90 के दशक के समय में ‘भोकाल’ एक ऐसा किरदार बनकर सामने आया जिसने तलवारबाजी, वीरता और अलौकिक शक्तियों के मेल से अपनी अलग पहचान बनाई। ‘मर गया शूतान’ (अंक संख्या 755) भोकाल सीरीज़ की एक बेहद अहम और भावनात्मक कहानी है। यह कॉमिक सिर्फ एक योद्धा की बहादुरी नहीं दिखाती, बल्कि दोस्ती, बदले की भावना और गहरे दुख की परतों को भी सामने लाती है। संजय गुप्ता द्वारा लिखी गई और कदम स्टूडियो द्वारा चित्रित यह कहानी 1997 में ‘डबल एक्शन ईयर’ के दौरान प्रकाशित हुई थी, और आज भी फैंस के बीच इसे एक ‘कल्ट क्लासिक’ माना जाता है।
कथानक का विस्तार और विश्लेषण:
कहानी की शुरुआत एक बहुत ही दिल तोड़ने वाले दृश्य से होती है। भोकाल का सबसे करीबी दोस्त ‘शूतान’ (जो सम्मोहन का सम्राट है) चीता-मानवों के जाल में फँस जाता है। चीता-मानव जानते थे कि शूतान की आँखों में सम्मोहन की जबरदस्त शक्ति है, इसलिए वे एक मोटी खाल के थैले का इस्तेमाल करते हैं ताकि उसका सम्मोहन बेअसर हो जाए। इसके बाद वे उसे बेहद बेरहमी से मार डालते हैं।

जब इस घटना की खबर विकास नगर में महाबली भोकाल तक पहुँचती है, तो वह पूरी तरह टूट जाता है। यहाँ लेखक संजय गुप्ता ने भोकाल के इंसानी पहलू को बहुत अच्छे से दिखाया है। भोकाल, जो बड़े-बड़े राक्षसों और योद्धाओं को आसानी से हरा देता है, अपने दोस्त की मौत की खबर से मानसिक रूप से बिखर जाता है। अभ्यास के दौरान वह अपने गुरु और साथियों पर भी काबू खोकर हमला करने लगता है। उसके दिल और दिमाग में बदले की आग इतनी तेज जल रही होती है कि उसे सिर्फ शूतान के कातिलों का अंत ही नजर आता है।
कहानी में एक बड़ा मोड़ तब आता है जब एक आदिवासी संदेशवाहक भोकाल को बताता है कि यह घटना एक साल पुरानी है। वह खुद घायल हो गया था, इसलिए समय पर भोकाल तक नहीं पहुँच सका। यह सुनते ही भोकाल बिना देर किए उस जगह की ओर निकल पड़ता है जहाँ शूतान की हत्या हुई थी। इस दौरान भोकाल की खोजी सोच और अपने परिवार (तूरीन, वेणु, लड़ाकी और नन्धा भोकाल) के लिए उसकी चिंता भी साफ दिखाई देती है। वह उस कुटिया तक पहुँचता है जहाँ उसके अपने रुके थे, लेकिन वहाँ उसे सिर्फ सन्नाटा और पुरानी यादें ही मिलती हैं।
चीता-नगरी और युद्ध का रोमांच:

कॉमिक का दूसरा हिस्सा ‘चीता-नगरी’ के शानदार लेकिन डरावने दृश्यों और जबरदस्त युद्ध से भरा हुआ है। ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों पर बसी यह नगरी आदमखोर चीता-मानवों का गढ़ है। भोकाल का वहाँ पहुँचना और एक-एक कर रक्षकों को हराना पाठकों के भीतर रोमांच भर देता है। यहाँ ‘चीतारक्ष’ नाम के एक विशाल नीले चीते के साथ भोकाल का मुकाबला कहानी के सबसे दमदार एक्शन सीन में से एक है। जब भोकाल की तलवार उसकी गर्दन काटने में नाकाम रहती है, तो वह अपनी ताकत और समझदारी का इस्तेमाल कर उस दैत्य को पराजित करता है।
नगरी के अंदर भोकाल को कई तरह के मायावी खतरे झेलने पड़ते हैं। चीता-मानव सिर्फ ताकतवर ही नहीं थे, बल्कि सम्मोहन और भ्रम पैदा करने में भी माहिर थे। भोकाल का एक विशाल अजगर द्वारा जकड़े जाने का भ्रम और फिर अपनी मजबूत इच्छाशक्ति से उससे बाहर निकलना यह साबित करता है कि भोकाल सिर्फ हथियारों से नहीं, बल्कि दिमाग से भी लड़ता है।
क्लाइमेक्स और भावनात्मक अंत:
कहानी का चरम बिंदु चीता-देव के मंदिर में आता है। यहाँ भोकाल यह देखकर हैरान रह जाता है कि शूतान अभी जिंदा है, लेकिन उसे बलि के लिए बाँधकर रखा गया है। चीता-देव, जो एक विशाल पत्थर की मूर्ति जैसी आकृति है, जागकर शूतान पर हमला करने बढ़ता है। भोकाल और इस दानव के बीच का युद्ध बेहद भव्य और यादगार है। जब आम हमले बेकार साबित होते हैं, तो भोकाल जलते हुए अग्नि-कुंड को उस दानव पर गिरा देता है, जिससे पूरा मंदिर आग की चपेट में आ जाता है।

आखिरी पन्नों में जो होता है, वह किसी भी पाठक की आँखें नम कर देता है। शूतान, जो भयानक यातनाओं के कारण अपनी आखिरी साँसें गिन रहा होता है, अपनी बची हुई सम्मोहन शक्ति का इस्तेमाल खुद को बचाने के लिए नहीं, बल्कि भोकाल को उन चीता-मानवों से बचाने के लिए करता है जिन्होंने उसे घेर लिया था। वह भोकाल की गोद में दम तोड़ देता है। अंतिम दृश्य में भोकाल को एक दिव्य दृश्य दिखता है, जहाँ उसकी बहन तूरीन (जो पहले ही मर चुकी थी) शूतान को अपने साथ ले जाती हुई नजर आती है। भोकाल का चीखना और अपनी बहन व दोस्त को पुकारना कहानी को बेहद भावुक अंत देता है।
चित्रांकन और कला पक्ष (Art Review):
कदम स्टूडियो का काम इस कॉमिक में अपने चरम पर नजर आता है। 90 के दशक की राज कॉमिक्स की जो खास पहचान थी, वह यहाँ पूरी तरह दिखती है। चीता-मानवों का डिजाइन, उनके शरीर की बनावट और चेहरों पर झलकती क्रूरता बहुत असरदार है। भोकाल की उभरी हुई मांसपेशियाँ और लड़ाई के दौरान उसके चेहरे के भाव—गुस्सा, दर्द और दृढ़ निश्चय—सब कुछ बहुत जीवंत लगता है।

रंगों का चुनाव भी शानदार है। चीता-नगरी के दृश्यों में पीले और नारंगी रंग वहाँ के गर्म और सूखे माहौल को महसूस कराते हैं, जबकि युद्ध के दृश्यों में लाल रंग का ज्यादा इस्तेमाल हिंसा और बदले की भावना को और गहरा बना देता है। पेज लेआउट ऐसा है कि हर पैनल में एक नई गति और ऊर्जा महसूस होती है।
पात्र चित्रण (Character Analysis):
भोकाल: इस अंक में भोकाल एक सुपरहीरो से ज्यादा एक दुखी दोस्त के रूप में सामने आता है। उसकी कमजोरी उसकी भावनाएँ हैं, लेकिन यही भावनाएँ उसे असंभव काम करने की ताकत भी देती हैं।

शूतान: शूतान का अंत भले ही दुखद हो, लेकिन उसकी दोस्ती मिसाल बन जाती है। मरते वक्त भी वह अपनी शक्ति खुद को बचाने के बजाय भोकाल की रक्षा के लिए इस्तेमाल करता है।
खलनायक (चीता-मानव): इन्हें सिर्फ साधारण दुश्मन नहीं, बल्कि एक संगठित और निर्दयी सभ्यता के रूप में दिखाया गया है, जो इन्हें और भी डरावना बनाता है।
समीक्षात्मक टिप्पणी:
‘मर गया शूतान’ सिर्फ मार-धाड़ से भरी कहानी नहीं है। यह ‘लॉस’ यानी अपनों को खोने के दर्द के मनोविज्ञान पर आधारित है। यह दिखाती है कि कितना भी बड़ा योद्धा क्यों न हो, वह अपने करीबियों को खोने के दर्द से नहीं बच सकता। कहानी की गति तेज है और कहीं भी बोरियत महसूस नहीं होती। संवाद कम हैं, लेकिन सीधे दिल पर असर करते हैं।

हाँ, कुछ पाठकों को यह लग सकता है कि शूतान जैसे ताकतवर किरदार का अंत इतनी जल्दी नहीं होना चाहिए था, लेकिन राज कॉमिक्स की खासियत ही रही है कि वे कहानियों में बड़े और साहसी फैसले लेते थे। शूतान की मौत ने भोकाल के जीवन में एक ऐसा खालीपन छोड़ दिया, जिसने आगे की कहानियों को और ज्यादा गंभीर और गहराई वाला बना दिया।
निष्कर्ष:
कुल मिलाकर, ‘मर गया शूतान’ राज कॉमिक्स के ताज का एक चमकता हुआ नगीना है। यह उस दौर की याद दिलाता है जब कॉमिक्स सिर्फ टाइमपास नहीं, बल्कि भावनाओं का पूरा समंदर हुआ करती थीं। अगर आप भोकाल के फैन हैं, तो यह अंक आपके कलेक्शन में जरूर होना चाहिए। यह कहानी वीरता और बलिदान की ऐसी दास्तान है, जो खत्म होने के बाद भी लंबे समय तक दिमाग में गूंजती रहती है।
रेटिंग: 4.5/5 (कहानी, कला और भावनात्मक असर के लिए)
यह समीक्षा इस बात को साबित करती है कि भोकाल आज भी भारतीय पाठकों के दिलों में एक ‘लीजेंड’ क्यों है। ‘मर गया शूतान’ उस लीजेंड की यात्रा का एक बेहद अंधेरा, लेकिन उतना ही जरूरी अध्याय है।
