जहां नागराज, सुपर कमांडो ध्रुव और डोगा जैसे सुपरहीरो आधुनिक शहरों में अपराधियों से लड़ रहे थे, वहीं ‘गोजो’ ने पाठकों को एक बिल्कुल अलग दुनिया में ले जाकर खड़ा कर दिया। गोजो की दुनिया तलवारों, जादू, राक्षसों और पुराने रहस्यों से भरी हुई थी। यह कुछ-कुछ ‘ही-मैन’ (He-Man) और ‘कोनन द बारबेरियन’ जैसी फैंटेसी दुनिया की तरह था, और भारतीय पाठकों ने इसे दिल से अपनाया।
‘गोजो की जंग’ इस श्रृंखला का एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह कॉमिक्स सिर्फ गोजो की ताकत ही नहीं दिखाती, बल्कि उसके हौसले, मानसिक मजबूती और कम संसाधनों में भी लड़ने की क्षमता को सामने लाती है। लेखक तरुण कुमार वाही, जो तेज और पकड़ने वाली कहानियों के लिए जाने जाते हैं, इस कॉमिक में भी ऐसी कहानी बुनते हैं कि पाठक शुरुआत से आख़िरी पन्ने तक जुड़े रहते हैं।
कहानी की रूपरेखा (Plot Summary)
कहानी की शुरुआत बहुत रहस्यमय और डर पैदा करने वाले अंदाज़ में होती है, जो तुरंत पाठकों के मन में सवाल और उत्सुकता जगा देती है।

रहस्यमय आकृतियों का आगमन: कहानी कई राज्यों में अजीब और डरावनी घटनाओं से शुरू होती है। एक जगह अचानक एक बहुत बड़ा लाल रंग का अंडाकार गोला दिखाई देता है, जैसे उसमें खून भरा हो। दूसरी तरफ विजयनगर के बीचों-बीच रातों-रात एक विशाल ‘बांबी’ (दीमक का पहाड़) उग आता है, और प्रतापनगर में भी एक बड़ा अंडाकार ढांचा दिखाई देता है। ये घटनाएं बिलकुल सामान्य नहीं थीं, इसलिए सैनिक और आम लोग दोनों घबरा जाते हैं।
विनाश का तांडव: लेखक सस्पेंस को ज्यादा देर तक नहीं खींचते, और कहानी तुरंत एक्शन में कूदती है। जैसे ही सैनिक इन आकृतियों को नष्ट करने की कोशिश करते हैं, तबाही मच जाती है। लाल गोले और बांबी के टूटते ही लाखों की संख्या में लाल जहरीली चींटियां और सांप बाहर निकल आते हैं। यहाँ प्रवीण गुरसाळे की की हुई ड्रॉइंग डर और अफरा-तफरी को पूरी तरह जिंदा कर देती है। चींटियों का इंसानों पर टूट पड़ना और सांपों का जहर उगलना ऐसा लगता है जैसे कोई हॉरर मूवी चल रही हो। यह हमला सिर्फ हमला नहीं है — बल्कि एक सोची-समझी बर्बादी है।
गोजो की विवशता और संघर्ष: कहानी का असली टर्निंग पॉइंट तब आता है जब हमारा हीरो, गोजो, सामने दिखता है। गोजो इस समय महर्षि तप्तमुखी के आश्रम में है और एक बड़े संकट में फंसा हुआ है। यहीं पता चलता है कि गोजो अपनी तीन सबसे बड़ी शक्तियां — ‘तीसरी आंख’, ‘गुरुघंटाल’ और ‘बिल्लौरा’ — खो चुका है। यह बात पाठकों के लिए भी झटका है, क्योंकि गोजो को हमेशा इन्हीं शक्तियों के साथ देखा गया है।
महर्षि तप्तमुखी बताते हैं कि ये शक्तियां बिना ‘अग्नि मंथन’ के वापस नहीं मिल सकतीं — लेकिन अगला अग्नि मंथन 50 साल बाद होगा। यही मोड़ कहानी की असली ताकत है। अब गोजो पहले जैसा अजेय नायक नहीं रहा। उसे बची-खुची शक्तियों — ‘बिजलिका’, ‘संहारक’, ‘जुडोका’ और ‘शाकाल’ — के भरोसे ही मानवता के दुश्मनों से लड़ना है। इसी वजह से ‘गोजो की जंग’ सिर्फ मार-धाड़ वाली कॉमिक नहीं, बल्कि एक असली सर्वाइवल की लड़ाई बन जाती है।
तकनीक बनाम आदिम शक्ति: जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है (खासकर बाद के पन्नों में), पता चलता है कि खतरा केवल जानवरों — यानी सांप और चींटियों — तक सीमित नहीं है। कहानी में बहुत बड़े रोबोटनुमा ढांचे और अलग-अलग रंगों वाले पत्थर भी आते हैं, जो मशीनों या राक्षसों का रूप लेते हैं और विनाश मचा देते हैं। यह फैंटेसी और साइंस-फिक्शन का शानदार मिश्रण है — और यही राज कॉमिक्स की खासियत भी रही है। गोजो को इन जादुई और आधुनिक दोनों तरह के दुश्मनों से अपनी सीमित ताकत के साथ लड़ना पड़ता है।
चरित्र चित्रण (Character Analysis)
गोजो: इस कॉमिक्स में गोजो का एक अलग रूप देखने को मिलता है। आमतौर पर सुपरहीरो अपनी शक्तियों पर बहुत निर्भर रहते हैं, लेकिन यहाँ गोजो पहले जैसा ताकतवर नहीं है (अपनी पुरानी स्थिति के मुकाबले “कमज़ोर” है)। जब उसे पता चलता है कि उसे 50 साल तक अपनी मुख्य शक्तियों के बिना ही रहना होगा, तब भी वह टूटता नहीं है। उसका यह संवाद – “जानता हूं महर्षि कि अब इन चारों के साथ ही मुझे मानवता के दुश्मनों से टकराना होगा” – उसके असली हौसले और दम को दिखाता है। हालात पर रोने के बजाय वह जो कुछ बचा है उसी के साथ युद्ध के मैदान में उतरने का फैसला करता है। यह चीज़ पाठकों के लिए भी प्रेरणा देती है।

महर्षि तप्तमुखी: महर्षि कहानी में एक गाइड की भूमिका निभाते हैं। वे पाठकों को गोजो की पिछली शक्तियों और आगे चलने वाले नियमों के बारे में बताते हैं। उनका शांत और संतुलित स्वभाव गोजो की उग्रता को बराबर करता है और उसका मार्गदर्शन करता है।
खलनायक (The Antagonist): पीडीएफ में मुख्य खलनायक का नाम या चेहरा अंत तक पूरी तरह स्पष्ट नहीं होता, लेकिन इतना साफ दिखता है कि दुश्मन बहुत चालाक और खतरनाक है। सीधे अटैक करने की जगह वह पहले रहस्यमय अंडे और बांबी जैसी चीज़ों से लोगों के मन में डर पैदा करता है और फिर जैविक हथियारों — यानी चींटियों और सांपों — को छोड़कर तबाही मचाता है। बाद में रोबोटिक और राक्षसी तत्वों का आना यह बताता है कि विरोधी के पास जादू और विज्ञान दोनों की ताकत मौजूद है — यानी दुश्मन खेल बहुत ऊँचे स्तर पर खेल रहा है।
चित्रांकन और कला (Art and Illustrations)
प्रवीण गुरसाळे का चित्रांकन उस दौर की याद दिलाता है जब कॉमिक्स के हाथ से बने चित्र ही उनकी असली जान हुआ करते थे। एक्शन सीन में मूवमेंट बहुत शानदार तरीके से दिखाया गया है। जब गोजो तलवार या गदा चलाता है, या छलांग लगाता है, तो चित्रों में एक असली ऊर्जा महसूस होती है।
चींटियों के हमले वाले पन्नों में भगदड़, लोगों की चीखें, और डर पूरी तरह दिखता है। चेहरों पर डर, दर्द और घबराहट बहुत साफ उकेरी गई है। कॉमिक में चटकीले रंगों का शानदार उपयोग है — खासकर लाल, पीला और हरा। खतरे को दिखाने के लिए लाल रंग का प्रयोग (लाल गोला, लाल चींटियाँ) बहुत दमदार लगा है। बाद के पन्नों में जब रंग-बिरंगी चट्टानें दिखाई देती हैं, तो उनका रंग संयोजन थोड़ा अजीब और एलियन-सा लगता है — जो कहानी के रहस्यमय माहौल को और गहरा कर देता है।

पुराने महलों, जंगलों और आश्रमों के चित्र भी कमाल के हैं — वे विजयनगर जैसी भव्यता और प्राचीनता का एहसास करवाते हैं, जिससे कॉमिक का “पीरियड ड्रामा” वाला टच और मजबूत हो जाता है।
लेखन और संवाद (Writing and Dialogue)
तरुण कुमार वाही की लेखन शैली हमेशा की तरह यहाँ भी कसकर पकड़ी हुई है। वे कहानी को बेवजह फैलाते नहीं हैं और शुरुआत से ही रहस्य और तनाव खड़ा कर देते हैं। “क्या है ये?”, “कहां से आया?” जैसे संवाद आम लोगों की घबराहट और दहशत को बिल्कुल असली अंदाज़ में दिखाते हैं।
संवादों में नाटकीयता है — जो 90 के दशक की कॉमिक्स की सबसे बड़ी पहचान थी। जब गोजो अपनी शक्तियों और हालात के बारे में बात करता है, तो भाषा में गंभीरता और वजन झलकता है। “जारी है ये टकराव! कभी किसी रूप में… तो कभी किसी रूप में” — शुरुआत की ये पंक्तियाँ ही बता देती हैं कि यह अच्छाई और बुराई के बीच चल रही कभी न खत्म होने वाली लड़ाई है।
कहानी बहुत तेज़ रफ्तार में आगे बढ़ती है।
रहस्यमय घटना → तबाही → गोजो की एंट्री → गोजो का एक्शन
कहीं भी कहानी ढीली नहीं पड़ती और पाठक को बोर होने का कोई मौका नहीं देती।
विषय वस्तु और संदेश (Themes and Message)
‘गोजो की जंग’ सिर्फ मार-धाड़ की कॉमिक नहीं है, इसके अंदर कई गहरे और समझदार संदेश भी छिपे हैं।
सबसे बड़ा संदेश यह है कि असली ताकत क्या होती है? जब आपके पास अपनी पूरी शक्ति न हो, तब आपका रवैया ही आपकी पहचान बनता है। गोजो अपनी मुख्य शक्तियाँ खो देने के बावजूद पीछे हटने के बजाय लड़ाई जारी रखता है। यह बताता है कि असली शक्ति हथियारों और जादू में नहीं, बल्कि इरादों और इच्छाशक्ति में होती है।
चींटियों और सांपों का हमला यह दिखाता है कि प्रकृति के जीव भी विनाश के हथियार की तरह इस्तेमाल किए जा सकते हैं। वहीं दूसरी तरफ, गोजो और ऋषि-मुनि प्रकृति के रक्षक बनकर दिखाई देते हैं।
कहानी की शुरुआत में लिखा वाक्य –
“न्याय का अन्याय से और मानवता का शैतानियत से टकराव तब से होता आया है जब से सृष्टि की रचना हुई है।“
पूरी कॉमिक इसी अनंत लड़ाई और अच्छाई-बुराई के सनातन संघर्ष को दर्शाती है।
कमियां (Critical Analysis)
कहानी शानदार है, लेकिन एक आलोचक की नज़र से देखें तो कुछ बातें नोट की जा सकती हैं:
राज कॉमिक्स की फैंटेसी कहानियों में कई बार लॉजिक को पीछे छोड़ दिया जाता है। जैसे ये विशाल अंडे कहाँ से आए? वे पूरी तरह जैविक थे या मशीननुमा? इन बातों का स्पष्टीकरण कभी-कभी बहुत सतही दिया जाता है या फिर पाठकों की कल्पना पर छोड़ दिया जाता है।
कुछ जगह लड़ाई के दृश्य थोड़ा दोहराव वाले लगते हैं। चींटियों और सांपों का हमला डरावना है, लेकिन कई पन्नों तक लगभग एक जैसा बनावट में चलता रहता है।
कई बार गोजो की कहानियों में विलेन का उद्देश्य सिर्फ “पूरी दुनिया को तबाह करना” ही लगता है। एक गहरी वजह या ठोस मकसद की कमी कभी-कभी खलनायक को थोड़ा हल्का कर देती है।
नॉस्टेल्जिया (Nostalgia) और महत्त्व
आज के दौर में जब हम मार्वल और डीसी की हाई-टेक फिल्मों में बड़े विज़ुअल इफेक्ट्स देखते हैं, तब ‘गोजो की जंग’ पढ़ना एक अलग ही सुकून देता है। इसे पढ़ते हुए ऐसा लगता है जैसे हम उस दौर में पहुंच गए हैं जब मनोरंजन कागज़ के पन्नों पर उकेरी गई लाइनों में छुपा होता था। पीडीएफ में पढ़ने के बावजूद पुराने पन्नों की खुशबू और टेक्सचर याद आ जाते हैं।

इस कहानी में न कोई भारी-भरकम “मल्टीवर्स” है, न “टाइम ट्रैवल” का कन्फ्यूजन। यह सीधी-सादी “हीरो बनाम विलेन” वाली कहानी है — जो दिमाग को आराम देती है और दिल में जूनून जगाती है।
गोजो सीरीज़ की खासियत यह भी है कि इसने भारतीय बच्चों को भारतीय परिवेश में एक सुपरहीरो दिया — विजयनगर जैसा सेटअप, ऋषि-मुनि, तलवार और जादू — यानी भारतीय अंदाज़ में “बार्बेरियन हीरो” का रूप। और यही कारण था कि गोजो इतना लोकप्रिय हुआ।
निष्कर्ष (Conclusion)
कुल मिलाकर, ‘गोजो की जंग’ राज कॉमिक्स के खजाने में एक चमकता हुआ रत्न है। यह तरुण कुमार वाही की शानदार कल्पनाशीलता और प्रवीण गुरसाळे की लाजवाब कला — दोनों का बेहतरीन संगम है।
इस कॉमिक की असली खूबसूरती यह नहीं है कि गोजो जीतता है — बल्कि यह है कि गोजो अधूरा होने के बावजूद लड़ने का हौसला नहीं छोड़ता। यही बात इसे आम कॉमिक्स से ऊपर उठाकर एक प्रेरणादायक कहानी बना देती है।
1100 शब्दों की इस समीक्षा का सार यही है कि अगर आपको क्लासिक भारतीय कॉमिक्स, तलवारबाज़ी, फैंटेसी और जादुई दुनिया पसंद है, तो यह कॉमिक आपके लिए एक मस्ट रीड (Must Read) है।
इसमें सस्पेंस है, हॉरर है, इमोशन है और फुल एक्शन है।
और सबसे बढ़कर — यह याद दिलाता है कि गोजो सिर्फ ताकत का नाम नहीं है…
गोजो एक जज़्बा है — हर हाल में बुराई के खिलाफ खड़े रहने का जज़्बा।
रेटिंग: 4/5
अगर आपने इसे बचपन में पढ़ा है तो दोबारा पढ़ने पर बचपन की सुनहरी यादें ताज़ा हो जाएंगी।
और अगर आप नए पाठक हैं, तो यह जानने के लिए ज़रूर पढ़ें कि भारतीय कॉमिक्स का इतिहास कितना रोमांचक और समृद्ध रहा है।
