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Home » भोकाल की महारावण गाथा — Maharavan Series Part-2 मृत्युजीत | शक्ति vs बुद्धि वाला सबसे ऐतिहासिक युद्ध
Hindi Comics World Updated:23 November 2025

भोकाल की महारावण गाथा — Maharavan Series Part-2 मृत्युजीत | शक्ति vs बुद्धि वाला सबसे ऐतिहासिक युद्ध

Maharavan Series के Part-2 में भोकाल की टक्कर अमर राक्षस मृत्युजीत से होती है — जहाँ देवताओं का हस्तक्षेप, दोस्ती-दुश्मनी, अहंकार और बुद्धि बनाम शक्ति का विस्फोटक संग्राम दिखाया गया है।
ComicsBioBy ComicsBio23 November 2025Updated:23 November 202509 Mins Read
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Bhokal Mrityujit – Maharavan Series Part 2 Review | Most Powerful Villain & Epic Fantasy Battle of Raj Comics
“Mrityujit – Maharavan Series Part 2 shows the unforgettable battle between Mahabali Bhokal and the immortal demon, blending mythology, fantasy and emotional character drama.”
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भारतीय कॉमिक्स के इतिहास में ‘राज कॉमिक्स’ का स्थान सबसे ऊँचा माना जाता है, और जब तलवार, जादू-टोने, रहस्यमयी दुनिया और फैंटेसी की बात आती है, तो ‘महाबली भोकाल’ का नाम सबसे पहले याद आता है। विकास नगर का रक्षक और परीलोक का यह वीर योद्धा अपने पाठकों को हमेशा ऐसी दुनिया में ले जाता है जहाँ देवता, दानव और इंसान सब साथ रहते हैं। आज जिस कॉमिक की हम समीक्षा कर रहे हैं, उसका नाम है “मृत्युजीत”। यह कॉमिक भोकाल की उन बेहतरीन कहानियों में से है जिसमें ज़बरदस्त एक्शन के साथ-साथ भारतीय पौराणिक कथाओं जैसा गहरा एहसास भी मिलता है।

नाम से ही समझ में आता है — “मृत्युजीत” एक ऐसे खलनायक की कहानी है जिसने साक्षात मृत्यु को ही हरा दिया है। इस कहानी में शक्ति, अहंकार, परिवार के भीतर लड़ाई और धर्म बनाम अधर्म के बीच होने वाले महायुद्ध का शानदार मेल देखने को मिलता है।

मृत्यु को चुनौती

कहानी की शुरुआत ही बहुत दमदार दृश्य से होती है। हिमालय की गुफाओं में ‘रक्षजीत’ नाम का एक राक्षस कठोर तपस्या में लीन है। उसकी तपस्या और शक्ति इतनी जबरदस्त है कि जब यमदूत उसके प्राण लेने आते हैं, वह उल्टा उन पर हमला कर देता है और उन्हें भगा देता है। फिर खुद यमराज उसके सामने आते हैं, लेकिन जैसे ही वे अपने मृत्यु-पाश से रक्षजीत को मारने वाले होते हैं, भगवान शिव का त्रिशूल प्रकट होकर रक्षजीत की रक्षा करता है। यह पल पढ़ते ही पता चल जाता है कि इस बार भोकाल को किसी साधारण राक्षस से नहीं, बल्कि शिव जी के वरदान से अमर बने योद्धा से लड़ना है। यहीं से रक्षजीत को नया नाम मिलता है — ‘मृत्युजीत’, यानी वो जिसे मृत्यु भी नहीं मार सके।

अमर बनने के बाद मृत्युजीत का घमंड आसमान छूने लगता है। वह स्वर्ग और पृथ्वी — दोनों पर अपना राज जमाना चाहता है। उसकी सनक इतनी बढ़ जाती है कि वह अपने ही भाई ‘कालकूट’ (जो खुद भी बहुत शक्तिशाली राक्षस है) के शरीर को काटकर उससे बना सिंहासन बनवाना चाहता है।

उधर देवताओं को इस अनहोनी का अंदेशा हो जाता है। वे जानते हैं कि मृत्युजीत को रोकना बस एक ही योद्धे के बस की बात है — महाबली भोकाल। नारद मुनि और अन्य देवता भोकाल को दिव्यास्त्र देते हैं और उसे इस महायुद्ध के लिए तैयार करते हैं।

कहानी का रोमांच और बढ़ जाता है जब मृत्युजीत विकास नगर और भोकाल के परिवार को अपना निशाना बनाता है। भोकाल, जो अपने परिवार और दोस्तों के साथ थोड़ी शांति के पल बिता रहा होता है, अचानक इस लड़ाई के तूफान में फिर खिंच जाता है।

इस कहानी में एक और बड़ा ट्विस्ट ‘अतिक्रूर’ के आने से होता है। अतिक्रूर, जो पहले भोकाल का दोस्त हुआ करता था, अब मृत्युजीत की सेना का सेनापति बनकर उसके सामने खड़ा है। बाद में पता चलता है कि अतिक्रूर असल में अपनी मर्ज़ी से बुरा नहीं बना, बल्कि एक जादुई मुद्रिका (अंगूठी) के असर में है जिसने उसे क्रूर और निर्दयी बना दिया है।

युद्धभूमि में भोकाल और मृत्युजीत आमने-सामने आते हैं। भोकाल अपनी पूरी ताकत से लड़ता है और देवताओं द्वारा दिए गए दिव्यास्त्र भी इस्तेमाल करता है। वह काली माँ के खड्ग से मृत्युजीत का सिर तक काट देता है, लेकिन ब्रह्मा के वरदान के कारण मृत्युजीत का सिर वापिस जुड़ जाता है और उसकी शक्ति पहले से भी ज़्यादा हो जाती है। यह पल कहानी में ऐसा मोड़ है जहाँ लगता है कि भोकाल शायद कभी जीत नहीं पाएगा — जैसे रास्ता बिल्कुल बंद हो गया हो।

आख़िर में भोकाल समझ जाता है कि सिर्फ brute force से यानी ताकत से मृत्युजीत को नहीं हराया जा सकता। फिर वह अतिक्रूर की अंगुली से जादुई मुद्रिका तोड़ देता है, जिससे अतिक्रूर वापस वैसा ही बन जाता है जैसा वह पहले था। फिर अतिक्रूर, जो धनुर्विद्या में बेहद माहिर है (कहानी में उसे श्रेष्ठ तीरंदाज या ‘धनुषा’ भी कहा गया है), भोकाल के साथ मिलकर लड़ने लगता है।

कहानी का क्लाइमेक्स बहुत दिलचस्प और दिमाग़ दौड़ाने वाला है। क्योंकि मृत्युजीत के शरीर का कोई भी टुकड़ा जब ज़मीन पर गिरता है तो वह फिर से जुड़ जाता है, इसलिए भोकाल और उसके साथी एक नया प्लान बनाते हैं। वे मृत्युजीत के शरीर के हज़ारों टुकड़े करते हैं और उन्हें थैलियों में भरकर गुरुत्वाकर्षण से बाहर — यानी अंतरिक्ष (शून्य) में फेंक देते हैं, जहाँ से वे कभी लौटकर पृथ्वी पर नहीं आ पाते। और इस तरह एक अमर राक्षस का अंत होता है।

पात्र विश्लेषण (Character Analysis)

महाबली भोकाल:
इस कॉमिक में भोकाल सिर्फ बहादुर योद्धा ही नहीं, बल्कि एक समझदार रणनीतिकार भी नज़र आता है। जब उसे लगता है कि सिर्फ तलवार और ताकत से जीत पाना नामुमकिन है, वह हार नहीं मानता, बल्कि शांत दिमाग से दुश्मन की कमजोरी ढूँढता है। उसका सफर बताता है कि जीत सिर्फ हथियारों से नहीं, बल्कि धैर्य और बुद्धि से भी हासिल होती है।

मृत्युजीत (रक्षजीत):
मृत्युजीत राज कॉमिक्स के सबसे ताकतवर और भयानक विलेन्स में गिना जाता है। उसकी कहानी रावण और हिरण्यकश्यप जैसे पौराणिक असुरों की याद दिलाती है — तपस्या की, वरदान पाया और फिर उसी वरदान का दुरुपयोग किया। उसका अहंकार ही उसकी बर्बादी का कारण बनता है। अपने भाई और सौतेली माँ के साथ उसका व्यवहार उसकी निर्दयता दिखाता है।

अतिक्रूर:
कहानी का सबसे दिलचस्प और भावनात्मक किरदार अतिक्रूर है। वह एक ऐसा पात्र है जो पूरी तरह बुरा भी नहीं और अच्छा भी नहीं — यानी ‘ग्रे कैरेक्टर’। शुरुआत में वह भोकाल का दुश्मन बनकर खड़ा है, पर असलियत में वह हालात का शिकार है। उसकी अंगूठी टूटने और होश में लौट आने का पल कहानी को दिल छू लेने वाली गहराई देता है। भोकाल और अतिक्रूर की दोस्ती, बिछड़ना और फिर साथ आना — यह पूरा सफर कहानी को बहुत मजबूत बनाता है।

हनुमान जी और देवता:
इस कॉमिक की एक और खास बात यह है कि इसमें देवताओं का सीधा हस्तक्षेप दिखाया गया है। हनुमान जी का भोकाल की मदद के लिए आना और उसे संजीवनी देना भारतीय पाठकों के लिए एक तरह की ‘फैन-सर्विस’ है। इससे यह बात भी और मज़बूती से स्थापित होती है कि भोकाल धर्म और न्याय के पक्ष में खड़ा योद्धा है।

चित्रांकन और कला (Artwork and Illustrations)

‘कदम स्टूडियो’ का आर्टवर्क 90 के दशक की शैली का शानदार उदाहरण है।
एक्शन सीन्स: युद्ध के दृश्यों में बहुत बढ़िया डिटेलिंग दिखाई देती है। जब भोकाल और मृत्युजीत आमने-सामने टकराते हैं या जब अतिक्रूर तीरों की बारिश करता है, तो हर पैनल में गति, ताकत और ऊर्जा साफ महसूस होती है — जैसे लड़ाई आपकी आँखों के सामने हो रही हो।
राक्षसों का चित्रण: मृत्युजीत और उसकी सेना को बहुत ही डरावने और विशालकाय रूप में दिखाया गया है, जिससे उनके सामने हीरो की चुनौती और भी बड़ी लगती है।
रंग संयोजन: कॉमिक में चमकीले और गहरे रंगों का इस्तेमाल किया गया है। लाल, पीला और नीला जैसे रंग ज़्यादा दिखाई देते हैं, जो फैंटेसी दुनिया वाले माहौल को बिल्कुल सही बैठते हैं।
अभिव्यक्ति: पात्रों के चेहरों पर गुस्सा, अहंकार, दर्द और पागलपन जैसी भावनाएँ बहुत अच्छे से उकेरी गई हैं। खासकर जब मृत्युजीत का सिर कटकर गिरता है और वह फिर भी हँसता है — वह दृश्य बेहद प्रभाव छोड़ने वाला है।

कहानी के मुख्य पहलू और विषय (Key Themes)

अमरता का अभिशाप:
मृत्युजीत की कहानी यह दिखाती है कि अमरता यानी ऐसा वरदान जिससे मृत्यु भी जीत न सके, इंसान को बदल देती है — और अक्सर बुरा बना देती है। मृत्युजीत को जैसे ही अमरता मिली, वह खुद को भगवान समझ बैठा। लेकिन प्रकृति का नियम यही है — जिसका जन्म हुआ है, उसका अंत भी तय है, फिर चाहे तरीका कितना ही अनोखा क्यों न हो।

शक्ति बनाम बुद्धि:
भोकाल कितनी ही बार मृत्युजीत को काटता है, लेकिन वह फिर से जीवित हो जाता है। इससे साबित होता है कि सिर्फ ताकत से जीत हासिल नहीं की जा सकती। आख़िर में जीत तब मिलती है जब भोकाल दिमाग़ का इस्तेमाल करता है और अंतरिक्ष वाली अनोखी योजना बनाता है। यानी अंतिम जीत बुद्धि की होती है।

पारिवारिक कलह:
इस कहानी में परिवार का एंगल भी बहुत महत्त्वपूर्ण है — मौत और युद्ध के बीच भी भाई बनाम भाई वाला संघर्ष चलता है (मृत्युजीत और अतिक्रूर)। सौतेली माँ, जलन और बदले की भावना कहानी को एक भावनात्मक और पारिवारिक मोड़ देती है — थोड़ा महाभारत जैसी झलक मिलती है।

पौराणिक संदर्भ:
संजय गुप्ता ने शिव, ब्रह्मा, यमराज और हनुमान जी को कहानी में बड़े सुंदर और सहज तरीके से जोड़ा है। “रक्तबीज” राक्षस की तरह यहाँ मृत्युजीत को हर बार कटने पर दोगुनी शक्ति मिलती है — यह विचार भारतीय पौराणिक कथाओं की याद दिलाता है और पाठकों को संस्कृति से जोड़ देता है।

समीक्षात्मक विश्लेषण (Critical Analysis)

सकारात्मक पक्ष (Pros):
मजबूत विलेन: हीरो तभी महान बनता है जब उसका दुश्मन खतरनाक हो — और मृत्युजीत सचमुच ऐसा विलेन है जिसे हराना नामुमकिन लगता है। यही पूरी कहानी में तनाव और रोमांच बनाए रखता है।
ट्विस्ट: अतिक्रूर और उसकी जादुई अंगूठी वाला ट्विस्ट कहानी को एक अलग गहराई देता है। इससे कहानी सिर्फ “लड़ाई करो और जीत जाओ” वाली कॉमिक नहीं रहती।
समापन: अंत बेहद संतोषजनक और तार्किक है — जादुई समस्या का वैज्ञानिक सॉल्यूशन (शरीर के टुकड़ों को पृथ्वी से बाहर फेंकना) बहुत शानदार लगता है।

नकारात्मक पक्ष (Cons):
संवाद: कुछ जगह संवाद काफी लंबे और ज़्यादा नाटकीय हैं, जो आज के हिसाब से थोड़ा भारी लग सकते हैं।
देवताओं की भूमिका: कुछ पाठक महसूस कर सकते हैं कि भोकाल कई जगह अपनी ताकत से ज्यादा देवताओं की मदद पर निर्भर दिखता है, जिससे उसकी व्यक्तिगत वीरता थोड़ी कम होती नजर आती है।

निष्कर्ष (Conclusion)

“मृत्युजीत” राज कॉमिक्स के स्वर्ण युग की बेहतरीन कहानियों में से एक है। इसमें फैंटेसी, जादू, तलवारबाज़ी, उड़ते घोड़े, देवताओं की उपस्थिति और ऐसा विलेन दिखता है जो मौत को भी हरा दे — यानी मनोरंजन का पूरा पैकेज।
संजय गुप्ता की लिखावट कहानी को पकड़कर रखती है और कदम स्टूडियो का चित्रांकन उस पूरी कल्पना को जीवंत बना देता है। यह कॉमिक बताती है कि बुराई चाहे कितनी भी बड़ी क्यों न हो, धर्म और सत्य के रक्षक उसके खिलाफ जीतने का रास्ता ढूँढ ही लेते हैं।

अगर आप 90 के दशक के उन पाठकों में से हैं जिन्होंने राज कॉमिक्स पढ़ते हुए बड़े हुए हैं, तो “मृत्युजीत” आपको पुरानी यादों की मीठी लहर में डुबो देगी। और अगर आप नए पढ़ने वाले हैं और भारतीय सुपरहीरो की जड़ों को समझना चाहते हैं, तो यह कहानी जरूर पढ़नी चाहिए। यही कारण है कि भोकाल को राज कॉमिक्स के ‘बिग थ्री’ — नागराज और ध्रुव के साथ — में शामिल किया जाता है।

रेटिंग: 4.5 / 5
अंतिम शब्द: “मृत्युजीत” सिर्फ एक राक्षस के अंत की कहानी नहीं है, बल्कि यह उस हिम्मत और जिद की कहानी है जो असंभव को भी संभव बनाने की ताकत रखती है। भोकाल की यह जीत आपकी कॉमिक कलेक्शन की शान बढ़ा देगी — इसमें कोई शक नहीं।

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