मुंबई के फौलादी रक्षक “डोगा” और असम के जंगलों के अजेय योद्धा “भेड़िया” इन दो प्रमुख और विरोधाभासी किरदारों का महासंगम “कौन बड़ा जल्लाद” (विशेषांक संख्या 0124) महज़ एक कॉमिक बुक नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक घटना है, जिसने अपनी-अपनी दुनिया के इन बेताज बादशाहों को एक-दूसरे के सामने ला खड़ा किया। तरुण कुमार वाही (लेखक) और धीरज वर्मा (पेंसिलिंग) की दिग्गज जोड़ी द्वारा रचित यह कॉमिक्स अपने शीर्षक से ही एक मौलिक प्रश्न पूछती है कि “जल्लाद” कौन है? क्या वह जो शहर के कंक्रीट के जंगलों में अपराधियों को जड़ से उखाड़ फेंकता है, या वह जो प्रकृति के हरे-भरे जंगल में घुसपैठियों को चीर डालता है? यह समीक्षा इसी प्रश्न के इर्द-गिर्द बुनी गई कहानी, उसके किरदारों, उसकी कला और उसके प्रभाव का गहन विश्लेषण करेगी।
जंगल में शहरी शिकारी
कहानी की शुरुआत मुंबई के “जल्लाद” डोगा के एक अपरिचित क्षेत्र में प्रवेश करने से होती है – असम के घने, रहस्यमयी जंगल। डोगा यहाँ अपने एक पुराने दुश्मन, माइकल को पकड़ने आया है। माइकल, जो एक शातिर अपराधी है, जंगल में छिपकर किसी खतरनाक साजिश को अंजाम दे रहा है। डोगा के लिए यह एक नई चुनौती है। उसका कार्यक्षेत्र मुंबई की गलियाँ, गगनचुम्बी इमारतें और अंडरवर्ल्ड के अड्डे हैं, न कि यह हरियाली, जंगली जानवर और रहस्यमयी धुंध।

दूसरी ओर, यह जंगल “भेड़िया” का घर है। वह यहाँ का राजा है, यहाँ का रक्षक है। जंगल का कानून उसका कानून है। जब डोगा, एक “शहरी”, अपने भारी-भरकम हथियारों (विशेषकर उसकी चेनगन) के साथ जंगल में प्रवेश करता है, तो वह भेड़िया की नज़र में एक घुसपैठिया बन जाता है। भेड़िया का सिद्धांत सरल है – “भेड़िया के जंगलों में कोई शैतान आकर तो झांके, उसका सीना चीर डालूंगा।”
कहानी का पहला हिस्सा इन दोनों की गलतफहमियों पर आधारित है। लेखक तरुण कुमार वाही ने बड़ी चतुराई से एक ऐसी स्थिति का निर्माण किया है जहाँ दोनों नायक अपने-अपने दृष्टिकोण से सही हैं। डोगा अपने मिशन पर है और वह किसी को भी रास्ते में नहीं आने दे सकता। भेड़िया अपने घर की रक्षा कर रहा है और वह हर बाहरी को खतरे के रूप में देखता है।
पटकथा में एक तीसरा और महत्वपूर्ण कोण “कोबी” का है। कोबी, जो भेड़िया का ही एक प्रतिरूप है और भेड़िया-फौज का सरदार है, हमेशा भेड़िया से अपनी श्रेष्ठता साबित करने में लगा रहता है। जब वह डोगा को जंगल में देखता है, तो उसे यह अपनी ताकत दिखाने का एक और मौका लगता है। इस तरह, कहानी एक त्रिकोणीय संघर्ष में बदल जाती है – डोगा बनाम भेड़िया, डोगा बनाम कोबी, और कुछ हद तक भेड़िया बनाम कोबी।

कहानी में मोड़ तब आता है जब माइकल की बहन “जेन” जंगल में पहुँचती है। वह एक असहाय, मासूम लड़की का नाटक करती है जो अपने “भटके हुए भाई” को ढूँढ रही है। भेड़िया, जो जंगल के निर्दोष प्राणियों का रक्षक है, जेन के झाँसे में आ जाता है और उसे डोगा से बचाने का वचन देता है। अब डोगा और भेड़िया का टकराव केवल एक गलतफहमी नहीं, बल्कि एक सैद्धांतिक लड़ाई बन जाता है। डोगा की नज़र में जेन एक अपराधी की सहयोगी है, जबकि भेड़िया की नज़र में वह एक “अतिथि” और “शरणागत” है जिसकी रक्षा करना उसका धर्म है।
यह संघर्ष कहानी को उस बिंदु पर ले आता है जहाँ दोनों नायकों को यह तय करना होता है कि उनका असली दुश्मन कौन है।
विश्लेषण: “जल्लाद” की फिलॉसफी
इस कॉमिक का असली मर्म इसकी एक्शन-पैक्ड कहानी से कहीं ज़्यादा गहरा है। यह “जल्लाद” शब्द की पुनर्व्याख्या करता है।
डोगा – व्यवस्था का जल्लाद: डोगा का दर्शन उसकी टैगलाइन में निहित है – “मैं समस्याओं का हल नहीं करता, उन्हें जड़ से उखाड़ फेंकता हूँ।” वह एक ऐसी व्यवस्था से उपजा है जो सड़ चुकी है। जहाँ कानून और पुलिस अपराधियों को सज़ा देने में विफल रहते हैं, वहाँ डोगा का न्याय शुरू होता है। वह एक एंटी-हीरो है। वह भावनाओं में नहीं बहता। उसके लिए माइकल एक अपराधी है और जेन उसकी मददगार। वह उन्हें खत्म करने आया है, और वह यह करके रहेगा। उसका न्याय क्रूर है, अंतिम है, और यही उसे मुंबई का “जल्लाद” बनाता है।
भेड़िया – प्रकृति का जल्लाद: भेड़िया का दर्शन प्राकृतिक है, आदिम है। वह जंगल का कानून है। वह उन शिकारियों, तस्करों और घुसपैठियों के लिए “जल्लाद” है जो जंगल के संतुलन को बिगाड़ते हैं। उसका न्याय भी त्वरित और क्रूर है, लेकिन वह प्रकृति के नियमों से बंधा है। वह एक “हीरो” है, एक रक्षक। जब जेन उसकी शरण में आती है, तो उसका “जल्लाद” रूप पिघल जाता है और “रक्षक” रूप सामने आता है। वह डोगा को एक ऐसे शिकारी के रूप में देखता है जो एक “निर्दोष” का शिकार करने आया है।

असली जल्लाद – माइकल: कहानी का असली “जल्लाद” माइकल है। वह न केवल जंगल की दुर्लभ जड़ी-बूटियों की तस्करी करके “आयुर्वेदिक जहर” बना रहा है, बल्कि वह अपनी सगी बहन जेन की भावनाओं का भी इस्तेमाल करता है। वह अपनी बहन को भी खतरे में डालने से नहीं हिचकिचाता। तरुण वाही यहाँ एक सामाजिक टिप्पणी करते हैं – असली जल्लाद वह सभ्य, पढ़ा-लिखा शहरी अपराधी है जो लाभ के लिए प्रकृति और इंसानियत, दोनों का खून करता है।
यह कॉमिक्स इस सवाल का सीधा जवाब नहीं देती कि “कौन बड़ा जल्लाद” है। बल्कि, यह पाठक पर छोड़ देती है। अंत तक पहुँचते-पहुँचते, पाठक यह समझ जाता है कि डोगा और भेड़िया, दोनों ही अपने-अपने तरीके के “जल्लाद” हैं, और दोनों ही न्याय के लिए लड़ रहे हैं। उनका असली दुश्मन वह है जो पर्दे के पीछे छिपा है।
चरित्र चित्रण
डोगा: तरुण वाही ने डोगा के चरित्र को उसकी जड़ों से जोड़े रखा है। जंगल में होने के बावजूद, डोगा का व्यवहार नहीं बदलता। वह कम बोलता है, सटीक विश्लेषण करता है और उसके इरादे फौलादी हैं। जब वह भेड़िया से कहता है, “जंगल के कानून से मेरा कोई वास्ता नहीं… मैं अपना कानून खुद हूँ,” तो वह डोगा के मूल चरित्र को दर्शाता है।
भेड़िया: भेड़िया को उसकी पूरी महिमा में दिखाया गया है। वह गुस्सैल है, शक्तिशाली है, लेकिन साथ ही भावुक भी है। जेन के प्रति उसकी सहानुभूति उसे डोगा के खिलाफ खड़ा कर देती है, जो उसके चरित्र की मानवीय (या कहें, प्राकृतिक) कमजोरी को दर्शाता है।
कोबी: कोबी इस कहानी का “वाइल्ड कार्ड” है। वह हमेशा की तरह अराजकता का प्रतीक है। धीरज वर्मा की कला ने कोबी को भेड़िया से भी अधिक खूंखार और जंगली दिखाया है। डोगा के साथ उसकी लड़ाई कॉमिक्स के सबसे बेहतरीन एक्शन दृश्यों में से एक है।
कला और चित्रांकन: धीरज वर्मा का शिखर
अगर तरुण वाही इस कॉमिक की आत्मा हैं, तो धीरज वर्मा इसके धड़कते हुए दिल हैं। यह कॉमिक धीरज वर्मा के कलात्मक शिखर का एक उत्कृष्ट नमूना है।
एनाटॉमी और डायनामिक्स: वर्मा का हर किरदार एक मांस-पेशियों का तूफान है। डोगा का विशालकाय शरीर, भेड़िया की जंगली फुर्ती और कोबी का दानव जैसा रूप… हर पैनल ऊर्जा से भरा है। एक्शन दृश्यों में एक गति है, एक प्रवाह है जो पाठक को पन्ने पलटने पर मजबूर कर देता है।
जंगल का चित्रण: धीरज वर्मा ने जंगल को केवल एक पृष्ठभूमि के तौर पर नहीं, बल्कि एक जीवित चरित्र के तौर पर पेश किया है। “अंधी धुंध”, “काईगुला” और “तनतन्ना” जैसे रहस्यमयी तत्व (जो भेड़िया की अपनी कॉमिक्स से लिए गए हैं) डोगा के लिए जंगल को एक अलौकिक और खतरनाक जगह बना देते हैं।
खूंखार भाव: वर्मा की सबसे बड़ी खूबी किरदारों के चेहरे के भाव हैं। गुस्सा, नफरत, क्रूरता – हर भाव स्पष्ट दिखता है। जब कोबी डोगा पर झपटता है, या जब भेड़िया डोगा को घूरता है, तो उनके चेहरों की वहशीयत देखने लायक होती है।
रंग और इंकिंग: सुनील पाण्डेय का रंग-सज्जा और राजेन्द्र धोनी/मनु की इंकिंग ने धीरज वर्मा की पेंसिलिंग को और निखारा है। जंगल के गहरे हरे और भूरे रंग, डोगा की पोशाक के गहरे रंग, और विस्फोट के समय चमकीले नारंगी और पीले रंगों का प्रयोग कहानी के मूड को सेट करता है।
संवाद: तरुण वाही की कलम का जादू
इस कॉमिक के संवाद आज भी उतने ही दमदार हैं जितने उस समय थे।
“मैं समस्याओं का हल नहीं करता… उन्हें जड़ से उखाड़ फेंकता हूँ।” (डोगा)
“भेड़िया के जंगलों में कोई शैतान आकर तो झांके… उसका सीना चीर डालूंगा।” (भेड़िया)
“तू शहरी कीड़ा… मेरे जंगल में क्या कर रहा है?” (कोबी का डोगा से)
“रोक सको तो रोक लो भेड़िया… यह अपराधी और उसका जहर, दोनों मेरे साथ मुंबई जाएंगे।” (डोगा)
ये संवाद केवल पंक्तियाँ नहीं हैं, ये किरदारों के चरित्र का दर्पण हैं।
चरमोत्कर्ष (Climax) और निष्कर्ष
कहानी का चरमोत्कर्ष तब आता है जब भेड़िया को माइकल की सच्चाई का पता चलता है। माइकल अपनी बहन जेन को भी मारने का प्रयास करता है, और तब भेड़िया का “रक्षक” रूप जागृत होता है। वह समझ जाता है कि डोगा सही था।
इसके बाद जो होता है, वह राज कॉमिक्स के प्रशंसकों के लिए एक सपने के सच होने जैसा है। डोगा और भेड़िया एक साथ मिलकर माइकल और उसके गुंडों पर हमला करते हैं। यह एक बेजोड़ टीम-अप है। एक तरफ डोगा की चेनगन गोलियाँ उगलती है, तो दूसरी तरफ भेड़िया के नुकीले नाख़ून दुश्मनों को चीर देते हैं।

अंतिम लड़ाई पानी के नीचे, मगरमच्छों के बीच होती है। यह दिखाता है कि दोनों नायक न केवल अपनी-अपनी दुनिया में, बल्कि किसी भी परिस्थिति में लड़ने में सक्षम हैं।
अंत में, जब माइकल हार जाता है, तो दोनों नायक एक-दूसरे को समझते हैं। डोगा और भेड़िया हाथ मिलाते हैं। यह दो “जल्लादों” का नहीं, बल्कि दो “नायकों” का मिलन है। डोगा कहता है, “तुम्हारे जंगल ने मुझे पसंद नहीं किया भेड़िया।” जिस पर भेड़िया जवाब देता है, “शायद जंगल भी समझ गया है कि शहर में भी एक जंगल है… और तुम उसके रक्षक हो।”
अंतिम फैसला
“कौन बड़ा जल्लाद” सिर्फ एक कॉमिक्स नहीं, बल्कि एक अनुभव है। यह राज कॉमिक्स के दो सबसे बड़े और विपरीत विचारधाराओं वाले नायकों को एक मंच पर लाती है और यह दिखाती है कि जब लक्ष्य न्याय हो, तो रास्ते अलग होने पर भी मंजिल एक हो सकती है।
यह कहानी आज भी प्रासंगिक है। आज भी प्रकृति और उद्योग के बीच, कानून और न्याय के बीच संघर्ष जारी है। यह कॉमिक हमें बताती है कि असली “जल्लाद” वह नहीं जो क्रूरता से न्याय करता है, बल्कि वह है जो स्वार्थ के लिए क्रूरता करता है।
यह विशेषांक तरुण कुमार वाही की बेहतरीन पटकथा, धीरज वर्मा की कालजयी कला और राज कॉमिक्स के सबसे बड़े क्रॉसओवर में से एक के लिए हमेशा याद रखा जाएगा। यह हर कॉमिक्स प्रेमी के संग्रह में होनी वाली एक अनमोल कृति है।
