एक ऐसा सुपरहीरो जो देखने में पूरी तरह लोहे का था, लेकिन जिसके अंदर दिल अब भी धड़कता था। यह हीरो था—इंस्पेक्टर स्टील। ‘ऑक्टोपस’ इसी फौलादी रक्षक की एक जबरदस्त और रोमांच से भरी कहानी है। यह कॉमिक सिर्फ एक्शन तक सीमित नहीं रहती, बल्कि इंस्पेक्टर स्टील के किरदार की गहराई, उसकी पुरानी पहचान (इंस्पेक्टर अमर) और अपने फर्ज़ के प्रति उसकी ईमानदारी को भी अच्छे से सामने लाती है। लेखक हनीफ अजहर और चित्रकार नरेश कुमार की जोड़ी ने इस अंक में एक संतुलित और मजबूत कहानी पेश की है, जो पहले पन्ने से ही पाठक को अपने साथ बांध लेती है।
कथानक (Plot Overview)
कहानी की शुरुआत एक बेहद खतरनाक विलेन ‘ऑक्टोपस’ के इंट्रो से होती है। ऑक्टोपस का ठिकाना किसी हाई-टेक लैब जैसा दिखाया गया है, जहां वह यह कसम खाता है कि इंस्पेक्टर स्टील ने उसके आठ खास कमांडरों (अष्टांगों) को गिरफ्तार करके उसे गहरा झटका दिया है। बदले की आग में जलता हुआ ऑक्टोपस यह ऐलान करता है कि वह स्टील के शरीर के आठ टुकड़े करके ही दम लेगा। यह शुरुआती सीन ही आने वाले खतरे और टकराव की गंभीरता को साफ-साफ दिखा देता है।

इसके बाद कहानी शहर के एक रईस इलाके ‘फाइव स्टार डिस्कोथेक’ की तरफ बढ़ती है। यहां लेखक समाज पर हल्का-सा तंज भी करता है कि कैसे अब अपराध सिर्फ गंदी बस्तियों तक सीमित नहीं रह गया, बल्कि अमीर इलाकों में भी आराम से पनाह ले रहा है। डिस्कोथेक के बाहर एक घबराई हुई महिला इंस्पेक्टर स्टील से टकराती है। स्टील, जो दिखने में एक विशाल मशीनी शरीर वाला इंसान है, फिर भी बड़े शांत और विनम्र तरीके से उसकी बात सुनता है और उसकी परेशानी समझने की कोशिश करता है।
जब स्टील डिस्कोथेक के अंदर जाने लगता है, तो वहां का मैनेजर उसे ‘सर्च वारंट’ दिखाने के लिए रोक देता है। इसी सीन में स्टील की हाई-टेक खूबियों की झलक मिलती है—वह अपने इंटरनल कंप्यूटर सिस्टम और कमिश्नर के आदेश के ज़रिये वहीं मौके पर सर्च वारंट प्रिंट करके सीधे मैनेजर के मुंह पर थमा देता है। इसके बाद जो एक्शन शुरू होता है, वह पूरी तरह पैसा वसूल है। स्टील शीशे की दीवार तोड़कर अंदर घुसता है और गुंडों की गोलियों को अपने फौलादी सीने पर झेलते हुए उन्हें बुरी तरह हरा देता है।
असली कहानी तब रफ्तार पकड़ती है जब पुलिस कमिश्नर स्टील को एक नया और काफी उलझा हुआ केस सौंपते हैं। राजनगर बंदरगाह (Dockyard) से कीमती सामान से भरे बड़े-बड़े कंटेनर रहस्यमय तरीके से गायब हो रहे हैं। पुलिस की कई कोशिशें नाकाम साबित हो चुकी हैं। इस मिशन पर स्टील को अकेले नहीं भेजा जाता, बल्कि उसके साथ सब-इंस्पेक्टर सलमा को भी लगाया जाता है।
पात्र विश्लेषण (Character Analysis)

इंस्पेक्टर स्टील (फौलादी रक्षक)
इस कॉमिक में स्टील को सिर्फ एक मशीन या रोबोट की तरह नहीं दिखाया गया है, बल्कि एक समझदार, संवेदनशील और जिम्मेदार पुलिस अफसर के रूप में पेश किया गया है।
डिस्कोथेक वाले सीन में जब गुंडे उस पर गोलियां चलाते हैं, तब भी स्टील बिना गुस्सा किए कानून के दायरे में रहकर पहले सर्च वारंट दिखाता है। यह बात साफ दिखाती है कि मशीन बनने के बाद भी उसके अंदर का ईमानदार पुलिसवाला पूरी तरह जिंदा है। गोलियों का उस पर कोई असर न होना और अपने लोहे जैसे हाथों से दुश्मनों को हवा में उछाल देना पाठकों को रोमांच से भर देता है। अपनी कलाई या सिस्टम से सर्च वारंट प्रिंट करना, 90 के दशक के हिसाब से एक बेहद आगे की और भविष्य जैसी सोच थी।
पुलिस स्टेशन के बाहर जब एक भ्रष्ट हवलदार रिश्वत लेते पकड़ा जाता है, तो स्टील उसे उसके किए की सज़ा देता है। वहीं दूसरी तरफ, जब लोग उससे ऑटोग्राफ मांगते हैं, तो वह पेन का इस्तेमाल करने के बजाय अपने अंगूठे का खोल हटाकर फिंगरप्रिंट के रूप में ऑटोग्राफ देता है। यह सीन स्टील की ‘सेलिब्रिटी इमेज’ और उसकी अजीब लेकिन दिलचस्प शारीरिक बनावट—दोनों को एक साथ दिखाता है।
सब-इंस्पेक्टर सलमा (शक्की और तेज-तर्रार)

सलमा का किरदार इस कहानी की असली जान है। वह स्टील की पार्टनर जरूर है, लेकिन उसका मकसद सिर्फ केस सुलझाना ही नहीं है। वह स्टील के अंदर छिपे हुए ‘इंस्पेक्टर अमर’ को पहचानने और खोजने की कोशिश कर रही है।
सलमा स्टील की छोटी-छोटी आदतों पर ध्यान देती है। जैसे फायरिंग के बाद रिवॉल्वर की नाल में फूंक मारना—यह आदत पहले इंस्पेक्टर अमर की हुआ करती थी। सलमा के मन में यह सवाल उठता है कि क्या यह सिर्फ एक इत्तेफाक है या इसके पीछे कोई गहरा सच छुपा है। यही सोच कहानी में एक भावनात्मक परत जोड़ती है।
पेज 10 पर सलमा का बब्बलगम फुलाना और फिर उसे फोड़कर स्टील को चौंकाना, दोनों के बीच की केमिस्ट्री और अंदरूनी तनाव को बहुत ही स्मार्ट तरीके से दिखाता है। सलमा, स्टील के मशीनी चेहरे के पीछे छिपी मानवीय प्रतिक्रिया को देखना चाहती है, और यही चीज़ उनके रिश्ते को और दिलचस्प बनाती है।
ऑक्टोपस (खलनायक)

ऑक्टोपस एक क्लासिक कॉमिक बुक विलेन है, जैसा 90 के दशक की कॉमिक्स में देखने को मिलता था। उसका नाम ही डर पैदा करता है और उसकी वेशभूषा—कपाल जैसा मुखौटा और ताकतवर, मांसल शरीर—उसे और भी खौफनाक बना देती है। वह सिर्फ पैसों या ताकत के लिए अपराध नहीं कर रहा, बल्कि अपने साथियों यानी अपने आठ कमांडरों (अष्टांगों) की गिरफ्तारी का बदला लेने के लिए इंस्पेक्टर स्टील के पीछे पड़ा है। यही वजह है कि उसका और स्टील का टकराव पूरी तरह निजी हो जाता है। उसका अड्डा और उसके गुर्गों का लुक भी उसके नाम के हिसाब से ‘जलीय’ या समुद्री थीम के आस-पास रचा गया है, जो डॉकयार्ड से जुड़ी चोरियों के लिए बिल्कुल सही बैठता है।
कला और प्रस्तुति (Art and Visualization)
नरेश कुमार का आर्टवर्क राज कॉमिक्स के स्वर्ण युग की एक अमिट पहचान है, जहाँ इंस्पेक्टर स्टील के मशीनी अंगों, नट-बोल्ट और हाइड्रोलिक्स का सूक्ष्म चित्रण उसे एक वास्तविक साइबोर्ग के रूप में जीवंत कर देता है। इस कॉमिक में डिस्कोथेक के भीतर कांच टूटने (छनाक!) के दृश्यों और गुंडों के हवा में उछलने वाले एक्शन सीक्वेंस में जबरदस्त ऊर्जा महसूस होती है, जबकि पेज 4 और 5 पर स्टील के चेहरे और वाइजर का क्लोज-अप शॉट उसकी तकनीकी बनावट को अत्यंत प्रभावशाली ढंग से उजागर करता है। डिस्कोथेक की चटख रोशनी और डॉकयार्ड के मटमैले रंगों के बीच का सटीक अंतर कहानी के वातावरण को और अधिक ठोस बनाता है, साथ ही पेज 6 और 7 की ‘फिल्मी पैनलिंग’ कहानी की रफ्तार को कहीं भी धीमा नहीं पड़ने देती, जिससे पूरा दृश्य एक हाई-ऑक्टेन एक्शन फिल्म जैसा प्रतीत होता है।
लेखन और संवाद (Writing and Dialogue)

हनीफ अजहर के संवादों में वह पारंपरिक फिल्मी अंदाज़ और गहराई है, जो उस दौर के पाठकों के बीच राज कॉमिक्स को बेहद लोकप्रिय बनाती थी। इंस्पेक्टर स्टील के संवादों में एक खास तरह का रौब और वजन झलकता है; उदाहरण के लिए, जब वह अपराधी से कहता है, “तेरी चीख दीवारों को चीरकर बाहर नहीं जा सकती,” तो यह न केवल मुजरिम के मन में डर पैदा करता है, बल्कि कानून और न्याय की अडिग शक्ति को भी दर्शाता है।
कॉमिक्स में हास्य और व्यंग्य का भी सुंदर समावेश है, विशेषकर पुलिस स्टेशन के बाहर का वह दृश्य जहाँ स्टील एक भ्रष्ट पुलिसकर्मी को डराते हुए ऑटोग्राफ देता है। वहाँ एक लड़की का यह कहना—“अरे ये ऑटोग्राफ दे रहा है या फिंगर प्रिंट?”—मशीनी नायक और मानवीय स्थिति के बीच पैदा होने वाले हास्य का एक बेहतरीन उदाहरण है। इसके साथ ही, सलमा के मोनोलॉग्स कहानी में रहस्य (Suspense) की परतें बुनते हैं; उसके “इत्तफाक और छिपे हुए राज” जैसे संवाद पाठक की उत्सुकता को अंत तक बनाए रखते हैं कि क्या वह स्टील और अनीस के बीच के उस धुंधले सच को पहचान पाएगी।
विषय-वस्तु और सामाजिक टिप्पणी (Themes)
भले ही यह एक सुपरहीरो कॉमिक्स है, लेकिन ‘ऑक्टोपस’ अपने समय के कई सामाजिक मुद्दों को भी छूती है और उन्हें कहानी के साथ अच्छे से जोड़ती है।
कहानी साफ तौर पर दिखाती है कि कैसे पुलिस विभाग की छवि जनता की नजरों में गिर चुकी है और अब उस छवि को सुधारने के लिए इंस्पेक्टर स्टील जैसे एक ‘मशीन’ को आगे आना पड़ रहा है। कमिश्नर का यह कहना कि “पब्लिक की नजर में गिरी पुलिस की छवि में भी सुधार होता जा रहा है,” एक कड़वे लेकिन सच्चे हालात को सामने रखता है।
स्टील के पास जबरदस्त ताकत है, फिर भी वह हर कार्रवाई कानून के दायरे में रहकर ही करता है और बिना वारंट कुछ नहीं करता। यह साफ संदेश देता है कि कानून सबसे ऊपर है, फिर चाहे आपके पास सुपरपावर ही क्यों न हों। पूरी इंस्पेक्टर स्टील सीरीज का सबसे बड़ा और अहम विषय है—अमर बनाम स्टील, यानी मशीन के अंदर फंसा एक इंसान। सलमा का शक इस बात को और गहरा कर देता है कि क्या स्टील सिर्फ एक रोबोट है या उसके अंदर अब भी इंस्पेक्टर अमर की भावनाएं और यादें जिंदा हैं।
कॉमिक्स का उत्तरार्ध (The Latter Half – Visual Analysis)
हालांकि कॉमिक्स के बाद के पन्ने (11 से 30) धुंधले हैं, फिर भी जो दृश्य साफ दिखाई देते हैं, उनसे यह समझ आ जाता है कि कहानी डॉकयार्ड पर पहुंचकर एक बड़े टकराव और युद्ध में बदल जाती है।
कंटेनरों के ऊंचे-ऊंचे ढेर और सुनसान पड़ा डॉकयार्ड एक खतरनाक और रोमांच से भरे एक्शन के लिए बेहतरीन माहौल बनाते हैं। ऑक्टोपस के गुर्गे और संभव है कि खुद ऑक्टोपस भी (या उसकी मशीनी भुजाएं) स्टील को काबू में करने की कोशिश करते हैं। जवाब में स्टील अपनी फौलादी ताकत का इस्तेमाल करके इन यांत्रिक भुजाओं और जालों को तोड़ता हुआ आगे बढ़ता है।
विजुअल्स से इशारा मिलता है कि अंत में भारी गोलीबारी और विस्फोट होते हैं। स्टील न सिर्फ चोरों और गुर्गों को रोकता है, बल्कि सलमा की जान भी बचाता है। इससे सलमा का शक और भी गहरा हो जाता है—या शायद थोड़ा कम, अगर स्टील अपनी भावनाओं को छुपाने में कामयाब हो जाता है। खलनायक ऑक्टोपस का पकड़ा जाना या बच निकलना, इस हिस्से के रोमांच को चरम पर पहुंचा देता है।
समीक्षात्मक निष्कर्ष (Critical Verdict)
“ऑक्टोपस” इंस्पेक्टर स्टील सीरीज का एक मजबूत और यादगार अंक है। यह सिर्फ मार-धाड़ वाली कॉमिक नहीं है, बल्कि इसमें जासूसी तत्व और भावनात्मक गहराई का अच्छा तालमेल देखने को मिलता है।
सकारात्मक पक्ष (Pros):
कहानी की गति: कहानी कहीं भी ढीली नहीं पड़ती। शुरुआत से लेकर क्लाइमेक्स तक इसकी रफ्तार बनी रहती है।
कैरेक्टर डेवलपमेंट: सलमा और स्टील के बीच का रिश्ता इस कॉमिक को खास बना देता है। यह सिर्फ विलेन को हराने की कहानी नहीं है, बल्कि एक खोई हुई पहचान और पुराने साथी (अमर) को खोजने की कोशिश भी है।
कला: नरेश कुमार का चित्रांकन हमेशा की तरह शानदार और प्रभावशाली है।
नकारात्मक पक्ष (Cons):
विलेन ऑक्टोपस का बदले वाला मकसद थोड़ा घिसा-पिटा लग सकता है, लेकिन कॉमिक्स के जॉनर को देखते हुए यह बात ज्यादा खलती नहीं है।
कहानी का अंत, जो धुंधले पन्नों की वजह से पूरी तरह साफ नहीं दिखता, शायद सीधे एक्शन पर ज्यादा टिक जाता है और शुरुआती जासूसी व रहस्य वाले पहलुओं पर थोड़ा भारी पड़ता है।
अंतिम निर्णय (Rating)
अगर आप 90 के दशक की भारतीय कॉमिक्स के फैन हैं, तो “ऑक्टोपस” आपके लिए एक मस्ट रीड है। यह इंस्पेक्टर स्टील को उसके बेहतरीन रूप में पेश करती है—एक निडर कानून का रखवाला, जो बाहर से लोहे का है लेकिन अंदर से इंसानियत यानी ‘सोने’ का बना हुआ है। सलमा और स्टील की जोड़ी इसे बाकी सोलो कॉमिक्स से अलग और बेहतर बनाती है।
रेटिंग: ⭐⭐⭐⭐ (4/5)
अनुशंसित: एक्शन पसंद करने वालों और राज कॉमिक्स के पुराने पाठकों के लिए।
यह कॉमिक्स याद दिलाती है कि इंस्पेक्टर स्टील को राजनगर का ‘लौह रक्षक’ क्यों कहा जाता है। कानून के प्रति उसका सम्मान और अपराधियों के दिल में उसका खौफ—दोनों ही इस कहानी में पूरी मजबूती से उभरकर सामने आते हैं।
