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Home » दिल्ली का रक्षक परमाणु – ‘आतिशबाज’ में विज्ञान, देशभक्ति और धमाकेदार एक्शन की एक यादगार टक्कर
Don't Miss Updated:24 November 2025

दिल्ली का रक्षक परमाणु – ‘आतिशबाज’ में विज्ञान, देशभक्ति और धमाकेदार एक्शन की एक यादगार टक्कर

A deep analysis of Raj Comics classic Aatishbaaz, where Parmanu faces one of the most explosive villains in the world of Indian superheroes.
ComicsBioBy ComicsBio24 November 2025Updated:24 November 202507 Mins Read
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Aatishbaaz Parmanu Comic Review – Explosive Action & Patriotism | Raj Comics
An explosive comic where Delhi’s nuclear-powered protector Parmanu battles the ruthless mastermind Aatishbaaz in a gripping war of science, destruction and patriotism.
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दिल्ली का रक्षक ‘परमाणु’ विज्ञान और बहादुरी का एक शानदार मेल है। आज हम परमाणु की एक ऐसी यादगार कॉमिक्स ‘आतिशबाज’ की गहराई से बात करेंगे, जो अपने नाम की तरह ही एक्शन, रोमांच और देशभक्ति से भरी हुई है।

राजनीति और आतंक का खतरनाक मिलाप

‘आतिशबाज’ की कहानी उस समय की है जब भारत में मध्यावधि चुनावों की हलचल और गरम माहौल चल रहा है। शुरुआत में ही एक अंतरराष्ट्रीय साज़िश दिखाई जाती है, जहाँ भारत का एक पड़ोसी मुल्क (जैसा कि उन दिनों कॉमिक्स में अक्सर पाकिस्तान का संकेत मिलता था) चुनाव रद्द करवाना चाहता है। उन्हें डर है कि अगर भारत में एक मजबूत और स्थिर सरकार आ गई तो उनके आतंकवाद फैलाने के रास्ते बंद हो जाएंगे और भारत परमाणु शक्ति वाला ताकतवर देश बन जाएगा। इस मिशन को पूरा करने के लिए वे 100 करोड़ रुपये की भारी रकम देने को तैयार हैं।

यहीं पर कहानी में आता है खतरनाक और चालाक विलेन ‘आतिशबाज’। वह एक ऐसा अपराधी है जिसे हर तरह के बारूद, विस्फोटक और आतिशबाज़ी का कमाल का ज्ञान है। वह यह सौदा मान लेता है और दिल्ली में दहशत फैलाने की एक खतरनाक खेल की शुरुआत करता है—जिसकी कल्पना भी कोई नहीं कर सकता था।

कहानी का पहला बड़ा झटका तब लगता है जब एक चुनावी रैली के दौरान अचानक सड़क पटाखों की लड़ी की तरह फटने लगती है। यह कोई सामान्य धमाका नहीं था—यह एक लगातार चलते रहने वाला विस्फोट था जो सड़क को तोड़ता हुआ आगे बढ़ रहा था। लेखक तरुण कुमार वाही ने इस सीन को बेहद शानदार और डरावना तरीके से लिखा है। यह दृश्य पाठकों के मन में डर और रोमांच दोनों पैदा करता है—चारों तरफ लाशें, धुआं और चीख-पुकार। यह सब देखकर दिल्ली का रक्षक परमाणु तुरंत घटना स्थल पर पहुँचने को मजबूर हो जाता है।

पटकथा बहुत तेज़ और पकड़ बनाए रखने वाली है। परमाणु का एंट्री, लोगों को बचाना, फिर इंस्पेक्टर विनय के रूप में जांच शुरू करना—सब कुछ बहुत स्मूद और अच्छी तरह लिखा गया है। कहानी में ट्विस्ट तब आता है जब पता चलता है कि हमले में एक निर्दलीय उम्मीदवार ‘बब्बू भैया’ की भी मौत हो जाती है, जिसे चुनावी हत्या की शक्ल देने की कोशिश की जाती है।

लेखक कहानी में इंस्पेक्टर विनय की निजी जिंदगी की झलक भी दिखाते हैं—जहाँ उसकी करीबी दोस्त शीना का जिक्र आता है। वैलेंटाइन डे से जुड़ा छोटा सा पल कहानी में एक प्यारा सा भावनात्मक टच जोड़ता है—जो यह याद दिलाता है कि सुपरहीरो भी इंसान की तरह प्यार और निजी भावनाएं रखते हैं।

कहानी का दूसरा हिस्सा और भी ज़्यादा धमाकेदार होता है, जब आतिशबाज एक और चुनावी जुलूस पर हमला करता है। इस बार वह हाथियों और सजावटी सामानों के अंदर विस्फोटक छिपाकर हमला करता है। यहाँ एक्शन, खतरा और तबाही अपने चरम पर पहुँच जाती है।

और फिर आता है कॉमिक्स का सबसे ज़ोरदार मोड़—जहाँ आतिशबाज सिर्फ़ परमाणु को हराता ही नहीं, बल्कि उसे पकड़ लेता है। वह परमाणु को एक जिंदा ‘फुलझड़ी’ बनाकर पूरी दिल्ली के सामने जलाने की तैयारी करता है। यह ऐसा क्लिफहैंगर है जो किसी भी पाठक को अगली कॉमिक्स ‘बारूद का खिलाड़ी’ पढ़ने के लिए मजबूर कर देता है—और ये बात साफ दिखाती है कि उस समय की यह बहुत स्मार्ट और सफल मार्केटिंग रणनीति थी।

चरित्र-चित्रण: नायक और खलनायक का दमदार टकराव

परमाणु (इंस्पेक्टर विनय): इस कॉमिक्स में परमाणु का किरदार दो अलग-अलग रूपों में सामने आता है। एक तरफ वह इंस्पेक्टर विनय है—ईमानदार, बहादुर और दिमाग से तेज पुलिस ऑफिसर, जो कानून के दायरे में रहकर हर सुराग तलाशता है। दूसरी तरफ वही इंसान बन जाता है परमाणु, दिल्ली का सुपर रक्षक, जिसके पास अणुओं और परमाणुओं को कंट्रोल करने की कमाल की शक्ति है। उसका रोबोटिक साथी ‘प्रोबॉट’ हमेशा उसे सही समय पर सही दिशा देता है। परमाणु के अंदर देशभक्ति और फर्ज पूरी तरह भरा हुआ है। दिल्ली पर जरा-सी भी चोट लगती है तो वह बेचैन हो उठता है। उसका एक्शन, उसकी स्पीड और मुसीबत में तुरंत सही फैसला लेने की क्षमता उसे एक परफेक्ट सुपरहीरो के रूप में स्थापित करती है।

आतिशबाज: एक शानदार कहानी तभी पूरी होती है जब उसका विलेन भी उतना ही दमदार हो—और ‘आतिशबाज’ इस मामले में कमाल है। वह आम गुंडों जैसा नहीं है। वह टेक्नोलॉजी का एक्सपर्ट, मजबूत प्लानिंग करने वाला और किसी भी हद तक जाने वाला अपराधी है। उसका लड़ने का तरीका भी बिल्कुल हटकर है। वह सिर्फ गोलियां या बम नहीं चलाता—बल्कि वह विस्फोटक कला से दुश्मनों को दहशत में डालता है। वह शारीरिक तौर पर भी परमाणु को जोरदार टक्कर देता है। उसका पूरा किरदार रहस्यमय और डर पैदा करने वाला रखा गया है। और यह बात कि वह परमाणु को पकड़ने में सफल हो जाता है, साफ दिखाती है कि वह कोई मामूली नहीं बल्कि एक बेहद खतरनाक और ताकतवर दुश्मन है।

कला एवं चित्रांकन: एक्शन को जिंदा कर देने वाली तस्वीरें

हर कॉमिक्स की जान उसका चित्रांकन होता है—और ‘आतिशबाज’ में कलाकार सुरेश डीगवाल और उनकी टीम ने वाकई शानदार काम किया है। नब्बे के दशक की राज कॉमिक्स की खास स्टाइल यहाँ पूरी चमक में नजर आती है।

एक्शन दृश्य: कॉमिक्स में एक्शन के सारे सीन खास तौर पर विस्फोट वाले सीन बेहद जबरदस्त हैं। सड़क के फटने वाला दृश्य हो या हाथी का चीखते हुए तबाही मचाना—हर पैनल में गति, ऊर्जा और खतरे की भावना साफ महसूस होती है। “तड़ड़ड़ड़ाम” और “धड़ाम” जैसी आवाजों का इस्तेमाल एक्शन को और भी रियल और जोरदार बना देता है।

चरित्रों का डिजाइन: परमाणु की वेशभूषा, मजबूत शरीर और चेहरे के एक्सप्रेशन उसे एक शक्तिशाली और भरोसेमंद नायक की इमेज देते हैं। वहीं आतिशबाज का डिजाइन उसे कड़क, बेरहम और बेहद खतरनाक विलेन का रूप देता है। दाढ़ी वाला चेहरा, आंखों में क्रूरता और हाई-टेक हथियार—सब उसे देखते ही डर का अहसास कराते हैं।

पैनल लेआउट: पैनलिंग बहुत ही डायनेमिक है। खासकर एक्शन के समय छोटे-बड़े और तिरछे पैनल्स का प्रयोग कहानी की रफ्तार को और तेज कर देता है। परमाणु के हवा में उड़ने वाले सीन और क्लोज-अप फाइट शॉट्स तो वाकई कमाल के बने हैं।

रंग-योजना: सुनील पाण्डेय की कलरिंग उस समय की कॉमिक्स स्टाइल के हिसाब से चटकीली और ध्यान खींचने वाली है। विस्फोट वाले सीन में पीला, नारंगी और लाल रंग शानदार तरीके से आग और धमाके का असर पैदा करते हैं। परमाणु की नीली-पीली पोशाक उसे भीड़ में अलग और यादगार बनाती है।

निष्कर्ष: एक क्लासिक और पैसा-वसूल मनोरंजन

‘आतिशबाज’ सिर्फ एक कॉमिक्स नहीं बल्कि राज कॉमिक्स के उस सुनहरे समय की याद है, जब कहानियों में सादगी, रोमांच और देशभक्ति का बेहतरीन मेल होता था। तरुण कुमार वाही की मजबूती से लिखी कहानी और सुरेश डीगवाल का दमदार चित्रांकन इसे एक ऐसा अनुभव बनाते हैं जिसे भूलना मुश्किल है।

यह कॉमिक्स आज भी उतनी ही मजेदार और रोमांचक लगती है जितनी अपने पहली बार छपने के समय थी। तेज रफ्तार वाली कहानी, एक दमदार नायक, उससे भी खतरनाक विलेन और ताबड़तोड़ एक्शन—यह सब मिलकर इसे हर कॉमिक्स प्रेमी के लिए एक “मस्ट-रीड” अनुभव बनाते हैं। इसका क्लिफहैंगर अंत आपको बेचैन कर देगा और आप तुरंत जानना चाहेंगे कि आगे क्या होने वाला है।

अगर आप नब्बे के दशक की यादों को जीना चाहते हैं या भारतीय कॉमिक्स इतिहास के एक खास अध्याय को महसूस करना चाहते हैं, तो ‘आतिशबाज’ आपके लिए एकदम सही कॉमिक्स है। यह धमाकेदार, रोमांचक और पूरी तरह पैसा वसूल कॉमिक्स है—और यह साफ साबित करती है कि हमारे देसी सुपरहीरो किसी भी विदेशी सुपरहीरो से बिल्कुल कम नहीं थे।

आतिशबाज जैसे खतरनाक और दिमागी खलनायक के धमाकेदार मुकाबले परमाणु की देशभक्ति से भरी वीरता राज कॉमिक्स के स्वर्णिम दौर
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