राज कॉमिक्स ने भारतीय पॉप कल्चर में जो खास जगह बनाई है, वह सच में यादगार है। खासकर नागराज, जो सिर्फ राज कॉमिक्स का फ्लैगशिप कैरेक्टर ही नहीं, बल्कि भारतीय सुपरहीरो की पहचान भी बन चुका है। अनुपम सिन्हा और संजय गुप्ता की जोड़ी ने नागराज को जिस ऊँचाई तक पहुँचाया, उसका एक शानदार उदाहरण हमें “कालचक्र” (Kaal Chakra) में देखने को मिलता है। यह कॉमिक्स सिर्फ मार-धाड़ और एक्शन की कहानी नहीं है, बल्कि यह 90 के दशक के आखिर और 2000 की शुरुआत के सामाजिक और राजनीतिक माहौल पर भी सीधा वार करती है, खास तौर पर आतंकवाद जैसी गंभीर समस्या पर। “कालचक्र” एक ऐसा विशेषांक है, जो नागराज की शारीरिक ताकत के साथ-साथ उसकी मानसिक मजबूती और नैतिक सोच की भी परीक्षा लेता है।
कहानी का आधार और नागराज की प्रतिज्ञा
कहानी की शुरुआत एक गहरे दार्शनिक और नैतिक सवाल से होती है। कॉमिक्स के पहले ही पन्ने पर हम नागराज को एक बिल्कुल अलग और असामान्य हालात में देखते हैं। वह ब्रह्मांड के अमर संरक्षक से सलाह ले रहा होता है। यहाँ नागराज एक तरह का प्रयोग करना चाहता है। वह यह जानना चाहता है कि अगर वह अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करना बंद कर दे, तो क्या इंसानी दुनिया अपनी समस्याओं को खुद सुलझा पाएगी? इसी सोच के तहत नागराज खुद को ‘सम्मोहनादेश’ देता है कि वह एक हफ्ते तक अपनी किसी भी शक्ति का प्रयोग नहीं करेगा। यह एक बहुत ही मजबूत प्लॉट पॉइंट है, जो पाठक को सोचने पर मजबूर करता है कि क्या सुपरहीरो की असली ताकत उसकी सुपरपावर होती है या उसकी इच्छाशक्ति।

लेकिन यह प्रयोग ज्यादा समय तक नहीं चल पाता। बहुत जल्दी यह साफ हो जाता है कि बुराई के खिलाफ चुप रहना या कुछ न करना भी एक तरह का अपराध है। संरक्षक नागराज को पहले ही चेतावनी देता है कि वह जुल्म होते देखकर खुद को रोक नहीं पाएगा, और यही चेतावनी आगे चलकर पूरी कहानी की नींव बन जाती है।
सामाजिक संदर्भ: कश्मीर और मीडिया की भूमिका
इस कॉमिक्स की सबसे बड़ी खासियत इसका यथार्थ से जुड़ा सामाजिक संदर्भ है। कहानी का मुख्य केंद्र ‘भारती टॉवर’ है, जहाँ से ‘भारती न्यूज़ चैनल’ का प्रसारण होता है। यहाँ भारती का किरदार एक निडर और बेखौफ पत्रकार के रूप में सामने आता है, जो उस समय के कश्मीर से जुड़े ज्वलंत मुद्दों को खुलकर उठा रही है।
कहानी में दिखाया गया है कि शाम का समय लोगों के लिए खबरें देखने का समय होता है और ‘भारती इन्वेस्टिगेट्स’ नाम का कार्यक्रम बेहद लोकप्रिय है। लेखक यहाँ बहुत ही बारीकी से कश्मीर समस्या और आतंकवाद के झूठे प्रचार को दिखाते हैं। भारती अपने शो में एक कश्मीरी बुजुर्ग ‘बाबा मुर्शिद’ का इंटरव्यू लेती है, जो बताता है कि किस तरह आतंकवादियों ने आम कश्मीरियों को धोखा दिया। पहले वे खुद को आज़ादी का सिपाही बताते थे, लेकिन अब वही लोग आम जनता पर ज़ुल्म कर रहे हैं और लड़कों से जबरन बंदूकें चलवा रहे हैं।

यह पूरा चित्रण राज कॉमिक्स की परिपक्व सोच को साफ दिखाता है। यहाँ केवल काल्पनिक विलेन नहीं गढ़े गए हैं, बल्कि समाज के असली राक्षस यानी आतंकवाद को सीधे सुपरहीरो के सामने खड़ा किया गया है। आतंकवादी इस बात से परेशान हो जाते हैं कि भारती के कार्यक्रम ने आम कश्मीरी जनता को उनसे दूर कर दिया है, इसलिए वे उसे खत्म करने के लिए एक ‘शहीदी दस्ता’ यानी आत्मघाती हमलावर भेजते हैं।
पात्र विश्लेषण: भारती और पहलेजा का विरोधाभास
कहानी में दो अहम मानवीय किरदार हैं, जो दो बिल्कुल अलग सोच और विचारधाराओं का प्रतिनिधित्व करते हैं।
भारती साहस और सच्चाई की मिसाल है। उसे ‘लाम-ए-कयामत’ जैसी धमकियाँ मिलती हैं, लेकिन वह डरती नहीं है। वह साफ शब्दों में कहती है कि खतरे के डर से काम करना बंद नहीं किया जा सकता। वह अपने दफ्तर में ‘फेसलेस’ की ड्रेस रखती है, जो यह दिखाता है कि ज़रूरत पड़ने पर वह खुद भी अन्याय के खिलाफ खड़ी होने के लिए तैयार है।
मिस्टर पहलेजा इस सोच के बिल्कुल उलट है। वह पूँजीवाद और डर का मिला-जुला रूप है। वह भारती कम्युनिकेशंस में 51% का पार्टनर है और उसे भारती की जान से ज़्यादा कंपनी को होने वाले आर्थिक नुकसान की चिंता रहती है। जैसे ही हमला होता है, उसका डरपोक स्वभाव सामने आ जाता है। वह भारती को वसीयत बनाने की सलाह देता है और हमला शुरू होते ही खुद छुपने की कोशिश करता है।

इन दोनों किरदारों के बीच का टकराव कहानी में एक मजबूत मानवीय ड्रामा जोड़ता है। पहलेजा का यह कहना कि “बात पैसे की है”, उस कड़वी सच्चाई को सामने लाता है जहाँ कारोबार और मुनाफ़ा इंसानियत और नैतिकता पर हावी हो जाते हैं।
एक्शन और नागराज का हस्तक्षेप
कहानी में असली एक्शन की शुरुआत तब होती है, जब आतंकवादी भारती टॉवर में घुस जाते हैं। यहाँ अनुपम सिन्हा की ड्रॉइंग और जॉली सिन्हा की कहानी दोनों मिलकर शानदार असर पैदा करती हैं। आतंकवादी बिना सोचे-समझे गोलियां चलाने लगते हैं और तभी नागराज की एंट्री होती है।
नागराज का पहला एक्शन सीन उसकी ताकत से ज्यादा उसकी समझ और सम्मोहन शक्ति को दिखाता है। वह आतंकवादियों से सीधे भिड़ने के बजाय उनके दिमाग से खेलता है और उन्हें भ्रम में डाल देता है। वह उन्हें चेतावनी देता है कि तीन सेकंड के अंदर हथियार डाल दें। जब आतंकवादी अपनी बंदूकों की ताकत गिनाने लगते हैं और कहते हैं कि उनके पास ‘एंटी टैंक’ ग्रेनेड तक हैं, तब नागराज अपनी खास शक्ति ‘नागफनी’ या सम्मोहन का इस्तेमाल करता है।
यह दृश्य देखने में बेहद मजेदार बन पड़ता है। आतंकवादियों को लगता है कि उनकी बंदूकें पानी की पिचकारी बन गई हैं और वे खुद छोटे बच्चे बन चुके हैं, जिन्हें उनकी दादियों ने खूंटे से बांध रखा है। यह सीन नागराज की उस छवि को और मजबूत करता है कि वह सिर्फ ताकत से नहीं, बल्कि अपराधियों के दिमाग के साथ खेलकर भी लड़ता है। हालाँकि यह भ्रम कुछ समय के लिए ही रहता है, क्योंकि नागराज जानता है कि अगर वह सीधा हमला करता, तो भारी विस्फोटकों की वजह से पूरी इमारत और कई निर्दोष लोगों की जान खतरे में पड़ सकती थी।
लिफ्ट का दृश्य: तनाव और शारीरिक क्षमता
कॉमिक्स का सबसे रोमांचक हिस्सा वह है, जब भारती लिफ्ट में होती है और अचानक लिफ्ट के तार टूट जाते हैं या काट दिए जाते हैं। नागराज को ध्वनि के कंपन से तुरंत पता चल जाता है कि लिफ्ट बहुत तेजी से नीचे गिर रही है।

यहाँ चित्रकार ने गति और तनाव को कागज पर बेहद शानदार तरीके से उतारा है। गिरती हुई लिफ्ट की वजह से उसका वजन कई गुना बढ़ चुका होता है। नागराज अपनी ‘नागरज्जी’ का इस्तेमाल करता है और लिफ्ट को थामने की कोशिश करता है। इस सीन में नागराज की शारीरिक ताकत की असली परीक्षा होती है। वह लिफ्ट को नीचे टकराने से रोकता है और दीवार पर दौड़ते हुए उसे कंट्रोल में लाने की कोशिश करता है। पूरा दृश्य किसी हॉलीवुड की बड़ी एक्शन फिल्म के स्टंट जैसा महसूस होता है।
लेकिन तभी कहानी में एक बड़ा ट्विस्ट आता है, जब लिफ्ट के टूटे हुए तार अपने आप जुड़ने लगते हैं और धीरे-धीरे एक नया और खतरनाक रूप लेने लगते हैं। यह साफ इशारा होता है कि अब कहानी का मुख्य विलेन सामने आने वाला है।
खलनायक: सुप्रीमो हेड और तकनीकी चुनौती
“कालचक्र” का मुख्य खलनायक कोई आम इंसान नहीं है। वह केबलों और तारों से बना एक यांत्रिक राक्षस है, जिसे ‘सुप्रीमो हेड’ (Supremo Head) कंट्रोल कर रहा है। जैसे ही नागराज लिफ्ट को बचाता है, वह खुद केबलों के जाल में फँस जाता है। यह विलेन नागराज की शक्तियों को अच्छी तरह समझता है और उनका तोड़ भी जानता है।
खलनायक नागराज से कहता है कि उसने उसके लिए एक खास जाल बुना है और ताना मारते हुए कहता है, “तेरा बदन तो टैंक से सैकड़ों गुना मुलायम है।” जब नागराज अपनी सर्प शक्तियों का इस्तेमाल करने की कोशिश करता है, तो उसे पता चलता है कि विलेन का शरीर केबलों से बना है, जिस पर न ज़हर असर करता है और न ही साँप। विलेन ने अपनी नाक में फिल्टर भी लगा रखे होते हैं, ताकि नागराज की जहरीली फुंकार का कोई असर न पड़े।

इसके बाद नागराज को एक मशीन में जकड़ दिया जाता है, जो उसकी शक्तियों को सोखने या उनका विश्लेषण करने का काम करती है। यह साफ दिखाता है कि अब नागराज के दुश्मन सिर्फ brute force यानी शारीरिक ताकत पर भरोसा नहीं कर रहे, बल्कि विज्ञान और तकनीक का सहारा लेकर उसे हराने की कोशिश कर रहे हैं। खलनायक नागराज से कहता है, “तुझे तोड़ने की जल्दी है… वैसे अब मैं तुझको लटकाऊंगा।”
कथानक में मोड़ और विज्ञान बनाम प्रकृति
नागराज मूल रूप से प्रकृति और जैविक शक्तियों का प्रतीक है, जैसे सांप, ज़हर और उसकी इच्छाधारी शक्ति। वहीं दूसरी तरफ “कालचक्र” का विलेन पूरी तरह से कृत्रिम और तकनीक पर आधारित है, जिसमें केबल्स, प्लास्टिक और रिमोट कंट्रोल जैसी चीज़ें शामिल हैं। यह टकराव असल में ‘प्रकृति बनाम मशीन’ की लड़ाई बन जाता है।
जब नागराज कैद हो जाता है, तो वह अपनी इच्छाधारी शक्ति का इस्तेमाल करके सूक्ष्म रूप लेने की कोशिश करता है, लेकिन विलेन इसके लिए भी पहले से तैयार रहता है। वह प्लास्टिक और इंसुलेटेड केबल्स का इस्तेमाल करता है, जिससे नागराज की शक्तियाँ सीमित हो जाती हैं। विलेन नागराज को बताता है कि उसने उसकी हर चाल का गहराई से अध्ययन किया है और उसे हराने के लिए पूरी तैयारी कर रखी है।

यहाँ नागराज की लड़ाई शारीरिक से ज्यादा मानसिक और बौद्धिक हो जाती है। अपनी कैद से बाहर निकलने के लिए उसे अपनी इच्छाधारी शक्ति और शारीरिक ताकत का सही संतुलन बनाना पड़ता है। जब वह आखिरकार मशीन को तोड़कर बाहर निकलता है, तो यह उसकी अडिग इच्छाशक्ति और हार न मानने वाले स्वभाव का साफ सबूत बन जाता है।
क्लाइमेक्स और अंतिम युद्ध
कहानी का क्लाइमेक्स सड़कों पर एक तेज़ रफ्तार पीछा और जबरदस्त लड़ाई में बदल जाता है। खलनायक एक खास तरह के वाहन का इस्तेमाल करता है, जो देखने में ट्रेन या टैंक जैसा लगता है, और अपने केबल-सूट की मदद से नागराज पर हमला करता है।
नागराज को जल्दी ही समझ आ जाता है कि यह यांत्रिक राक्षस किसी रिमोट कंट्रोल से चल रहा है और इसके पीछे एक इंसान है, जिसे ‘सुप्रीमो हेड’ कहा जाता है। इसके बाद नागराज अपनी रणनीति बदल देता है। वह सीधे रोबोट से लड़ने के बजाय उसके कंट्रोल सोर्स, यानी नियंत्रण कक्ष या रिमोट सिस्टम, को खोजने पर ध्यान देता है।
नागराज यह भी समझ जाता है कि आतंकवादी उसे उलझाकर अपना असली मकसद, यानी भारती की हत्या, पूरा करना चाहते हैं। आखिरकार नागराज उस रिमोट सिग्नल को ट्रैक कर लेता है। लड़ाई के दौरान वह अपनी फुंकार और साँपों का इस्तेमाल नहीं कर पाता, क्योंकि विलेन ने खुद को प्लास्टिक और शीशे से ढक रखा होता है। अंत में नागराज अपनी शारीरिक ताकत और ‘सर्प-मानसिक’ तरंगों की मदद से रिमोट कंट्रोल सिस्टम को बाधित करता है और उन लोगों तक पहुँच जाता है, जो इस पूरी मशीन को चला रहे थे।

एक दिलचस्प बात यह है कि मुख्य विलेन, जो मशीन को चला रहा होता है, यह मान बैठता है कि उसने नागराज को हरा दिया है। लेकिन नागराज हर बार की तरह फिर लौट आता है। आखिर में वह अपराधियों को पकड़ लेता है और भारती की जान बच जाती है। फिर भी कहानी के अंत में एक रहस्य बाकी रह जाता है—इन अपराधियों को भेजा किसने था? यही “कालचक्र” का असली रहस्य है, जो शायद अगली कड़ी या किसी बड़े षड्यंत्र की ओर इशारा करता है।
कला और प्रस्तुतिकरण (Art and Presentation)
अनुपम सिन्हा की कला हमेशा की तरह उच्च स्तर की है। मशीनरी, केबल्स और नागराज की शारीरिक बनावट पर बेहद बारीकी से काम किया गया है। खास तौर पर लिफ्ट के टूटने और केबलों के राक्षस में बदलने वाले दृश्य बहुत डरावने और प्रभावशाली लगते हैं। एक्शन की कोरियोग्राफी इतनी जीवंत है कि नागराज के दीवार पर दौड़ने या हवा में छलांग लगाने की रफ्तार को पाठक खुद महसूस कर सकते हैं।

पात्रों के चेहरे के भाव कहानी में भावनात्मक गहराई जोड़ते हैं—चाहे वह भारती की दृढ़ता हो, पहलेजा का डर हो, या आतंकवादियों के चेहरे पर दिखती क्रूरता। इसके बाद नागराज के सम्मोहन से आया बचपना भी उतनी ही साफ़ तरीके से दिखाया गया है। अंत में, सुनील पाण्डेय की कलरिंग कहानी के पूरे मूड को सेट करती है, जहाँ तनाव भरे दृश्यों के लिए गहरे रंगों का और नागराज की शक्तियों को उभारने के लिए चमकीले हरे रंग का इस्तेमाल किया गया है।
संवाद और लेखन
जॉली सिन्हा और मनीष गुप्ता (संपादक) ने संवादों को कसा हुआ और असरदार रखा है। ये संवाद न सिर्फ कहानी को आगे बढ़ाते हैं, बल्कि किरदारों के स्वभाव को भी साफ़ तौर पर सामने रखते हैं।
नागराज: “मौत इनकी नहीं, तुम लोगों की आएगी, अगर तुम लोगों ने तीन सेकंड के अंदर हथियार नहीं डाले तो!” — यह संवाद नागराज के आत्मविश्वास और दबदबे को दिखाता है।
आतंकवादी: “हम फियादीन दस्ते के सिपाही हैं। जान देने से नहीं डरते…” — यह उनकी कट्टर सोच और अंधविश्वास को दर्शाता है।
हास्य: गंभीर माहौल के बीच जब नागराज आतंकवादियों को बच्चों जैसा बना देता है, तो संवाद अचानक हल्के और मज़ेदार हो जाते हैं—“हमारी दादियों ने हमको खूंटे से भैंस की तरह बांध दिया है!”। यह कॉमिक रिलीफ कहानी के तनाव को कम करने का बेहतरीन काम करता है।
निष्कर्ष और अंतिम विचार
“कालचक्र” राज कॉमिक्स की उन चुनिंदा रचनाओं में से एक है, जो सुपरहीरो फिक्शन को रियल-वर्ल्ड थ्रिलर के साथ बेहद प्रभावशाली तरीके से जोड़ती है।
सकारात्मक पक्ष:
यह कॉमिक्स सिर्फ अच्छाई और बुराई की पारंपरिक लड़ाई तक सीमित नहीं रहती, बल्कि इसके कथानक में गहरी परतें हैं। कहानी आतंकवाद, मीडिया की भूमिका और नैतिकता जैसे अहम सवालों को भी छूती है। विलेन को एक समझदार और पूरी तैयारी के साथ सामने आने वाले प्रतिद्वंद्वी के रूप में दिखाया गया है, जिसने नागराज की कमजोरियों पर पूरा “होमवर्क” किया है। यही वजह है कि इस बार नागराज के सामने एक वास्तविक और कड़ी चुनौती खड़ी होती है।
इसके अलावा, कहानी की शुरुआत में नागराज का अपनी शक्तियों को छोड़ने का विचार उसे किसी सर्वशक्तिमान देवता की तरह नहीं, बल्कि एक संवेदनशील और मानवीय रक्षक के रूप में पेश करता है। यही मानवीय पक्ष पाठकों को उससे भावनात्मक रूप से जोड़ देता है और उसकी लड़ाई को और भी असरदार बना देता है।
नकारात्मक पक्ष (यदि कोई हो):
कहानी का अंत थोड़ा जल्दी सिमट जाता है। पाठक उम्मीद करते हैं कि मुख्य मास्टरमाइंड का बड़ा खुलासा होगा, लेकिन समाधान सिर्फ गुर्गों और रिमोट ऑपरेटरों तक ही सीमित रह जाता है। इसके अलावा तकनीकी पहलू में ‘सुप्रीमो हेड’ की टेक्नोलॉजी पूरी तरह साफ़ नहीं हो पाती। केबल्स का अपने आप जुड़ जाना और एक सजीव रूप ले लेना कुछ ज़्यादा ही काल्पनिक लगता है, जो कहानी के बाकी हिस्सों में मौजूद यथार्थवादी माहौल, खासकर आतंकवाद जैसे गंभीर विषय, से थोड़ा मेल नहीं खाता।
समग्र निर्णय:
यह वह दौर था जब राज कॉमिक्स अपने शिखर पर थी और कहानियों में मनोरंजन के साथ-साथ सामाजिक सरोकार भी साफ़ दिखाई देते थे। यहाँ नागराज सिर्फ एक फाइटर नहीं, बल्कि एक रक्षक और एक रणनीतिकार के रूप में सामने आता है। अनुपम सिन्हा की कला और कहानी का तालमेल पाठक को शुरू से लेकर अंत तक बांधे रखता है।
यह कॉमिक्स हमें यह याद दिलाती है कि बुराई चाहे कितनी ही आधुनिक क्यों न हो जाए—चाहे वह आतंकवाद के रूप में हो या किसी तकनीकी राक्षस के रूप में—अच्छाई और मज़बूत इच्छाशक्ति के सामने उसे आखिरकार झुकना ही पड़ता है। “कालचक्र” सिर्फ समय का पहिया नहीं है, बल्कि यह नागराज की वीरता का वह चक्र है जो कभी रुकता नहीं।
रेटिंग: 4.5/5
