“खाना खराब” राज कॉमिक्स की एक बेहद मज़ेदार कॉमिक है, जिसके हीरो हैं — गमराज। इसका आइडिया ही ऐसा है कि नाम सुनते ही चेहरे पर मुस्कान आ जाए। गमराज वो नायक है जिसने गरीबी और लोगों की परेशानी देखकर इंसानियत की सेवा करने का फैसला किया। उसके इस अच्छे काम से खुश होकर खुद यमराज ने उसे अपना मुंहबोला बेटा बना लिया। यानी हमारा ये हीरो तो सीधे मौत के देवता का वारिस निकला!
गमराज के साथ है उसका सीधा-सादा और थोड़ा परेशान रहने वाला साथी शंकालू, जिसके सिर पर बारह बच्चों और एक पत्नी की पूरी जिम्मेदारी है। उसकी ज़िंदगी तो जैसे गरीबी और उसकी प्यारी बसंती भैंस के दूध के सहारे ही चल रही है (हाँ, वही भैंस!)। और इस टीम का तीसरा सदस्य है यमुण्डा — यमराज के वृषभराज का बेटा, जो किसी भी तरह के वाहन में बदल सकता है। मतलब जब भी ज़रूरत पड़ी, वो बन जाता है ‘फ्लाइंग भैंसा’!
इन तीनों की जोड़ी देखकर ही समझ आ जाता है कि कहानी में एक्शन भी होगा, गरीबी पर तंज भी आएगा और कॉमेडी तो भर-भर के मिलेगी।
करोड़पतियों की धमकी और ‘डकार’ का टेस्ट
कहानी की शुरुआत ही एक मज़ेदार लाइन से होती है — “करोड़पतियों को रोडपतियों की धमकियां मिलती ही रहती हैं।”

इसके बाद एंट्री होती है दो अमीर व्यापारियों की — अमरीश पूड़ी और जैकी चना। दोनों ने पूड़ी-चना बेचकर ही खूब पैसा कमाया है (नाम सुनते ही भूख भी लगती है और हँसी भी आती है!)। इन्हें अपने पुराने पार्टनर सलमान खाना से धमकी मिलती है, जिसने उनसे बस दो करोड़ रुपये मांगे थे।
धमकी मिलते ही पूड़ी जी को हार्ट अटैक का डर सताने लगता है। वो सोचने लगते हैं — अगर मैं मर ही गया तो तिजोरी में पड़े करोड़ों रुपये किस काम के?
फिर जो प्लान बनता है, वो भी कमाल का है। जैकी चना का आइडिया था कि धमकी देने वाले को किसी भूखे आदमी से पिटवा देंगे, बस उसे सौ-दो सौ रुपये पकड़ा देंगे। अब सवाल था कि असली भूखा आदमी मिलेगा कहाँ? तो चना जी निकल पड़े सड़क पर और लोगों का ‘डकार टेस्ट’ लेने लगे।
जिसकी डकार आ जाए, वो भूखा नहीं!
आख़िरकार उन्हें एक ऐसा आदमी मिल ही गया जो सच में भूखा था। उसे ₹200 देकर कहा गया — “जा, इस आदमी को पीट दे।”
उस आदमी का जवाब सुनकर हँसी भी आती है और दिल भी भर आता है —
“दो सौ रुपयों के लिए तो मैं अपने बाप को भी पीट दूंगा।”
गरीबी और मजबूरी पर ये एक गहरा तंज है, जिसे कॉमिक्स ने हँसी के साथ बहुत असरदार तरीके से दिखाया है।
हवा में मिलावट का खेल और यमुण्डा का ट्रांसफॉर्मेशन
गरीब बच्चों को मुफ़्त में हवाई सैर कराने के लिए गमराज और शंकालू, यमुण्डा-प्लेन में आसमान में उड़ रहे होते हैं। तभी शंकालू की नज़र नीचे सड़क पर चलते एक शक़ी ट्रक पर पड़ती है।
आजकल मिलावटखोर भी बड़े चालाक हो गए हैं। अब वो गोदामों में नहीं, बल्कि चलते-फिरते ट्रकों में ही मिलावट करते हैं, ताकि किसी छापे में न पकड़े जाएं।

गमराज देखता है कि ट्रक के अंदर एक आदमी सीमेंट की बोरियों के बीच बैठकर खाने-पीने की चीज़ों में मिलावट कर रहा है।
बस फिर क्या था! गमराज तुरंत यमुण्डा से कहता है — “ट्रक बन जा!”
इसके बाद जो सीन आता है, वो कॉमिक्स का सबसे मज़ेदार पल बन जाता है। प्लेन का इंजन बंद होता है और अचानक ट्रक जैसी आवाज़ आने लगती है।
बच्चों को डर न लगे, इसके लिए शंकालू फटाफट कह देता है — “अरे बच्चों, आवाज़ इसलिए बदल गई है क्योंकि हम अब बादलों में नहीं, चिमनी के काले धुएं में उड़ रहे हैं!”

इस तरह बच्चों को बिना कुछ समझे ‘प्लेन’ से ‘ट्रक’ में शिफ्ट कर दिया जाता है।
ये पूरा सीन एक साथ हँसाता भी है और सोचने पर भी मजबूर करता है कि मिलावट का धंधा कितना फैला हुआ है, और गमराज का एक्शन कितना फिल्मी है।
विलेन का पर्दाफाश और ‘ईश्वरवर्या रायता’ का नज़राना
ट्रक का पीछा करते-करते गमराज पहुँचता है अमरीश पूड़ी और जैकी चना के रेस्टोरेंट में। वहाँ पूरा हंगामा मचा हुआ होता है, क्योंकि ग्राहकों को पता चल चुका होता है कि उन्हें सीमेंट मिली पूड़ियाँ खिलाई गई हैं।

गमराज को तुरंत समझ आ जाता है कि ये दोनों अमीर व्यापारी असल में बड़े मिलावटखोर हैं।
इसके बाद कहानी में आता है असली ट्विस्ट। पता चलता है कि धमकी वाला पूरा नाटक उनके पुराने पार्टनर सलमान खाना ने रचा था। असल में ये तीनों — पूड़ी, चना और खाना — एक चौथे आदमी सुनील पेटी के साथ मिलकर एक ही लड़की से शादी करने की होड़ में लगे हुए थे।
और उस लड़की का नाम है — ईश्वरवर्या रायता!
हाँ, रायता! यही नाम कॉमिक्स के मज़ाक को अगले लेवल पर ले जाता है।
रायता जी ने शादी के लिए करोड़ों रुपये के नज़राने की शर्त रखी थी, और गमराज ने मिलावटी पूड़ियाँ खाकर साबित कर दिया कि यहाँ जरूर कुछ गड़बड़ है।
फाइनल फैसला: रायता का ‘उल्टी’ टेस्ट और नैतिक जीत
आख़िर में ईश्वरवर्या रायता खुद सामने आती हैं और शादी के लिए एक अजीब सी शर्त रखती हैं।

वो उसी से शादी करेंगी जो दस करोड़ रुपये का नज़राना दे और जिसकी पूड़ियाँ खाकर किसी को उल्टी न आए।
अब शुरू होता है असली ‘खाना खराब टेस्ट’।
रायता तीनों दावेदारों — सलमान खाना, सुनील पेटी और पूड़ी-चना — को उनकी खुद बनाई पूड़ियाँ खिलाती हैं।
नतीजा ये होता है कि एक-एक करके तीनों को उल्टी हो जाती है और तीनों रेस से बाहर हो जाते हैं।
ये क्लाइमेक्स इतना मज़ेदार है कि हँसी भी आती है और कॉमिक्स की समझदारी पर तालियाँ भी बजती हैं।
आख़िर में गमराज रायता को समझाता है कि ये सब लोग लालची और धोखेबाज़ हैं।
रायता उसकी बात मान लेती हैं और किसी से भी शादी न करने का फैसला करती हैं।
इस तरह गमराज न सिर्फ मिलावटखोरों को सबक सिखाता है, बल्कि समाज को ये भी दिखाता है कि लालच और पैसे की भूख इंसान को कितना नीचे गिरा सकती है।
निष्कर्ष: हास्य, सामाजिक संदेश और मनोरंजन का परफेक्ट मेल
“खाना खराब” सिर्फ एक कॉमिक्स नहीं है, बल्कि हमारे समाज की सच्चाई पर किया गया एक दमदार व्यंग्य है। इसमें साफ दिखाया गया है कि कैसे पैसे की दौड़ और लालच इंसानियत को धीरे-धीरे खत्म कर रहे हैं।
लेखक तरुणकुमार वाही और परिकल्पनाकार विवेक मोहन ने ‘पूड़ी-चना’, ‘सलमान खाना’ और ‘रायता’ जैसे नाम रखकर कहानी को और भी मज़ेदार बना दिया है, जो पढ़ते-पढ़ते दिमाग में चिपक जाते हैं।
कॉमिक्स के आर्टिस्ट प्रेम ने अपने शानदार चित्रों से कहानी में जान डाल दी है।
कुल मिलाकर, ये कॉमिक्स हास्य, एक्शन और सामाजिक संदेश का ऐसा मेल है जो आपको खूब हँसाएगा, पूरा मनोरंजन देगा और साथ ही ये सोचने पर भी मजबूर करेगा कि आज भी “भूख” और “पैसा” इंसान से क्या-क्या नहीं करवा देते।
