यह समीक्षा राज कॉमिक्स द्वारा प्रकाशित कॉमिक “अश्वराज” पर आधारित है। यह कॉमिक सिर्फ एक रोमांचक कहानी ही नहीं है, बल्कि राज कॉमिक्स के उस सुनहरे दौर की भी याद दिलाती है, जब कल्पना और शानदार चित्रकला मिलकर कमाल की कहानियाँ रचा करती थीं। 32 पन्नों की इस कॉमिक की यह विस्तृत समीक्षा उसी क्रम और ढांचे में दी जा रही है, ताकि कहानी का पूरा असर बना रहे।
परिचय और पृष्ठभूमि (Introduction)
“अश्वराज” राज कॉमिक्स की एक यादगार और क्लासिक प्रस्तुति है। इसके लेखक तरुण कुमार वाही हैं, जिन्होंने भारतीय कॉमिक्स को कई शानदार और याद रहने वाले किरदार दिए हैं। कला निर्देशन प्रताप मुळीक का है, जिनका नाम कॉमिक्स और चित्रकला की दुनिया में बड़े सम्मान से लिया जाता है। चित्रांकन विट्ठल कांबले ने किया है और संपादन की जिम्मेदारी मनीष चंद्र गुप्त ने निभाई है। इन सभी की मेहनत इस कॉमिक को खास बनाती है।

कहानी की शुरुआत एक काल्पनिक राज्य ‘चिंतापोकली’ से होती है। यहाँ के राजा चित्तिंत सिंह एक भव्य और अनोखे आयोजन ‘रथ–मैराथन’ की घोषणा करते हैं। यह सिर्फ एक खेल प्रतियोगिता नहीं है, बल्कि ताकत, शान और रुतबे का प्रदर्शन है। इस आयोजन में दूर-दूर के राज्यों से राजा और राजकुमार हिस्सा लेने आते हैं, जिससे पूरे राज्य में उत्सव जैसा माहौल बन जाता है।
कथानक का विस्तार (Plot Summary)
कहानी की शुरुआत जोश, उत्साह और कड़ी प्रतिस्पर्धा के माहौल से होती है। रथ-मैराथन में भाग लेने वाले योद्धाओं और शासकों में जादू पुरम के राजकुमार चाऊमीन, संकटपुर के राजा संकट सिंह, विश्वपाताल के पाताल जिन्न, बाबरपुर के राजा झींगामस्ती, दादस्वाज के अमीर दादबोरा और ककड़ी-खीरा के भिंडी सिंह जैसे दिलचस्प नाम शामिल हैं। इन अजीबोगरीब नामों में हल्का-सा हास्य और व्यंग्य भी छुपा है, जो कहानी को और मजेदार बना देता है।

इसी बीच प्रतियोगिता में एक रहस्यमयी योद्धा की एंट्री होती है—अश्वराज, जो अश्वलोक का राजकुमार है। जहाँ बाकी सभी राजाओं के रथों में दस या उससे भी ज़्यादा घोड़े जुड़े होते हैं, वहीं अश्वराज के रथ में केवल पाँच घोड़े होते हैं। बाकी प्रतियोगी उसका मज़ाक उड़ाते हैं और उसे हल्के में लेते हैं, लेकिन अश्वराज शांत रहता है और कुछ कहे बिना सब सह लेता है।
जैसे ही दौड़ शुरू होती है, रोमांच अपने चरम पर पहुँच जाता है। रास्ते में एक-एक करके सभी प्रतियोगियों के रथ किसी न किसी वजह से दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं या उनके घोड़ों की कमज़ोरियाँ सामने आने लगती हैं। अंत में अपनी समझदारी, धैर्य और अपने खास घोड़ों की ताकत के दम पर अश्वराज इस रथ-मैराथन को जीत लेता है। जीत के बाद राजकुमारी कुदुमचुम्मी उसे जयमाला पहनाती है और पूरे राज्य में खुशी की लहर दौड़ जाती है।

लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती, बल्कि असली रोमांच तो अब शुरू होता है। अमीर दादबोरा, जो बाहर से भले ही अमीर और सभ्य दिखता है, असल में एक बेहद लालची और चालाक इंसान है। वह राजकुमारी का अपहरण करने की खतरनाक साजिश रचता है। अपनी एक जादुई डिबिया से वह बौने शैतान ‘बुखारी’ को बाहर निकालता है। बुखारी अदृश्य होने की शक्ति रखता है और बेहद क्रूर है। वह महल के पहरेदारों को बेरहमी से मार देता है और राजकुमारी को अगवा कर दादबोरा के पास ले जाता है।
अगली सुबह जब राजा को पता चलता है कि राजकुमारी और अमीर दादबोरा दोनों गायब हैं, तो पूरे महल में हड़कंप मच जाता है। चारों तरफ अफरा-तफरी फैल जाती है। ऐसे में अश्वराज आगे आता है और राजकुमारी को सुरक्षित वापस लाने का संकल्प लेता है। महर्षि फूक-मसान, जो इस प्रतियोगिता के मुख्य अतिथि थे, अश्वराज को एक “विलक्षण मानव” बताते हैं और उसे इस कठिन यात्रा पर जाने की अनुमति देते हैं।
अश्वराज और उसके 5 विशिष्ट घोड़े (The Unique Concept)
अश्वराज के पाँच दिव्य घोड़े इस कॉमिक की सबसे अनोखी और यादगार खासियत हैं। ये घोड़े सिर्फ साधारण जानवर नहीं हैं, बल्कि जादुई शक्तियों से लैस ऐसे योद्धा हैं जो इंसान की पाँच इंद्रियों का प्रतीक माने जा सकते हैं। रक्ताम्बर अपनी तेज़ और अद्भुत दृष्टि से दूर-दूर तक आने वाले खतरे देख सकता है। कालाखोर मीलों दूर से दुश्मन की गंध पहचानने में माहिर है। अश्ववट अपनी अपार शारीरिक शक्ति के लिए जाना जाता है और खास बात यह है कि वह अश्वराज से बातचीत भी कर सकता है। नीलकंठ अपनी तेज़ बुद्धि से मुश्किल हालात में जटिल युद्ध रणनीतियाँ बनाता है, जबकि श्रव्यशक्ति मीलों दूर की हल्की-सी आहट भी सुन लेने की क्षमता रखता है।

जब अश्वराज दादबोरा का पीछा करता है और ये पाँचों घोड़े अपनी-अपनी खास शक्तियों का मिलकर इस्तेमाल करते हैं, तो यह पूरी कहानी को साधारण फैंटेसी से कहीं ऊपर उठा देता है। यह एक तरह का शानदार सुपरहीरो टीम–अप बन जाता है, जो भारतीय कॉमिक्स की दुनिया में अश्वराज को एक अलग और यादगार पहचान देता है।
संघर्ष और विलेन का पक्ष (The Antagonists)
अश्वराज का सामना दादबोरा के तीन बेहद खूंखार अंगरक्षकों से होना कहानी का सबसे रोमांचक और यादगार मोड़ है। एक तरफ तंबोला की तेज़ और घातक तलवारबाज़ी है, दूसरी ओर भूतकपाल की तिलिस्मी और डरावनी खोपड़ियाँ हैं, और तीसरी तरफ बिच्छूधड़ा का ज़हरीला, जानवर जैसा रूप। ये तीनों मिलकर अश्वराज को चारों ओर से घेर लेते हैं। इस त्रिकोणीय हमले के बीच अश्वराज का अकेले डटे रहना उसकी हिम्मत, साहस और कभी हार न मानने वाली सोच को साफ़ दिखाता है।

लेकिन इस लड़ाई का असली मोड़ तब आता है, जब हालात बिल्कुल बिगड़ चुके होते हैं और अश्वराज अपने असली और चौंकाने वाले रूप में सामने आता है—अश्वमानव (Centaur)। नीचे का हिस्सा घोड़े की अपार ताकत से भरा हुआ और ऊपर का हिस्सा इंसान की बुद्धि और युद्ध-कौशल से सजा हुआ। यह अनोखा रूप न सिर्फ दुश्मनों को हैरान कर देता है, बल्कि पाठकों के लिए भी एक शानदार और याद रह जाने वाला दृश्य बन जाता है। यह रूपांतरण अश्वराज को सिर्फ एक राजकुमार नहीं रहने देता, बल्कि उसे पूरी तरह एक सुपरहीरो की पहचान दिला देता है।
“कारूं का खजाना” और क्लाइमेक्स (The Cliffhanger)

जब दादबोरा को अपनी हार साफ़ नज़र आने लगती है, तो वह सीधे टकराने के बजाय समझौते का रास्ता अपनाने की कोशिश करता है। वह यह राज़ खोलता है कि उसे असल में राजकुमारी में कोई खास दिलचस्पी नहीं है। उसका असली मकसद अश्वराज की ताकत का इस्तेमाल करके प्रसिद्ध और रहस्यमयी “कारूं का खजाना” हासिल करना है। वह शर्त रखता है कि अगर अश्वराज उसके लिए वह खजाना लाकर दे देगा, तभी वह राजकुमारी को आज़ाद करेगा।
राजकुमारी की जान और सम्मान की खातिर अश्वराज इस बेहद मुश्किल और खतरनाक चुनौती को स्वीकार कर लेता है। कहानी के आख़िरी हिस्से में महर्षि फूक-मसान का एक नया और रहस्यमयी रूप सामने आता है। वे राजा चित्तिंत सिंह को बताते हैं कि अश्वराज अब कारूं का खजाना लेने की यात्रा पर निकल चुका है और उसे रोकने के लिए महर्षि के बारह विचित्र शिष्य, जो अलग-अलग दानवी रूपों में हैं, अपनी जान तक दांव पर लगा देंगे। यह अंत पाठक के मन में ज़बरदस्त उत्सुकता पैदा करता है और उसे अगले भाग “कारूं का खजाना” पढ़ने के लिए मजबूर कर देता है।
कला और चित्रांकन (Art and Illustration Review)
प्रताप मुळीक और विट्ठल कांबले की जोड़ी इस कॉमिक की असली जान है। इन दोनों की कला में 80 और 90 के दशक की राज कॉमिक्स की पहचान साफ़ झलकती है। अश्वराज को एक तेजस्वी, दमदार और आत्मविश्वास से भरे राजकुमार के रूप में दिखाया गया है, जिसके चेहरे पर वीरता और पक्के इरादों की झलक साफ़ दिखाई देती है।

अगर एक्शन सीन की बात करें, तो रथों की दौड़ और युद्ध के दृश्य इतने जीवंत लगते हैं कि पढ़ते समय ऐसा महसूस होता है मानो सब कुछ आँखों के सामने चल रहा हो। बिच्छूधड़ा और भूतकपाल जैसे किरदारों के डरावने और कल्पनाशील डिज़ाइन कहानी में रोमांच और डर दोनों का मज़ा बढ़ा देते हैं। रंगों के इस्तेमाल में लाल, पीले और नीले जैसे चटख रंग उस दौर की प्रिंटिंग तकनीक के साथ पूरी तरह मेल खाते हैं और कॉमिक को एक अलग ही विज़ुअल पहचान देते हैं। महलों की बनावट, जंगलों के बैकग्राउंड और जादुई शक्तियों के इफेक्ट्स मिलकर कहानी के पौराणिक और काल्पनिक माहौल को पूरी तरह जीवंत कर देते हैं।
लेखन और संवाद (Writing and Dialogues)
तरुण कुमार वाही की लेखनी इस कहानी को मज़बूती देती है। संवाद छोटे हैं, लेकिन असरदार हैं। घोड़ों के नाम और उनकी खासियतों का वर्णन बेहद रचनात्मक तरीके से किया गया है। कहानी की रफ्तार तेज़ बनी रहती है, जिससे पाठक कहीं भी बोर नहीं होता। राजाओं के अजीब और मज़ेदार नामों के ज़रिये हल्का-फुल्का हास्य आता है, जबकि अपहरण और युद्ध जैसे दृश्य कहानी में गंभीरता और तनाव बनाए रखते हैं। यह संतुलन कहानी को और मज़ेदार बना देता है।
मनोवैज्ञानिक और सांस्कृतिक पहलू (Thematic Analysis)
“अश्वराज” की कहानी वफादारी, बहादुरी और लालच जैसे विषयों के इर्द-गिर्द घूमती है। अश्वराज और उसके घोड़ों के बीच का रिश्ता इंसान और प्रकृति के बीच तालमेल और आपसी भरोसे को दर्शाता है। अश्वमानव यानी सेंटौर का विचार भले ही ग्रीक पौराणिक कथाओं से प्रेरित लगता हो, लेकिन इसे भारतीय माहौल और सोच में इस तरह ढाला गया है कि यह बिल्कुल नया और मौलिक महसूस होता है।
निष्कर्ष (Conclusion)
कुल मिलाकर, “अश्वराज” राज कॉमिक्स की एक शानदार और यादगार पेशकश है। यह सिर्फ बच्चों के लिए नहीं, बल्कि हर उस पाठक के लिए है जिसे फैंटेसी और रोमांच से भरी कहानियाँ पसंद हैं।
यह कॉमिक उस दौर की याद दिलाती है, जब कहानियाँ भले ही सरल होती थीं, लेकिन कल्पना की ऊँचाइयों को छू जाती थीं। अगर आपने अब तक इसे नहीं पढ़ा है, तो यह जादुई दुनिया में कदम रखने का बेहतरीन मौका है। इस भाग को पढ़ने के बाद अगले हिस्से “कारूं का खजाना” को जानने की जो उत्सुकता पैदा होती है, वही इस कहानी की सबसे बड़ी सफलता है।
