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Home » जब दिल्ली की सांसें थम गईं: तिरंगा बनाम वो रहस्य जिसने देश को हिला दिया
Don't Miss Updated:4 December 2025

जब दिल्ली की सांसें थम गईं: तिरंगा बनाम वो रहस्य जिसने देश को हिला दिया

राज कॉमिक्स की क्लासिक ‘झण्डा ऊंचा रहे हमारा’—रहस्य, पुनर्जन्म और देशभक्ति से भरी एक धड़कन रोक देने वाली कहानी।
ComicsBioBy ComicsBio4 December 2025Updated:4 December 202509 Mins Read
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Tiranga: Jhanda Uncha Rahe Hamara Review – A Suspenseful Patriot Thriller of Raj Comics
एक कहानी जहाँ तिरंगा सिर्फ आतंक से नहीं, बल्कि भाग्य, पुनर्जन्म और इंसानियत की सबसे बड़ी परीक्षा से लड़ता है।
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भारतीय कॉमिक्स जगत में ‘तिरंगा’ एक ऐसा सुपरहीरो है जिसके पास कोई अलौकिक शक्तियां (superpowers) नहीं हैं, लेकिन उसकी समझदारी, जासूसी हुनर और पक्का देशप्रेम ही उसे असली ‘सुपर’ बनाते हैं। “झण्डा ऊंचा रहे हमारा” तिरंगा की सबसे मशहूर और शानदार कॉमिक्स में से एक है। यह कॉमिक सिर्फ एक एक्शन थ्रिलर नहीं है, बल्कि इसमें 90 के दशक में खूब चलने वाली ‘पुनर्जन्म’ (Reincarnation) की थीम और भारत-पाक संबंधों की जटिलताओं को भी बेहतरीन ढंग से जोड़ा गया है। तरुण कुमार वाही की मजबूत कहानी और दिलीप चौबे की जानदार आर्ट इसे एक क्लासिक बना देती है।

कहानी को मुख्य रूप से तीन हिस्सों में बांटा जा सकता है: रहस्यमयी फोन कॉल, पाकिस्तान का मिशन, और दिल्ली का क्लाइमेक्स।

रहस्यमयी शुरुआत और ‘कोड प्लेट’ का रहस्य

कहानी की शुरुआत पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद से होती है। यहां आतंकवादी ‘कुर्बान जैदी’ को एक फोन कॉल आता है। फोन करने वाला उसका भाई ‘मुस्तफा जैदी’ होता है, जो 10 सालों से गायब था। मुस्तफा बताता है कि वह इस वक्त दिल्ली में काम कर रहा है और 10 साल पहले जो ‘बीज’ उसने बोया था, अब उसे फसल काटने का वक्त आ गया है। वह कुर्बान को ‘इस्लामाबाद बैंक’ के एक लॉकर की चाबी के बारे में बताता है, लेकिन लॉकर का नंबर कोड में छुपा हुआ है।

ट्विस्ट तब आता है जब पता चलता है कि मुस्तफा ने यह कॉल दिल्ली में पुलिस कमिश्नर के घर से की थी। यह बात पुलिस और खुद तिरंगा—दोनों के लिए बड़ी परेशानी बन जाती है। कमिश्नर के घर में उनके भरोसेमंद नौकर रहीम और उनका छोटा नाती ‘राजा’ ही रहते हैं।
तिरंगा अपनी जांच शुरू करता है और पहला शक रहीम पर जाता है। लेकिन जब तिरंगा रहीम की पड़ताल करता है और वहाँ मौजूद गुंडों (जहूर के आदमी) से भिड़ता है, तो उसे ‘कोड प्लेट’ और कुछ जरूरी सुराग मिलते हैं।

यहाँ ‘पहेली’ का बहुत अच्छा इस्तेमाल किया गया है। तिरंगा को एक कागज मिलता है जिस पर कुछ नंबर लिखे होते हैं और एक धातु की प्लेट (कोड प्लेट) मिलती है जिसमें छेद हैं। तिरंगा उस कोड को हल करता है—जब प्लेट को नंबरों वाले कागज पर रखता है, तो ‘786’ नंबर उभर कर सामने आते हैं। यही लॉकर का नंबर होता है।

तिरंगा का पाकिस्तान मिशन: ‘समझौता एक्सप्रेस’ से सरहद पार

कहानी का यह हिस्सा सबसे ज्यादा रोमांचक है। जब तिरंगा को पता चलता है कि तबाही की असली चाबी इस्लामाबाद के बैंक लॉकर 786 में है, तो वह तुरंत पाकिस्तान जाने का फैसला करता है। वह भेष बदलकर ‘समझौता एक्सप्रेस’ के जरिए पाकिस्तान पहुंचता है।

उधर कुर्बान जैदी भी लॉकर 786 खोलने बैंक पहुंचता है। लेकिन तिरंगा उससे पहले ही बैंक में मौजूद होता है (या उसी वक्त पहुंचता है)। बैंक के अंदर दोनों के बीच जोरदार लड़ाई होती है। यहां लेखक ने तिरंगा के असली गुण दिखाए हैं।
मारपीट के दौरान जब गोलियां चलती हैं, तो पाकिस्तान का झंडा गिरने लगता है। तिरंगा अपनी जान की परवाह किए बिना उस झंडे को गिरने से बचाता है और गोलियों से उसे बचाकर खड़ा रखता है।

कुर्बान हैरान होकर पूछता है कि एक दुश्मन देश के झंडे को बचाने के लिए उसने जान क्यों जोखिम में डाली? जवाब दिल दहला देने वाला है:

“झण्डा चाहे अपने देश का हो या किसी और देश का, वो इज़्ज़त की चीज़ है। उसका सम्मान करना सीखोगे तभी असली देशभक्त बनोगे।”

यह डायलॉग इस कॉमिक का दिल है। यह बताता है कि तिरंगा सिर्फ भारत का रक्षक नहीं, बल्कि इंसानियत और राष्ट्रभक्ति के सबसे ऊंचे मूल्यों का प्रतीक है।
इस लड़ाई के बाद तिरंगा चाबी लेकर निकलने में कामयाब हो जाता है। वह बैंक में धमाका करके गटर के रास्ते बाहर निकलता है और अपनी मिशन पर आगे बढ़ता है।

पुनर्जन्म और मोहन नगर का रहस्य

तिरंगा चाबी लेकर भारत लौटता है। अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि यह चाबी आखिर किस ताले की है? इसी बीच मुस्तफा जैदी फिर से फोन करता है (कमिश्नर के घर से) और बताता है कि दिल्ली के पास ‘मोहन नगर’ में तबाही का सामान (मिसाइलें और परमाणु बम) छुपा हुआ है।
कमिश्नर और तिरंगा दोनों हैरान हैं कि उनके ही घर के अंदर से कौन सारी जानकारी बाहर भेज रहा है। आखिर में एक जबरदस्त खुलासा होता है। जासूस कोई बाहर का आदमी या नौकर रहीम नहीं, बल्कि कमिश्नर का छोटा नाती ‘राजा’ है।

यहीं कहानी में ‘पुनर्जन्म’ का ट्विस्ट आता है। 10 साल पहले मुस्तफा जैदी मर चुका था, लेकिन उसका पुनर्जन्म राजा के रूप में हुआ है। राजा के अंदर मुस्तफा की आत्मा और उसकी यादें दोबारा जाग गई हैं। बच्चा होने के बावजूद वह एक खतरनाक आतंकवादी की तरह सोच रहा है।
क्लाइमेक्स में, राजा (मुस्तफा) मोहन नगर के एक फार्महाउस के नीचे बने बंकर में पहुंच जाता है। वहां 10 साल पुराने मिसाइल सिस्टम लगे हैं जिनका निशाना दिल्ली, मेरठ और हापुड़ है। राजा मिसाइल लॉन्च करने का बटन दबा देता है। इस पल पर सच में पाठक की सांसें रुक जाती हैं।

लेकिन… मिसाइल लॉन्च होने की जगह वहां रेडियो पर गाना बजने लगता है – “दो दिल मिल रहे हैं, मगर चुपके-चुपके।”
तिरंगा अपनी होशियारी एक बार फिर साबित करता है। वह पहले ही वहां पहुंचकर सर्किट बदल चुका होता है और मिसाइल सिस्टम को रेडियो से जोड़ देता है। इस तरह दिल्ली बच जाती है, और राजा को पकड़कर ले जाया जाता है ताकि मनोवैज्ञानिक इलाज से उसके अंदर छुपे आतंकवादी को खत्म किया जा सके।

पात्र समीक्षा (Character Analysis)

तिरंगा (भारत):
इस कॉमिक में तिरंगा को सिर्फ एक लड़ाकू (Fighter) नहीं बल्कि एक बेहद समझदार जासूस (Detective) के तौर पर दिखाया गया है। कोड प्लेट सुलझाना, भेष बदलकर पाकिस्तान जाना और आखिर में सर्किट बदलना—ये सब उसकी तेज दिमागी का सबूत हैं। उसका सबसे बड़ा गुण उसका नैतिक चरित्र है। दुश्मन देश के झंडे को बचाकर उसने जो इंसानियत और इज्जत दिखाई, वही उसे बाकी सुपरहीरोज से अलग खड़ा करती है।

कुर्बान जैदी:
कुर्बान एक आतंकवादी है, भारत का विरोधी है, लेकिन साथ ही एक उसूलों वाला योद्धा भी है। जब वह तिरंगा को अपने देश (पाकिस्तान) का झंडा बचाते देखता है, तो उसके मन में तिरंगा के लिए सम्मान पैदा हो जाता है। अंत में वह तिरंगा को जाने देता है और कहता है—”जाओ, मेरी आंखें खोल दी तुमने।” यह किरदार बताता है कि दुश्मन के पास भी अच्छे सिद्धांत वाले लोग हो सकते हैं।

राजा (मुस्तफा जैदी का पुनर्जन्म):
एक छोटे बच्चे को मुख्य विलेन (Main Villain) बनाना अपने आप में बहुत बड़ा रिस्क था। राजा की शक्ल एक मासूम बच्चे की है, लेकिन उसके बोल और हाव-भाव एक क्रूर आतंकवादी जैसे हैं। दिलीप चौबे ने उसके चेहरे पर जो शैतानियत दिखाई है, वह कमाल की है। यह ‘मासूम चेहरा + खतरनाक सोच’ का डरावना मेल है।

पुलिस कमिश्नर:
कमिश्नर का किरदार एक बेबस नाना और एक सख्त पुलिस अफसर—इन दोनों भावनाओं के बीच फंसा हुआ है। जब उन्हें पता चलता है कि उनका अपना नाती ही देश के लिए खतरा बन गया है, तो उनकी तकलीफ साफ महसूस की जा सकती है।

चित्रांकन और कला पक्ष (Artwork & Visuals)

दिलीप चौबे का आर्टवर्क राज कॉमिक्स के स्वर्ण युग की पहचान है।
बैंक के अंदर की लड़ाई और तिरंगा का हेलिकॉप्टर से कूदना बेहद ‘डायनेमिक’ है। चित्रों में असली मूवमेंट महसूस होता है।
राजा (बच्चे) के चेहरे पर दिखाई गई क्रूरता बहुत प्रभावशाली है। जब वह बटन दबाता है, उसकी हंसी सच्ची डर पैदा करती है।
रंग संयोजन: गहरे और चमकीले रंग पूरे कॉमिक में जान डाल देते हैं। तिरंगा की पोशाक (सफेद, केसरिया, हरा) हर फ्रेम में साफ चमकती है। पाकिस्तान वाले सीन में हरे टोन का इस्तेमाल माहौल बनाने में बहुत मदद करता है।
पेज लेआउट भले क्लासिक है, लेकिन कहानी की रफ्तार को बहुत अच्छे से संभालता है। कोड प्लेट वाला दृश्य तो ऐसा बनाया गया है कि पाठक एकदम कहानी के अंदर घुस जाता है।

संवाद और लेखन (Dialogue & Writing)

तरुण कुमार वाही ने कहानी को बहुत ही पकड़दार तरीके से लिखा है। संवादों में थोड़ा भारीपन और ‘फिल्मी’ अंदाज़ है, जो उस दौर की कॉमिक्स की खास पहचान थी।
तिरंगा का यह संवाद: “खून यहां बहे या वहां, वो तो मानवता का ही बहा। तुम्हारा बहा, मेरा बहा… अगर हम ऐसा होने से नहीं रोकेंगे तो ये सदा बहता रहेगा।“—सीधा दिल पर असर करता है और शांति व मानवता की बात साफ़-साफ़ कहता है।

सस्पेंस: आखिरी समय तक यह रहस्य कि असली जासूस कौन है—बहुत अच्छे से बना रहता है। पहले रहीम पर शक, फिर राजा पर, और आख़िर में पुनर्जन्म वाला ट्विस्ट—ये सब पाठक को शुरू से अंत तक जोड़े रखता है।

समीक्षात्मक निष्कर्ष (Critical Verdict)

सकारात्मक पक्ष (Pros):
देशभक्ति की नई परिभाषा: आम तौर पर ऐसी कहानियों में ‘अंध-राष्ट्रवाद’ (Jingoism) देखने को मिलता है, लेकिन यहां तिरंगा ने दुश्मन देश के झंडे का सम्मान कर एक समझदार और परिपक्व देशभक्ति दिखाई है।

कोड प्लेट और लॉकर नंबर 786 का रहस्य सुलझाना पाठकों (खासकर बच्चों) के लिए बहुत मजेदार और दिलचस्प रहा होगा। कहानी एक पल को भी बोर नहीं करती। इस्लामाबाद से लेकर मोहन नगर तक की दौड़-भाग बहुत तेज़ और रोमांचक है।मिसाइल की जगह रेडियो का बज उठना—यह एकदम सही ‘कॉमिक रिलीफ’ और बहुत स्मार्ट एंडिंग थी।

नकारात्मक पक्ष (Cons):
पुनर्जन्म का तर्क: कहानी का मुख्य आधार पुनर्जन्म है, जो विज्ञान-आधारित सुपरहीरो की दुनिया (जैसे परमाणु या भेड़िया) के हिसाब से थोड़ा अलग-सा लगता है। मुस्तफा जैदी की यादें राजा में कैसे आ गईं—इसका कोई साइंटिफिक कारण नहीं दिया गया, बस ‘कुदरत का कमाल’ कहकर आगे बढ़ाया गया।

सुरक्षा में चूक: कमिश्नर के घर से एक पुराने आतंकवादी का लगातार संपर्क में रहना और किसी को भनक न लगना—यह थोड़ा अविश्वसनीय लगता है, भले ही जासूस एक बच्चा ही क्यों न हो।

तकनीकी खामियां: 10 साल पुरानी मिसाइलें बिना किसी मेंटेनेंस के एकदम चलने की हालत में होना तकनीकी तौर पर थोड़ा कमजोर लगता है।

निष्कर्ष:

“झण्डा ऊंचा रहे हमारा” एक पूरा मनोरंजन पैकेज है। इसमें रहस्य है, रोमांच है, भावनाएं हैं और खूब एक्शन है। यह कॉमिक न सिर्फ तिरंगा के साहस को दिखाती है, बल्कि यह भी बताती है कि आतंकवाद की न तो कोई उम्र होती है और न ही कोई धर्म—(राजा के किरदार से यह बात और साफ़ होती है)।
अगर आप 90 के दशक की भारतीय कॉमिक्स के फैन हैं, तो यह एक ‘मस्ट रीड’ (Must Read) है। दिलीप चौबे की शानदार कला और तरुण कुमार वाही की दमदार कहानी मिलकर इसे यादगार बनाते हैं। तिरंगा यहां एक ऐसे हीरो के रूप में उभरता है, जो नफ़रत का जवाब नफ़रत से नहीं, बल्कि सम्मान, इंसानियत और हिम्मत से देता है।

रेटिंग: 4.5/5

Tiranga Raj Comics review full analysis of Jhanda Uncha Rahe Hamara with suspense elements reincarnation twist patriotic themes artwork breakdown and 90s nostalgia
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