नब्बे का दशक भारतीय कॉमिक्स की दुनिया का सुनहरा समय था। राज कॉमिक्स और डायमंड कॉमिक्स जैसे बड़े पब्लिशरों के बीच, कुछ और प्रकाशक भी अपनी अलग कहानियों और किरदारों से पाठकों के दिलों में जगह बना रहे थे। उन्हीं में से एक था मनोज कॉमिक्स, जिसने ज्यादातर हॉरर, फैंटेसी और सामाजिक-अपराध वाली कहानियों पर ध्यान दिया। ‘आंख से टपका खून’ मनोज कॉमिक्स की ऐसी ही शानदार पेशकश है, जिसमें अपराध, अलौकिक शक्तियां और बदले की आग एक साथ मिलती हैं। नाजरा खान की लिखी और कदम स्टूडियो (विजय कदम, आत्माराम पुंड) की बनाई गई यह कॉमिक्स अपने नाम से ही डर पैदा कर देती है और पाठक को एक ऐसी दुनिया में ले जाती है, जहाँ न्याय की तलवार खुद दिव्य शक्तियां उठाती हैं।
कथानक एवं पटकथा: डर और धर्म का संगम
कहानी की शुरुआत एक बेहद रोमांचक और तनाव भरे सीन से होती है। एक हवाई जहाज को आतंकवादियों ने हाईजैक कर लिया है और वे सरकार से बीस करोड़ रुपये और भागने के लिए दूसरा जहाज मांग रहे हैं। सरकारी दफ्तरों में अफरातफरी मची है, क्योंकि तीन सौ यात्रियों की जान दांव पर लगी है। शुरुआत में यह कहानी किसी आम क्राइम-थ्रिलर जैसी लगती है, लेकिन तभी अचानक कहानी अलौकिक मोड़ ले लेती है। आतंकियों का सरगना अचानक दर्द से तड़पता है और उसकी बॉडी पिघलकर कंकाल बन जाती है। इसके बाद एक-एक कर सभी आतंकी खौफनाक तरीके से मर जाते हैं। यह सीन पढ़ने वाले और जहाज में बैठे दोनों लोगों के रोंगटे खड़े कर देता है।

यह घटना जंगल की आग की तरह शहर में फैल जाती है। लोग इसे भगवान का चमत्कार मानते हैं, जैसे पापियों का खात्मा करने खुद भगवान आ गए हों। लेकिन यहीं कहानी और भी गहराती है। इसके बाद बैंक लूट रहे डकैत और ट्रेन को उड़ाने की कोशिश कर रहे आतंकी भी उसी रहस्यमयी ताकत के हाथों मारे जाते हैं। हर बार एक अजीब सी शक्तिशाली आकृति आती है, पापियों को उनकी सजा देती है और गायब हो जाती है। यह शुरुआत का हिस्सा ही पाठक को इस रहस्यमयी ताकत से जोड़ देता है और उनके मन में सवाल उठाता है – आखिर यह कौन है और क्यों कर रहा है?
कहानी का असली मोड़ तब आता है जब इन घटनाओं की खबर दुष्ट तांत्रिक गुरुजी तक पहुँचती है। गुरुजी तंत्र-मंत्र का माहिर और बेहद लालची इंसान है। वह तुरंत समझ जाता है कि इसके पीछे कोई बड़ी ताकत है। अपनी जादुई शक्तियों से वह पता लगा लेता है कि यह सब तीन आत्माओं – भेड़िया, अशोक और विकास – की वजह से हो रहा है। वह उन्हें पकड़कर अपनी हांडियों में कैद कर लेता है। अब कहानी सिर्फ आतंकियों की सजा तक सीमित नहीं रहती, बल्कि अच्छाई और बुराई की सीधी टक्कर बन जाती है।
गुरुजी इन आत्माओं की ताकत का इस्तेमाल करके दुनिया पर राज करना चाहता है। तभी एंट्री होती है कहानी की नायिका शेफाली की। शेफाली जादूगरनी है, लेकिन साधारण नहीं। वह दिव्य शक्तियों की मालकिन है। असल में इंस्पेक्टर अशोक उसका पति था, जिसे अपराधियों ने मार डाला था। अब शेफाली अपने पति और उसके साथियों की आत्माओं को छुड़ाने का वादा करती है।

इसके बाद कहानी पूरी तरह एक्शन, फैंटेसी और रोमांच से भर जाती है। शेफाली और उसके साथी, जो खुद भी दिव्य शक्तियों से लैस हैं, गुरुजी के खतरनाक मायावी संसार में घुसते हैं। गुरुजी की सेना में पिशाच, राक्षस और अजीब-अजीब जीव भरे पड़े हैं। कहानी हमें बर्फीले पहाड़ों से लेकर रहस्यमयी लोकों तक घुमाती है। एक के बाद एक लड़ाइयाँ होती हैं, जहाँ दोनों तरफ अपनी पूरी ताकत झोंकी जाती है। विमान पर राक्षसों का हमला, मायावी जंग और शक्ति का जबरदस्त टकराव – सब मिलकर कहानी को बहुत भव्य बना देते हैं।
कहानी का क्लाइमेक्स गुरुजी और शेफाली की अंतिम लड़ाई है। यह सिर्फ दो लोगों का नहीं, बल्कि दो सोच का टकराव है – एक जो ताकत का इस्तेमाल सुरक्षा और न्याय के लिए करती है, और दूसरी जो उसे विनाश के लिए। आखिर में जीत अच्छाई की होती है, लेकिन यह जीत आसान नहीं होती।
किरदार: सीधे मगर असरदार
मनोज कॉमिक्स की कई कहानियों की तरह इसमें भी किरदार बहुत जटिल नहीं हैं। वे साफ-साफ अच्छे और बुरे में बंटे हैं।
- शेफाली – कहानी की नायिका, एक बहादुर और ताकतवर महिला। उसका मकसद सिर्फ पति की मौत का बदला लेना नहीं है, बल्कि पूरी धरती को गुरुजी जैसे बुरों से बचाना है। उसका दोहरा जीवन – एक तरफ आम जादूगरनी और दूसरी तरफ दिव्य शक्तियों की मालकिन – उसे दिलचस्प बनाता है।
- गुरुजी – एक खतरनाक तांत्रिक खलनायक। उसके कपड़े, डायलॉग और क्रूरता उसे यादगार बनाते हैं। वह अपनी लालच और महत्वाकांक्षा में किसी भी हद तक जा सकता है।
- अशोक, भेड़िया और विकास – ये तीन आत्माएँ हैं, जो शुरुआत में रहस्यमयी नायक की तरह दिखती हैं और बाद में कैद हो जाती हैं। उनका भाईचारा और न्याय के लिए समर्पण उन्हें मजबूत पात्र बनाता है।
- ए.के. – गुरुजी का दाहिना हाथ और अपराध की दुनिया का बड़ा नाम। यह गुरुजी और बाहरी अपराधों के बीच पुल का काम करता है।
- बाकी के पात्र – जैसे शेफाली के साथी और गुरुजी के राक्षसी नौकर – कहानी के फैंटेसी माहौल को मजबूत बनाते हैं।
कला और चित्रांकन: नब्बे के दशक का जादू
कदम स्टूडियो की आर्ट इस कॉमिक्स की जान है। उस दौर की क्लासिक भारतीय कॉमिक्स की स्टाइल यहाँ पूरी तरह दिखती है। लाइनें साफ हैं और एक्शन सीन बेहद दमदार हैं। राक्षस और पिशाच बहुत ही डरावने और क्रिएटिव डिज़ाइन किए गए हैं।
रंगों का इस्तेमाल भी गजब है – चमकीले रंग एक्शन और फैंटेसी को जीवंत बनाते हैं, जबकि गहरे रंग रहस्य और डर का माहौल बनाते हैं।

सबसे खास बात है इसका ग्राफिक हिंसा। शीर्षक ‘आंख से टपका खून’ खुद ही बहुत खौफनाक है और अंदर के दृश्य इस पर पूरे उतरते हैं। आतंकवादियों की मौतें – जैसे शरीर गलकर कंकाल बन जाना, धुआं बन जाना या खून के फव्वारे फूटना – सब बहुत साफ-साफ दिखाए गए हैं। यह आज कुछ लोगों को ज्यादा खौफनाक लगे, लेकिन उस समय की हॉरर कॉमिक्स की यही खासियत थी।
संवाद और भाषा
नाजरा खान के डायलॉग सीधे और नाटकीय हैं। जैसे – “मर गए हरामजादे!”, “तुम्हारी मौत आ गई है!”, “अब तुम्हें कोई नहीं बचा सकता!” – ये सब उस दौर के फिल्मों और किताबों की याद दिलाते हैं। भाषा आसान है और हर उम्र का पाठक इसे समझ सकता है।
निष्कर्ष: क्यों खास है ‘आंख से टपका खून’?
यह कॉमिक्स सिर्फ एक हॉरर-फैंटेसी नहीं है, बल्कि अपने जमाने का आईना है। इसमें आतंकवाद जैसी गंभीर समस्या को तंत्र-मंत्र और दिव्य शक्तियों के साथ दिखाया गया है। यह बताती है कि जब इंसानी कानून नाकाम हो जाते हैं, तो कोई बड़ी शक्ति सामने आती है।
इसकी सबसे बड़ी ताकत है इसकी तेज कहानी, दमदार एक्शन और यादगार खलनायक। एक बार इसे पढ़ना शुरू करें, तो बीच में छोड़ना मुश्किल है। शेफाली जैसे मजबूत महिला किरदार ने इसे और खास बना दिया है।
हाँ, इसके किरदार थोड़े सीधे-सादे हैं और कहानी पूरी तरह अलौकिक मान्यताओं पर खड़ी है, लेकिन कॉमिक्स का मकसद असलियत दिखाना नहीं, बल्कि मनोरंजन करना है। और इस मामले में यह पूरी तरह सफल है।
कुल मिलाकर, ‘आंख से टपका खून’ मनोज कॉमिक्स की शानदार पेशकश है। विंटेज भारतीय कॉमिक्स के फैंस के लिए यह जरूर पढ़ने वाली कृति है। यह हमें उस जमाने में वापस ले जाती है, जब कॉमिक्स ही सबसे बड़ा मनोरंजन था और कल्पना की कोई हद नहीं थी। यह कहानी आज भी उतनी ही मजेदार और रोमांचक लगती है, जितनी उस समय थी।