यह समीक्षा राज कॉमिक्स (Raj Comics) की मशहूर ‘अश्वराज’ (Ashwaraj) सीरीज़ के दूसरे भाग ‘कारूं का खजाना’ पर आधारित है। यह कॉमिक सिर्फ रोमांच और वीरता की कहानी नहीं है, बल्कि यह राज कॉमिक्स के उस दौर को भी दिखाती है जब फैंटेसी (Fantasy) और पौराणिक कथाओं (Mythology) का मेल बड़ी खूबसूरती से देखने को मिलता था। 31 पन्नों की यह कॉमिक पाठक को एक ऐसी अनोखी दुनिया में ले जाती है, जहाँ इंसान और अश्व का संगम है और कल्पना की कोई सीमा नहीं दिखाई देती।
प्रस्तावना और रचनात्मक टीम (Introduction & Creative Team)
‘कारूं का खजाना’ के लेखक तरुण कुमार वाही हैं, जो अपनी दमदार कल्पनाशक्ति और मजबूत कहानी गढ़ने के लिए जाने जाते हैं। इस कॉमिक का कला निर्देशन प्रताप मुळीक ने किया है, जिनका नाम भारतीय कॉमिक्स जगत में बेहतरीन चित्रकारों में लिया जाता है। चित्रांकन का काम चंदू ने संभाला है और संपादन मनीष चंद्र गुप्त द्वारा किया गया है, जिससे कहानी और चित्र दोनों एक अच्छा संतुलन बनाते हैं।

यह कॉमिक पिछले भाग ‘अश्वराज’ की कहानी को आगे बढ़ाती है। पहले भाग में हमने देखा था कि अश्वराज, राजकुमारी कुदुमचुम्मी को छुड़ाने के लिए और दादबोरा की शर्त पूरी करने के मकसद से ‘कारूं का खजाना’ लाने की यात्रा पर निकल पड़ता है। वहीं से इस दूसरे भाग की कहानी शुरू होती है।
कथानक का सार (Plot Summary)
कहानी की शुरुआत महर्षि फूक-मसान के यज्ञ से होती है। महर्षि एक रहस्यमयी ‘दपोर-शंख’ की मदद से अपने बारह शिष्यों को प्रकट करते हैं और उन्हें अश्वराज को रोकने के लिए भेजते हैं। यहाँ कहानी में एक दिलचस्प सवाल खड़ा होता है कि महर्षि का असली उद्देश्य क्या है—क्या वे अश्वराज की परीक्षा ले रहे हैं या सच में उसे खजाने तक पहुँचने से रोकना चाहते हैं?

सबसे पहले ‘मेष’ नाम का शिष्य, जो देखने में मेढ़े जैसा शक्तिशाली मानव है, अश्वराज का रास्ता रोकता है। अश्वराज और मेष के बीच जबरदस्त युद्ध होता है। इसी लड़ाई में अश्वराज की ‘इच्छाधारी शक्ति’ सामने आती है, जब वह खुद मेष का रूप धारण कर उसी की ताकत और तरीके से उसे पराजित कर देता है। इसके बाद महर्षि अपना दूसरा शिष्य ‘वृष’ भेजते हैं, जो बैल जैसा ताकतवर योद्धा है। अश्वराज अपनी बुद्धि और शारीरिक बल से उसे भी हार मानने पर मजबूर कर देता है।
दूसरी ओर, कहानी के खलनायक दादबोरा और शैतान तूताबूता एक जादुई दर्पण के ज़रिए अश्वराज की हर हरकत पर नज़र रखे हुए हैं। उनकी दिलचस्पी सिर्फ ‘कारूं के खजाने’ में ही नहीं, बल्कि रहस्यमयी ‘अश्वमणि’ में भी है। इसी बीच कहानी एक बड़ा मोड़ लेती है, जब महर्षि फूक-मसान राजा चित्तिंत सिंह को अश्वराज के अतीत की पूरी कहानी बताते हैं।

महर्षि बताते हैं कि अश्वलोक में कभी दो महान वंश हुआ करते थे—सूर्यवंशी और चंद्रवंशी। सूर्यवंशी वंश के सम्राट तारपीड़ो थे और अश्वराज उन्हीं का पुत्र था, जबकि चंद्रवंशी वंश के सम्राट अश्वन्तक थे। इन दोनों राज्यों के बीच गहरी दुश्मनी थी। इसी दुश्मनी के बीच अश्वराज को चंद्रवंशी राजकुमारी अश्वकीर्ति से प्रेम हो जाता है। यह प्रेम कहानी दोनों राज्यों के बीच भयानक युद्ध का कारण बन जाती है।
अतीत की कहानी में दिखाया गया है कि कैसे अश्वन्तक का वफादार अंगरक्षक ‘चिंघोड़ा’, जो पंखों वाला एक भयानक राक्षस है, अश्वराज और अश्वकीर्ति पर हमला करता है। अश्वराज अपने साहस और ताकत के बल पर चिंघोड़ा का वध कर देता है। जब राजकुमारी के पिता अश्वकीर्ति को मृत्युदंड देने का आदेश देते हैं, तो वह जान बचाने के लिए अश्वराज के पास भाग आती है। अश्वराज उसे एक गुप्त और सुरक्षित स्थान पर छिपा देता है।

वर्तमान समय में लौटते हुए, महर्षि फूक-मसान अपना तीसरा शिष्य ‘मिथुन’ भेजते हैं, जिसका आधा शरीर स्त्री का और आधा पुरुष का है। यह किरदार कहानी में नया रहस्य और रोमांच जोड़ देता है। कॉमिक का अंत एक जबरदस्त सस्पेंस पर होता है, जो पाठक को अगली कड़ी ‘अश्वमणि’ पढ़ने के लिए पूरी तरह उत्सुक छोड़ देता है।
पात्र चित्रण (Character Analysis)
अश्वराज (The Hero): अश्वराज सिर्फ एक साधारण योद्धा नहीं है, बल्कि वह एक ‘इच्छाधारी’ महामानव है। उसकी सबसे बड़ी ताकत उसका अटूट साहस और अपने पाँच खास घोड़ों के साथ उसका गहरा तालमेल है। वह ‘केंटौर’ (Centaur) की तरह आधा मनुष्य और आधा घोड़ा है, जो उसे बाकी सभी पात्रों से बिल्कुल अलग और खास बनाता है। यही वजह है कि हर मुश्किल हालात में भी अश्वराज एक असाधारण नायक के रूप में सामने आता है।

महर्षि फूक–मसान (The Mysterious Sage): इस कॉमिक में सबसे ज्यादा उलझा हुआ और रहस्यमय किरदार महर्षि फूक-मसान का है। बाहर से देखने पर लगता है कि वे अश्वराज के रास्ते में लगातार रुकावटें खड़ी कर रहे हैं, लेकिन अंदर से उनका मकसद कहीं बड़ा और गहरा नजर आता है। वे कहानी को आगे बढ़ाने वाले सूत्रधार हैं, जिनके हर फैसले के पीछे कोई न कोई परीक्षा छिपी हुई है।
दादबोरा और तूताबूता (The Villains): दादबोरा लालच और स्वार्थ का प्रतीक है, जबकि तूताबूता पूरी तरह से आसुरी शक्तियों का प्रतिनिधित्व करता है। दोनों का लक्ष्य सिर्फ खजाना हासिल करना है और इसके लिए वे किसी भी हद तक गिर सकते हैं। ये दोनों मिलकर कहानी में एक मजबूत और खतरनाक खलनायकी माहौल तैयार करते हैं।
अश्वकीर्ति (The Love Interest): अश्वकीर्ति एक साहसी और आत्मसम्मानी राजकुमारी है, जो अपने पिता के गलत फैसलों के खिलाफ खड़े होने का साहस रखती है। उसका और अश्वराज का प्रेम केवल एक रोमांटिक एंगल नहीं है, बल्कि कहानी को भावनात्मक गहराई और मानवीय संवेदनाएं भी देता है।
कला और चित्रांकन (Art and Visuals)

प्रताप मुळीक और चंदू की जोड़ी ने इस कॉमिक को सच में एक विजुअल ट्रीट बना दिया है। अश्वराज का मेष और वृष के साथ युद्ध ‘थड़ाक’ और ‘चड़ाक’ जैसे ध्वनि शब्दों के साथ इतना जीवंत लगता है कि पाठक खुद को उस लड़ाई के बीच खड़ा महसूस करता है। अश्वलोक के भव्य महल, सूर्यवंशी और चंद्रवंशी सम्राटों की शाही वेशभूषा और उनके मुकुटों का डिजाइन भारतीय संस्कृति और कल्पना का शानदार मेल दिखाता है। वहीं ‘चिंघोड़ा’ जैसे राक्षसी पात्रों का डरावना रूप, उसके विशाल पंखों की बारीकियां और महर्षि के शिष्यों की क्रूरता जिस गहराई से दिखाई गई है, वह मन पर गहरी छाप छोड़ती है। 80–90 के दशक की खास पहचान वाले चटख रंगों का इस्तेमाल पूरी कॉमिक को एक जादुई और रहस्यमयी माहौल में बदल देता है।
लेखन और संवाद शैली (Writing & Dialogue Style)
तरुण कुमार वाही की लेखन शैली में एक सहज बहाव है, जो कहानी को कहीं भी बोझिल नहीं होने देता। वे वर्तमान से अतीत में फ्लैशबैक के जरिए बहुत आसानी से ले जाते हैं। संवादों में वीरता और गंभीरता साफ झलकती है। जैसे जब अश्वराज मेष से कहता है— “आगे बढ़े हुए कदम पीछे हटाना कायरता की निशानी है,” तो यह संवाद उसके मजबूत इरादों और निडर स्वभाव को साफ दिखा देता है।
महर्षि द्वारा बताए गए रहस्य और जानकारियाँ कहानी की रफ्तार को बनाए रखती हैं। शब्दों का चुनाव ऐसा है कि पाठक खुद को उस जादुई दुनिया का हिस्सा समझने लगता है।
सामाजिक और सांस्कृतिक संदेश (Thematic Depth)

मनोरंजन के साथ-साथ यह कॉमिक कई गहरे सामाजिक और नैतिक संदेश भी देती है। सूर्यवंशी और चंद्रवंशी राज्यों की पुरानी दुश्मनी यह दिखाती है कि कैसे वंशवाद, कट्टर सोच और पुराने झगड़े आने वाली पीढ़ियों का भविष्य खराब कर सकते हैं। वहीं अश्वराज और अश्वकीर्ति का प्रेम यह साबित करता है कि सच्चा प्यार सीमाओं, राजनीति और पारिवारिक दुश्मनी से कहीं ऊपर होता है। महर्षि फूक-मसान का किरदार गुरु की उस परंपरागत छवि को सामने लाता है, जहाँ गुरु सिर्फ स्नेह नहीं देता, बल्कि अपने शिष्य को कठिन परीक्षाओं से गुजारकर उसे और मजबूत बनाता है।
अश्वराज के ५ घोड़ों की भूमिका (The 5 Unique Horses)
इस भाग में भी अश्वराज के पाँच खास घोड़े कहानी को एक अलग ऊँचाई पर ले जाते हैं। वे केवल उसके साथी नहीं हैं, बल्कि उसकी इंद्रियों के विस्तार की तरह काम करते हैं। उदाहरण के लिए, रक्ताम्बर की दिव्य दृष्टि इतनी तेज है कि वह 5000 मील दूर स्थित ‘कारूं घाटी’ तक देख सकता है। कालाखोर अपनी सूंघने की ताकत से आने वाले खतरों को पहले ही भांप लेता है। वहीं अश्ववट न सिर्फ ताकतवर है, बल्कि समझदार भी है और अश्वराज से बातचीत कर उसे सही सलाह देता है। घोड़ों को मानवीय चेतना और इंद्रियों से जोड़ने का यह विचार भारतीय कॉमिक्स में बेहद अनोखा और रचनात्मक है, जो अश्वराज की कहानी को एक जादुई सुपरहीरो फैंटेसी बना देता है।
निष्कर्ष (Conclusion)
‘कारूं का खजाना’ राज कॉमिक्स की एक यादगार और कालजयी रचना है, जो पाठक को शुरू से अंत तक बांधे रखती है। जहाँ पहला भाग कहानी की नींव रखता है, वहीं यह दूसरा भाग भावनाओं, अतीत के रहस्यों और जबरदस्त संघर्षों से भरपूर है।
अंतिम विचार:
अगर आप भारतीय कॉमिक्स के शौकीन हैं और क्लासिक फैंटेसी कहानियाँ पसंद करते हैं, तो ‘अश्वराज’ सीरीज़ की यह कॉमिक आपकी कलेक्शन में जरूर होनी चाहिए। यह कॉमिक याद दिलाती है कि भारतीय लेखक और कलाकार कितनी ऊँची कल्पनाशक्ति रखते थे। ‘अश्वमणि’ में आगे क्या होगा, यह जानने की बेचैनी ही इस कॉमिक की सबसे बड़ी जीत है।
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