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Home » “90s की वह कॉमिक जो पढ़ते ही रोंगटे खड़े हो जाते थे—‘ड्रैगन’, जहाँ इंसानी दिमाग वाले जानवर शहर को निगलने निकले थे।”
Editor's Picks Updated:30 November 2025

“90s की वह कॉमिक जो पढ़ते ही रोंगटे खड़े हो जाते थे—‘ड्रैगन’, जहाँ इंसानी दिमाग वाले जानवर शहर को निगलने निकले थे।”

एक पागल वैज्ञानिक, इंसानी दिमाग वाले जानवर, और दो दमदार जासूस — ‘ड्रैगन’ किंग कॉमिक्स की सबसे थ्रिलिंग और नॉस्टेल्जिक कहानी।
ComicsBioBy ComicsBio30 November 2025Updated:30 November 202508 Mins Read
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Dragon Comic Review – King Comics का सबसे रोमांचक Mutant Thriller | Full Analysis & Nostalgia
किंग कॉमिक्स की ‘ड्रैगन’—एक ऐसी रोमांचक कहानी जहाँ पागल वैज्ञानिक, इंसानी दिमाग वाले जानवर और दो बहादुर जासूस एक खतरनाक टकराव की ओर बढ़ते हैं।
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भारतीय कॉमिक्स के सुनहरे दौर में, जहाँ राज कॉमिक्स, डायमंड और मनोज चित्रकथा का दबदबा था, वहीं ‘किंग कॉमिक्स’ ने भी अपनी अलग तरह की कहानियों और दिलचस्प किरदारों से पाठकों के दिलों में खास जगह बनाई थी। किंग कॉमिक्स की कहानियाँ आमतौर पर जासूसी, साइंस फिक्शन और फैंटेसी का मज़ेदार मिलाजुला रूप होती थीं। प्रस्तुत कॉमिक्स “ड्रैगन” इसका शानदार उदाहरण है। यह कहानी एक पागल वैज्ञानिक, इंसान–जानवर के मिलेजुले भयावह प्रयोगों और दो बहादुर जासूसों की हिम्मत की दास्तान है।

कथावस्तु (Plot Summary)

कहानी की पृष्ठभूमि ‘स्वराष्ट्र’ की राजधानी ‘हिमफाल’ में है। रात का अंधेरा छाते ही शहर में डर का माहौल बन जाता है। कुछ अजीब और डरावने प्राणी—जो आधे इंसान और आधे जानवर जैसे दिखते हैं—लोगों को उठाकर ले जा रहे हैं। ये प्राणी इतने ताकतवर हैं कि आम पुलिस के बस की बात नहीं लगते। सिर्फ सात दिनों में 200 से ज़्यादा लोगों का अपहरण हो जाता है, जिससे प्रशासन और पुलिस कमिश्नर गार्गी की हालत खराब हो जाती है।

इस खौफनाक हालात से निपटने के लिए सुरक्षा मंत्री राजनाथ, राष्ट्रीय सुरक्षा दस्ते के सबसे काबिल जासूस ‘राज’ को बुलाते हैं। राज एक निडर और तेज दिमाग वाला हीरो है, जिसे इस रहस्य को सुलझाने और इन अपहरणों के पीछे छिपे सच को सामने लाने की जिम्मेदारी दी जाती है।

दूसरी तरफ इस कहानी का असली विरोधी है—डॉ. ड्रैगन। वह ‘बिटोरा’ के घने जंगलों में एक गुप्त लैब में अपने खतरनाक प्रयोग करता है। डॉ. ड्रैगन एक पागल वैज्ञानिक है जिसका मकसद प्रकृति के नियमों को चुनौती देना है। वह अपने साथी हिचकाक के ज़रिये अपहृत लोगों के दिमाग मंगवाता है। डॉ. ड्रैगन का प्रयोग बहुत ही डरावना है—वह इंसानी दिमाग को जंगली जानवरों के शरीर में लगा रहा है। उसका मानना है कि अगर इंसान का दिमाग और जानवरों की ताकत एक साथ मिल जाए, तो वह एक ऐसी गुलाम सेना खड़ी कर सकता है जो पूरी दुनिया पर उसकी बादशाहत कायम कर दे।

जब राज जांच के लिए निकलता है, उसका सामना इन अजीब प्राणियों से होता है। कहानी में बड़ा मोड़ तब आता है जब राज की भिड़ंत ‘शेरू’ से होती है—एक शेर जिसके अंदर इंसान का दिमाग है। राज और शेरू की लड़ाई, बाइक का हवा में उछलना और दोनों का एक-दूसरे को चैलेंज करना—ये सीन कॉमिक्स के सबसे रोमांचक पलों में से एक है।

राज इस मिशन में अकेला नहीं है; उसे ‘बाक्सर’ नाम के एक और ज़बरदस्त साथी का साथ मिलता है। बाक्सर भी राष्ट्रीय सुरक्षा दस्ते का एक कुशल गुप्तचर है। दोनों मिलकर डॉ. ड्रैगन के ‘ड्रैगन टॉवर’ पर हमला करते हैं। वहाँ उनका सामना हिचकाक, डॉ. ड्रैगन के बनाए गए म्यूटेंट्स और आखिर में एक विशालकाय मैकेनिकल/जैविक ड्रैगन से होता है।

पात्र विश्लेषण (Character Analysis)

राज (नायक):
राज इस कहानी का मुख्य हीरो है। उसे एक क्लासिक एक्शन स्टार की तरह दिखाया गया है। वह सिर्फ तगड़ा और ताकतवर ही नहीं, बल्कि तेज दिमाग वाला और तुरंत फैसले लेने में माहिर है। कॉमिक्स के कवर और अंदर के पन्नों में उसकी नीली-लाल पोशाक उसे एक सुपरहीरो जैसा लुक देती है। शेरू से लड़ाई के दौरान बाइक उठाने वाला उसका सीन उसकी असली ताकत दिखाता है और उसे आम इंसानों से अलग खड़ा करता है।

डॉ. ड्रैगन (खलनायक):
डॉ. ड्रैगन 80–90 के दशक वाले ‘मैड साइंटिस्ट’ का बढ़िया उदाहरण है। उसका लुक—गंजा सिर, किनारों पर लंबे बाल, और दाढ़ी—उसे एक खतरनाक और चालाक विलेन जैसा रूप देता है। वह बेहद निर्दयी है और इंसानी जान की कोई कीमत नहीं समझता। उसका डायलॉग—”अगर मेरा प्रयोग सफल रहा तो पशुओं से हम मनचाहा काम ले सकेंगे”—उसकी बुरी सोच और पागलपन भरी महत्वाकांक्षा को साफ दिखाता है। वह अपनी बुद्धि का इस्तेमाल सिर्फ विनाश और सत्ता के लिए करता है।

बाक्सर (सहयोगी):
बाक्सर की एंट्री कहानी में एक नया जोश भर देती है। जैसा कि उसके नाम से समझ आता है, वह अपनी दमदार बॉक्सिंग और शारीरिक ताकत के लिए मशहूर है। जब भी राज किसी मुश्किल में फँसता है—चाहे शेरू के साथ लड़ाई के दौरान हो या फिर ड्रैगन टॉवर में नीचे गिरने के बाद—तब बाक्सर ही उसे बचाता है। राज और बाक्सर की जोड़ी ‘बैटमैन–रॉबिन’ या ‘ध्रुव–ब्लैककैट’ की तरह एकदम सटीक टीम लगती है।

हिचकाक:
यह डॉ. ड्रैगन का सबसे भरोसेमंद गुर्गा है। वह सिर्फ आदेश मानने वाला नौकर नहीं है, बल्कि खुद भी काफी चालाक और बेरहम है। हिचकाक पैसों के लालच में लोगों के दिमाग की तस्करी करता है। उसके पास ‘स्प्रिंट स्प्रे’ जैसा एक गैजेट भी है, जो बेहोश लोगों को तुरंत होश में ला देता है।

विचित्र प्राणी (Mutants):
कॉमिक्स के सबसे अनोखे और यादगार पात्र वही जानवर हैं जिनके अंदर इंसानी दिमाग डाल दिया गया है—खासकर ‘शेरू’ (शेर–मानव) और ‘बाज–मानव’। ये किरदार एक अजीब सा मिश्रण हैं—डर भी पैदा करते हैं और दया भी। क्योंकि वे अपनी मर्जी से नहीं, बल्कि मजबूरी में डॉ. ड्रैगन की गुलामी कर रहे होते हैं।

चित्रांकन और कला (Artwork and Visualization)

विनोद भाटिया की बनाई गई ड्रॉइंग उस दौर की खास शैली को बखूबी दिखाती है।

रंग संयोजन:
कॉमिक्स में चमकीले रंगों का अच्छा इस्तेमाल किया गया है। पृष्ठभूमि में पीला, नीला और हरा रंग अक्सर नजर आता है। रात वाले दृश्यों में भी रंगों का उपयोग ऐसा रखा गया है कि किरदार साफ-साफ दिखें और माहौल भी डरावना लगे।

एक्शन दृश्य:
एक्शन सीन काफी तेज और जीवंत बनाए गए हैं। जैसे पेज 10 और 11 पर, जब शेरू बाइक को उठा लेता है और राज उसे हवा में उछाल देता है—इन पैनलों में सच्ची वाली मूवमेंट महसूस होती है। “धड़ाम”, “तड़ाक”, “गुर्र्र” जैसे ध्वनि-शब्द बड़े मोटे अक्षरों में लिखे गए हैं, जो एक्शन का असर और बढ़ा देते हैं।

पात्र डिजाइन:
डॉ. ड्रैगन द्वारा बनाए गए हाइब्रिड जीव—जैसे छह हाथ वाला राक्षस, गैंडा–मानव, और विशाल ड्रैगन—इनकी डिजाइन काफी कल्पनाशील है। ये बच्चों और किशोरों के लिए उतने ही डरावने हैं जितने रोचक।

कहानी के मुख्य आकर्षण और विषय (Themes and Highlights)

विज्ञान का दुरुपयोग:
कहानी का सबसे बड़ा संदेश यही है कि जब विज्ञान को गलत दिशा में इस्तेमाल किया जाता है और नैतिक सीमाएँ तोड़ी जाती हैं, तो उसका नतीजा कितना खतरनाक हो सकता है। डॉ. ड्रैगन का ‘ब्रेन ट्रांसप्लांट’ वाला विचार भले ही सुनने में साइंस जैसा लगे, असल में वह बेहद घिनौना और डर पैदा करने वाला प्रयोग है। यह बात ‘फ्रेंकेंस्टाइन’ की कहानी की याद दिलाता है, जहाँ रचयिता खुद अपनी रचना से बर्बादी झेलता है।

रहस्य और रोमांच:
लेखक महेश दत्त शर्मा ने कहानी की शुरुआत से ही रहस्य का ऐसा माहौल बनाया है कि पाठक जानना चाहे कि “रात के अंधेरे में कौन लोगों को उठा ले जा रहा है?” यही सवाल पाठक को लगातार आगे पढ़ने पर मजबूर करता है।

क्लाइमेक्स (Climax):
कहानी का अंत एक विशाल ड्रैगन के साथ धमाकेदार लड़ाई में होता है। जब गोलियाँ और बाकी हथियार उस पर असर नहीं करते, तो बाक्सर अपनी समझदारी दिखाता है और ड्रैगन की पूँछ को उसके ही जबड़ों में फँसा देता है। यह तरीका भले थोड़ा फिल्मी लगे, लेकिन कॉमिक्स के हिसाब से यह पूरी तरह मजेदार और मनोरंजक है।

क्लिफहैंगर (Cliffhanger):
अंत में जब डॉ. ड्रैगन पानी में गिरता है और चिल्लाता है—”मैं फिर आऊंगा बाक्सर! फिर आऊंगा मैं!”—तो यह साफ दिखाता है कि बुराई इतनी जल्दी खत्म नहीं होती। ऊपर से नायकों को उसकी लाश भी नहीं मिलती, जो आगे आने वाले पार्ट (सीक्वल) की संभावना खुली छोड़ देता है।

समीक्षात्मक दृष्टिकोण (Critical Review)

सकारात्मक पक्ष (Pros):
तेज गति (Fast Pacing):
कहानी कहीं भी ठहरती नहीं। हर पेज पर कोई न कोई घटना होती रहती है। शुरुआत, बढ़ता तनाव और फिर क्लाइमेक्स—सबकुछ एकदम तेज रफ्तार में चलता है।

कल्पनाशीलता:
उस दौर में जब फिल्मों में VFX आम नहीं था, तब कॉमिक्स ही एक ऐसा माध्यम था जहाँ इस तरह की फंतासी दुनिया—मानव-पशु मिश्रण, बड़े राक्षस, साइंस एक्सपेरिमेंट्स—को मजेदार तरीके से दिखाया जा सकता था। लेखक की कल्पना वाकई तारीफ के लायक है।

एक्शन कोरियोग्राफी:
राज और बाक्सर की लड़ाई वाले सीन काफी जोश भरने वाले हैं। खासकर जंजीरों का उपयोग और हवा में उछलकर दी गई किक्स (Flying Kicks) बहुत शानदार लगती हैं।

नकारात्मक पक्ष (Cons):
तर्क की कमी:
कुछ चीजें विज्ञान के नाम पर थोड़ा अटपटी लगती हैं। जैसे—शेर के शरीर में इंसान का दिमाग डालते ही वह तुरंत हिंदी बोलने लगता है और कमांड्स मानने लगता है। यह काफी अजीब लगता है। और क्लाइमेक्स में विशालकाय ड्रैगन का अपनी ही पूंछ को चबाकर खत्म हो जाना—यह अंत थोड़ा बचकाना लगता है।

हिंसा:
कहानी में हिंसा का स्तर ज्यादा है। दिमाग निकालना, खून का दिखना, सिर पर वार करना—ये चीजें बच्चों के लिए थोड़ी परेशान करने वाली हो सकती हैं। हालांकि यह ‘थ्रिल सीरीज’ का हिस्सा है, इसलिए इस तरह के सीन उम्मीद किए जा सकते हैं।

निष्कर्ष (Conclusion):

किंग कॉमिक्स की “ड्रैगन” एक क्लासिक मसाला एंटरटेनर है। यह वह कॉमिक्स है जिसे तर्क से ज्यादा मनोरंजन के लिए पढ़ा जाता है। महेश दत्त शर्मा की कहानी और विनोद भाटिया की आर्ट मिलकर एक ऐसी दुनिया बनाती है जहाँ हर मोड़ पर खतरा है और हमारे नायक अपनी ताकत और हिम्मत से उन खतरों से भिड़ते हैं।

1200 शब्दों में इस कॉमिक्स के बारे में सबकुछ कहना मुश्किल है, क्योंकि लगभग हर पैनल में एक छोटा सा किस्सा छिपा है। लेकिन कुल मिलाकर, यह कॉमिक्स 90s के उन पाठकों के लिए एक तरह की ‘टाइम मशीन’ जैसी है, जो गर्मियों की छुट्टियों में स्टोर से कॉमिक्स किराए पर लेकर पढ़ते थे। इसमें वह सब है जो एक अच्छी एक्शन कॉमिक्स में होना चाहिए—धांसू विलेन, वफादार साथी, खतरनाक म्यूटेंट्स, और बुराई पर अच्छाई की जीत।

आज की एडवांस टेक्नोलॉजी और आधुनिक कहानियों के सामने यह शायद साधारण लगे, लेकिन अपने समय में “ड्रैगन” ने जरूर धूम मचाई होगी। डॉ. ड्रैगन का किरदार इतना यादगार है कि पाठक अंत में उसकी वापसी जरूर देखना चाहते होंगे। अगर आपको पुरानी भारतीय कॉमिक्स पसंद हैं, तो यह कॉमिक्स आपके कलेक्शन में जरूर होनी चाहिए।

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