‘तौसी और शैतान का बेटा’ (अंक संख्या ३७६) तुलसी कॉमिक्स के उस रचनात्मक दौर की अहम कड़ी है, जो सर्पदेश के इच्छाधारी नाग राजा तौसी पर आधारित है। तौसी के पास दिव्य अस्त्रों और छह गुप्त इच्छाधारी शक्तियों के साथ कई अलौकिक ताकतें हैं। लेखक रितुराज और चित्रकार राही कदम व दर्शना थिगळे की यह कॉमिक्स सिर्फ एक फैंटेसी कहानी नहीं, बल्कि इसमें पौराणिकता, विज्ञान-कल्पना और एक दिलचस्प पारिवारिक ड्रामा का बेहतरीन मेल देखने को मिलता है।
यह कहानी तौसी को एक ऐसे रोमांचक सफर पर ले जाती है जहाँ उसका सामना ऐसे दुश्मन से होता है, जो उसके अतीत, वर्तमान और भविष्य तीनों से जुड़ा है — यही चीज़ इस कहानी को और गहराई और भावनात्मक वजन देती है।
यह समीक्षा इस कॉमिक्स के कथानक, पात्रों और आर्ट की परतों में उतरकर उस दौर की कॉमिक्स की यादें फिर से ताज़ा करने की कोशिश है।
कथानक और सारांश: एक अपहरण की पेचीदा चाल
कहानी की शुरुआत सर्पदेश में सम्राट तौसी की राज्यसभा से होती है। माहौल गंभीर है, क्योंकि एक गुप्तचर गांडीव को तौसी के सामने लाया गया है। महामंत्री का आरोप है कि गांडीव, जो किसी अनजान लोक से आया है, सम्राट तौसी की गुप्त शक्तियों और ब्रह्मास्त्रों की जानकारी निकालने की कोशिश कर रहा था। जब तौसी उसे खुद बोलने का मौका देता है, तो गांडीव के खुलासे से पूरी सभा सन्न रह जाती है।

गांडीव न सिर्फ अपने ऊपर लगे आरोप मान लेता है, बल्कि ढिठाई से कहता है कि उसका असली मकसद तौसी का अपहरण करना है। यह सुनकर दरबारी हँस पड़ते हैं — “ये मुँह और मसूर की दाल!” — लेकिन उनकी हँसी ज्यादा देर नहीं टिकती।
गांडीव पल भर में अपनी जंजीरें तोड़ देता है और एक मायावी पाश से तौसी को छोड़कर पूरी राज्यसभा को बंदी बना लेता है।
यहीं से कहानी का पहला बड़ा एक्शन सीन शुरू होता है।
अपने दरबारियों को संकट में देखकर तौसी क्रोधित हो उठता है और गांडीव को मुकाबले की चुनौती देता है। तौसी अपने दिव्यास्त्र से गांडीव के मायावी पाश को काट देता है, लेकिन गांडीव भी किसी आम योद्धा की तरह नहीं है। वह अपने ‘काटक’ नाम के दिव्यास्त्र से तौसी के अगले वार को रोक देता है।
जब तौसी को एहसास होता है कि सामने वाला दुश्मन वाकई शक्तिशाली है, तो वह अपनी छह गुप्त शक्तियों में से एक — ‘पकड़ध्वज’ — का आह्वान करता है। पकड़ध्वज की शक्ति किसी को भी जकड़ने की है, और वो तुरंत गांडीव को अपने पाश में बाँध लेता है।
यहीं आता है कहानी का पहला रहस्योद्घाटन।
गांडीव पकड़ध्वज को देखते ही पहचान जाता है कि तौसी को ये अस्त्र खुद शेषनाग से मिले हैं, और वह ब्रह्मांड का पहला ऐसा इच्छाधारी नाग है जिसके पास ये दिव्यास्त्र हैं।
अब अपनी हार तय देखकर गांडीव आखिरी चाल चलता है — वह एक ऐसा काला धुआं छोड़ता है जो पलभर में पूरी राज्यसभा में फैल जाता है और तौसी समेत सभी को ‘जड़ शून्य’, यानी पूरी तरह अचल और पंगु बना देता है।

इसके बाद मंच पर एंट्री होती है कॉमिक्स के असली विलेन ‘सीजूरा’ की। वह एक विमान से उतरता है और खुद को देवलोक के एक शैतान और ‘जीन-18’ की पत्नी का बेटा बताता है। वह खुलासा करता है कि गांडीव दरअसल उसी का बनाया हुआ एक शक्तिशाली पुतला था, जिसे उसने सिर्फ तौसी की ताकतें परखने के लिए भेजा था। लेकिन उसका असली मकसद तौसी का अपहरण करना है — ताकि उसे अपने पिता ‘कलमीना’ के पास ले जा सके, जिसने कभी तौसी की पत्नी ‘तासी’ के पिता (जीन-18) की हत्या की थी। (यह हिस्सा उन तौसी फैंस के लिए बहुत खास है जो तौसी और जीन-18 के पुराने, पेचीदे रिश्ते को जानते हैं।)
अब पूरी राज्यसभा पंगु पड़ी है और तौसी कुछ नहीं कर पा रहा। तभी सर्पदेश का सेनापति, तौसी के गुरु ‘नागबाबा’ को खबर देने दौड़ पड़ता है। नागबाबा तुरंत घटनास्थल पर पहुँचते हैं और उनका सामना सीजूरा से होता है। सीजूरा, जो देवलोक और जिन्न-लोक दोनों की शक्तियों का मिला-जुला रूप है, नागबाबा पर भारी पड़ता है। लेकिन उसका असली इरादा लड़ना नहीं, बल्कि तौसी को ले जाना है।
वह अपने ‘कालू जिन्न’ की मदद से बेहोश तौसी को उठाकर एक रहस्यमयी महल में ले जाता है, जो पानी के रास्ते से होकर एक गुप्त जगह पर बना है।
नागबाबा उसका पीछा करते हुए उस महल तक पहुँचते हैं। वहाँ वे देखते हैं कि तौसी अभी भी जड़ अवस्था में पड़ा है। नागबाबा अपने ज्ञान से पहचान जाते हैं कि गांडीव के छोड़े गए काले धुएँ ने तौसी की ‘सुषुम्ना नाड़ी’ और ‘जीवन शक्ति धारा’ को जकड़ लिया है। वह तौसी के मस्तिष्क की एक गुप्त नाड़ी दबाकर उसे इस अवस्था से बाहर लाते हैं।
होश में आते ही तौसी गुस्से से भर उठता है। वह सीजूरा से बदला लेने की कसम खाता है और साथ ही यह भी कहता है कि वह देवलोक जाकर जीन-18 (जिसकी आत्मा कलमीना ने कैद कर रखी है) को मुक्त करेगा। नागबाबा उसे रोकने की कोशिश करते हैं, लेकिन तौसी नहीं मानता। वह अपनी गुप्त इच्छाधारी शक्तियों में से एक जिन्न को बुलाता है और उसे दो आदेश देता है — पहला, सीजूरा की कमजोरी का पता लगाना, और दूसरा, अगर तौसी देवलोक से वापस न लौटे, तो सर्पदेश का शासन संभालना।

तौसी और नागबाबा जैसे ही महल से बाहर निकलते हैं, सीजूरा फिर प्रकट होता है और हमला कर देता है। वह नागबाबा को एक ही वार में बेहोश कर देता है। अब मैदान में सिर्फ तौसी और सीजूरा बचे हैं — और शुरू होता है अंतिम मुकाबला। सीजूरा अपनी मायावी शक्तियों से अपने छह छाया शरीर बना लेता है। तौसी असली सीजूरा पहचान नहीं पाता और भ्रमित हो जाता है। तभी तौसी का भेजा हुआ जिन्न ‘विषभेदा’ लौटकर आता है और उसे असली सीजूरा की पहचान बता देता है।
तौसी तुरंत अपने ‘पकड़ध्वज’ को आदेश देता है, और वह असली सीजूरा को जकड़ लेता है।
लेकिन कहानी यहाँ खत्म नहीं होती। सीजूरा, जो अब बंदी बन चुका है, एक आखिरी इच्छा जताता है — वह कहता है कि वह अपने पिता जीन-18 के शव को देखना चाहता है, जिसे तौसी ने सर्पदेश के कारागार में सुरक्षित रखा हुआ है।
नागबाबा और तौसी उसकी यह बात मान लेते हैं और कारागार की ओर चल पड़ते हैं।
पर जब वे वहाँ पहुँचते हैं, तो जीन-18 का शव गायब मिलता है!
तौसी कुछ समझ पाता, उससे पहले ही उसे कैद में बैठे सीजूरा की आवाज सुनाई देती है।
सीजूरा बताता है कि यह उसी की शक्ति का कमाल है — उसने अपने पिता के शव को अदृश्य कर दिया है और उसे अपने विमान से अज्ञात स्थान पर भेज दिया है।
वह तौसी को एक सख्त चेतावनी देता है — “अब अगर तुझे मुझे और अपने ससुर जीन-18 के शव दोनों को वापस पाना है, तो तुझे देवलोक आना ही होगा।”
कॉमिक्स एक शानदार क्लिफहैंगर पर खत्म होती है, जहाँ तौसी के सामने अब दोहरी चुनौती है — एक तरफ सीजूरा को सज़ा देना, और दूसरी तरफ जीन-18 के शव को वापस लाना।
यह अंत अगले अंक ‘तौसी और धूमकेतु’ के लिए एक बेहतरीन आधार तैयार करता है और पाठक को अगले भाग के लिए उत्साहित छोड़ देता है।
पात्र विश्लेषण
तुलसी कॉमिक्स की यह कृति “तौसी और शैतान का बेटा” भारतीय कॉमिक्स के स्वर्ण युग की एक अहम कहानी है, जो पौराणिकता, साइंस फिक्शन और पारिवारिक ड्रामा — इन तीनों को बहुत खूबसूरती से जोड़ती है।
कहानी सर्पदेश के सम्राट तौसी के अपहरण से शुरू होती है, जहाँ गांडीव नाम का एक शक्तिशाली पुतला उसकी ताकतों की परीक्षा लेकर उसे पूरी तरह पंगु बना देता है। इसके बाद असली खलनायक सीजूरा सामने आता है — जो देवलोक के शैतान और जीन-18 की पत्नी का बेटा है। उसका मकसद तौसी को अपने पिता के पास ले जाकर बदला लेना है। यहीं से कहानी तौसी के कर्तव्य और व्यक्तिगत रिश्तों के बीच फँसने की भावनात्मक यात्रा बन जाती है।
नागबाबा, जो तौसी के गुरु हैं, उसे इस पंगु अवस्था से मुक्त करते हैं और आगे जाकर तौसी और सीजूरा के बीच जबरदस्त टकराव होता है। अंत में तौसी अपनी समझदारी और रणनीति से सीजूरा को कैद करने में सफल होता है। लेकिन सीजूरा की आखिरी चाल सब कुछ बदल देती है — वह जीन-18 के शव को अदृश्य कर देता है और तौसी को देवलोक आने की चुनौती देता है। यहीं कहानी खत्म होती है, एक शानदार सस्पेंस के साथ, जो अगले अंक के लिए एक मजबूत नींव रखती है।
कला और चित्रांकन (Artwork)
राही कदम और दर्शना थिगळे का चित्रांकन 90 के दशक की तुलसी कॉमिक्स की उस पहचान को दिखाता है, जिसमें एक्शन और रहस्य दोनों का सही संतुलन होता था।
कॉमिक्स में हर पैनल में गतिशीलता और ऊर्जा है — खासकर जब तौसी अपने दिव्यास्त्रों या ‘पकड़ध्वज’ जैसी शक्तियों का इस्तेमाल करता है।
पात्रों का डिज़ाइन भी बेहतरीन है — तौसी का राजसी और वीराना लुक, नागबाबा का धार्मिक और तपस्वी तेज, और सीजूरा का राक्षसी रूप, नुकीले सींगों और खतरनाक चेहरे के साथ —हर किरदार को अलग पहचान देता है। खास तौर पर सीजूरा के छाया शरीरों वाला दृश्य बेहद प्रभावशाली बना है।

रंगों का इस्तेमाल भी आकर्षक है —पाताल लोक के दृश्यों में गहरे रंगों का उपयोग रहस्यमयी माहौल बनाता है, जबकि दिव्यास्त्रों की टक्कर के समय इस्तेमाल हुए चमकीले और विस्फोटक रंग कहानी को एक सिनेमाई अहसास देते हैं। हालाँकि, कुछ जगहों पर पृष्ठभूमि का अभाव और साइड कैरेक्टर्स के सपाट चेहरे थोड़े कमजोर लगते हैं, पर इसे उस समय की प्रिंटिंग और प्रोडक्शन की सीमाओं में देखते हुए नजरअंदाज़ किया जा सकता है। कुल मिलाकर, आर्टवर्क कहानी की ताकत को और बढ़ाता है और इसे विज़ुअली यादगार बनाता है।
लेखन और संवाद
रितुराज का लेखन कसा हुआ और तेज़ रफ्तार वाला है। कहानी एक पल के लिए भी थमती नहीं —
राज्यसभा की चर्चा से लेकर अपहरण, नए विलेन की एंट्री, रहस्यमय महल और अंतिम मुकाबले तक सब कुछ तेज़ी और रोमांच से भरा है।
संवादों में ड्रामा और देसी स्वाद दोनों हैं। “ये मुँह और मसूर की दाल!” जैसे मुहावरों से कहानी को लोकल टच मिलता है और तुलसी कॉमिक्स का ट्रेडमार्क हास्य भी बरकरार रहता है।
तौसी और सीजूरा के बीच की बातचीत सिर्फ लड़ाई तक सीमित नहीं है — वो उनके अतीत, रिश्तों और व्यक्तिगत उद्देश्यों को भी उजागर करती है, जिससे कहानी और गहरी बनती है।
इस कॉमिक्स की सबसे बड़ी खासियत इसका वर्ल्ड-बिल्डिंग है। कहानी में पाताल लोक, देवलोक, जिन्न लोक और शैतान लोक — सब एक साथ मौजूद हैं और ये सब इतने सहज रूप से जुड़े हैं कि पूरा तौसी-वर्ल्ड बहुत बड़ा और कल्पनाओं से भरा लगता है।
निष्कर्ष
‘तौसी और शैतान का बेटा’ सिर्फ एक कॉमिक्स नहीं, बल्कि तुलसी कॉमिक्स के रचनात्मक शिखर का प्रमाण है।
सिर्फ 32 पन्नों में इतनी जटिल कहानी, इतने गहरे किरदार और इतनी पौराणिकता समेटना अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है।
यह कॉमिक्स तौसी को एक साधारण इच्छाधारी नाग से उठाकर एक ब्रह्मांडीय योद्धा के रूप में पेश करती है —जो सिर्फ सर्पदेश की रक्षा नहीं करता, बल्कि कई लोकों के संघर्षों में भी उलझा हुआ है।
सीजूरा के रूप में उसे एक ऐसा दुश्मन मिलता है जो न केवल ताकत में बराबरी करता है, बल्कि भावनात्मक रूप से भी उससे जुड़ा हुआ है।
कला और लेखन, दोनों ही अपने समय के हिसाब से शानदार हैं। इसका क्लिफहैंगर एंडिंग इतना जबरदस्त है कि कोई भी पाठक तुरंत अगला भाग ‘तौसी और धूमकेतु’ पढ़ना चाहेगा।
यह भारतीय कॉमिक्स प्रेमियों के लिए एक अमूल्य रत्न है —जो आज भी उतनी ही रोमांचक और मनोरंजक लगती है, जितनी अपने पहले प्रकाशन के समय थी। यह उस दौर की याद दिलाती है जब कल्पना की कोई सीमा नहीं थी, और हर पन्ना एक नए रोमांच की दुनिया खोल देता था।

4 Comments
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