‘हऊआ’ एक ऐसी कॉमिक्स है जो पाठकों के मन में डर और जिज्ञासा का जबरदस्त संतुलन बनाती है। इस कॉमिक्स के लेखक टीकाराम सिप्पी हैं और चित्रांकन विनोद कुमार ने किया है। ६२ पन्नों की यह कहानी सिर्फ एक राक्षस की दास्तान नहीं है, बल्कि इसमें लालच, बदले की भावना, विज्ञान और तंत्र-मंत्र का ऐसा मिला-जुला खेल दिखाया गया है, जो कहानी को और भी रोचक बना देता है।
कथानक का संक्षिप्त विवरण
कहानी की शुरुआत एक बेहद डरावने और रोंगटे खड़े कर देने वाले दृश्य से होती है। शहर में एक अजीब और भयानक राक्षस तबाही मचा रहा है, जिसे लोग ‘हऊआ’ के नाम से जानने लगते हैं। यह कोई आम राक्षस नहीं है, बल्कि कई डरावने रूपों का मेल है—इसका चेहरा ममी जैसा है, पीठ पर चमगादड़ जैसे पंख हैं और एक विशाल अजगर जैसी लंबी पूंछ भी है। इसे देखते ही लोगों की हालत खराब हो जाती है और डर से उनकी सोचने-समझने की शक्ति भी जवाब दे जाती है।

कहानी का असली केंद्र ‘प्रेताली’ नाम की एक खतरनाक महिला है, जो इस हऊआ को रिमोट कंट्रोल से चलाती है। प्रेताली का मकसद सिर्फ डर फैलाना नहीं है, बल्कि वह पैसे और ताकत दोनों हासिल करना चाहती है। हऊआ का इस्तेमाल वह बैंक लूटने और अपने दुश्मनों को खत्म करने के लिए करती है।
इसी दौरान कहानी में ‘प्रेत अंकल’ यानी जैकब की एंट्री होती है। जैकब खुद एक प्रेत है, लेकिन उसका दिल एक आम इंसान जैसा है। वह बच्चों से बहुत प्यार करता है और निर्दोष लोगों की रक्षा करना अपना फर्ज मानता है। कहानी में ‘बेबी’ नाम की एक छोटी बच्ची भी है, जो अनजाने में इस खतरनाक खेल में फँस जाती है। जब प्रेताली बेबी का अपहरण कर लेती है, तब जैकब उसे बचाने निकल पड़ता है। यहीं से प्रेत और प्रेत-शक्ति के बीच एक जबरदस्त टकराव शुरू होता है, जिसमें आखिरकार सच्चाई और अच्छाई की जीत होती है।
पात्रों का गहरा विश्लेषण
जैकब (प्रेत अंकल):
जैकब इस सीरीज के मुख्य नायक हैं। उनकी पहचान उनके लंबे सफेद बाल, ओवरकोट और रहस्यमयी अंदाज़ से बनती है, जो उन्हें बाकी कॉमिक्स के पात्रों से अलग खड़ा करता है। इस कॉमिक्स में जैकब की इंसानी भावनाओं को बहुत अच्छे तरीके से दिखाया गया है। वह सिर्फ अपनी ताकत पर भरोसा नहीं करता, बल्कि हालात को समझकर दिमाग से भी फैसले लेता है। बेबी के लिए उसका स्नेह कहानी में एक भावनात्मक गहराई जोड़ता है, जिससे पाठक उससे तुरंत जुड़ जाते हैं।

प्रेताली (मुख्य खलनायिका):
राज कॉमिक्स में खलनायिकाओं की कोई कमी नहीं रही है, लेकिन प्रेताली अपनी चालाकी और निर्दयता के कारण खास याद रह जाती है। वह आधुनिक विज्ञान यानी रिमोट कंट्रोल और पुरानी तंत्र-विद्या को मिलाकर हऊआ जैसे खतरनाक राक्षस को काबू में रखती है। उसका किरदार यह साफ दिखाता है कि जब ताकत गलत इंसान के हाथ में चली जाए, तो वह कितनी भयानक तबाही मचा सकती है।
हऊआ (राक्षस):
‘हऊआ’ शब्द बचपन में बच्चों को डराने के लिए अक्सर इस्तेमाल किया जाता था, लेकिन इस कॉमिक्स में उसे असली और ठोस रूप दे दिया गया है। यह किरदार कल्पना की ऊँचाई को दर्शाता है। इसके शरीर के अलग-अलग हिस्से अलग-अलग डर और शक्तियों के प्रतीक हैं। हऊआ का शांत रहना या हिंसक हो जाना पूरी तरह रिमोट पर निर्भर करता है, जिससे यह किसी जिंदा मशीन या ‘बायोलॉजिकल मशीन’ जैसा महसूस होता है।
बेबी:
बेबी का किरदार इस डरावनी कहानी में मासूमियत का प्रतीक है। जब किसी हॉरर कहानी में एक छोटा बच्चा शामिल होता है, तो पाठक अपने आप ही उससे जुड़ जाते हैं। बेबी की हिम्मत और साहस ही आगे चलकर कहानी को नया मोड़ देता है और यही उसे कहानी का सबसे अहम हिस्सा बना देता है।
कला और चित्रांकन (Art and Illustration)

विनोद कुमार का चित्रांकन इस कॉमिक्स की सबसे बड़ी ताकत है, जो 90 के दशक की क्लासिक स्टाइल और पात्रों की खास बनावट को पूरी तरह जिंदा कर देता है। हऊआ का डिजाइन इतना डरावना और डिटेल्ड है कि ममी की पट्टियों से लेकर अजगर के स्केल्स और चमगादड़ के झिल्लीदार पंखों तक, हर छोटी चीज़ पर खास ध्यान दिया गया है। शुरुआती पन्नों में हिंसा और गोरे (Gore) को जिस बेबाकी से दिखाया गया है, जहाँ हऊआ इंसानों का शिकार करता है, वह इसे सिर्फ बच्चों की कॉमिक्स नहीं रहने देता, बल्कि वयस्क पाठकों के लिए एक डार्क फैंटेसी का रूप दे देता है। इसके साथ ही, कलाकारों ने पात्रों के चेहरे के भावों पर भी बेहतरीन काम किया है, जिससे जैकब की छिपी हुई उदासी और प्रेताली की आँखों में चमकता लालच बिना किसी संवाद के ही पाठकों तक पहुँच जाता है।
संवाद और पटकथा
टीकाराम सिप्पी ने कहानी की गति बहुत ही सटीक और संतुलित रखी है। संवाद कम हैं, लेकिन असरदार हैं। ‘प्रेत अंकल’ के संवादों में कभी-कभी दार्शनिक पुट मिलता है, जबकि पुलिस इंस्पेक्टर नंबूरी और बाकी पात्रों के संवाद कहानी में असलीपन और यथार्थ का अहसास देते हैं।

कहानी में सस्पेंस को अंत तक बनाए रखा गया है। ‘इरी’ (एक प्राचीन जादूगर/साधु) का रहस्य और उसकी गुफा वाली जगह कहानी में एक रहस्यमयी और पौराणिक माहौल पैदा करती है। यह देखना मजेदार है कि कैसे एक ‘रिमोट’ जैसी आधुनिक चीज़ जादुई दुनिया में भयानक तबाही मचा देती है।
विषय–वस्तु और संदेश

‘हऊआ’ सिर्फ मनोरंजन नहीं है, यह यह भी दिखाती है कि ताकत और तकनीक का गलत इस्तेमाल कितना खतरनाक हो सकता है। प्रेताली की महत्वाकांक्षा साफ दिखाती है कि जब विज्ञान गलत हाथों में जाए, तो परिणाम विनाशकारी हो सकते हैं। कहानी का अंत भी यही बताता है कि मासूमियत और सच्चाई के सामने बड़े से बड़ा दानव भी हार मान जाता है। जैसे जब बेबी रिमोट को पिघलते सोने में डाल देती है, तब साबित होता है कि मासूमियत सबसे बड़ी ताकत है।
इसमें विज्ञान और तंत्र-मंत्र का अद्भुत मेल देखने को मिलता है। कुछ दृश्य खास तौर पर यादगार हैं—बैंक लूट के दौरान हऊआ के गोलियों को रोकना, इरी की गुफा का रहस्यमयी माहौल, और क्लाइमेक्स में जैकब का विशाल दानव को रोकना। ये सब पाठकों को एक अलग ही रोमांचक दुनिया में ले जाते हैं।
समीक्षात्मक मूल्यांकन: खूबियाँ और कमियाँ
खूबियाँ:
‘हऊआ’ का कॉन्सेप्ट खुद में अनोखा और डरावना है, जो उस समय के हिसाब से बिल्कुल नया और ताज़ा लगता है। कहानी की रफ्तार इतनी तेज है कि कभी सुस्त नहीं लगती और हर पन्ने पर नई घटनाएँ पाठक की रुचि बनाए रखती हैं। जैकब और बेबी का भावनात्मक रिश्ता इस कहानी को सिर्फ हॉरर न होकर एक मानवीय अनुभव भी बनाता है। साथ ही, इसका कवर आर्ट इतना शानदार और आकर्षक है कि कोई भी पाठक इसे देखकर पढ़ने को मजबूर हो जाता है।
कमियाँ:
आज के हिसाब से कुछ दृश्य थोड़े ज्यादा हिंसक लग सकते हैं।
पुलिस का किरदार (इंस्पेक्टर नंबूरी) थोड़ा कमजोर और असहाय दिखाया गया है, जो अक्सर भारतीय कॉमिक्स में देखा गया एक पुराना ट्रेंड है।
निष्कर्ष
राज कॉमिक्स की ‘हऊआ’ एक क्लासिक कृति है, जो हॉरर और एक्शन का बेहतरीन मिश्रण है। यह याद दिलाती है कि क्यों राज कॉमिक्स को भारतीय कॉमिक्स का स्वर्ण युग कहा जाता है। जैकब (प्रेत अंकल) जैसे पात्र हमें यह सिखाते हैं कि अपनी ताकत और शक्तियों का इस्तेमाल हमेशा दूसरों की भलाई के लिए करना चाहिए, चाहे दुनिया हमें किसी भी नजर से देखे।
अगर आप पुराने दौर की कॉमिक्स पसंद करते हैं और रहस्यमयी कहानियाँ आपकी रुचि हैं, तो ‘हऊआ’ आपके संग्रह में जरूर होनी चाहिए। यह न केवल रोमांचक है, बल्कि पुराने सुनहरे दिनों की यादें भी ताजा कर देती है।
अंत में, यह कॉमिक्स साबित करती है कि भारतीय लेखक और कलाकार किसी भी अंतरराष्ट्रीय कॉमिक्स हाउस को टक्कर दे सकते थे। ‘हऊआ’ का डर आज भी उतना ही प्रभावशाली है जितना कि यह दो-तीन दशक पहले था।
रेटिंग: 4.5/5
