राज कॉमिक्स की दुनिया में ‘भोकाल’ का स्थान एक ऐसे महानायक का है जो परियों के देश से आकर धरती के लोगों की रक्षा करता है। उसकी कहानियाँ हमेशा पौराणिक माहौल, जादू-टोना और खतरनाक राक्षसों से भरी रहती हैं। आज हम जिस कॉमिक की बात कर रहे हैं, वह है “डंकिनी”। यह कॉमिक भोकाल की उस शृंखला का हिस्सा है जिसमें उसे एक के बाद एक बेहद विनाशकारी और खतरनाक शक्तियों का सामना करना पड़ता है।
“डंकिनी” सिर्फ भोकाल की बहादुरी की कहानी नहीं है, बल्कि यह तीन बहनों—कपालिका, कलंकिनी और डंकिनी—के बदले और बुराई की दास्तान भी है। यह कहानी साफ बताती है कि जब ताकत का इस्तेमाल गलत काम के लिए किया जाता है, तो उसका अंत तय है, चाहे वह शक्ति कितनी भी बड़ी क्यों न हो।
डंकिनी का प्रतिशोध
कहानी की शुरुआत फ्लैशबैक और पिछली घटनाओं के ज़िक्र से होती है। भोकाल पहले ही ‘कालकूट’ और ‘कालभुजंग’ जैसे बेहद ताकतवर राक्षसों का अंत कर चुका था। इसके बाद उसने ‘मृत्युजीत’ नाम के उस राक्षस को भी मार दिया, जिसे अमर माना जाता था। इन जीतों ने भोकाल को ‘महाबली’ और देवताओं का चहेता बना दिया।

लेकिन बुराई इतनी जल्दी हार नहीं मानती। ‘कलंका’ नाम की नगरी, जो कभी सोने की लंका थी और जिसे हनुमान जी ने जला दिया था, अब राक्षसों का अड्डा बन चुकी है। यहाँ तीन बहनें — डंकिनी, कलंकिनी और कपालिका — राज करती हैं। वे अपनी काली शक्तियों को बढ़ाने के लिए अमावस की रात को ‘पुण्य आत्माओं’ के रक्त से स्नान करती हैं।
इस बार उनका निशाना कोई आम इंसान नहीं, बल्कि खुद भोकाल और उसका परिवार है। डंकिनी, जो अपने जहरीले डंकों के लिए मशहूर है, भोकाल से अपने साथियों (कालकूट, कालभुजंग, मृत्युजीत) की मौत का बदला लेना चाहती है।
कहानी में बड़ा मोड़ तब आता है जब डंकिनी अपने मायाजाल का इस्तेमाल कर भोकाल की पत्नी ‘सलोनी’ का रूप धारण कर लेती है। भोकाल, जो अपनी पत्नी से बेहद प्यार करता है, इस धोखे को पहचान नहीं पाता। डंकिनी उसे एक खूबसूरत उद्यान में ले जाती है और अचानक उस पर हमला कर देती है।

लेकिन भोकाल तो असली योद्धा है। जैसे ही डंकिनी अपना असली रूप दिखाती है और अपने जहरीले डंकों से वार करती है, भोकाल तुरंत संभल जाता है। दोनों के बीच बहुत जबरदस्त और तीखा युद्ध होता है। डंकिनी के शरीर पर उगे हजारों डंक तीरों की तरह बरसते हैं, लेकिन भोकाल अपनी ढाल और अपनी तलवार ‘प्रहारा’ की मदद से उनका सामना करता है।
इस लड़ाई में भोकाल का साथी ‘अतिक्रूर’ भी बहुत अहम भूमिका निभाता है। अतिक्रूर, जो पहले भोकाल का दुश्मन था लेकिन बाद में उसका दोस्त बन गया, डंकिनी के जाल में फंस जाता है। डंकिनी उसे एक पिंजरे में कैद कर लेती है। यह कोई साधारण पिंजरा नहीं है — इसमें लगे डंक उसकी त्वचा को छेदने के लिए तैयार रहते हैं।
भोकाल को एक तरफ खुद को डंकिनी के बेजोड़ हमलों से बचाना है, दूसरी तरफ अतिक्रूर को बचाना है, और तीसरी तरफ उसे दो नए राक्षसों — ‘त्रिमुंडा’ (तीन सिर वाला राक्षस) और ‘मत्स्यकेतु’ (मछली जैसा राक्षस) — से भी लड़ना है, जो डंकिनी की मदद करने पहुंचते हैं।

कहानी का सबसे रोमांचक हिस्सा तब आता है जब भोकाल को ‘विष सागर’ पार कर कलंका नगरी पहुंचना होता है। यहाँ उसकी मदद के लिए खुद भगवान हनुमान आते हैं। हनुमान जी उसे एक खास ‘अंकुश’ देते हैं, जिससे वह मत्स्यकेतु को काबू कर सके।
आखिरकार, एक भव्य और महाकाव्य जैसी लड़ाई के बाद, जिसमें दिव्यास्त्रों और दैवीय शक्तियों की भरपूर टक्कर होती है, भोकाल डंकिनी और उसके साथियों को खत्म कर देता है। वह कलंका नगरी में प्रवेश करता है और वहाँ कैद किए गए निर्दोष लोगों को आज़ाद कराता है।
पात्र विश्लेषण (Character Analysis)
महाबली भोकाल:
इस कॉमिक में भोकाल का चरित्र बहुत अच्छा और संतुलित दिखाया गया है। वह एक प्यार करने वाला पति है जो अपनी पत्नी (सलोनी) से बेहद जुड़ा हुआ है, लेकिन साथ ही एक समझदार और तैयार रहने वाला योद्धा भी है। जब डंकिनी सलोनी का रूप लेकर आती है, तो भोकाल अपनी पत्नी के लिए प्यार में अंधा हो जाता है — यही उसकी इंसानियत दिखाता है। लेकिन जैसे ही उसे खतरे का एहसास होता है, वह तुरंत अपने असली योद्धा रूप में आ जाता है। उसकी सबसे बड़ी ताकत सिर्फ उसकी तलवार ‘प्रहारा’ या ढाल नहीं है, बल्कि उसका आत्मविश्वास, हिम्मत और अपने दोस्तों के प्रति वफादारी है।
डंकिनी (खलनायिका):
डंकिनी बहुत ही भयानक और ताकतवर विलेन है। उसका चरित्र बहुत शानदार तरीके से दिखाया गया है। उसके पूरे शरीर पर डंक (कांटे) हैं जिन्हें वह हथियार की तरह इस्तेमाल करती है। वह धोखा देने और प्लानिंग करने में माहिर है। उसका रूप बदलना और भोकाल को भावनात्मक रूप से फंसाना उसकी चालाकी और क्रूरता को साफ दिखाता है। वह सिर्फ शारीरिक चुनौती नहीं देती, बल्कि भोकाल की मानसिक मजबूती को भी परखती है।

अतिक्रूर और धनुषा:
भोकाल के साथी अतिक्रूर और धनुषा (तीरंदाज) इस कहानी को और मजबूत बनाते हैं। अतिक्रूर की भारी ताकत और धनुषा की तीर चलाने की सटीक कला भोकाल के लिए बहुत बड़ी मदद साबित होती है। अतिक्रूर का पिंजरे में फंस जाना और फिर भी हार न मानना दिखाता है कि वह कितना जिद्दी, हिम्मती और जुझारू है।
त्रिमुंडा और मत्स्यकेतु:
ये दोनों सहायक विलेन कहानी में अलग तरह का रोमांच लाते हैं। त्रिमुंडा अपनी खतरनाक शारीरिक ताकत के लिए जाना जाता है, जबकि मत्स्यकेतु समुद्र में होने वाली लड़ाइयों में बेहद घातक है। भोकाल का मत्स्यकेतु की पीठ पर सवार होकर समुद्र पार करना कॉमिक का सबसे यादगार और सिनेमैटिक पल है।
चित्रांकन और कला (Artwork and Illustrations)
‘कदम स्टूडियो’ का आर्टवर्क इस कॉमिक की असली जान है। 90 के दशक की तकनीक होने के बावजूद, चित्रों में जो बारीकी और मेहनत दिखती है, वह तारीफ के लायक है।

डंकिनी का डिज़ाइन बेहद अनोखा और अलग है। उसके शरीर के कांटे और हरी त्वचा उसे सच में एक डरावनी चुड़ैल जैसा रूप देते हैं। त्रिमुंडा और मत्स्यकेतु के डिज़ाइन भी बेहद कल्पनाशील और ध्यान खींचने वाले हैं। जब भोकाल और डंकिनी हवा में लड़ते हैं, या जब भोकाल मत्स्यकेतु से समुद्र में मुकाबला करता है, उन सीन में मूवमेंट और तेजी बहुत बढ़िया तरीके से दिखाई गई है। एक्शन सीन्स पढ़ते हुए लगता है जैसे सब कुछ आंखों के सामने चल रहा हो।
कॉमिक में चमकीले और गहरे रंगों का उपयोग किया गया है, जो इस फैंटेसी कॉमिक के माहौल को बिल्कुल सूट करता है। जादुई हमले, तीरों की बारिश या विस्फोट जैसी चीज़ों को दिखाने के लिए पीले और लाल रंगों का इस्तेमाल बहुत प्रभावशाली है। कलंका नगरी, विष सागर और घने जंगलों का चित्रण कहानी के मूड को रहस्यमय, डार्क और रोमांचक बना देता है। बैकग्राउंड हर सीन में कहानी के हिसाब से बदलता है और कॉमिक की ग्रिप को और मजबूत करता है।
मुख्य विषय और संदेश (Themes and Message)
छल का अंत:
डंकिनी ने धोखे और चालबाज़ी से भोकाल को मारने की योजना बनाई, लेकिन आखिर में वही हार गई। इससे साफ संदेश मिलता है कि छल और कपट से मिली जीत ज्यादा समय तक नहीं टिकती।
मित्रता की शक्ति:
भोकाल अकेले इस युद्ध को जीत नहीं सकता था। अतिक्रूर और धनुषा की मदद, और ऊपर से हनुमान जी का मार्गदर्शन — ये सब मिलकर ही जीत संभव हुई। यह दिखाता है कि जब टीम साथ हो और भरोसा मजबूत हो, तो सबसे बड़ी मुश्किल भी पार की जा सकती है।

बुराई का नाश:
कहानी का असली मंत्र वही पुराना लेकिन मजबूत संदेश है — सच हमेशा जीतता है और बुराई का अंत तय होता है। कलंका नगरी, जो पाप की जगह बन चुकी थी, अंत में भोकाल के हाथों मुक्त और शुद्ध होती है।
पौराणिक जुड़ाव:
कहानी में हनुमान जी का आना और लंका (कलंका) का संदर्भ भारतीय पाठकों को पौराणिक भावनाओं से जोड़ देता है। यह एहसास कराता है कि हमारे सुपरहीरो कोई बाहरी नहीं, बल्कि हमारी अपनी संस्कृति और विरासत के नायक हैं।-
समीक्षात्मक विश्लेषण (Critical Analysis)
सकारात्मक पक्ष (Pros):
कहानी की रफ्तार बहुत तेज है। हर पन्ना नया मोड़ देता है, इसलिए पढ़ते समय बोरियत महसूस ही नहीं होती। जमीन पर, आसमान में और पानी के अंदर — तीनों जगह लड़ाइयाँ दिखाई गई हैं, जिससे एक्शन कभी भी नीरस या दोहराव भरा नहीं लगता।
डंकिनी का सलोनी बनकर भोकाल को फँसाना और फिर असली रूप में सामने आना कहानी का बेहतरीन ट्विस्ट है।
नकारात्मक पक्ष (Cons):
कुछ जगह पर संवाद बहुत लंबे और उपदेशों जैसे लगते हैं। कई बार विलेन हमला करने से ज्यादा समय अपनी योजनाएँ बताने में गंवा देते हैं। भोकाल का इतनी जल्दी सलोनी के रूप में बदली हुई डंकिनी के झांसे में आ जाना थोड़ा अटपटा लगता है, क्योंकि वह ‘महाबली’ है और दिव्य शक्तियों वाला होने के बाद भी इतना बड़ा धोखा खा लेता है।
निष्कर्ष (Conclusion)
“डंकिनी” राज कॉमिक्स की एक क्लासिक और यादगार कॉमिक है। भोकाल के प्रशंसकों के लिए यह बिल्कुल ‘Must Read’ है। संजय गुप्ता की रोमांच से भरी कहानी और कदम स्टूडियो के बेहतरीन आर्टवर्क मिलकर एक ऐसा जादुई और एक्शन से भरा संसार बनाते हैं जिसमें पाठक पूरी तरह खो जाता है।
यह कॉमिक हमें याद दिलाती है कि भोकाल सिर्फ तलवार चलाने वाला योद्धा नहीं, बल्कि भावनाओं, आदर्शों और धर्म का पालन करने वाला एक सच्चा नायक है। डंकिनी, कलंकिनी और कपालिका जैसी खतरनाक खलनायिकाओं के मुकाबले में भी उसने हिम्मत और धैर्य नहीं खोया, और आख़िर तक लड़ने वाले नायक की तरह विजयी होकर निकला।
अगर आप भारतीय कॉमिक्स के स्वर्ण युग का असली मज़ा महसूस करना चाहते हैं, तो “डंकिनी” ज़रूर पढ़ें। यह कॉमिक आपको निराश नहीं करेगी।
रेटिंग: 4 / 5
अंतिम शब्द: “डंकिनी” भोकाल की वीरता का एक और चमकदार सबूत है। यह कॉमिक बताती है कि जब इरादे साफ हों और साथ में सच्चे दोस्त हों, तो विष से भरे सागर को भी पार किया जा सकता है।
