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Home » Maharavan Series Part-5: कलंका Comics Review – भोकाल, कलंकिनी और हनुमान का निर्णायक युद्ध
Hindi Comics World Updated:26 November 2025

Maharavan Series Part-5: कलंका Comics Review – भोकाल, कलंकिनी और हनुमान का निर्णायक युद्ध

धर्म, छल, रणनीति और त्याग से भरी राज कॉमिक्स की सबसे शक्तिशाली क्लाइमेक्स कथा
ComicsBioBy ComicsBio26 November 2025Updated:26 November 202509 Mins Read
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कलंका विशेषांक (#107) समीक्षा – भोकाल बनाम कलंकिनी का अंतिम युद्ध
‘कलंका’ विशेषांक राज कॉमिक्स का वह ऐतिहासिक अध्याय है जहाँ भोकाल, अतिक्रूर और वृद्ध रूपी हनुमान मिलकर दानवी महारानी कलंकिनी के विरुद्ध अंतिम धर्मयुद्ध लड़ते हैं, जिसमें रणनीति, त्याग, दिव्य शक्तियाँ और भावनात्मक संघर्ष कहानी को महागाथा का स्तर दे देते हैं।
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राज कॉमिक्स के इतिहास में ‘कलंका’ विशेषांक (संख्या 107) एक ऐसा निर्णायक अध्याय है जो ‘भोकाल’, ‘कपालिका’ और ‘मृत्युजीत’ जैसी पिछली महागाथाओं के आखिरी संघर्ष को अपने चरम पर पहुँचाता है। लेखक संजय गुप्ता और चित्रांकन के उस्ताद कदम स्टूडियो ने मिलकर यह ऐसा अंक रचा है, जिसे सिर्फ एक कॉमिक्स कहना कम होगा। यह धर्म, छल, बहादुरी और वचन निभाने की एक घुमावदार और रोमांचक कहानी है। इस अंक में दानवी महारानी कलंकिनी और महाबली भोकाल व उनके जबरदस्त साथी—अतिक्रूर, धनुषा और सबसे रहस्यमय, वृद्ध रूप में दिखाई देने वाले हनुमान—के बीच होने वाला अंतिम महासंग्राम सामने आता है।

इस समीक्षा में हम कॉमिक्स के कई पहलुओं—चित्रांकन, कहानी की गहराई, पात्रों की भावनाएँ और अंतिम जीत में छिपे नैतिक संदेश—का विस्तार से विश्लेषण करेंगे।

अंधकार पर प्रकाश का युद्ध

‘कलंका’ का कवर देखते ही माथे पर टकराव का तूफ़ान साफ नजर आता है। भोकाल को एक बड़े, डर पैदा करने वाले दैत्य जैसे जीव पर बैठी कलंकिनी से सीधे भिड़ते दिखाया गया है। कॉमिक्स का शीर्षक ‘कलंका’—जो पाप, अपवित्रता और अंधेरे का प्रतीक है—भोकाल के सामने खड़ी आखिरी और सबसे भयानक चुनौती का इशारा करता है। यह अंक कालरात्रि के उत्सव और रुधिर यज्ञ के नाश के बाद, पहली बार कलंकिनी के पूरे रौद्र रूप और उसकी असीमित शक्तियों को सामने लाता है।

संजय गुप्ता ने कहानी में जहाँ पौराणिकता और नाटकीयता का ज़ोरदार मिश्रण किया है, वहीं कदम स्टूडियो ने अपने दमदार, जीवंत चित्रांकन से इसे अविस्मरणीय बना दिया है। यह विशेषांक ठीक उसी मोड़ से शुरू होता है जहाँ पिछली कहानी खत्म हुई थी—भोकाल ने रुधिर यज्ञ को तो नष्ट कर दिया, लेकिन अब उसे सामना करना है खुद कलंकिनी के उस उग्र रूप से, जो देवताओं के वरदानों के कारण लगभग अजेय हो चुकी है।

चित्रांकन और कला शैली: गति और भव्यता

कदम स्टूडियो का चित्रांकन ‘कलंका’ की सबसे जबरदस्त ताकत है। कॉमिक्स के हर पैनल में इतनी ऊर्जा और गति है कि पाठक खुद को एक्शन के बीच खड़ा हुआ महसूस करता है।

कालरात्रि उत्सव के दृश्यों में गहरे और नाटकीय रंगों का इस्तेमाल कलंका नगरी के डरावने और बेरहम माहौल को बहुत प्रभावी बनाता है। कलंकिनी के प्रकट होने का पल, उसकी विशाल प्रतिमा का टूटना और उसका विनाशकारी अवतार—इन सबका चित्रण इतना दमदार है कि भव्यता और दहशत दोनों महसूस होते हैं।

भोकाल, धनुषा और अतिक्रूर के सशक्त और सुगठित रूप उनकी धमाकेदार ताकत दिखाते हैं। वहीं कलंकिनी का रौद्र, बहु-भुजाओं वाला रूप और उसके नागचक्र जैसे घातक अस्त्र—उसे ऐसी अजेय खलनायिका बना देते हैं जिसे हराना लगभग नामुमकिन लगता है।

अतिक्रूर और ‘पथरीला’ के बीच की कील के लिए हुई जानलेवा भिड़ंत; भोकाल और कालबिन्दु के बीच का खतरनाक संघर्ष; और अंत में भोकाल, धनुषा और कलंकिनी के बीच अस्त्र-शस्त्रों की जबरदस्त टक्कर—ये सभी दृश्य कला की चरम सीमा दिखाते हैं। ‘दंताक’ का प्रहार, ‘कालबिन्दु’ का सिकुड़ना, और अंत में भोकाल द्वारा ‘विद्युतास्त्र’ के सहारे छोड़ा गया बाण, जो सीधा कलंकिनी के सीने में धंसता है—इन सभी पलों को ‘भड़ाक’, ‘खच्चाक’, ‘सनाय’ जैसे ताकतवर ध्वनि प्रभावों ने और ज्यादा जीवंत बना दिया है।

कथा-वस्तु का गहन विश्लेषण: छल, त्याग और रणनीति

‘कलंका’ की कहानी कई परतों से बनी है, जहाँ सिर्फ ताकत की नहीं, बल्कि दिमाग, रणनीति और त्याग की असली परीक्षा होती है।

वचनबद्धता की चुनौती और दिव्यास्त्र पूजन:
कलंकिनी अपने दिए हुए ‘वचन’ के कारण सीधे युद्ध से बच जाती है और भोकाल को दो पहर का समय देकर कलंका छोड़ देने की चेतावनी देती है। यह समय सीमा कहानी में तुरंत तनाव और जल्दी का एहसास पैदा करती है। इसी दौरान वृद्ध रूप वाले हनुमान (जो यहाँ ज्ञान, अनुभव और रणनीति का प्रतीक हैं) भोकाल को यह चुनौती स्वीकार करने और कलंका के विनाश के लिए एक जटिल योजना पर चलने को कहते हैं—दिव्यास्त्र पूजन करना और कलंका की नींव में गड़ी चार कीलों को निकालना, जिनमें कलंकिनी की जीवन-शक्ति बसती है।

दिव्यास्त्र पूजन का दृश्य इस पूरे अंक का एक शानदार, पौराणिक और भव्य क्षण है। यहाँ गणेश, शिव, काली, यमराज और यहाँ तक कि विष्णु भी भोकाल को आशीर्वाद देने आते हैं। ब्राह्मण के रूप में नारद मुनि का आना और हनुमान की दिव्यता को भोकाल से छिपाने की कोशिश—लेकिन फिर भी उसे न छुपा पाना—कहानी में हल्की-सी मज़ेदार नाटकीयता जोड़ता है।

अतिक्रूर का आत्म–बलिदान और ‘कालबिन्दु’ का संकट:
भोकाल के कहने पर अतिक्रूर कलंका की नींव में लगी चार प्राण-कीलों को निकालने के मिशन पर निकलता है। यह हिस्सा उसके चरित्र को शिखर पर पहुँचा देता है। पथरीला जैसे भारी-भरकम रक्षक को हराने के बाद, जैसे ही अतिक्रूर आखिरी कील निकालता है, कलंकिनी की भयानक शक्ति उस पर टूट पड़ती है। उसके अंतिम पल—जब वह मौत के मुहाने पर होने के बावजूद चारों कीलें हवा में उछाल देता है—उसे सिर्फ एक शक्तिशाली योद्धा नहीं, बल्कि निस्वार्थ त्याग करने वाला असली नायक बना देते हैं। उसकी मौत भोकाल और धनुषा दोनों पर गहरा भावनात्मक असर छोड़ती है।

बाहर, ‘कालबिन्दु’ (एक काला बिंदु जो अपने आसपास की हर चीज़ को निगल जाता है) का प्रकट होना कहानी में एक अलग ही तरह का संकट जोड़ देता है। भोकाल के साधारण बाण और ‘प्रहारा’ जैसे अस्त्र उस पर कोई असर नहीं करते। यहीं भोकाल का वह आत्मविश्वास—कि उसका सीना खुद वज्र जैसा कठोर है—टूट जाता है, और वह लगभग हार के कगार पर पहुँच जाता है।

वृद्ध रूपी हनुमान की गुप्त रणनीति:
कहानी का सबसे मजबूत, दिल छू लेने वाला और रणनीतिक केंद्र, वृद्ध रूपी हनुमान ही हैं। वह भोकाल को उसकी असली शक्ति से अनजान रखते हुए, हर मौके पर सूक्ष्म रूप में मदद करते हैं—ताकि जीत का सारा श्रेय भोकाल को मिले, न कि उन्हें।

कालबिन्दु से बचाव: जब भोकाल कालबिन्दु से हारने लगता है, तो हनुमान अदृश्य रूप में साधारण बाण में ‘विद्युतास्त्र’ की शक्ति भर देते हैं, जिससे कालबिन्दु नष्ट हो जाता है।

वज्र से मुकाबला: बाद में जब कलंकिनी इन्द्र के वज्र को अभिमंत्रित करती है, तो हनुमान छुपकर भोकाल का बाण वज्र से बदल देते हैं। इससे भोकाल की प्रतिष्ठा भी बचती है और वह युद्ध में टिक भी जाता है।

अंतिम प्रहार: सबसे महत्वपूर्ण—अतिक्रूर द्वारा उछाली गई चारों कीलों को हनुमान सूक्ष्म रूप में उन खोखले बाणों में भर देते हैं, जिनसे कलंकिनी के प्राण जुड़े हैं। यही चाल अंत में भोकाल की जीत सुनिश्चित करती है।

यह सब कुछ हनुमान इसलिए करते हैं ताकि लड़ाई की विजय भोकाल के नाम रहे, और एक महाबली नायक का गौरव बना रहे—यह उनका निस्वार्थ और बेहद भावुक बलिदान है।

अंतिम निर्णय और नैतिक जीत:

भोकाल और कलंकिनी के बीच का अंतिम युद्ध सिर्फ अस्त्र-शस्त्र का नहीं, बल्कि इरादों और हिम्मत का असली टकराव है। जैसे ही भोकाल ‘प्राण-कीलों’ से भरे बाण को कलंकिनी के सीने में उतारता है, कलंका की महारानी धराशायी हो जाती है। मरने से ठीक पहले, वह एक वीर की तरह भोकाल से अपनी अंतिम इच्छा रखती है—कि वह धर्म की मर्यादा निभाते हुए धनुषा (जो नागचक्र में फंसा था) और अतिक्रूर (जो मर चुका था) को दोबारा जीवन दे दे। भोकाल उसकी यह इच्छा पूरी करता है।

यह क्लाइमेक्स बेहद दिल छूने वाला है। कलंकिनी की अंतिम इच्छा उसके माँ वाले पक्ष और उसके अंदर मौजूद भावनात्मक गहराई को फिर से उजागर कर देती है। वह युद्ध भले ही हार जाती है, लेकिन अंत में एक बड़ा दिल दिखाते हुए नैतिक रूप से जीत जाती है, क्योंकि वह भोकाल से अपने ‘नाती’ और उसके साथी की जान वापस दिलवाती है। उधर हनुमान, जो पूरी रणनीति के असली निर्माता थे, भोकाल की इस थोड़ी-सी ‘दंभ’ भरी जीत पर मुस्कुराते हुए अदृश्य हो जाते हैं। उन्हें पता है कि उनका भक्त आखिरकार सबसे बड़ा धर्म निभा चुका है—निस्वार्थता, करुणा और वचन निभाने का धर्म।

केंद्रीय पात्रों का विकास और भावनात्मक संघर्ष

वृद्ध/हनुमान (The Strategist God): इस पूरी गाथा में हनुमान का रोल बेहद खास है। इतनी बड़ी शक्ति रखने के बावजूद वह ‘वचन’ और ‘माया’ की सीमाओं में बंधे रहते हैं। उनका पूरा ध्यान यही रहता है कि भोकाल को बिना उसकी असली दिव्यता बताए, उसे हर स्थिति में जीत की ओर ले जाया जाए। उनका सूक्ष्म रूप में आकर मदद करना, उनकी निस्वार्थ भक्ति और गुरु-शिष्य परंपरा को बेहद खूबसूरती से दिखाता है।

भोकाल (The Humbled Hero): भोकाल का सफर यहाँ अहंकार और सच्चाई के बीच होता है। उसका वज्र-जैसे सीने का घमंड कालबिन्दु के सामने चकनाचूर हो जाता है। तभी उसे समझ आता है कि महाबली होना सिर्फ शरीर की ताकत नहीं, बल्कि सही फैसला लेने और धर्म निभाने में भी होता है। हनुमान की गुप्त मदद से मिली जीतें उसे यह अहसास कराती हैं कि असली वीर वही है जो सही समय पर सही कर्म करे।

अतिक्रूर (The Ultimate Sacrifice): अतिक्रूर का त्याग इस कहानी का भावनात्मक दिल है। दानवी कुल में जन्म लेने के बावजूद उसका कर्म, उसकी निष्ठा और उसकी निस्वार्थ भावना पूरी तरह दैवीय साबित होती है। उसका अंतिम बलिदान उसे इस गाथा का सबसे बड़ा नायक बना देता है।

कलंकिनी (The Complex Antagonist): कलंकिनी इस कहानी की सबसे दिलचस्प और बहु-स्तरीय खलनायिका है। एक तरफ उसकी क्रूरता, अपार शक्ति और अहंकार है, वहीं दूसरी तरफ अतिक्रूर के लिए उसका प्यार और अपने ‘वचन’ के प्रति उसकी ईमानदारी है। यही विरोधाभास उसके चरित्र को यादगार और गहराई से भरा बनाते हैं।

निष्कर्ष: राज कॉमिक्स की क्लासिक कृति

‘कलंका’ विशेषांक राज कॉमिक्स के स्वर्णिम दौर की एक शानदार और यादगार कृति है। लेखक संजय गुप्ता ने जहाँ ‘कालरात्रि’, ‘दिव्यास्त्र पूजन’, ‘वज्र’ और ‘वरदान’ जैसे पौराणिक तत्वों का दमदार उपयोग किया है, वहीं ‘अतिक्रूर का त्याग’ और ‘कलंकिनी की अंतिम इच्छा’ जैसे भावनात्मक मोड़ों ने कहानी को मानवीय और दिल छूने वाला बना दिया है।

यह कॉमिक्स सिर्फ एक निर्णायक लड़ाई नहीं दिखाती, बल्कि यह भी बताती है कि असली शक्ति सिर्फ हथियारों या बल में नहीं, बल्कि सही रणनीति, त्याग और बड़े दिल में होती है। कलंका का अंत सिर्फ भोकाल की जीत नहीं, बल्कि करुणा और धर्म की स्थापना का प्रतीक है। शानदार चित्रांकन और कसकर बुनी कहानी इसे उन खास अंकों में शामिल करती है जिन्हें भारतीय कॉमिक्स इतिहास कभी नहीं भूलेगा।

कलंकिनी और कालरात्रि कथा भोकाल श्रृंखला की प्रमुख लड़ाइयाँ राज कॉमिक्स की क्लासिक कहानियाँ
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