राज कॉमिक्स के स्वर्णिम युग की महागाथाओं में, ‘कपालिका’ विशेषांक (संख्या 103, मूल्य 16.00) एक ऐसा अध्याय है जो न केवल रोमांच और एक्शन से भरपूर है, बल्कि पौराणिक तत्वों और भावनात्मक उतार-चढ़ाव का एक अनूठा संगम भी प्रस्तुत करता है। यह कॉमिक्स, जो ‘कालकूट‘, ‘मृत्युजीत‘ और ‘डंकिनी’ जैसे पूर्व अंकों की कथा को आगे बढ़ाती है, महाबली भोकाल और उनके पराक्रमी साथियों, अतिक्रूर और धनुषा के ‘कलंका नगरी’ में प्रवेश और दानवी शक्तियों से उनके भीषण युद्ध की कहानी है।
इस अंक का मुख्य आकर्षण है ‘रुधिर यज्ञ’ का विध्वंस और कपालिका तथा उसकी बहन कलंकिनी की दानवी महत्वाकांक्षाओं का चरम। यह कहानी महज नायक-खलनायक के सीधे मुकाबले तक सीमित नहीं रहती, बल्कि इसमें हनुमान के वृद्ध रूप में ‘वचनबद्ध’ होने की विवशता, अतिक्रूर का रहस्यमय रक्त संबंध, और धनुषा का असंभव-सा प्रतीत होने वाला लक्ष्य भेदन—जैसे कई स्तरों पर ड्रामा और एक्शन गुंथा हुआ है। कदम स्टूडियो द्वारा चित्रांकित, यह विशेषांक राज कॉमिक्स की उस विशिष्ट शैली का प्रतिनिधित्व करता है, जहाँ हर फ्रेम जीवंतता और ऊर्जा से भरा होता है।
चित्रांकन और प्रस्तुति (Art and Presentation)
‘कपालिका’ का कवर स्वयं ही उस महासंग्राम की झलक दे देता है जो भीतर प्रतीक्षा कर रहा है। भोकाल को एक विशाल दानवी छाया (शायद कपालिका) के सामने, अपनी पत्नी और साथी दानवी के चंगुल से छुड़ाने के प्रयास में दिखाया गया है। कदम स्टूडियो का चित्रांकन, जो उस दौर की राज कॉमिक्स की पहचान था, इस अंक में अपनी चरम सीमा पर है। रंगों का इस्तेमाल गहरा और नाटकीय है, खासकर कपालिका और अतिक्रूर जैसे पात्रों के चित्रण में।

पृष्ठ दर पृष्ठ, कलाकारों ने एक्शन सीन्स को अविश्वसनीय गति और बल के साथ दर्शाया है। चाहे वह अतिक्रूर का अपने प्रलयंकारी अस्त्र ‘दंताक’ से अजगौरा पर प्रहार हो, या धनुषा का ‘कोटिश लक्ष्य भेदी बाण’ चलाना, हर मूवमेंट में एक अद्भुत ऊर्जा का संचार होता है। दानवी रूपों (जैसे अजगौरा, महामुण्ड, कपालिका का बवण्डर रूप) को भयानक और प्रभावशाली बनाया गया है, जो पाठकों को ‘कलंका नगरी’ के भयावह वातावरण में खींच लेता है। चित्रांकन की यह विशिष्ट शैली ही इस कॉमिक्स को एक कालातीत अपील देती है।
कथा-वस्तु: गहराई और गति (The Narrative: Depth and Pacing)
कपालिका की कथा-वस्तु बेहद सघन और गतिशील है। कहानी तुरंत ही पाठकों को महासंकट के केंद्र में ले आती है, जहाँ मृत्युजीत को परास्त करने के बावजूद भोकाल का परिवार कलंका नगरी में कैद है और महाशक्तिशाली कपालिका ‘रुधिर यज्ञ’ की तैयारी कर रही है।
आरंभ और हनुमान का ‘वचनबद्ध’ होना:
भोकाल, वृद्ध (हनुमान), अतिक्रूर और धनुषा विषसागर को पार करते हुए कलंका नगरी की ओर बढ़ते हैं। मत्स्यकेतु पर भोकाल का विजय शुरुआती एक्शन का प्रदर्शन करता है, लेकिन असली जटिलता तब आती है जब कपालिका एक छलपूर्ण ‘बवण्डर माया’ से भोकाल को अगवा कर लेती है।

इस मोड़ पर, हनुमान (वृद्ध के वेश में) का चरित्र एक गहन नैतिक दुविधा में फंस जाता है। भगवान राम के सम्मुख उनका ‘जय श्रीराम’ का आह्वान और राम का यह स्पष्टीकरण कि वह (राम और अन्य देवता) राक्षसों को दिए गए वरदानों के कारण ‘वचनबद्ध’ हैं और सीधे हस्तक्षेप नहीं कर सकते, कहानी में एक महत्वपूर्ण पौराणिक और दार्शनिक आयाम जोड़ता है। यह दर्शाता है कि दिव्य शक्तियाँ भी नियमों और मर्यादाओं से बंधी हैं, और पृथ्वी पर धर्म की रक्षा का भार अंततः मनुष्यों (भोकाल, अतिक्रूर) पर ही है। हनुमान की विवशता, उनका अपने भक्त को बचा न पाना, कहानी को भावनात्मक गहराई देता है।
अतिक्रूर का उदय (The Rise of Atikroor):
भोकाल के अगवा होने के बाद, कहानी का फोकस पूरी तरह से अतिक्रूर पर शिफ्ट हो जाता है, जो इस अंक का अप्रत्याशित नायक बनकर उभरता है। कलंका के बाहरी मार्ग की रक्षा कर रहे अजगौरा (विशालकाय सर्प) से अतिक्रूर का युद्ध एक्शन का एक बेहतरीन नमूना है। अजगौरा की अजेय शक्ति और फूंक से चट्टानों को उड़ाने की क्षमता के सामने, अतिक्रूर अपनी असाधारण शारीरिक शक्ति और ‘दंताक’ का प्रयोग कर उसे परास्त करता है। यह लड़ाई अतिक्रूर की क्रूरता (जैसा कि उसके नाम से स्पष्ट है) और अदम्य संकल्प को स्थापित करती है।

इसके बाद, जब धनुषा और अतिक्रूर दोनों कलंका नगरी में प्रवेश करते हैं, तो कहानी का नियम (Rule of the city) सामने आता है—’कलंका में प्रवेश करते ही हर पुण्य शक्ति क्षीण हो जाती है।’ धनुषा के बाणों का विफल होना और उसकी शक्ति का क्षीण होना, इस नियम की गंभीरता को दर्शाता है। लेकिन अतिक्रूर, जिसका रक्त संबंध दानवी जाति से है, इस प्रभाव से अप्रभावित रहता है। यह बिंदु पाठक को एक महत्वपूर्ण रहस्य के लिए तैयार करता है।
कलंकिनी का रहस्य और भावनात्मक चरम-सीमा (Kalankini’s Twist and Climax):
कहानी का भावनात्मक और नाटकीय क्लाइमेक्स तब आता है जब अतिक्रूर कैद भोकाल और वृद्ध (हनुमान) को मुक्त करता है। कपालिका ‘महामुण्ड’ को बुलाकर अतिक्रूर से लड़ती है, लेकिन अतिक्रूर ‘दंताक’ के एक ही प्रहार से उस महादानव को खंड-खंड कर देता है। हताश कपालिका अपने सबसे शक्तिशाली अस्त्र ‘कपाल’ (रक्त खींचने वाला अस्त्र) का उपयोग करती है और अतिक्रूर का रक्त चूसना शुरू कर देती है।
इसी क्षण, रुधिर यज्ञ के आह्वान पर प्रकट हुई कलंकिनी हस्तक्षेप करती है और एक बड़ा रहस्य खोलती है: अतिक्रूर उसकी ‘धर्म-पुत्री’ सरूपा का पुत्र है, और इसलिए वह उसका ‘धर्म-नाती’ है। कलंकिनी, जो अब तक शुद्ध दानवी क्रूरता की प्रतिमूर्ति थी, अपने ‘वरदान’ और ‘वचन’ के कारण विवश हो जाती है। यह भावनात्मक मोड़ कहानी को केवल एक एक्शन गाथा से ऊपर उठाकर, रिश्तों, धर्म और दानवत्व के बीच के संघर्ष को सामने लाता है।

कलंकिनी का यह कहना कि वह अतिक्रूर को बचाने के लिए अपने रुधिर यज्ञ की शक्ति को दांव पर लगा रही है, उसके चरित्र में अनपेक्षित मानवीयता (या दानवी नैतिकता) जोड़ता है।
अंतिम विजय और रुधिर यज्ञ का विध्वंस:
अतिक्रूर की बुद्धिमत्ता भी इस क्लाइमेक्स का हिस्सा है। वह कलंकिनी से कोई सांसारिक वस्तु नहीं, बल्कि अपनी माता के वरदान (जिसके कारण कलंकिनी वचनबद्ध है) का उपयोग करते हुए, कलंकिनी को कलंका नगरी से बाहर निकलकर उससे युद्ध करने का वरदान मांगता है। यह एक मास्टरस्ट्रोक था, क्योंकि कलंकिनी के बाहर जाते ही कलंका नगरी का ‘पुण्य शक्ति क्षीण करने’ वाला नियम टूट जाता है।

इस रणनीतिक चाल के कारण भोकाल और धनुषा को कलंका में प्रवेश करने और अपनी शक्तियों को पुनर्प्राप्त करने का मौका मिलता है। धनुषा, जो पहले शक्तिहीन था, अपने ‘कोटिश लक्ष्य भेदी बाण’ से एक साथ ग्यारह लाख रुधिर कुंडों को फोड़कर ‘रुधिर यज्ञ’ को नष्ट कर देता है।
अंतिम दृश्य में, यज्ञ विफल होने से कपालिका अपनी ही शक्ति (खून) को पीकर एक भयानक विस्फोट के साथ समाप्त हो जाती है। कलंकिनी, पराजित और अपने सारे बंधन से मुक्त, क्रोध में गरजती हुई अतिक्रूर को दो पहर का समय देकर अदृश्य हो जाती है—एक नए संघर्ष की चेतावनी के साथ।
पात्र-विश्लेषण (Character Analysis)
अतिक्रूर (Atikroor): इस अंक का ‘शो स्टीलर’ अतिक्रूर है। उसकी क्रूरता, अदम्य साहस और शारीरिक शक्ति ही नहीं, बल्कि उसकी बुद्धि (कलंकिनी से वरदान मांगने में) और भावनात्मक ईमानदारी (पाप की नगरी में न रुकने के संकल्प में) भी उभर कर आती है। वह इस कहानी में भोकाल का सबसे महत्वपूर्ण सहयोगी साबित होता है।
धनुषा (Dhanusha): धनुषा को एक बुद्धिमान और संकल्पवान धनुर्धर के रूप में दिखाया गया है। उसका क्षणिक शक्तिहीन होना और फिर अंत में ‘कोटिश लक्ष्य भेदी बाण’ से असंभव को संभव करना, उसे एक निर्णायक हीरो बनाता है। वह रणनीति और सटीक क्रियान्वयन का प्रतीक है।
भोकाल (Bhokaal): भोकाल इस अंक में केंद्रीय नायक होने के बावजूद, कहानी का एक बड़ा हिस्सा कैद या शक्तिहीन अवस्था में बिताता है। यह कथा की संरचना को रोचक बनाता है, क्योंकि यह द्वितीयक पात्रों को चमकने का अवसर देता है। भोकाल यहाँ अपने साथियों की शक्ति और वफादारी का एक उत्प्रेरक है।
कलंकिनी (Kalankini) और कपालिका (Kapaalika): ये दोनों खलनायिकाएं शक्तिशाली और क्रूर हैं। कपालिका शुद्ध एक्शन और मायावी छल का प्रतीक है, जबकि कलंकिनी का चरित्र अधिक जटिल है। उसका ‘धर्म-पुत्र’ के प्रति स्नेह और अपने ‘वचन’ से बंधी उसकी विवशता उसे एक शक्तिशाली दानवी रानी से बदलकर एक दुविधा में फंसी माता के रूप में प्रस्तुत करती है। कलंकिनी का चरित्र चित्रण कॉमिक्स में एक दुर्लभ भावनात्मक परत जोड़ता है।
विषय-वस्तु और निष्कर्ष (Themes and Conclusion)
‘कपालिका’ कॉमिक्स कई महत्वपूर्ण विषयों पर आधारित है:

धर्म और मर्यादा (Dharma and Vow): हनुमान और राम के माध्यम से यह संदेश दिया गया है कि ‘धर्म’ का पालन (वरदान का सम्मान, वचनबद्धता) सबसे ऊपर है, यहाँ तक कि अधर्म के नाश के मार्ग में भी।
छल पर सत्य की विजय (Truth over Deception): कपालिका का छल (बवण्डर माया और संधि का नाटक) अंततः विफल होता है क्योंकि उसके छल को उसके रक्त संबंध (कलंकिनी द्वारा) से ही तोड़ा जाता है।
सामूहिक शक्ति (Collective Power): यह कहानी बताती है कि एक महाबली (भोकाल) की अनुपस्थिति में भी, उसके वफादार और रणनीतिक साथी (अतिक्रूर और धनुषा) सामूहिक रूप से बड़ी से बड़ी बुराई को परास्त कर सकते हैं।
‘कपालिका’ विशेषांक राज कॉमिक्स के इतिहास में एक मील का पत्थर है। यह एक्शन, इमोशन, और माइथोलॉजी का एक ऐसा मिश्रण है जो आज भी पाठकों को बांधे रखता है। यह न केवल पिछली गाथाओं का एक सफल निष्कर्ष प्रस्तुत करता है, बल्कि अतिक्रूर के चरित्र को एक नया और गहरा आयाम भी देता है, जो भविष्य की कहानियों के लिए एक शक्तिशाली नींव रखता है। कदम स्टूडियो की कला और संजय गुप्ता की गहन कथा-वस्तु इसे एक अनिवार्य क्लासिक बनाती है। यह कॉमिक्स इस बात का प्रमाण है कि राज कॉमिक्स ने अपने स्वर्णकाल में भारतीय कॉमिक्स को किस स्तर तक पहुँचाया था।
