इस पूरी कथा को एक दार्शनिक और आध्यात्मिक स्तर पर ले जाता है, जो इसे साधारण सुपरहीरो कहानी से कहीं ऊपर उठा देता है।

कला और चित्रांकन: अनुपम सिन्हा का जादू

अनुपम सिन्हा का आर्टवर्क हमेशा से ही राज कॉमिक्स की पहचान और आत्मा रहा है, और इस कॉमिक्स में उनका काम सच में अपने शिखर पर दिखाई देता है। हर एक पैनल इतना जीवंत है कि उसमें जान सी महसूस होती है। पन्ने पलटते ही एक अलग ही ऊर्जा महसूस होती है, जो पाठक को कहानी के अंदर खींच लेती है।

एक्शन सीक्वेंस:
लड़ाई के दृश्य बेहद दमदार, तेज और असरदार हैं। चाहे नागराज के सर्पों का घातक हमला हो या ध्रुव के फुर्तीले और कलाबाजी से भरे मूव्स, हर एक एक्शन फ्रेम में गति और प्रवाह साफ नजर आता है। ऐसा लगता है जैसे दृश्य स्थिर नहीं, बल्कि चल रहे हों।

चरित्रों का चित्रण:
पात्रों के चेहरे के भाव कहानी के माहौल को बहुत अच्छे से दर्शाते हैं। ड्रैकुला के चेहरे पर दिखता खौफ और घमंड, नागराज का गुस्सा और दृढ़ता, ध्रुव की एकाग्रता और वेदाचार्य की चिंता—सब कुछ इतना साफ है कि बिना संवाद पढ़े भी भाव समझ में आ जाते हैं।

डिजाइन:
दूसरे आयाम के जीवों और राक्षसी पेड़ों का डिजाइन बेहद कल्पनाशील और डर पैदा करने वाला है। वे सिर्फ खतरनाक नहीं लगते, बल्कि अजीब और रहस्यमय भी महसूस होते हैं। शुमा और उसके अश्वारोही दानवों का लुक भी ऐसा है जो एक बार देखने के बाद दिमाग में बस जाता है।

पैनल लेआउट:
अनुपम सिन्हा ने पैनलों का इस्तेमाल बहुत समझदारी और प्रभावी तरीके से किया है। बड़े स्प्लैश पेज कहानी के अहम और यादगार पलों को भव्यता देते हैं, वहीं छोटे और तेजी से बदलते पैनल लड़ाई के रोमांच को और बढ़ा देते हैं। सुनील पाण्डेय द्वारा किया गया रंग-संयोजन इस पूरी कॉमिक्स के माहौल को और गहरा और असरदार बना देता है।

समीक्षात्मक विश्लेषण (Critical Analysis)

सकारात्मक पक्ष (Pros):
यह कहानी बहुत बड़े स्तर पर रची गई है। इसमें सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय लोकेशन्स जैसे रोमानिया और कई काल्पनिक दुनियाओं को भी शामिल किया गया है। यह देखना अच्छा लगता है कि कैसे विज्ञान (परमाणु/रोबो) और तंत्र (वेदाचार्य/लोरी) एक साथ मिलकर एक ही दुश्मन के खिलाफ लड़ते हैं। यह राज कॉमिक्स की उस सोच को दर्शाता है, जहाँ अलग-अलग ताकतें मिलकर एकता के साथ काम करती हैं। नागपाशा जैसे बड़े और खतरनाक विलेन को एक बेबस और दयनीय हालत में दिखाना, और फिर उसका पूरी तरह ठीक हो जाना, मुख्य कहानी के साथ चलने वाला एक मजबूत और भावनात्मक समानांतर प्लॉट बन जाता है।

नकारात्मक पक्ष (Cons):

कहानी में बहुत सारे तत्व एक साथ मौजूद हैं—तिलिस्म, पेंटिंग की दुनिया, ज्वालामुखी, अतीत की घटनाएँ और प्रेत जैसी चीज़ें। ऐसे में कोई नया पाठक कभी-कभी कहानी को समझने में उलझ सकता है। इसके अलावा, ड्रैकुला का अंत थोड़ा और चुनौतीपूर्ण दिखाया जा सकता था। इतनी ज़बरदस्त शक्तियों के बावजूद, अंत में उसका शारीरिक रूप से लावे में गिराया जाना कुछ हद तक साधारण लगता है। हालाँकि, कहानी में जो दिल (Heart) और भावनात्मक एंगल जोड़ा गया है, वह इस कमी को काफी हद तक संतुलित कर देता है।

निष्कर्ष: एक अविस्मरणीय कृति

“ड्रैकुला का अंत” सिर्फ एक सुपरहीरो कॉमिक्स नहीं है। यह एक ऐसी कहानी है जो यह सिखाती है कि सबसे बड़ी बुराई को हमेशा सिर्फ कच्ची ताकत से नहीं हराया जा सकता। कई बार उसके लिए एकता, समझदारी, विश्वास और कभी-कभी किसी उच्चतर शक्ति के प्रति समर्पण की जरूरत होती है। इसका अंत साधारण “जीत-हार” से आगे बढ़कर एक आध्यात्मिक और दार्शनिक समाधान पेश करता है, जो इसे भारतीय कॉमिक्स में एक अलग और खास पहचान देता है।

यह कॉमिक्स नागराज और सुपर कमांडो ध्रुव के हर प्रशंसक के लिए पढ़ना लगभग ज़रूरी है। यह राज कॉमिक्स के स्वर्ण युग का एक शानदार उदाहरण है, जहाँ कहानी, कला और रचनात्मकता एक साथ मिलकर कमाल कर देती हैं। अगर आप ऐसी कहानी पढ़ना चाहते हैं जो आपको आखिरी पन्ने तक बांधे रखे और पढ़ने के बाद सोचने पर भी मजबूर कर दे, तो “ड्रैकुला का अंत” आपके लिए बिल्कुल सही चुनाव है। यह इस बात का सबूत है कि भारतीय कॉमिक्स में भी गहराई और परिपक्वता के साथ शानदार कहानियाँ कही जा सकती हैं।

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