भारतीय कॉमिक्स की दुनिया में ‘राज कॉमिक्स’ वो नाम है जिसने कई पीढ़ियों को अनगिनत हीरो और यादगार कहानियाँ दी हैं। इन्हीं हीरो में नागराज का नाम हमेशा सबसे ऊपर आता है। अपनी अलौकिक शक्तियों, इच्छाधारी सर्पों की सेना और गहरे सोचने वाले स्वभाव के साथ, नागराज सिर्फ एक सुपरहीरो नहीं बल्कि एक पूरी विरासत है। ‘भानुमती का पिटारा’ (संख्या 660) इसी विरासत का एक चमकता हुआ ‘विशेषांक’ है, जो अपने नाम को सिर्फ एक मुहावरा नहीं बल्कि कहानी का असली और अहम हिस्सा बना देता है।
जॉली सिन्हा की लिखी कहानी, अनुपम सिन्हा की कमाल की कलाकारी, विनोद कुमार की शानदार इंकिंग और सुनील पाण्डेय के रंगों व सुलेख से सजी ये कॉमिक्स उस दौर की है जब राज कॉमिक्स अपनी क्रिएटिविटी के टॉप पर थी। ये सिर्फ एक कॉमिक्स नहीं बल्कि साइंस, मिस्ट्री, ह्यूमर, फैमिली ड्रामा और धमाकेदार एक्शन का ऐसा कॉम्बो है जो शुरू से लेकर आखिर तक बांधे रखता है। ‘भानुमती का पिटारा’ पढ़ना सच में ऐसे है जैसे कोई पुराना संदूक खोलो और उसमें से एक के बाद एक हैरान करने वाली, रोमांचक चीज़ें निकलती चली जाएँ। ये समीक्षा इस शानदार विशेषांक के अलग-अलग पहलुओं को गहराई से समझने की कोशिश है।
जब कई धागे मिलकर एक ज़बरदस्त कहानी बुनते हैं
‘भानुमती का पिटारा’ की सबसे बड़ी खासियत इसका थोड़ा जटिल लेकिन बहुत ही मज़ेदार और सटीक कथानक है। कहानी एक सीधी लाइन में नहीं चलती, बल्कि शुरुआत में ही तीन अलग-अलग रास्तों पर जाती है, जो आगे जाकर बड़ी खूबसूरती से एक-दूसरे से जुड़ जाते हैं।
पहला ट्रैक एक रहस्यमयी किरदार ‘मुरकारा’ से शुरू होता है। रेगिस्तान के बीच, मुरकारा और उसके आदमी एक ‘दबी हुई नगरी’ और उसके खजाने की तलाश में हैं। बारह बार असफल होने के बाद, मुरकारा का सब्र टूट जाता है। वो अपने आदमियों को डांटता है और बोलता है कि अब वो अंदाज़ों पर नहीं, बल्कि ‘आधुनिक वैज्ञानिक तरीकों’ पर भरोसा करेगा। कहानी की शुरुआत में ही ये सीन हमें असली टकराव दिखा देता है—पुराने रहस्यों की दुनिया बनाम नए वैज्ञानिक तरीके। मुरकारा पहले तो एक लालची खजाना खोजने वाला लगता है, लेकिन जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, उसके किरदार की कई परतें खुलती जाती हैं।

दूसरा ट्रैक हमें ‘वेदाचार्य धाम’ नाम के एक मॉडर्न स्कूल में ले जाता है। यहाँ हम मिलते हैं ‘छोटा नागराज गैंग’ से—सलिल, भावना और उनके कंप्यूटर टीचर ‘गुरु सिल्लू’ से, जो खुद को ‘साइब्रो’ कहता है। ये हिस्सा कहानी में मज़ेदार और हल्के पलों की ताज़गी लाता है। कहानी में ट्विस्ट तब आता है जब एक क्लासिक ‘बैग स्वैप’ (यानि बैग की अदला-बदली) हो जाती है। सलिल का बैग उसके पिता, मशहूर पुरातत्ववेत्ता प्रोफेसर पी.पी. टकसाल के बैग से बदल जाता है। अब सलिल के स्कूल बैग में जहाँ लंच के छोले रखे थे, वहीं प्रोफेसर टकसाल के बैग में ‘बीस हज़ार साल पुरानी ममी के अवशेष’ — यानी खोपड़ी और हड्डियाँ — रखी हैं!
जब सलिल ये बदबूदार बैग स्कूल लेकर आता है, तो पूरी क्लास का माहौल बिगड़ जाता है — बच्चे एक-एक करके बेहोश होने लगते हैं! ‘छोटा नागराज’ गैंग जैसे ही बैग खोलता है, उनके होश उड़ जाते हैं। उन्हें लगता है कि कहीं ये किसी मर्डर का केस तो नहीं! लेकिन जब खोपड़ी के साथ प्रोफेसर टकसाल का विजिटिंग कार्ड निकलता है, तो उन्हें कुछ गड़बड़ ज़रूर लगती है। यहीं से बच्चों की जासूसी शुरू होती है।
गुरु सिल्लू यानी ‘साइब्रो’ अपनी टेक्निकल स्किल दिखाते हुए इंटरनेट पर रिसर्च करता है और पता लगाता है कि प्रोफेसर टकसाल का काम एक प्राचीन रहस्यमयी चीज़ — ‘भानुमती का पिटारा’ — से जुड़ा हुआ है। इसके बाद ये छोटा नागराज गैंग इस रहस्य को सुलझाने और बैग को सही सलामत वापस करने के मिशन पर निकल पड़ता है।
तीसरा ट्रैक प्रोफेसर टकसाल और उनके परिवार की कहानी दिखाता है। प्रोफेसर अपने काम में इतने डूबे रहते हैं कि अपने परिवार को वक्त ही नहीं दे पाते। उनका बेटा ललित टकसाल इस वजह से अपने पिता से नफरत करने लगता है और धीरे-धीरे अपराध की राह पर चला जाता है। दूसरी ओर, जब प्रोफेसर गलती से सलिल का स्कूल बैग लेकर अपने ऑफिस पहुँचते हैं, तो वहाँ उनके हेड ऑफ डिपार्टमेंट के सामने उनकी खूब खिल्ली उड़ती है। यह पारिवारिक ड्रामा कहानी में एक भावनात्मक गहराई जोड़ता है और आगे चलकर यही हिस्सा हमें एक अहम खलनायक से भी मिलवाता है।

आख़िरकार ये तीनों ट्रैक ‘मदनगढ़’ के पुरातात्विक स्थल पर आकर मिलते हैं। प्रोफेसर टकसाल और उनकी टीम ‘भानुमती का पिटारा’ की खोज में लगी है। छोटा नागराज गैंग भी वहीं पहुँचता है। उधर मुरकारा अपने वैज्ञानिक उपकरणों के साथ वहाँ आ धमकता है। और तभी नागराज भी मैदान में उतरता है — क्योंकि उसे इस प्राचीन ऊर्जा स्रोत से उठते खतरे का अंदाज़ा हो जाता है। कहानी का असली धमाका तब होता है जब ‘पिटारा’ खुलता है… और उसके अंदर छिपे रहस्य एक-एक करके बाहर आने लगते हैं।
चरित्र-चित्रण: कहानी को कंधों पर उठाते किरदार
‘भानुमती का पिटारा’ सिर्फ नागराज की कहानी नहीं है, बल्कि ये एक ‘एन्सेम्बल कास्ट’ वाली कहानी है, जहाँ हर किरदार की अपनी खास अहमियत है।
नागराज: हमेशा की तरह नागराज कहानी का सबसे मज़बूत स्तंभ है। वो गंभीर है, शक्तिशाली है और अपनी ज़िम्मेदारी को अच्छे से समझता है। इस कॉमिक्स में नागराज दो रूपों में दिखता है — एक जासूस की तरह, जो रहस्य सुलझा रहा है, और एक योद्धा की तरह, जो खतरों से लड़ रहा है। वो मुरकारा की पहेली को समझने की कोशिश करता है, ‘पिटारा’ के रहस्यों को सुलझाता है, और उससे निकले खतरों से भिड़ता है।
हालांकि कहानी का एक बड़ा हिस्सा बच्चों और बाकी किरदारों पर फोकस करता है, जिससे नागराज थोड़ा वक्त के लिए साइडलाइन हो जाता है, लेकिन जब भी वो फ्रेम में आता है — पूरी कहानी का माहौल बदल जाता है। उसका इफेक्ट वैसा ही रहता है जैसा हमेशा — दमदार और यादगार।

मुरकारा:
ये कॉमिक्स का सबसे दिलचस्प और रहस्यमय किरदार है। शुरुआत में तो मुरकारा एक खलनायक के रूप में सामने आता है, लेकिन धीरे-धीरे पता चलता है कि वो दरअसल उस ‘पिटारा’ का प्राचीन रक्षक है। वो कोई आम इंसान नहीं, बल्कि एक ऐसी विरासत को संभाले हुए है जिसे वो गलत हाथों में जाने से किसी भी कीमत पर रोकना चाहता है — चाहे इसके लिए उसे नागराज से ही क्यों न भिड़ना पड़े। मुरकारा का किरदार एक ‘एंटी-हीरो’ जैसा है, जो पूरी कहानी को एक अलग और रोमांचक दिशा देता है।
‘छोटा नागराज’ गैंग (सलिल, साइब्रो और बाकी):
ये गैंग कहानी का असली दिल है। ये बच्चे न सिर्फ मज़ेदार पल लाते हैं बल्कि कहानी को आगे बढ़ाने में भी बहुत अहम रोल निभाते हैं। सलिल, जो प्रोफेसर टकसाल का बेटा है, अपने पिता की लापरवाही और दूरी के बावजूद उनसे बेहद प्यार करता है और उनकी मदद करना चाहता है।
‘साइब्रो’ यानी गुरु सिल्लू एक टेक्नोलॉजी एक्सपर्ट है — उसकी समझदारी, गैजेट्स और फटाफट सोचने की आदत कहानी को और मजेदार बना देती है। इन बच्चों की मौजूदगी नागराज की दुनिया को हल्का, ज़्यादा जीवंत और असली एहसास देती है।
प्रोफेसर पी.पी. टकसाल और ललित टकसाल:
ये पिता-पुत्र की जोड़ी कहानी का सबसे भावनात्मक और नाटकीय हिस्सा है। प्रोफेसर टकसाल एक क्लासिक किस्म के जुनूनी वैज्ञानिक हैं — जो अपने काम में इतने खो जाते हैं कि परिवार को नज़रअंदाज़ कर देते हैं। यही गलती उनके बड़े बेटे, ललित टकसाल, को कहानी का असली विलेन बना देती है।
ललित, जो अपने पिता की उपेक्षा से अंदर तक टूट चुका है, अब बदला लेने के लिए ‘पिटारा’ की शक्तियों का इस्तेमाल बुरे कामों में करना चाहता है। यही पारिवारिक टकराव कहानी को एक गहरी और परिपक्व दिशा देता है।
कला और चित्रण: अनुपम सिन्हा का जादू
अगर जॉली सिन्हा की कहानी इस कॉमिक्स की रीढ़ है, तो अनुपम सिन्हा की आर्ट उसकी आत्मा है। नागराज का नाम सुनते ही सबसे पहले अनुपम सिन्हा का चेहरा याद आता है — और इस कॉमिक्स में उनका काम वाकई उनके बेस्ट वर्क्स में से एक है।

पैनल डिज़ाइन:
अनुपम सिन्हा के पैनल्स इतने डायनामिक और ज़िंदा लगते हैं कि जैसे कोई एनिमेटेड फिल्म चल रही हो। एक्शन सीन इतने फ्लो में हैं कि रीडर खुद को उसी सीन में महसूस करता है। नागराज का सर्प-जाल फेंकना हो या ‘पिटारा’ से निकले ‘बिल्लाहा’ (बिना मांस के कंकाल जैसे डरावने जीव) का हमला — हर सीन को इतनी बारीकी से बनाया गया है कि आँखें थम जाती हैं।
किरदारों के एक्सप्रेशन:
अनुपम सिन्हा की असली ताकत सिर्फ एक्शन नहीं, बल्कि चेहरे के भावों को पकड़ने में है। मुरकारा का गुस्सा, बच्चों का डर और उत्साह, प्रोफेसर टकसाल की हैरानी या ललित की नफरत — हर इमोशन उनके चित्रों में साफ झलकता है। खासकर ‘बैग स्वैप’ वाले सीन में तो किरदारों के चेहरे के हावभाव कहानी के हास्य को दोगुना कर देते हैं।
रंग और इंकिंग:
विनोद कुमार की इंकिंग ने अनुपम सिन्हा की ड्रॉइंग को और भी शार्प और आकर्षक बना दिया है। वहीं सुनील पाण्डेय के रंगों ने कहानी के मूड को एकदम सही टोन दी है — रेगिस्तान के सीन में पीले-भूरे शेड्स, स्कूल वाले सीन में चमकीले रंग और जब ‘पिटारा’ खुलता है तो रहस्यमयी और डरावने रंगों का शानदार इस्तेमाल। सब कुछ मिलकर इस कॉमिक्स को विजुअली लाजवाब बना देता है।
थीम और विश्लेषण: सिर्फ एक कॉमिक्स से बढ़कर
‘भानुमती का पिटारा’ सिर्फ एक्शन और एडवेंचर से भरी कॉमिक्स नहीं है — ये उससे कहीं ज़्यादा है। इसमें कई गहरे और सोचने पर मजबूर करने वाले विषय हैं।
प्राचीन बनाम आधुनिक:
कहानी का सबसे बड़ा थीम है — पुराने ज्ञान और नए विज्ञान का टकराव और उनका मेल। ‘पिटारा’ कोई जादुई डिब्बा नहीं, बल्कि असल में एक ‘आयाम-द्वार’ (डायमेंशनल पोर्टल) या किसी बेहद उन्नत प्राचीन सभ्यता का ‘स्टोरेज डिवाइस’ है।
मुरकारा इसे बचाने के लिए पुराने तरीकों और परंपराओं पर भरोसा करता है, जबकि साइब्रो और नागराज इसे समझने की कोशिश करते हैं आधुनिक साइंस और तर्क के ज़रिए। ये कॉम्बिनेशन दिखाता है कि असली ताकत तब आती है जब पुराना ज्ञान और नया विज्ञान साथ चलते हैं।

जिम्मेदारी और उपेक्षा:
प्रोफेसर टकसाल का किरदार हमें एक अहम बात सिखाता है — कि अपने काम के प्रति जुनून अगर हद से ज़्यादा बढ़ जाए, तो वो ज़िंदगी के दूसरे रिश्तों को नुकसान पहुँचा सकता है।
उन्होंने अपनी रिसर्च और खोज में इतना खो दिया कि अपने परिवार को नज़रअंदाज़ कर दिया। नतीजा यह हुआ कि उनका बेटा ललित उनसे दूर हो गया और आखिरकार गलत राह पकड़ ली। ये हिस्सा सिर्फ कहानी नहीं, बल्कि हमारे समाज की एक सच्चाई भी दिखाता है — जहाँ कई बार लोग ‘काम के नाम पर’ अपने घर-परिवार से दूर हो जाते हैं।
ज्ञान का सही इस्तेमाल:
‘पिटारा’ सिर्फ रहस्यों का बॉक्स नहीं, बल्कि ज्ञान और शक्ति का प्रतीक है। प्रोफेसर टकसाल इसे ज्ञान की खोज के लिए चाहते हैं, ललित इसे अपनी ताकत और बदले के लिए, जबकि मुरकारा इसे सुरक्षित और संतुलित रखना चाहता है।
नागराज का रोल यहाँ सबसे अहम है — वो इस बात को सुनिश्चित करता है कि ये शक्ति मानवता की भलाई के लिए ही इस्तेमाल हो, न कि उसके विनाश के लिए। ये बात कॉमिक्स के मूल संदेश को बहुत खूबसूरती से दिखाती है — “शक्ति का सही उपयोग ही उसकी असली कीमत है।”
निष्कर्ष: एक अवश्य पठनीय ‘विशेषांक’
‘नागराज – भानुमती का पिटारा’ राज कॉमिक्स के उस सुनहरे दौर की याद दिलाता है जब उनकी कहानियाँ सिर्फ फाइट और एक्शन तक सीमित नहीं थीं, बल्कि उनमें गहराई, भावना और दिमाग दोनों का बेहतरीन संतुलन होता था।
ये कॉमिक्स एक साथ हंसाती भी है, सोचने पर मजबूर भी करती है, और दिल को छू जाती है। इसमें साइंस, मिस्ट्री, हास्य और फैमिली ड्रामा सब कुछ है — वो भी एक दमदार नागराज स्टाइल में!
जॉली सिन्हा की कहानी आपको एक पल के लिए भी बोर नहीं होने देती, और अनुपम सिन्हा की आर्ट आपको सीधा उस रोमांचक दुनिया में ले जाती है जहाँ हर पैनल में नई सरप्राइज़ छिपी होती है।
‘भानुमती का पिटारा’ उन कॉमिक्स में से है जिन्हें आप एक बार पढ़कर रख नहीं सकते — ये बार-बार पढ़ने का मन करता है।
ये सिर्फ नागराज के फैंस के लिए नहीं, बल्कि हर अच्छे कॉमिक्स प्रेमी के लिए एक “मस्ट–रीड” (जरूर पढ़ने लायक) इश्यू है।
ये कहानी फिर से साबित करती है कि नागराज को ‘किंग ऑफ कॉमिक्स’ कहा जाता है तो वो बिलकुल सही है।
