सुपरहीरो की इस दुनिया में ‘सुपर इंडियन’ एक ऐसा किरदार है, जो सिर्फ अपनी ताकतों के कारण ही नहीं, बल्कि अपने विचारों और भारतीय संस्कारों की वजह से भी पहचाना जाता है। आज हम जिस कॉमिक्स पर बात कर रहे हैं, उसका नाम है “सुपर इंडियन: कौन”। यह सुपर इंडियन का एक महाविशेषांक है, जिसकी कीमत 40 रुपये रखी गई थी और यह संख्या 626 के रूप में प्रकाशित हुआ था। इस कॉमिक्स में लेखक और कलाकारों ने सुपर इंडियन के अस्तित्व, उसके बीते हुए अतीत और उसकी ज़िंदगी के दो अलग-अलग पहलुओं को एक रोमांचक कहानी के रूप में पेश किया है।
परिचय और रचनात्मक टीम (Introduction and Creative Team)
इस विशेषांक को संजय गुप्ता ने प्रस्तुत किया है। किसी भी कॉमिक्स की सफलता में उसके पीछे काम करने वाली टीम की भूमिका बहुत अहम होती है। इस कहानी के लेखक तरुण कुमार वाही हैं, जिन्होंने अपनी लेखनी से सुपर इंडियन के किरदार को और मजबूत व गहराई वाला बनाया है। कला निर्देशन दिलीप चौबे ने किया है, जबकि चित्रांकन यानी पेंसिलिंग ललित शर्मा ने संभाली है। इंकिंग का काम जगदीश ने किया है। रंगों और सुलेख (कैलियोग्राफी) की ज़िम्मेदारी सुनील पाण्डेय ने निभाई है। इस महाविशेषांक के संपादक मनीष गुप्ता हैं, जिन्होंने इस कॉमिक्स को देश के बेटे ‘सुपर इंडियन’ को समर्पित किया है।
यह कहानी सिर्फ लड़ाई और एक्शन तक सीमित नहीं रहती, बल्कि एक ऐसे सवाल से शुरू होती है, जिसने पूरी मेट्रो सिटी को हिला कर रख दिया है—आखिर सुपर इंडियन है कौन?
कहानी का आधार और रहस्य (The Premise and the Mystery)
कहानी की शुरुआत एक रहस्यमयी और दिलचस्प माहौल से होती है। मेट्रो सिटी के अखबारों की सुर्खियों में हर जगह बस एक ही सवाल छाया हुआ है—“सुपर इंडियन कौन है?” यह सवाल सिर्फ आम लोगों के लिए ही नहीं, बल्कि पुलिस के लिए भी बड़ी परेशानी बन चुका है।

कहानी के शुरुआती पन्नों में हमें पुलिस हेडक्वार्टर का दृश्य दिखाया जाता है। यहाँ इंस्पेक्टर कानखजूरे, जो एक सीनियर पुलिस अफसर दिखाई देते हैं, अपने वरिष्ठ अधिकारी के सामने चिट्ठियों और ईमेल्स का ढेर रख देते हैं। ये सभी संदेश उन लोगों के हैं, जो यह जानना चाहते हैं कि सुपर इंडियन कौन है, वह कहाँ से आया है और आखिर क्यों आया है। जनता की उत्सुकता इस कदर बढ़ चुकी है कि ईमेल्स की संख्या चिट्ठियों से लगभग बीस गुना ज़्यादा हो गई है।
यहाँ लेखक ने पुलिस और सुपरहीरो के बीच पैदा हुए तनाव को बहुत साफ तरीके से दिखाया है। एक पुलिस अधिकारी का कहना है कि मेट्रो पुलिस को सुपरहीरो जैसे अधिकार इसलिए दिए गए थे, ताकि अपराधियों में डर बने और आम लोगों का भरोसा पुलिस पर बढ़े। लेकिन हो ठीक इसका उल्टा रहा है। लोग पुलिस की तारीफ करने के बजाय सुपर इंडियन के दीवाने होते जा रहे हैं। लोगों की ज़ुबान पर अब पुलिस नहीं, बल्कि सुपर इंडियन का नाम है। यह स्थिति पुलिस प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती बन जाती है और इंस्पेक्टर कानखजूरे ठान लेते हैं कि वे इसका जवाब जनता और अपने सीनियर दोनों को देंगे।
चरित्र चित्रण और संघर्ष (Character Analysis and Conflict)
सुपर इंडियन (अमन): सुपर इंडियन इस कहानी का नायक है, लेकिन उसकी पहचान दो हिस्सों में बंटी हुई है। एक तरफ वह बुराई के लिए काल बन जाता है और दूसरी तरफ वह अमन है, जो एक आम इंसान की तरह ज़िंदगी जीता है। कहानी में एक भावुक मोड़ तब आता है, जब हम अमन को “अमन आनंद आश्रम” में देखते हैं। यह एक वृद्धाश्रम है, जहाँ अमन बुज़ुर्गों के साथ रहता है। यहाँ लेखक भारतीय संस्कृति की एक बहुत अहम बात सामने लाता है—बड़ों का सम्मान। अमन कहता है, “जहाँ हम रहते हैं, वहाँ का समाज इतना सड़ चुका है कि सामाजिक रिश्तों को भी स्वार्थ के कीड़े खा रहे हैं।” उसका मानना है कि जैसे बच्चों को देखभाल की ज़रूरत होती है, वैसे ही बुज़ुर्गों को भी सहारे और अपनापन चाहिए, लेकिन आज संयुक्त परिवार की परंपरा लगभग खत्म हो चुकी है।

अमन के किरदार की असली गहराई उसके अतीत से जुड़ी है। दरअसल वह अफगानिस्तान के खूँखार आतंकवादी सरगना ‘सुप्रीमो अहंकारी’ का क्लोन है। अहंकारी ने अपने साम्राज्य को आगे बढ़ाने और अपनी विरासत को सुरक्षित रखने के लिए अपना क्लोन बनवाया था, क्योंकि उसे अपने किसी भी साथी—जैसे मिस्टर लायन, डॉक्टर वुमेन या मैकेनिक—पर भरोसा नहीं था। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था। वह बच्चा, यानी अमन, भारत पहुँच गया और यहाँ के संस्कारों ने उसे एक रक्षक बना दिया। जैसा कि अमन खुद सोचता है, “मैं उस अहंकारी का बेटा ज़रूर हूँ, लेकिन मेरी रगों में जो खून बहता है, वह भारतीय संस्कारों का है।”
इंस्पेक्टर कानखजूरे: इंस्पेक्टर कानखजूरे इस कहानी में एक तरह से विरोधी भूमिका में दिखाई देते हैं, भले ही वे कानून के रक्षक हों। वे किसी भी कीमत पर सुपर इंडियन की पहचान उजागर करना चाहते हैं। उनकी ज़िद इस हद तक बढ़ जाती है कि वे एक पीड़ित लड़की और उसके परिवार को भी परेशान करने लगते हैं, सिर्फ इसलिए कि उन्हें सुपर इंडियन का कोई सुराग मिल सके। उनका मकसद सुपर इंडियन को कानून के दायरे में लाना है, लेकिन उनका तरीका बहुत सख्त और कई बार पूरी तरह संवेदनहीन लगता है।

खलनायक (अहंकारी और अंकल मेट्रो): कहानी का सबसे बड़ा खलनायक अहंकारी है, जो कभी अफगानिस्तान का सुप्रीमो रह चुका था। वह बेहद क्रूर है और पूरी दुनिया को अपने कदमों में झुकाना चाहता है। सुपर इंडियन के रूप में बना उसका क्लोन उसका सबसे बड़ा सपना था, जिसे अमेरिकी वैज्ञानिक सलीना के गर्भ में तैयार किया गया था। मौजूदा समय में मेट्रो सिटी में ‘अंकल मेट्रो’ नाम का एक और खलनायक सक्रिय है। वह और उसका साथी पेट्रो मिलकर शहर में तबाही मचाना चाहते हैं और मेट्रो सिटी को पूरी तरह खंडहर में बदल देना चाहते हैं। उनका सपना है कि मेट्रो सिटी अपराध का गढ़ बन जाए।
कथानक का विस्तार (Plot Progression)
फ्लैशबैक और उत्पत्ति (Origin Story): कहानी का एक बड़ा हिस्सा फ्लैशबैक में चलता है, जो सुपर इंडियन की उत्पत्ति को समझाता है। जब अमेरिका अफगानिस्तान पर हमला करता है, तो अहंकारी का साम्राज्य खतरे में पड़ जाता है। अहंकारी का भरोसेमंद आदमी वाजिद खान, गर्भवती सलीना को लेकर भागने की कोशिश करता है, जिसके पेट में अहंकारी का क्लोन पल रहा होता है। अमेरिकी मिसाइलों और ज़बरदस्त बमबारी के बीच एक तेज़ और रोमांच से भरा पीछा दिखाया गया है। वाजिद खान सलीना को बचाने के लिए अपनी जान की बाजी लगा देता है और किसी तरह उसे भारत की सीमा तक पहुँचा देता है। यह हिस्सा बहुत तेज़ रफ्तार वाला है और पाठक को कहानी से बाँधे रखता है।

आखिरकार सलीना भारत पहुँचती है और एक बच्चे को जन्म देती है। यह बच्चा बिल्कुल भी साधारण नहीं होता। जन्म के तुरंत बाद ही नर्सरी में वह किसी खिलौने की तरह कुछ ढूंढने लगता है, जो असल में उसका हिंसक स्वभाव होता है। डॉक्टर यह देखकर हैरान रह जाते हैं कि मेडिकल साइंस के हिसाब से इस बच्चे की बढ़त किसी चमत्कार से कम नहीं है। कुछ ही दिनों में वह बच्चा पाँच साल के बच्चे जितना विकसित हो जाता है।
वर्तमान संघर्ष: वर्तमान समय में कहानी एक विकलांग लड़की के आसपास घूमती है। वह बारिश में अपनी व्हीलचेयर पर जा रही होती है, तभी कुछ गुंडे उसे घेर लेते हैं। वे उसका मज़ाक उड़ाते हैं और उसे परेशान करते हैं। लड़की हिम्मत दिखाते हुए उनसे कहती है, “हाथ मत लगाना।” जब गुंडे उसे चोट पहुँचाते हैं और व्हीलचेयर से गिरा देते हैं, तभी सुपर इंडियन की एंट्री होती है।
सुपर इंडियन का आना बेहद नाटकीय और जोश से भरा होता है। वह कहता है, “मेट्रो के चप्पे-चप्पे पर सुख और शांति का राज है, जुल्म और चीखों का नहीं!” इसके बाद वह गुंडों को बुरी तरह सबक सिखाता है और लड़की को बचा लेता है। लेकिन जैसे ही पुलिस मौके पर पहुँचती है, वह गायब हो जाता है। इससे इंस्पेक्टर कानखजूरे और भी झुंझला जाते हैं।
इसके बाद इंस्पेक्टर कानखजूरे उस लड़की और उसके माता-पिता से पूछताछ करते हैं, यह मानते हुए कि वे सुपर इंडियन को जानते होंगे। यह हिस्सा पुलिस की कार्यशैली पर सवाल खड़े करता है।
चरमोत्कर्ष और नया मोड़ (Climax and Twist)

जब सुपर इंडियन पूरी तरह फँस जाता है और हिल भी नहीं पाता, तभी कहानी में एक चौंकाने वाला मोड़ आता है। एक नई सुपरहीरोइन, जिसका नाम शायद ‘तेजाब’ या ‘एसिड गर्ल’ है, वहाँ पहुँचती है। वह अपने शरीर से निकलने वाले एसिड से सुपर इंडियन को जकड़ने वाली स्टील को पिघला देती है। यह दृश्य बहुत प्रभावशाली बन पड़ा है। सुपर इंडियन खुद भी हैरान रह जाता है कि आखिर यह कौन है जिसने उसकी मदद की।
इसके बाद सुपर इंडियन और वह नई सुपरहीरोइन मिलकर अंकल मेट्रो और पेट्रो का सामना करते हैं। सुपर इंडियन अपने हाथों से एक हेलीकॉप्टर को रोक लेता है और उसे गिरने से बचाता है, जिसमें पुलिस कमिश्नर और अन्य लोग सवार होते हैं। आखिरकार दोनों मिलकर खलनायकों को हरा देते हैं।
कहानी के अंत में अमन वापस अपने “अमन आनंद आश्रम” में लौट आता है। वहाँ एक भावुक दृश्य देखने को मिलता है, जहाँ वह अपने ‘परिवार’, यानी बुज़ुर्गों के साथ होता है। तभी अचानक एक और हमला होता है और आश्रम की ओर एक बम फेंका जाता है। अमन उसे पकड़कर खिड़की से बाहर फेंक देता है, जिससे ज़ोरदार धमाका होता है। यह दिखाता है कि उसका जीवन हर पल खतरे से भरा है, फिर भी वह सामान्य इंसान की तरह जीने की कोशिश करता है।
कला और प्रस्तुति (Art and Presentation)
ललित शर्मा का पेंसिल वर्क और दिलीप चौबे का कला निर्देशन इस कॉमिक्स की बड़ी ताकत है। लड़ाई के दृश्य बेहद जानदार और तेज़ हैं। जब सुपर इंडियन गुंडों को मारता है, तो पैनलों में रफ्तार और ताकत साफ महसूस होती है, जैसे ‘खड़ाक’ और ‘तड़क’ जैसे साउंड इफेक्ट्स। हेलीकॉप्टर को रोकने वाला दृश्य खास तौर पर बहुत भव्य और डिटेल में बनाया गया है।

किरदारों के चेहरे के भाव भी साफ नज़र आते हैं। इंस्पेक्टर कानखजूरे के चेहरे पर हमेशा बना रहने वाला तनाव और गुस्सा, विकलांग लड़की के चेहरे पर डर और फिर गुस्सा, और अहंकारी के चेहरे पर दिखती क्रूरता बहुत अच्छे से उकेरी गई है। सुनील पाण्डेय का रंग संयोजन कहानी के मूड को और मजबूत करता है। फ्लैशबैक और वर्तमान के दृश्यों में रंगों का फर्क समय के बदलाव को दिखाता है। रात और बारिश वाले दृश्यों में गहरे नीले और काले रंग गंभीर माहौल बना देते हैं।
संवाद (Dialogue)
तरुण कुमार वाही के संवाद हर पात्र के स्वभाव के अनुसार लिखे गए हैं।
सुपर इंडियन के संवादों में गंभीरता और जिम्मेदारी साफ झलकती है, जैसे “अगर तुम दोबारा यहाँ दिखे, तो इससे भी बुरा हाल करूँगा!”
अहंकारी के संवाद उसके घमंड और सत्ता के नशे को दिखाते हैं, जैसे “मुझे किसी भी हाल में इस बच्चे को निकालना है, सलीना!”
आम जनता और मीडिया की सनसनीखेज सुर्खियाँ, जैसे “सुपर इंडियन कौन?”, कहानी में सच्चाई और यथार्थ का एहसास जोड़ती हैं।
विषयगत विश्लेषण (Thematic Analysis)

इस कॉमिक्स में कई अहम विषयों को सामने रखा गया है। प्रकृति बनाम पालन-पोषण इस कहानी का मुख्य विषय है। अमन का डीएनए एक आतंकवादी अहंकारी का है, जो क्रूरता का प्रतीक है। विज्ञान के हिसाब से उसे भी वैसा ही होना चाहिए था, लेकिन उसका पालन-पोषण भारत में, भारतीय संस्कारों और एक आश्रम के माहौल में हुआ। इसी वजह से वह एक रक्षक और नायक बनता है। यह कहानी बताती है कि जन्म से ज़्यादा अहम इंसान के कर्म और संस्कार होते हैं।
बुज़ुर्गों का सम्मान भी कहानी का एक मजबूत पक्ष है। “अमन आनंद आश्रम” का चित्रण आज के समाज पर तंज करता है, जो अपने बुज़ुर्गों को पीछे छोड़ता जा रहा है। सुपर इंडियन अपनी ताकतों का इस्तेमाल सिर्फ लड़ाई के लिए नहीं, बल्कि अपने बुज़ुर्ग ‘परिवार’ की सेवा और सुरक्षा के लिए भी करता है। जब आश्रम पर हमला होता है, तो उसका गुस्सा साफ नज़र आता है।
पहचान का संकट भी कहानी का एक अहम हिस्सा है। “सुपर इंडियन कौन?” सिर्फ बाहर का सवाल नहीं, बल्कि अमन के मन के भीतर चल रही लड़ाई भी है। वह जानता है कि वह किसका बेटा है और उसे डर रहता है कि कहीं उसके पिता का बुरा खून उस पर हावी न हो जाए। वह बार-बार खुद को साबित करना चाहता है कि वह ‘सुपर इंडियन’ है, न कि ‘सुप्रीमो अहंकारी’।
निष्कर्ष (Conclusion)
“सुपर इंडियन: कौन” (संख्या 626) राज कॉमिक्स का एक शानदार विशेषांक है। यह सिर्फ एक सुपरहीरो की कहानी नहीं, बल्कि पहचान, नैतिकता और संस्कारों की कहानी है। तरुण कुमार वाही ने एक संतुलित और मजबूत पटकथा लिखी है, जिसमें रहस्य, भावनाएँ और एक्शन का सही मेल देखने को मिलता है।
कुल मिलाकर, यह कॉमिक्स भारतीय सुपरहीरो के प्रशंसकों के लिए ज़रूर पढ़ने लायक है। इसमें एक अच्छी कॉमिक्स के सभी ज़रूरी तत्व मौजूद हैं—मजबूत नायक, खतरनाक खलनायक, भावनात्मक गहराई और शानदार आर्टवर्क। सुपर इंडियन की यह यात्रा दिखाती है कि असली ताकत मांसपेशियों में नहीं, बल्कि इंसान के चरित्र और संस्कारों में होती है।
अगर आप राज कॉमिक्स के फैन हैं या भारतीय सुपरहीरो में दिलचस्पी रखते हैं, तो “सुपर इंडियन: कौन” आपके कलेक्शन में ज़रूर होनी चाहिए। यह कॉमिक्स सिर्फ मनोरंजन नहीं करती, बल्कि यह सोचने पर भी मजबूर करती है कि आखिर एक ‘सुपर इंडियन’ सच में कौन होता है—सिर्फ ताकतवर इंसान या एक सच्चा संस्कारी भारतीय।
