‘परमाणु’, जो राज कॉमिक्स के सबसे पॉपुलर नायकों में से एक है, अपनी साइंस-बेस्ड शक्तियों और इंस्पेक्टर विनय की तरह अपनी जासूसी स्किल्स के लिए जाना जाता है। “जयकारा परमाणु का” (Jaikara Parmanu Ka) एक ऐसी कहानी है जहाँ परमाणु का सामना सिर्फ शारीरिक दुश्मन से नहीं, बल्कि एक आइडियोलॉजिकल और माइंड गेम वाला दुश्मन से होता है। यह कहानी सिर्फ “दिशुम-दिशुम” वाली एक्शन स्टोरी नहीं है, बल्कि यह सीधे भारतीय समाज में गहराई तक जमे अंधविश्वास, पाखंड और भीड़ की मानसिकता (Mob Mentality) पर प्रहार करती है।
लेखक तरुण कुमार वाही, कलाकार सुरेश डीगवाल और एडिटर मनीष गुप्ता की टीम ने इस कॉमिक्स में एक ऐसा ताना-बाना बुना है जहाँ परमाणु को भगवान बना दिया जाता है ताकि उसे शैतान साबित किया जा सके।
The Plot
कहानी की शुरुआत एक बेहद संवेदनशील और स्ट्रेसफुल सीन से होती है। दिल्ली में दुर्गा पूजा का विसर्जन चल रहा है। भक्त “दुर्गा मैया की जय” और “जगत जननी की जय” के नारे लगा रहे हैं। इसी भक्तिमय माहौल में इंस्पेक्टर विनय (परमाणु) को खबर मिलती है कि आतंकवादियों ने देवी की मूर्ति को निशाना बनाया है।

कुख्यात आतंकवादी बब्बन अफरीदी, जो साधु का भेष धरे हुए है, उस ट्रक पर सवार है जो मूर्ति ले जा रहा है। यहाँ लेखक ने बड़े ही सुंदर तरीके से दिखाया है कि कैसे अपराधी धर्म के नाम पर अपने मंसूबों को अंजाम देते हैं। परमाणु वहां पहुँचता है और बब्बन को पकड़ लेता है। बब्बन भीड़ में बम फेंक देता है, जिसे परमाणु अपनी जान पर खेलकर आकाश में ले जाकर डिफ्यूज करता है। भीड़, जो पहले डर के मारे चुप थी, अब परमाणु की जय-जयकार करने लगती है और उसे “आधुनिक हनुमान” और “ईश्वर का अवतार” कहने लगती है।यहीं से कहानी का असली विलेन, ‘प्रिंसिपल’ (Principal), एंट्री करता है। प्रिंसिपल, जो ‘जुर्म का कॉलेज’ चलाता है, एक बेहद चालाक और शातिर अपराधी है। जब उसे पता चलता है कि परमाणु ने उसका हथियारों का जखीरा पकड़ लिया है, तो वह गुस्सा होने के बजाय खुश होता है। उसका तर्क यह है कि अगर परमाणु को हराना है, तो उसे मारो मत, बल्कि उसे इतना ऊपर उठा दो कि जब वह गिरे, तो चकनाचूर हो जाए। वह कहता है, “लोग परमाणु की जय-जयकार कर रहे थे… कोई कह रहा था कि परमाणु ईश्वर का अवतार है”। प्रिंसिपल इसी अंधभक्ति को परमाणु के खिलाफ हथियार बनाने का फैसला करता है।

प्रिंसिपल एक नकली बाबा, “गरारी बापू” को लॉन्च करता है। गरारी बापू का कहना है कि भक्ति इंसान और भगवान के बीच एक “गरारी” (Gear) की तरह काम करती है। वह घोषणा करता है कि आज परमाणु देव प्रकट होंगे। और सच में, आधुनिक टेक्नोलॉजी (लेजर बीम और होलोग्राफिक्स) का इस्तेमाल करके वहां परमाणु की एक इमेज दिखाई जाती है। इसके बाद शुरू होता है ढोंग का असली खेल। प्रिंसिपल के आदमी, जो भीड़ में भक्त बनकर बैठे हैं, झूठे चमत्कार दिखाने लगते हैं:
- एक लंगड़ा लड़का चलने लगता है और फुटबॉल खेलने का दावा करता है।
- एक अंधा, जो जन्म से अंधा है, परमाणु की “भभूत” से देखने लगता है।
- एक कुबड़ा सीधा हो जाता है।
ये चमत्कार जंगल की आग की तरह फैल जाते हैं। मीडिया, खासकर टीवी चैनल, इसे तुरंत हेडलाइन बना देते हैं। इंस्पेक्टर विनय (परमाणु) सब कुछ देखकर हैरान रह जाता है। वह जानता है कि वह सिर्फ साइंस का विद्यार्थी है, कोई भगवान नहीं।
कहानी का सबसे रोचक हिस्सा विनय का मानसिक संघर्ष है। वह जानता है कि यह सब झूठ है। वह अपनी प्रेमिका शिप्रा (जो पत्रकार हैं) और अपने साथी पुलिसवालों को समझाने की कोशिश करता है कि यह “सिर्फ अंधविश्वास” है, लेकिन कोई उसकी बात नहीं सुनता। यहाँ तक कि जब वह थाने में होता है, उसके साथी पुलिसकर्मी परमाणु देव की पूजा कर रहे होते हैं और विनय को भी प्रसाद दे रहे होते हैं। जब विनय इसका विरोध करता है और सच्चाई जानने के लिए उन “ठीक हुए” मरीजों को थाने बुलाता है, तो वे मरीज (जो वास्तव में प्रिंसिपल के गुर्गे हैं) उल्टा विनय पर ही अत्याचार का आरोप लगा देते हैं।

परमाणु अंततः अपनी वैज्ञानिक सूझबूझ से पता लगाता है कि यह सब लेजर बीम और प्रोजेक्शन का खेल है। वह उस स्रोत को ढूँढ निकालता है जहाँ से ये छवियाँ प्रसारित हो रही थीं। अंत में, एक और रैली में, जहाँ प्रिंसिपल एक हेलीकॉप्टर से परमाणु की विशाल प्रतिमा (जिसमें फिर से हथियार छिपे हैं) के साथ उतरने वाला होता है, परमाणु असली खेल खेलता है। वह खुद को भीड़ के बीच ट्रांसमिट करता है और विलेन की तकनीक को उनके ही खिलाफ इस्तेमाल करता है। वह साबित करता है कि वह भगवान नहीं है, और अंत में प्रिंसिपल और बब्बन अफरीदी को गिरफ्तार करवा देता है।
मुख्य विषय और सामाजिक संदेश (Themes & Social Commentary)
यह कॉमिक्स सिर्फ मनोरंजन नहीं है, बल्कि यह अपने समय के सामाजिक मुद्दों पर एक साफ संदेश देती है।

अंधविश्वास बनाम विज्ञान (Superstition vs Science):
पूरी कहानी का केंद्र यह है कि कैसे एक समाज के लोग तर्क (Logic) छोड़कर चमत्कार (Miracle) के पीछे भागते हैं। परमाणु का चरित्र विज्ञान का प्रतिनिधित्व करता है (उसका नाम ही ‘परमाणु’ है, जो विज्ञान की देन है), जबकि ‘गरारी बापू’ और ‘प्रिंसिपल’ उस पाखंड का प्रतिनिधित्व करते हैं जो धर्म का गलत इस्तेमाल करता है। इंस्पेक्टर विनय एक जगह कहता है:
“न्यूक्लियर यानी ‘परमाणु‘ शब्द विज्ञान की देन है। अगर वाकई कोई परमाणु देव प्रकट हुए हैं तो उसमें कोई फ्रॉड है।“
यह संवाद पूरी कॉमिक्स का सार है।

भीड़ की मानसिकता (Mob Mentality):
लेखक ने बहुत अच्छे से दिखाया है कि भीड़ का अपना दिमाग नहीं होता। जब परमाणु बम लेकर उड़ता है, वे उसे भगवान मानते हैं। जब नकली चमत्कार होते हैं, वे विनय जैसे पुलिस इंस्पेक्टर को मारने पर उतारू हो जाते हैं क्योंकि उसने “परमाणु देव” के खिलाफ बात की। एक दृश्य में, भीड़ इतनी पागल हो जाती है कि वे विनय की जीप पलट देते हैं। यह दिखाता है कि धार्मिक उन्माद में लोग कानून और व्यवस्था को भी नजरअंदाज कर देते हैं।

कहानी में मीडिया की भूमिका पर भी कटाक्ष है। शिप्रा, एक पत्रकार होने के बावजूद, बिना जांच के “परमाणु देव” की खबरें छापती है और विनय पर चिल्लाती है कि वह विश्वास क्यों नहीं करता। यह दिखाता है कि कई बार मीडिया भी अंधविश्वास को बढ़ावा देने में शामिल हो जाता है।
पात्र विश्लेषण (Character Analysis)
परमाणु (इंस्पेक्टर विनय): इस कॉमिक्स में परमाणु एक बहुत ही मुश्किल स्थिति में दिखाई देता है। वह शारीरिक रूप से शक्तिशाली है, लेकिन लोगों की अंधभक्ति से नहीं लड़ सकता। जब उसे “भगवान” कहा जाता है, तो उसे यह गाली जैसा लगता है क्योंकि वह जानता है कि यह उसकी मानवता और विज्ञान का अपमान है। उसका चरित्र बहुत ही दृढ़ निश्चयी है—वह पूरी दुनिया के खिलाफ जाकर भी सत्य (विज्ञान) के साथ खड़ा रहता है।
प्रिंसिपल (द विलेन): प्रिंसिपल राज कॉमिक्स के सबसे अंडररेटेड खलनायकों में से एक है। उसकी योजना वाकई ‘मास्टरस्ट्रोक’ थी। वह जानता था कि परमाणु को मारना मुश्किल है, लेकिन उसे बदनाम करना आसान है। उसने “श्रद्धा” को हथियार बना लिया। उसकी हँसी और आत्मविश्वास उसे एक यादगार खलनायक बनाते हैं।
शिप्रा: शिप्रा आम जनता का प्रतिनिधित्व करती हैं। वह पढ़ी-लिखी और आधुनिक हैं, लेकिन चमत्कार देखकर अपनी तर्कशीलता खो देती हैं। विनय के साथ उनका रिश्ता कहानी में व्यक्तिगत और भावनात्मक लेयर जोड़ता है।
कला और चित्रांकन (Art & Illustration)

सुरेश डीगवाल का आर्टवर्क इस कॉमिक्स की जान है। 90 के दशक की राज कॉमिक्स की शैली में डीगवाल जी माहिर थे।
बब्बन अफरीदी के साथ शुरुआती लड़ाई और अंत में हेलीकॉप्टर वाला सीन बहुत ही डायनेमिक है। परमाणु के उड़ने के पोज़ और उसके गैजेट्स का विवरण शानदार है।
भीड़ के चेहरों पर अंधभक्ति, गुस्सा और पागलपन के भाव बड़े ही बारीकी से उकेरे गए हैं। जब भीड़ विनय पर हमला करती है, वह दृश्य डरावना और असली लगता है।
सुनील पांडेय का रंग संयोजन उस समय के हिसाब से बहुत वाइब्रेंट है। परमाणु की पीली और हरी वेशभूषा उसे हर पैनल में अलग दिखाती है। गरारी बापू के दरबार में रोशनी और आभा का प्रयोग जादुई लगने में सफल रहा है।
संवाद और लेखन (Dialogue & Writing)

तरुण कुमार वाही को राज कॉमिक्स के बेहतरीन कथानक लिखने का श्रेय जाता है। “जयकारा परमाणु का” में उनके संवाद बहुत ही धारदार हैं।
कॉमिक्स में कई जगह व्यंग्य भी है। जब विनय कहता है,
“अगर कोई सूचना मिले कि किसी मंदिर का कोई पुजारी खूंखार आतंकवादी है तो मैं उस पर भी विश्वास करके तुरंत कार्रवाई करूंगा,”
तो यह उसकी कर्तव्यनिष्ठा और समाज की सच्चाई दोनों को दिखाता है।
गंभीर विषय होने के बावजूद बीच-बीच में हल्का-फुल्का हास्य भी है, जैसे थाने में चाय-पकौड़े खाते हुए पुलिसवालों का दृश्य, जहाँ वे मानते हैं कि यह “परमाणु देव का प्रसाद” है।
आलोचनात्मक दृष्टिकोण (Critical Perspective)
हालाँकि यह कॉमिक्स शानदार है, लेकिन कुछ कमियाँ भी हैं। उदाहरण के लिए, परमाणु का ट्रांसमिट होकर वहां पहुंचना और होलोग्राफिक तकनीक को मात देना थोड़ा और स्पष्ट किया जा सकता था। कभी-कभी “विज्ञान” भी जादू जैसा लगने लगता है। शिप्रा का इतनी आसानी से अंधविश्वास में फंस जाना थोड़ा अजीब लगता है, हालांकि यह कहानी के लिए जरूरी था ताकि विनय अकेला दिखाई दे।
फिर भी, कहानी का फ्लो (Pacing) बहुत अच्छा है और पाठक पन्ने पलटते रहते हैं। “गरारी बापू” का कांसेप्ट बहुत यूनिक था—धर्म और मशीनरी का ऐसा मिश्रण कम ही देखने को मिलता है।
निष्कर्ष (Conclusion)
“जयकारा परमाणु का” राज कॉमिक्स के स्वर्ण युग का बेहतरीन उदाहरण है। यह दिखाता है कि कॉमिक्स सिर्फ बच्चों के लिए नहीं, बल्कि समाज का आईना भी हो सकती हैं। कहानी हमें यह सिखाती है कि:
- किसी भी चमत्कार पर आंख मूंदकर विश्वास नहीं करना चाहिए।
- परमाणु की शक्तियाँ विज्ञान की देन हैं, दैवीय नहीं।
- अपराधी अक्सर हमारी आस्था का फायदा उठाते हैं, जैसा कि बब्बन अफरीदी और प्रिंसिपल ने किया।
यदि आप राज कॉमिक्स के फैन हैं, तो यह विशेषांक पढ़ना आपके लिए जरूरी है। यह परमाणु को सिर्फ फाइटर नहीं, बल्कि एक तर्कशील (Rational) नायक के रूप में पेश करता है। उस समय के 18 रुपये में यह कॉमिक्स पढ़ने वालों को ब्लॉकबस्टर फिल्म जैसा अनुभव देती है।
अंतिम निर्णय: 5 में से 4.5 स्टार। एक क्लासिक कहानी जो आज भी प्रासंगिक है।
