नागराज, सुपर कमांडो ध्रुव, भेड़िया जैसे कई मशहूर नायकों के बीच एक ऐसा हीरो भी था जो हमेशा अंधेरे में रहता था। उसका न्याय करने का तरीका दुनिया के कानूनों से अलग था – और वही था डोगा। मुंबई का यह अपना ही चुना हुआ रक्षक, जो कुत्तों से बातें करता था और अपराधियों के लिए मौत से भी डरावना साया था, जल्दी ही पाठकों के बीच अपनी अलग और जबरदस्त पहचान बना चुका था।
डोगा की कहानियाँ हमेशा से ही अपराध की बेरहम और हकीकत वाली दुनिया दिखाती थीं। लेकिन “मर्द और मुर्दा” एक ऐसा खास अंक है, जो डोगा की पुरानी कहानियों से भी आगे बढ़कर अपराध, एक्शन, हॉरर और अलौकिक ताकतों का ऐसा ज़बरदस्त मिश्रण पेश करता है, जो आज भी पाठकों के दिमाग में ताज़ा है।
संजय गुप्ता और विवेक मोहन की कहानी, तरुण कुमार वाही का दमदार लेखन और धीरज वर्मा का शानदार चित्रांकन मिलकर इस कॉमिक्स को सिर्फ एक हीरो-विलन की लड़ाई तक सीमित नहीं रखते। ये कॉमिक्स पहचान, त्याग, प्यार और अंधविश्वास जैसी गहरी और दिल को छूने वाली बातों से भी जुड़ जाती है।
कथानक: एक असाधारण शुरुआत
कहानी की शुरुआत एक बेहद नाटकीय और तनाव से भरे सीन से होती है। मौत की सज़ा पाए हुए एक ख़तरनाक अपराधी विडो किलर (विधवाओं का हत्यारा) जेल से फरार हो जाता है। उसका मकसद साफ है – कानून की पकड़ से हमेशा-हमेशा के लिए आज़ाद होना। इसके लिए उसे चाहिए एक नया चेहरा। इसी वजह से वो शहर के मशहूर प्लास्टिक सर्जन, डॉक्टर मेहरा को धमकी देता है। धमकी ये कि अगर उन्होंने उसका ऑपरेशन नहीं किया तो उनके बेटे का अपहरण हो जाएगा।
लेकिन यहीं होती है डोगा की धांसू एंट्री। डोगा उसे पकड़ ही लेता है, मगर विडो किलर भी कोई मामूली खिलाड़ी नहीं है। वो चालाकी से एक तेज़ रफ्तार ट्रेन पर कूदकर भाग निकलता है।
डोगा से बचते-बचते विडो किलर रूपनगर के कब्रिस्तान में जा पहुँचता है। वहाँ उसे अहसास होता है कि अब प्लास्टिक सर्जरी का रास्ता बंद हो चुका है। यहीं से कहानी साइंस और लॉजिक की दुनिया से निकलकर तंत्र-मंत्र और अंधविश्वास की अंधेरी गली में उतर जाती है। विडो किलर, जो तांत्रिक विद्या भी जानता है, अब एक और डरावना रास्ता चुनता है – एक ताज़े मुर्दे के शरीर से अपना चेहरा बदलना।

इसी के साथ-साथ दूसरी तरफ चल रही है एंथोनी के परिवार की कहानी। एंथोनी एक अच्छा, सादा-सा इंसान था, जो हाल ही में गुजर चुका है। उसी दिन उसकी बेटी मारिया का जन्मदिन भी है। घर में मेहमान आ चुके हैं, केक टेबल पर रखा है, लेकिन मारिया केक काटने से इनकार कर देती है। उसकी ज़िद बस एक है – “पापा आएंगे तभी मैं केक काटूंगी।” एक मासूम बच्ची का अपने पिता के लिए इतना गहरा प्यार, अनजाने में ही एक ऐसी डरावनी घटना का बीज बो देता है जिसकी किसी ने कभी कल्पना भी नहीं की थी।
कब्रिस्तान में विडो किलर को अपने तांत्रिक काम के लिए एक ताज़ा मुर्दा चाहिए होता है और किस्मत उसे एंथोनी की कब्र तक खींच लाती है। वो एक भयानक तांत्रिक अनुष्ठान करता है और अपनी आत्मा को एंथोनी के शव में डाल देता है। अब विडो किलर एंथोनी के चेहरे और शरीर में ज़िंदा हो जाता है, जबकि एंथोनी की आत्मा विडो किलर के अपराधी शरीर में फँसकर जी उठती है।
यहीं से असली टकराव शुरू होता है।
चरित्र-चित्रण: भावनाओं का द्वंद्व
“मर्द और मुर्दा” की सबसे बड़ी ताकत है इसके दमदार किरदार। हर किरदार अपने-आप में इतना असरदार है कि कहानी खत्म होने के बाद भी दिमाग में घूमता रहता है।
डोगा: इस कहानी में डोगा सिर्फ धाँसू एक्शन हीरो नहीं है। यहाँ वो एक ऐसे राज़ में फँस जाता है जो उसकी समझ और तर्क से भी बाहर है। जब एंथोनी (जो विडो किलर के शरीर में कैद है) उससे मदद माँगता है और खुद को निर्दोष साबित करने की कोशिश करता है, तब डोगा का न्याय करने का तराज़ू हिल जाता है। पहली बार उसे अपनी पुरानी आदत – “सिर्फ आँखों देखे पर भरोसा करने” – को सवालों के घेरे में लाना पड़ता है। यही चीज़ डोगा के किरदार में एक नई गहराई भर देती है। यहाँ वो सिर्फ मसल्स और गुस्से से नहीं, बल्कि सहानुभूति और विवेक के बीच फँसकर जूझता नज़र आता है।
एंथोनी: शीर्षक का “मर्द” असल में यही है। एंथोनी कहानी का दिल है। एक ऐसा पति और पिता, जो मौत के बाद भी अपनी बेटी की पुकार सुनकर लौट आता है – लेकिन मजबूरी में एक अपराधी के शरीर में। उसकी बेबसी, अपनी असली पहचान साबित करने की तड़प और अपने परिवार को शैतान जैसी ताकत से बचाने का संघर्ष दिल को छू जाता है। पढ़ने वाला उसकी पीड़ा को महसूस करता है और खुद-ब-खुद चाहता है कि वो जीत जाए।

विडो किलर: ये कोई आम विलन नहीं है। ये है हैवानियत, स्वार्थ और शैतानी ताकतों का ज़िंदा प्रतीक। यही “मुर्दा” है, क्योंकि वो एक मृत शरीर का इस्तेमाल करता है और उसकी आत्मा भी मानो कब की मर चुकी है। अपने बचाव के लिए वो जिस हद तक गिर जाता है, वो सोचकर ही डर लगता है। जब वो एंथोनी का रूप धारण करता है, तब भी उसकी आँखों की वहशी चमक और क्रूरता साफ झलकती है। यही उसकी सबसे डरावनी खासियत है।
जूली और मारिया: इन दोनों किरदारों ने कहानी में भावनाओं की गहराई और भी बढ़ा दी है। जूली का अपने पति की मौत का ग़म, और फिर उसे एक अपराधी के शरीर में देखकर हुआ डर – यह द्वंद्व दिल को चीर देता है। वहीं, मारिया की मासूमियत और अपने पिता पर अटूट भरोसा इस कहानी को एक बेहद भावुक और इंसानी स्पर्श देती है।
कला और चित्रांकन: धीरज वर्मा का जादू
धीरज वर्मा का चित्रांकन इस कॉमिक्स की असली जान है। अगर उनकी कला न होती तो शायद “मर्द और मुर्दा” इतनी असरदार नहीं बन पाती। उनके काम में कई ऐसी खूबियाँ हैं जो इस कहानी को और भी खास बना देती हैं।
सबसे पहले, लड़ाई के दृश्य – ये इतने दमदार और तेज़ लगते हैं कि डोगा के मुक्कों की ताकत और विडो किलर की फुर्ती पन्नों पर ज़िंदा हो उठती है। हर एक्शन सीन में एक अलग किस्म की ऊर्जा और मूवमेंट दिखती है।
धीरज वर्मा का एक और कमाल है चेहरों पर भावनाएँ दिखाना। चाहे एंथोनी की आँखों में बेबसी हो, विडो किलर की वहशी क्रूरता, जूली का डर या डोगा का अटूट इरादा – सब कुछ इतने साफ तरीके से उभर आता है कि बिना कोई डायलॉग पढ़े भी समझ में आ जाता है कि किरदार क्या महसूस कर रहे हैं।
कहानी का माहौल काफी गंभीर और अंधेरा है, खासकर कब्रिस्तान वाले दृश्य और तांत्रिक अनुष्ठान। यहाँ धीरज वर्मा की शेडिंग और लाइन्स का कमाल दिखता है। कब्रिस्तान में लाशों का ज़िंदा होना और डोगा का उनसे भिड़ना – ये सीन तो सच में कलाकारी का मास्टरपीस है।
कॉमिक्स के पैनल का लेआउट भी गजब है। क्लोज़-अप शॉट्स जहाँ टेंशन बढ़ाते हैं, वहीं वाइड पैनल्स बड़े-बड़े एक्शन सीन का पैमाना दिखाते हैं। ये बैलेंस कहानी की रफ्तार को पकड़कर रखता है।
इसके अलावा, टी.आर. आज़ाद का रंग संयोजन और राजेंद्र धौनी व विनोद कुमार की इंकिंग धीरज वर्मा की आर्ट को और भी चमका देते हैं। नतीजा ये कि हर पन्ना एक विज़ुअल ट्रीट बनकर सामने आता है।
लेखन और संवाद: कहानीपन का शिखर
तरुण कुमार वाही का लेखन इस कॉमिक्स की एक और बड़ी ताकत है। कहानी इतनी कसी हुई है कि एक भी जगह बोरियत महसूस नहीं होती। एक्शन, इमोशन और हॉरर – तीनों का बैलेंस इतना अच्छा है कि पढ़ने वाला आख़िर तक बंधा रहता है।
संवाद भी कमाल के हैं – छोटे, तीखे और किरदारों के बिलकुल फिट। जैसे डोगा का डायलॉग – “मैं बदला नहीं लेता, फैसला करता हूँ” – उसके पूरे व्यक्तित्व को परिभाषित करता है। वहीं, एंथोनी का अपनी पत्नी से कहना – “जूली, मैं तुम्हारा एंथोनी हूँ” – उसकी लाचारी और दिल का दर्द साफ़ दिखाता है।
कहानी की सबसे बड़ी खूबी ये है कि यह शुरुआत में एक क्राइम थ्रिलर लगती है और धीरे-धीरे सुपरनैचुरल हॉरर में बदल जाती है। यह बदलाव इतना स्मूद है कि लेखकों की काबिलियत खुद-ब-खुद सामने आ जाती है।
थीम और विश्लेषण: पहचान का संकट
ये सिर्फ एंथोनी की कहानी नहीं है, बल्कि डोगा की भी है। डोगा, जो खुद एक आम इंसान है, लेकिन अपराधियों से लड़ने के लिए उसने अपने ऊपर एक डरावनी और हिंसक पहचान चढ़ा रखी है। यह कहानी उसे ये सिखाती है कि असली हीरो का चेहरा नहीं, बल्कि उसका मकसद और उसकी आत्मा मायने रखती है।
ये थीम राज कॉमिक्स के कई और नायकों की कहानियों में भी दिखती है – जहाँ हीरो अपनी असली पहचान छुपाकर काम करता है। लेकिन यहाँ इसे और गहराई से पेश किया गया है।
‘मर्द और मुर्दा’ का टाइटल भी वाकई गज़ब का है। ये सिर्फ नाम नहीं, पूरी कहानी का निचोड़ है। “मर्द” एंथोनी है – जिसकी इच्छाशक्ति इतनी मजबूत है कि वो अपने परिवार के लिए मौत के बाद भी लड़ता है। वहीं “मुर्दा” है विडो किलर – जिसकी इंसानियत कब की मर चुकी है और जो अपनी राक्षसी महत्वाकांक्षाओं के लिए इंसानों की ज़िंदगियाँ और लाशें दोनों इस्तेमाल करता है।
कहानी में प्रेम की शक्ति भी अहम भूमिका निभाती है। मारिया का अपने पिता के लिए अटूट भरोसा और प्यार ही असली भावनात्मक धागा है, जो एंथोनी को वापस खींच लाता है। यही प्यार डोगा को भी सही रास्ते पर लड़ने की प्रेरणा देता है। ये दिखाता है कि चाहे कहानी कितनी भी अंधेरी या डरावनी क्यों न हो, आखिरकार सबसे बड़ी ताकत प्यार ही है।
इसके अलावा, यहाँ एक दिलचस्प टकराव भी दिखता है – विज्ञान बनाम अंधविश्वास। एक तरफ प्लास्टिक सर्जरी जैसी आधुनिक साइंस है, तो दूसरी तरफ तंत्र-मंत्र का अंधेरा। इन दोनों का मेल उस दौर में एक नया और अलग प्लॉट था, जिसे पाठकों ने बहुत पसंद किया। यह भी साफ दिखाता है कि भारतीय कॉमिक्स उस समय आधुनिक सोच और अपनी सांस्कृतिक जड़ों को जोड़ने की कोशिश कर रही थीं।
यही वजह है कि “मर्द और मुर्दा” सिर्फ डोगा के एक्शन सीन की वजह से यादगार नहीं है, बल्कि इन गहरे और सोचने पर मजबूर करने वाले विषयों के लिए भी खास है।
तो आपको क्या लगता है – इस कहानी में कोई और छिपा हुआ विषय भी है?
निष्कर्ष
“मर्द और मुर्दा” राज कॉमिक्स के इतिहास में एक सच्चा मील का पत्थर है। ये सिर्फ़ डोगा की कॉमिक्स नहीं है, बल्कि एक पूरी और खुद में पूरी तरह खड़ी कहानी है जिसमें एक्शन, ड्रामा, हॉरर और इमोशन का जबरदस्त मेल है।
ये ऐसी कहानी है जो शुरू से अंत तक आपको अपनी पकड़ में रखती है और खत्म होने के बाद भी दिमाग में घूमती रहती है। धीरज वर्मा की शानदार आर्ट और तरुण कुमार वाही का दमदार लेखन इसे सच में एक कालजयी (टाइमलेस) रचना बना देते हैं।
ये कॉमिक्स इस बात का सबूत है कि भारतीय कॉमिक्स में भी गहरी, जटिल और सोचने पर मजबूर करने वाली कहानियाँ कहने की पूरी ताकत थी। अगर आप इंडियन कॉमिक्स के फैन हैं, या बस एक शानदार कहानी पढ़ना चाहते हैं, तो “मर्द और मुर्दा” ज़रूर पढ़नी चाहिए।
आज भी ये कॉमिक्स उतनी ही असरदार और मज़ेदार है, जितनी अपने रिलीज़ होने के समय थी।