‘तिलिस्म का खिलाड़ी’ अश्वराज श्रृंखला की एक बेहद अहम और रोमांच से भरी कड़ी है। यह कॉमिक सिर्फ एक वीर नायक की कहानी नहीं है, बल्कि इसमें धोखा, सत्ता का लालच, तिलिस्मी मायाजाल और इंसानी भावनाओं की उलझनें बहुत खूबसूरती से बुनी गई हैं। यह कहानी हर पन्ने पर पाठक को सोचने पर मजबूर करती है कि सही और गलत के बीच की रेखा कितनी धुंधली हो सकती है।
कहानी का सारांश और प्रवाह:
कहानी की शुरुआत एक बेहद तनावपूर्ण और दिलचस्प दृश्य से होती है, जहाँ अश्वराज अपने रथ पर सवार है और उसके सामने एक योद्धा कन्या, अश्वकीर्ति, चुनौती बनकर खड़ी है। यहीं लेखक अश्वराज के चरित्र को बड़ी सहजता से सामने रखता है। अश्वराज सिर्फ एक महान योद्धा नहीं है, बल्कि वह अपने नैतिक मूल्यों को भी उतनी ही अहमियत देता है। वह किसी स्त्री पर वार नहीं करना चाहता, भले ही वह उसकी दुश्मन ही क्यों न हो। अश्वकीर्ति जब ‘कन्यास्त्र’ का प्रयोग करती है, तो अश्वराज एक धर्मसंकट में फँस जाता है—जीत जरूरी है, लेकिन अपने सिद्धांतों को तोड़कर नहीं।

यहीं पर अश्वराज के पाँच घोड़े—रक्ताम्बर, कालाखोर, अश्ववट, नीलकंठ और श्रव्यशक्ति—कहानी में खास भूमिका निभाते हैं। ये घोड़े सिर्फ सवारी के साधन नहीं हैं, बल्कि जादुई शक्तियों से लैस अश्वराज के सच्चे साथी हैं। जब अश्वराज वार करने में हिचकिचाता है, तब ये घोड़े अपनी समझदारी और सूझ-बूझ से उस मुश्किल का हल निकालते हैं। यह दृश्य साफ संदेश देता है कि युद्ध केवल ताकत से नहीं जीता जाता, बल्कि समझदार और वफादार साथियों का साथ भी उतना ही जरूरी होता है।
जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, पाठक ‘कारूँ के खजाने’ और उसके चारों ओर फैले ‘तिलिस्म’ यानी मायाजाल की गहराई में उतरता चला जाता है। अश्वराज को रोकने के लिए पाँच खतरनाक शैतान—कालखजूरा, चांडाल, पंजाल, भोंकम्प और चोषक—भेजे जाते हैं। यहीं अश्वराज का ‘इच्छाधारी’ रूप सामने आता है, जहाँ वह एक सेंटौर, यानी आधा मानव और आधा अश्व, में बदल जाता है। यह रूपांतरण देखने में बेहद प्रभावशाली है। जिस क्रूरता, ताकत और वीरता से वह इन पाँचों राक्षसों का संहार करता है, वह इस कॉमिक का एक बड़ा हाई पॉइंट बन जाता है।
खलनायक और षड्यंत्र:
इस कहानी का असली दिमाग ‘तुताबूता’ है, जिसे सही मायनों में ‘तिलिस्म का खिलाड़ी’ कहा गया है। वह खुद मैदान में उतरकर लड़ने के बजाय दिमागी खेल खेलना ज्यादा पसंद करता है। उसका चरित्र बहुत ही दिलचस्प तरीके से गढ़ा गया है। वह अपने जादुई दर्पण के जरिए पूरे युद्ध को नियंत्रित करता है। उसकी योजना सिर्फ अश्वराज को खत्म करने तक सीमित नहीं है, बल्कि वह दो महान राजाओं—सूर्यवंशी सम्राट तारपीड़ो और चंद्रवंशी सम्राट अश्वन्तक—को आपस में लड़वाकर दोनों राज्यों को कमजोर करना चाहता है, ताकि अंत में वह कारूँ के खजाने पर कब्जा कर सके।

सम्राट अश्वन्तक का चरित्र लालच और सत्ता के अंधेपन का जीता-जागता उदाहरण है। वह सत्ता के लिए इतना अंधा हो चुका है कि अपने ही पुत्र, अश्वराज, को मरवाने के लिए भी तैयार हो जाता है। यह बात कहानी में एक गहरा भावनात्मक तनाव पैदा करती है। जब अश्वन्तक खुद अश्वराज के सामने आता है और उसे बंदी बनाने की कोशिश करता है, तो कहानी अचानक एक नया और चौंकाने वाला मोड़ ले लेती है।
युद्ध और विभीषिका:
कॉमिक का मध्य और अंतिम हिस्सा जबरदस्त युद्ध दृश्यों से भरा हुआ है। अश्वराज को हराने के लिए अश्वन्तक एक जादुई डिबिया का इस्तेमाल करता है, जिसमें से बौनों की एक पूरी फौज निकल आती है। ये छोटे-छोटे बौने अपने जहरीले सूक्ष्म बाणों से अश्वराज के शरीर को छलनी कर देते हैं। एक अजेय योद्धा को इतने छोटे जीवों के हाथों कमजोर पड़ते देखना पाठकों के लिए बेहद दर्दनाक अनुभव बन जाता है। अश्वराज का बेहोश होकर गिरना और उसके वफादार घोड़ों द्वारा उसे खींचकर सुरक्षित ले जाना, कहानी का एक दुखद लेकिन बेहद भावुक पल है।

इसके बाद सम्राट तारपीड़ो और अश्वन्तक की सेनाओं के बीच भीषण महायुद्ध छिड़ जाता है। लेखक ने यहाँ युद्ध की तबाही और भय को बहुत असरदार ढंग से दिखाया है। इसी दौरान ‘अश्वमणि’ का रहस्य और उसकी विनाशकारी शक्ति सामने आती है, जो कहानी के क्लाइमेक्स को एक अलग ही जादुई ऊँचाई पर पहुँचा देती है। अश्वमणि से निकलने वाली घातक किरणें पल भर में पूरी सेनाओं को राख में बदल देती हैं, और यह दृश्य प्राचीन महाअस्त्रों की भयावह शक्ति की याद दिलाता है।
पात्र चित्रण (Character Analysis):
अश्वराज: अश्वराज एक आदर्श नायक के रूप में सामने आता है। उसकी असली ताकत उसकी मांसपेशियों में नहीं, बल्कि उसके सिद्धांतों और सोच में छिपी है। वह एक ऐसा इच्छाधारी योद्धा है, जो अपनी शक्तियों का इस्तेमाल सिर्फ धर्म और न्याय की रक्षा के लिए करता है। अपने घोड़ों के साथ उसका जो गहरा मानसिक और भावनात्मक रिश्ता है, वही उसे बाकी नायकों से अलग और खास बनाता है।
तुताबूता: तुताबूता इस कहानी की असली जान है। उसका शांत चेहरा और हल्की-सी कुटिल मुस्कान उसे और भी डरावना बना देती है। वह खुलकर हमला करने के बजाय चालें चलने में यकीन रखता है। अपनी ही बेटी अश्वकीर्ति को मोहरे की तरह इस्तेमाल करना उसके क्रूर और निर्दयी स्वभाव को साफ दिखाता है।

सम्राट अश्वन्तक: अश्वन्तक एक ऐसा पिता है, जो खजाने और सत्ता के लालच में अपने ही खून का दुश्मन बन जाता है। उसका चरित्र यह दिखाता है कि लालच इंसान को कितनी नीचे तक गिरा सकता है। सत्ता के मोह में वह यह तक भूल जाता है कि अश्वराज उसका अपना पुत्र है।
महारशि फुकमसान और राजा चिंतित सिंह: ये दोनों पात्र कहानी में पौराणिकता और भविष्यवाणी वाले तत्व जोड़ते हैं। इनके जरिए कहानी को एक गहरा दार्शनिक आधार मिलता है, जो इसे सिर्फ एक एक्शन कॉमिक से आगे ले जाता है।
कला और चित्रांकन (Art and Illustration):
प्रताप मुळीक का कला निर्देशन और चन्दू का चित्रांकन इस कॉमिक्स की सबसे बड़ी ताकत है। 80 और 90 के दशक की राज कॉमिक्स की जो अलग पहचान थी, वह यहाँ पूरी शिद्दत से नज़र आती है। रंगों का चुनाव गहरा, सघन और प्रभावशाली है, जो हर सीन को दमदार बना देता है।
अश्वराज के ट्रांसफॉर्मेशन वाले दृश्यों में शरीर की मांसपेशियों और घोड़े के धड़ के मेल को बेहद बारीकी से दिखाया गया है। यह बदलाव देखने में जितना ताकतवर लगता है, उतना ही यादगार भी है।
युद्ध के मैदान में बहता खून, कटते हुए सिर और उड़ती धूल के दृश्य इतने जीवंत हैं कि पाठक खुद को उसी युद्ध का हिस्सा महसूस करने लगता है।
कालखजूरा और भोंकम्प जैसे राक्षसों के डिजाइन डरावने होने के साथ-साथ काफी मौलिक भी हैं, जो उन्हें आम खलनायकों से अलग बनाते हैं।
पृष्ठभूमि में बनी तिलिस्मी गुफाएँ, खोपड़ियाँ और विशाल महल कहानी के रहस्यमय माहौल को और भी गहरा कर देते हैं।
लेखन और संवाद:

मीनू वाही का लेखन और तरुण कुमार वाही की पटकथा काफी कसी हुई और प्रभावी है। संवादों में एक तरह का भारीपन और गंभीरता है, जो पौराणिक माहौल के बिल्कुल अनुकूल बैठती है।
“हा हा हा! अश्वराज! लड़ोगे कन्या से?” जैसे संवाद चुनौती और व्यंग्य दोनों पैदा करते हैं, वहीं “अश्वराज, तुम्हारी हूण सब बाधाओं को पार कर जाएगी” जैसे संवाद नायक के प्रति गहरे विश्वास को मजबूत करते हैं। कहानी की रफ्तार तेज है और पाठक को कहीं भी ऊब महसूस नहीं होती।
समीक्षात्मक टिप्पणी:
‘तिलिस्म का खिलाड़ी’ सिर्फ मनोरंजन तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यह इंसानी स्वभाव का भी एक गहरा अध्ययन है। यह दिखाता है कि कैसे एक इंसान का अहंकार, जैसे अश्वन्तक का, और दूसरे की चालाक बुद्धि, जैसे तुताबूता की, पूरे संसार को तबाही की ओर ले जा सकती है।
कहानी का अंत एक बड़े सस्पेंस के साथ होता है। अश्वराज की मृत्यु की खबर फैल चुकी है और सम्राट तारपीड़ो अश्वमणि लेकर खुद युद्ध के मैदान में उतर चुका है। यह क्लिफहैंगर पाठकों को मजबूर कर देता है कि वे अगला भाग ‘फिर आया अश्वराज’ जरूर पढ़ें।
निष्कर्ष:
अगर आप पुरानी यादों में खो जाना चाहते हैं और भारतीय कॉमिक्स के स्वर्ण युग का असली स्वाद लेना चाहते हैं, तो ‘तिलिस्म का खिलाड़ी’ एक मस्ट-रीड कॉमिक्स है। यह कहानी, चित्रांकन और रोमांच का ऐसा मेल है, जो बहुत कम देखने को मिलता है।
अश्वराज की यह यात्रा हमें सिखाती है कि चाहे बुराई कितनी भी ताकतवर क्यों न हो और साजिशें कितनी भी गहरी क्यों न हों, आखिरकार जीत सच और वफादारी की ही होती है।
राज कॉमिक्स ने इस डिजिटल दौर में भी अपनी इन धरोहरों को संभालकर रखा है, इसके लिए वे तारीफ के हकदार हैं। यह कॉमिक आज की युवा पीढ़ी को भी उतनी ही पसंद आएगी, जितनी कभी उनके माता-पिता को आई थी। अश्वराज की यह गाथा भारतीय ग्राफिक उपन्यासों के इतिहास में हमेशा एक यादगार मील का पत्थर बनी रहेगी।
रेटिंग: 4.5/5
समीक्षा: एक शानदार तिलिस्मी सफर, जो आख़िरी पन्ने तक बाँधे रखता है।
