नागराज, ध्रुव और डोगा जैसे दिग्गज किरदारों के बीच एक ऐसा नायक भी आया, जिसका मकसद सिर्फ अपराधियों को पकड़ना नहीं था, बल्कि देश की एकता और अखंडता की रक्षा करना था। उस नायक का नाम है—तिरंगा। आज हम तिरंगा की पहली कॉमिक्स ‘दंगा’ की विस्तार से समीक्षा और विश्लेषण करने वाले हैं।
‘तिरंगा’ एक ऐसा देशभक्त सुपरहीरो है जो भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रंगों में रंगा हुआ है और हमेशा देश के अंदरूनी और बाहरी दुश्मनों से लड़ता नजर आता है। कॉमिक्स ‘दंगा’ सिर्फ एक साधारण एक्शन कहानी नहीं है, बल्कि यह भारत की सबसे गंभीर सामाजिक समस्याओं—सांप्रदायिकता और दंगों—पर सीधा और तीखा प्रहार करती है।
लेखक हनीफ अजहर ने इस कहानी के जरिए यह साफ दिखाने की कोशिश की है कि धर्म के नाम पर होने वाले दंगे अक्सर धर्म से जुड़े नहीं होते, बल्कि ये राजनीति की चालें होती हैं, जिनका मकसद सिर्फ सत्ता और फायदे हासिल करना होता है। आज के समय में भी इस कॉमिक्स की सोच और संदेश उतने ही सटीक और जरूरी लगते हैं, जितने उस दौर में थे।
कथानक (Plot Analysis)
कहानी की शुरुआत दिल्ली के सत्ता के गलियारों से होती है, जहाँ एक आलीशान कमरे में कुछ भ्रष्ट राजनेता और सफेदपोश लोग बैठकर अपनी गंदी राजनीति की साजिश रच रहे होते हैं। उनका प्लान साफ है—दिल्ली में दंगे करवाकर अपना फायदा निकालना। इस काम के लिए वे इस्तेमाल करते हैं एक खूंखार अपराधी, हब्शी को। हब्शी को जेल से सिर्फ चार घंटे के लिए गैरकानूनी तरीके से बाहर निकाला जाता है, ताकि वह भारत नगर कॉलोनी में दंगे भड़का सके।

कहानी का सबसे मजबूत हिस्सा यह है कि यह बहुत साफ तरीके से दिखाती है कि दंगे आखिर शुरू कैसे होते हैं। हब्शी और उसके आदमी अफवाहें फैलाने लगते हैं। एक तरफ हिंदुओं से कहा जाता है कि मुसलमान उनके मंदिर पर हमला करने वाले हैं, और दूसरी तरफ मुसलमानों को भड़काया जाता है कि उनकी मस्जिद खतरे में है। ये दृश्य पाठकों को सोचने पर मजबूर कर देते हैं कि भीड़ कितनी जल्दी बिना सच्चाई जाने अफवाहों पर यकीन कर लेती है।
हब्शी बड़ी चालाकी से एक बार पंडित के भेष में मंदिर जाता है और दूसरी बार मुल्ला बनकर मस्जिद में घुसता है। वहाँ वह नारियल और दूसरे सामान के रूप में बम रख देता है। रिमोट से धमाके होते हैं और जैसा कि उसकी योजना थी, इंसानियत हार जाती है और धार्मिक उन्माद जीत जाता है। देखते ही देखते भारत नगर आग में जलने लगता है।
इस कहानी का एक बेहद भावुक और कड़वा पहलू पुलिस की भूमिका को दिखाता है। यहाँ पुलिस के दो अलग-अलग चेहरे नजर आते हैं। एक तरफ भ्रष्ट इंस्पेक्टर पी.पी.ओ. पालकुमार और उसके साथी हैं, जो थाने में बैठकर ताश खेल रहे हैं, जबकि बाहर पूरा इलाका जल रहा होता है। दूसरी तरफ है कर्तव्यनिष्ठ हवलदार रामनाथ, जो अपनी वर्दी और अपने फर्ज को पूरी ईमानदारी से निभाता है।
रामनाथ का किरदार छोटा जरूर है, लेकिन उसका असर बहुत गहरा है। वह अकेले ही उन दंगाइयों से भिड़ जाता है, जो बच्चों को जिंदा जलाने की कोशिश कर रहे होते हैं। वह गुस्से और दर्द के साथ चिल्लाता है—“बंद करो ये इंसानी लहू को पानी की तरह सड़कों पर बहाना!” लेकिन अफसोस, उसे दंगाइयों से ज्यादा अपने ही विभाग के भ्रष्ट लोगों, यानी पालकुमार, और हब्शी के धोखे का सामना करना पड़ता है। रामनाथ की बेरहमी से हत्या कहानी का सबसे बड़ा टर्निंग पॉइंट बन जाती है, जो पाठक के दिल में सिस्टम के खिलाफ गुस्सा भर देती है।

जब हालात पूरी तरह बेकाबू हो जाते हैं, तब होती है महानायक तिरंगा की एंट्री। तिरंगा तब सामने आता है जब हब्शी एक पूरी हवेली, जिसमें सैकड़ों लोग छिपे होते हैं, को बम से उड़ाने की कोशिश करता है। तिरंगा अपनी ढाल का इस्तेमाल करके बमों से भरी ठेली को रोक लेता है और एक भयानक हादसे को टाल देता है।
इसके बाद तिरंगा सिर्फ गुंडों से लड़ता नहीं है, बल्कि लोगों की सोई हुई इंसानियत को भी जगाता है। वह दंगाइयों के बीच खड़े होकर सवाल करता है—“कौन है बे तू? हिंदू या मुसलमान?” और जवाब आता है—“इंसान!”
चरित्र चित्रण (Character Analysis)
तिरंगा: इस कॉमिक्स में तिरंगा सिर्फ एक ताकतवर फाइटर नहीं है, बल्कि वह एक समझाने वाला, मार्गदर्शक और रक्षक भी है। उसके संवाद देशभक्ति से भरे हुए हैं। वह दंगाइयों को समझाता है कि खून का रंग सबका एक जैसा होता है और धर्म हमें रक्षा करना सिखाता है, हत्या करना नहीं। तिरंगा का किरदार भारत की “अनेकता में एकता” की भावना को पूरी तरह दर्शाता है। वह बिना किसी भेदभाव के हब्शी और उसके गुंडों को सबक सिखाता है।

हवलदार रामनाथ: रामनाथ इस कॉमिक्स की असली आत्मा है। वह उस आम इंसान और ईमानदार पुलिसवाले का प्रतीक है, जो सिस्टम की सड़ांध के बीच भी अपनी नैतिकता नहीं छोड़ता। उसके संवाद—“मैं तुम जैसा नहीं… मैं इस पवित्र वर्दी की लाज रखूंगा”—सीधे दिल को छू जाते हैं। उसकी शहादत बेकार नहीं जाती, क्योंकि आखिर में तिरंगा उसका बदला जरूर लेता है।
खलनायक (हब्शी और पालकुमार): हब्शी एक ऐसा अपराधी है जिसे सिर्फ पैसे और तबाही से मतलब है। उसका कोई धर्म नहीं है, वह सिर्फ एक भाड़े का गुंडा है। वहीं, पालकुमार उस सड़े हुए सिस्टम और प्रशासनिक भ्रष्टाचार का चेहरा है, जो अपराधियों को बचाता है। पालकुमार का अंत पाठकों को संतोष देता है, जब तिरंगा उसे बेनकाब करता है और उसे उसके किए की सजा मिलती है।
संवाद और लेखन (Dialogues and Writing)
हनीफ अजहर का लेखन काफी सधा हुआ और असरदार है। उन्होंने एक बेहद संवेदनशील विषय को बहुत संतुलन के साथ पेश किया है, बिना किसी एक पक्ष का खुला समर्थन किए। संवादों में उस दौर की कॉमिक्स वाला वजन और थोड़ा फिल्मी अंदाज जरूर है, लेकिन यही अंदाज कहानी को और ज्यादा प्रभावी बनाता है।

कॉमिक्स में कई ऐसे संवाद हैं जो सीधे दिल और दिमाग पर असर डालते हैं और कहानी के संदेश को मजबूती से सामने रखते हैं।
“जो कुछ ना कर सके उसे मुसलमान कहलाने का कोई हक नहीं!”
(यह संवाद भीड़ को भड़काने के लिए इस्तेमाल किया जाता है और दिखाता है कि शब्दों का गलत इस्तेमाल कितना खतरनाक हो सकता है।)
“खून जब नसों के बंधनों को तोड़कर आज़ाद होता है, तो कितना दर्द होता है!”
(हवलदार रामनाथ का यह संवाद उसकी संवेदनशील सोच और इंसानियत को दर्शाता है।)
“कोई धर्म नहीं सिखाता कि उसकी रक्षा के लिए छुरे और तलवार उठाई जाएं, बेगुनाहों का खून बहाया जाए।”
(तिरंगा का यह संवाद पूरी कॉमिक्स का मूल संदेश बन जाता है।)
“ये हिन्दू और मुसलमान कौन होते हैं बाबा? मास्टरजी तो कहते हैं कि हम सब भारतवासी हैं?”
(एक बच्चे का यह मासूम सवाल पूरे दंगे की बुनियाद पर सवाल खड़ा कर देता है।)
ये सभी संवाद कहानी के मुख्य संदेश को बहुत सरल लेकिन मजबूत तरीके से पाठकों तक पहुँचाते हैं।
कला पक्ष (Artwork)
गोपाल और राहुल द्वारा किया गया चित्रांकन कहानी की गंभीरता के बिल्कुल अनुरूप है। दंगों के दृश्य, जलते हुए घर, भागती हुई भीड़ और चारों तरफ फैली अफरा-तफरी को उन्होंने बेहद सजीव और असरदार तरीके से दिखाया है। खास तौर पर पेज 17-18 का दृश्य, जहाँ तिरंगा बम से भरी ठेली को रोकने के लिए अपनी ढाल फेंकता है, बहुत ही डायनामिक और दमदार बन पड़ा है। उस सीन में पैनल्स के जरिए जबरदस्त गति और तनाव महसूस होता है।

माहौल में डर और बेचैनी पैदा करने के लिए लाल, नारंगी और काले रंगों का गहरा इस्तेमाल किया गया है, जो आग और धुएं के असर को और ज्यादा वास्तविक बना देता है। वहीं, रामनाथ की हत्या जैसे दृश्यों में दिखाई गई हिंसा जरूरत से ज्यादा नहीं लगती, बल्कि कहानी के विषय और उसकी गंभीरता को और गहराई से महसूस कराती है।
सामाजिक संदेश (Social Commentary)
“दंगा” कॉमिक्स की सबसे बड़ी ताकत इसका गहरा सामाजिक संदेश है। यह पाठकों को साफ तौर पर समझाती है कि दंगे अक्सर झूठ, अफवाहों और डर की बुनियाद पर खड़े किए जाते हैं। कहानी यह कड़वी सच्चाई सामने लाती है कि आम लोग सिर्फ मोहरे बनकर रह जाते हैं, जबकि असली खेल हमेशा पीछे बैठे सफेदपोश लोग खेलते हैं।

कॉमिक्स का अंत इंसानियत को ही सबसे बड़ा धर्म साबित करता है, जहाँ हिंदू और मुसलमान मिलकर एक मानव जंजीर बनाते हैं और शांति की राह चुनते हैं। खास तौर पर तिरंगा का यह कहना कि दंगों के पीछे वे लोग होते हैं जो “सुरक्षाकर्मियों से घिरे एयरकंडीशन बंगलों में बैठकर” साजिशें रचते हैं, न सिर्फ कहानी का सार है, बल्कि आज की राजनीति पर भी एक सटीक और करारा तंज है।
कमियाँ (Critical Analysis)
हालाँकि “दंगा” एक शानदार कॉमिक्स है, फिर भी एक समीक्षक के तौर पर कुछ बातों पर ध्यान देना जरूरी है।
कहानी के अंत में भीड़ का दिल बहुत जल्दी बदल जाता है। असल जिंदगी में एक बार भड़की हुई भीड़ को शांत करना इतना आसान नहीं होता, जितना कि तिरंगा के एक भाषण से दिखाया गया है। यह हिस्सा थोड़ा ज्यादा फिल्मी लगता है।

इसके अलावा, कहानी के अंत में हब्शी और पालकुमार को तो सजा मिल जाती है, लेकिन उन नेताओं का क्या हुआ जिन्होंने हब्शी को काम पर लगाया था, जिनकी झलक हमें पेज 5 पर मिलती है? उनका अंजाम साफ तौर पर नहीं दिखाया गया है, जिससे कहानी थोड़ी अधूरी सी लगती है।
निष्कर्ष (Conclusion)
कुल मिलाकर, “दंगा” राज कॉमिक्स के इतिहास में एक बेहद अहम और यादगार कॉमिक्स है। यह सिर्फ मारधाड़ और एक्शन तक सीमित नहीं रहती, बल्कि पाठकों—खासतौर पर बच्चों और किशोरों—को जिम्मेदार नागरिक बनने का संदेश भी देती है।
इस कहानी में तिरंगा सिर्फ एक सुपरहीरो नहीं, बल्कि एक “नेशनल कॉन्सियंस” यानी राष्ट्रीय चेतना के रूप में सामने आता है। हवलदार रामनाथ का बलिदान आँखें नम कर देता है, जबकि तिरंगा द्वारा किया गया न्याय मन को सुकून देता है।
रेटिंग: 4.5 / 5
अनुशंसा: अगर आप राज कॉमिक्स के फैन हैं, या भारतीय सुपरहीरो कॉमिक्स को समझना चाहते हैं जो सामाजिक मुद्दों से जुड़ी हों, तो “दंगा” एक मस्ट रीड कॉमिक्स है। यह हमें बार-बार याद दिलाती है कि हमारी सबसे बड़ी पहचान न हिंदू है, न मुसलमान, बल्कि “भारतीय” है।
जैसा कि कवर पेज पर लिखा है—
“अब ना खेली जायेगी पाप की होली।
ना अब बहेगी खून की गंगा।
सिर पर अपने कफन बांधकर,
रक्षक बन आया है तिरंगा।”
