‘बुद्धिपासा’ भोकाल सीरीज़ का ऐसा खास अंक है जो आज भी कॉमिक्स प्रेमियों के दिल में अपनी जगह बनाए हुए है। लेखक संजय गुप्ता की बेहतरीन कहानी और कदम स्टूडियो की शानदार कलाकारी से बनी यह कॉमिक्स सिर्फ मारधाड़ या जादुई ताकतों का खेल नहीं है, बल्कि इसमें बुद्धि, समझ, रणनीति और भावनाओं का एक गहरा मेल है।
यह कहानी हमें सिखाती है कि सबसे बड़ी लड़ाई मैदान में नहीं, बल्कि इंसान के दिमाग के अंदर लड़ी जाती है।
कथावस्तु: जब बुद्धि ने बल को ललकारा
कहानी की शुरुआत एक ऐसे राजा से होती है जिसका नाम ही है – राजा बुद्धिशाली। वह बहुत महत्वाकांक्षी है और अपने नाम की तरह बेहद तेज दिमाग वाला भी। उसका सपना है कि पूरी दुनिया उसके राज में हो। उसकी अगली नज़र है विकासनगर पर — एक शांत और खुशहाल राज्य, जिसकी रक्षा करता है महाबली भोकाल।
राजा बुद्धिशाली को अपनी बुद्धि पर घमंड है, न कि अपनी सेना पर। इसलिए वो भोकाल को आम युद्ध के लिए नहीं बुलाता, बल्कि उसे गुड्डे-गुड़ियों का खेल खेलने का संदेश भेजता है। यह उसके अहंकार और भोकाल का मज़ाक उड़ाने का तरीका होता है। वह भोकाल से कहता है कि अगर वो समझदार है, तो उसकी दासता स्वीकार कर ले।

भोकाल इस अपमान को बर्दाश्त नहीं करता और जवाब देता है — अपनी तलवार से।
दोनों सेनाओं के बीच भयंकर युद्ध छिड़ जाता है। भोकाल की बहादुरी और युद्ध-कौशल के सामने बुद्धिशाली की सेना टिक नहीं पाती। लेकिन हारने के बाद भी राजा का अहंकार नहीं टूटता।
वह तलवार की हार मान लेता है, पर भोकाल के सामने एक और चाल चलता है — इस बार ‘बुद्धि की जंग’। वह भोकाल को अपने बनाए हुए ‘खेलग्राम’ में बुलाता है, जो दरअसल एक जादुई और जानलेवा भूलभुलैया है। बुद्धिशाली शर्त रखता है कि अगर भोकाल वहाँ से जिंदा निकल आया, तो वह अपनी हार मान लेगा और कभी विकासनगर की तरफ नज़र भी नहीं डालेगा।
भोकाल, जो एक सच्चा योद्धा है, इस चुनौती को स्वीकार कर लेता है। यहीं से कहानी का असली रोमांच शुरू होता है — जहाँ भोकाल की सिर्फ शक्ति नहीं, बल्कि उसकी समझदारी और विवेक की भी परीक्षा होती है।
नायक, खलनायक और भावनाओं का मेल
महाबली भोकाल: इस कॉमिक्स में भोकाल का एक अलग और प्रभावशाली रूप देखने को मिलता है।
आमतौर पर हम भोकाल को एक ऐसे सुपरहीरो के रूप में जानते हैं जो अपनी जादुई तलवार और ढाल से दुश्मनों को धूल चटाता है। लेकिन ‘बुद्धिपासा’ में भोकाल सिर्फ योद्धा नहीं, बल्कि एक सोचने-समझने वाला रणनीतिकार बनकर उभरता है।

खेलग्राम के जाल और पहेलियाँ उसे हर कदम पर सोचने और विश्लेषण करने को मजबूर करती हैं।
वह दिखाता है कि असली नायक वही है जो हालात के हिसाब से खुद को बदलना जानता हो।
उसका किरदार यह बात साबित करता है कि शक्ति का असली मतलब तभी होता है जब उसमें विवेक भी शामिल हो।
राजा बुद्धिशाली: यह किरदार भारतीय कॉमिक्स के सबसे यादगार खलनायकों में से एक है। वह कोई दुष्ट जादूगर या राक्षस नहीं, बल्कि एक ऐसा इंसान है जिसका सबसे बड़ा हथियार उसकी बुद्धि है — और सबसे बड़ी कमजोरी भी वही।
उसे यकीन है कि वह अपनी चतुराई और समझदारी से किसी को भी हरा सकता है, और पूरी दुनिया को अपने सामने झुका सकता है।
‘खेलग्राम’ उसी सोच का एक जीता-जागता उदाहरण है। उसके लिए युद्ध भी बस एक शतरंज की बिसात है, जहाँ वह खुद को सबसे बड़ा खिलाड़ी मानता है।
लेकिन कहानी के आखिर में, यही अहंकार और उसकी खुद की बुद्धि उसके पतन और निजी त्रासदी की वजह बनती है। यही बात इस किरदार को एक गहराई और यादगार पहचान देती है। राजकुमारी मयूरी: मयूरी इस कहानी का सबसे भावनात्मक और महत्वपूर्ण किरदार है। वह राजा बुद्धिशाली की बेटी है, लेकिन अपने पिता के युद्ध और महत्वाकांक्षा के जुनून के खिलाफ खड़ी होती है। वह शांति, मानवता और विवेक की प्रतीक है। मयूरी अपने पिता के खिलाफ जाकर भोकाल की मदद करने का साहसी फैसला लेती है, क्योंकि उसे समझ आ जाता है कि उसके पिता का रास्ता सिर्फ विनाश की ओर जा रहा है।
मयूरी का किरदार इस कहानी को दिल से जोड़ता है। उसका बलिदान ही कहानी का सबसे भावुक और निर्णायक पल है, और वही पल राजा बुद्धिशाली को उसकी गलती और अहंकार का एहसास कराता है। मयूरी सिर्फ एक राजकुमारी नहीं — वह इस कहानी की आत्मा है।
‘खेलग्राम’ का रोमांच: पहेलियों और खतरों की भूलभुलैया
कॉमिक्स ‘बुद्धिपासा’ की जान उसका ‘खेलग्राम’ है। यह कोई साधारण किला या मैदान नहीं, बल्कि एक जादुई और ज़िंदा बोर्ड गेम जैसा है — कुछ-कुछ सांप-सीढ़ी की तरह।
यहाँ हर खाना (स्टेप) एक नई चुनौती या जानलेवा जाल बनकर सामने आता है।
खेलग्राम में प्रवेश द्वार की पहेली ही पहली परीक्षा है। भोकाल को चाबियों की मदद से एक दृश्य पहेली सुलझाकर ताला खोलना पड़ता है, जो आगे आने वाले खतरों का संकेत देती है।
इसके बाद, एक चरण में भोकाल और उसके साथी सजीव शतरंज के विशाल मोहरों से लड़ते हैं — जो सचमुच ज़िंदा होकर हमला करते हैं। यह हिस्सा एक्शन और दिमागी खेल — दोनों का शानदार मेल दिखाता है।
कई कमरों में भ्रम और मायाजाल हैं, जहाँ दीवारों पर बनी तस्वीरें (जैसे शेर या बकरी) अचानक जीवित होकर हमला कर देती हैं। यहाँ भोकाल को समझना पड़ता है कि क्या असली है और क्या भ्रम।
कहानी का सबसे रोमांचक पल है वो विशाल बुद्धिपासा बोर्ड गेम, जहाँ भोकाल, मयूरी और राजकुमार मयूर खुद गोटियाँ बन जाते हैं और विशाल पासा फेंककर आगे बढ़ते हैं।
हर खाने पर कोई नया खतरा है — कहीं ज़मीन धंस जाती है, कहीं ज़हरीले पानी का तालाब निकल आता है, तो कहीं आसमान से नुकीले भाले बरसने लगते हैं। कुछ खाने उन्हें ऊपर की ओर (सीढ़ी की तरह) ले जाते हैं, जबकि कुछ सांप की तरह नीचे गिरा देते हैं। यह पूरा सिलसिला पाठकों को शुरू से अंत तक बाँधे रखता है, जैसे वो खुद खेलग्राम के अंदर फंसे हों।
कला और चित्रांकन: कहानी को ज़िंदा कर देने वाली तस्वीरें
‘बुद्धिपासा’ में कदम स्टूडियो का काम काबिले-तारीफ है। 90 के दशक की राज कॉमिक्स की जो क्लासिक स्टाइल थी, वह यहाँ अपने सबसे शानदार रूप में नजर आती है। कॉमिक्स के पैनल बहुत जीवंत और गतिशील हैं। एक्शन सीन में फ्रेम्स का इस्तेमाल लड़ाई की तेज़ी और रोमांच को बढ़ाता है, जबकि पहेली वाले सीन में पात्रों के चेहरे के भाव और उनकी सोच को बखूबी दिखाया गया है।

उस दौर के हिसाब से रंग योजना (कलर स्कीम) बहुत आकर्षक है। खेलग्राम के हर हिस्से को अलग-अलग रंगों से दिखाया गया है, जिससे वहाँ का माहौल और खतरा दोनों महसूस होते हैं।
सबसे खास बात है खेलग्राम का डिज़ाइन — खासकर वो ज़िंदा बोर्ड गेम और उसके जालों का चित्रण। इसे देखकर लगता है जैसे खेलग्राम कोई साधारण पृष्ठभूमि नहीं, बल्कि कहानी का एक ज़िंदा किरदार हो, जो हर पल कुछ नया कर रहा है।
कहानी का संदेश: असली बुद्धि क्या है
कॉमिक्स ‘बुद्धिपासा’ सिर्फ एक रोमांचक कहानी नहीं है, बल्कि इसके अंदर गहरे और सोचने लायक संदेश छिपे हुए हैं। इसका सबसे बड़ा संदेश है — बुद्धि बनाम अहंकार। कहानी यह दिखाती है कि सच्ची बुद्धि ज्ञान और विवेक में होती है, न कि घमंड और अहंकार में। राजा बुद्धिशाली अपनी इसी घमंडी सोच की वजह से सब कुछ खो देता है।
इसके साथ ही, राजकुमारी मयूरी के ज़रिए कहानी यह भी बताती है कि युद्ध का कोई असली फायदा नहीं होता। जब इंसान महत्वाकांक्षा और सत्ता की आग में जलता है, तो अक्सर निर्दोष लोग कुर्बान हो जाते हैं, और जीतने वाला भी कुछ न कुछ ज़रूर हार जाता है।
कहानी का सबसे मजबूत हिस्सा है — मयूरी का अपने पिता के खिलाफ खड़ा होना। यह कदम नैतिक साहस (मोरल करेज) का शानदार उदाहरण है।वह हमें सिखाती है कि सच्ची वीरता सिर्फ तलवार चलाने में नहीं, बल्कि सही बात के लिए अपने प्रियजनों के खिलाफ जाने के साहस में भी होती है।
निष्कर्ष: क्यों ‘बुद्धिपासा’ आज भी खास है
‘बुद्धिपासा’ एक ऐसी कहानी है जो कभी पुरानी नहीं पड़ती। यह भोकाल के किरदार में नई गहराई और परिपक्वता जोड़ती है,एक ऐसे खलनायक को दिखाती है जिसे आप आसानी से भूल नहीं सकते,
और एक ऐसी कहानी पेश करती है जिसमें एक्शन, सस्पेंस और इमोशन्स – तीनों का ज़बरदस्त संगम है।
यह कॉमिक यह साबित करती है कि भारतीय कॉमिक्स भी गंभीर और गहरी कहानियाँ कहने की काबिलियत रखती थीं। यह सिर्फ एक सुपरहीरो की कहानी नहीं, बल्कि इंसानी भावनाओं, अहंकार के परिणामों, और सही-गलत के बीच की जंग की कहानी है।
अगर आपने इसे अब तक नहीं पढ़ा है, तो सच कहें तो आपने राज कॉमिक्स का एक अनमोल रत्न मिस कर दिया है।और अगर पढ़ा है, तो आप जानते हैं कि यह क्यों आज भी भोकाल के सबसे शानदार कारनामों में गिनी जाती है।
यह एक ऐसी जंग है, जहाँ आखिरी वार तलवार नहीं, बल्कि दिमाग करता है।
