“बौना वामन” सिर्फ एक कॉमिक्स नहीं है, बल्कि राज कॉमिक्स के उस सुनहरे दौर की झलक है, जिसने हमें सुपर कमांडो ध्रुव जैसे भारतीय सुपरहीरो से मिलवाया। यहां ध्रुव को सिर्फ ताकत से नहीं, बल्कि विज्ञान, तकनीक और आधुनिक अपराध की मुश्किल चुनौतियों से भिड़ते हुए दिखाया गया है। जॉली सिन्हा द्वारा लिखी और अनुपम सिन्हा द्वारा बनाई गई ये खास कॉमिक्स (संख्या 195, कीमत ₹20.00) उस समय के कॉमिक्स प्रेमियों के लिए किसी तोहफे से कम नहीं थी। इसकी खासियत ये थी कि इसमें सिर्फ मांसपेशियों की ताकत नहीं, बल्कि दिमागी खेल और तकनीकी चालाकी पर ज्यादा जोर दिया गया।
कॉमिक्स का नाम ही इसके मुख्य खलनायक बौना वामन पर रखा गया है।
कहानी की शुरुआत में ही उसे “महाशैतान” और दुनिया के सबसे “चालाक विलेनों” में गिना गया है। इससे साफ हो जाता है कि ध्रुव का सामना किसी मामूली अपराधी से नहीं, बल्कि एक ऐसे मास्टरमाइंड से है जो भले ही कद में छोटा हो, लेकिन अपनी जबरदस्त बुद्धि और संगठित अपराध की दुनिया पर पकड़ की वजह से ध्रुव के लिए एक खतरनाक चुनौती है। ये कॉमिक्स यही सिखाती है कि मुसीबत कभी भी उसके आकार से नहीं, बल्कि उसकी असली ताकत से आंकी जाती है—छोटी दिखने वाली चीजें भी कई बार जानलेवा साबित हो सकती हैं।

कहानी की असली थीम है हाई-टेक सिक्योरिटी सिस्टम को तोड़ना और उसका गलत इस्तेमाल करना। यही चीज इस कॉमिक्स को बाकी हिंदी कॉमिक्स से अलग बनाती है, जहां ज्यादातर किस्से डकैती या जासूसी तक ही सीमित रहते थे। “बौना वामन” ध्रुव के उस दौर का हिस्सा है, जब उसके दुश्मन सिर्फ ताकतवर नहीं, बल्कि टेक्नोलॉजी, साइबर-अपराध और इलेक्ट्रॉनिक जंग के भी उस्ताद थे। इस वजह से ये कॉमिक्स अपने समय में बेहद खास और आगे की सोच रखने वाली मानी गई।
नारका जेल से पलायन: अभेद्य सुरक्षा का टूटना
“बौना वामन” की शुरुआत किसी हॉलीवुड थ्रिलर जैसी लगती है। कहानी की नींव वहीं पड़ती है, जहाँ एक ऐसी जेल से भागने का सीन दिखाया जाता है, जिसे दुनिया की सबसे सुरक्षित मानी जाती है। ये है नारका जेल, जो राजनगर से कुछ दूरी पर समुद्र में बने एक द्वीप पर स्थित है। इसकी खासियत ये है कि इसमें इतनी एडवांस्ड इलेक्ट्रॉनिक सिक्योरिटी लगी है कि यहां ज्यादा गार्ड्स की जरूरत ही नहीं पड़ती। यहां से किसी बंदी का भाग जाना या किसी बाहरी का अंदर घुसना लगभग नामुमकिन है। इसी वजह से बौना वामन, ध्वनिराज और चुंबा जैसे खतरनाक अपराधियों को यहीं कैद करके रखा गया था।
लेकिन ये मजबूत सुरक्षा ढांचा उस वक्त ध्वस्त हो जाता है, जब एक रहस्यमयी शख्सियत—ट्रॉनिका—दीवारों पर छिपकली की तरह चढ़ता हुआ जेल में घुस जाता है। ट्रॉनिका स्टील के खास बख्तरबंद सूट में है, जिसमें तरह-तरह के इलेक्ट्रॉनिक गैजेट फिट किए गए हैं। इसकी सबसे खास बात ये है कि वो सीधे सीसीटीवी कैमरों के सामने खड़ा होने पर भी पकड़ा नहीं जाता। उसका कवच कैमरों से निकलने वाली इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों को गड़बड़ कर देता है, जिससे मॉनिटर पर उसकी तस्वीर साफ दिख ही नहीं पाती।

अपनी इस टेक्नोलॉजी का फायदा उठाते हुए, ट्रॉनिका लेज़र बैरीकेड्स को बंद कर देता है, जेल का इलेक्ट्रॉनिक कोड ऐसे तोड़ देता है जैसे कोई बच्चा गुल्लक फोड़ रहा हो, और फिर अपनी मेल्टिंग बीम से बौना वामन की सेल का स्टील का दरवाज़ा पिघला देता है। इसके बाद दोनों गोलियों की बौछार से बचते हुए एक पहले से तैयार मिनी पनडुब्बी में बैठकर भूमिगत सुरंग से निकल जाते हैं और समुद्र के रास्ते राजनगर की ओर निकल पड़ते हैं। ये पूरा सीन सिर्फ भागने का नहीं, बल्कि टेक्नोलॉजी और दिमागी चालाकी का गजब नमूना है। यही दिखाता है कि अब अपराधी सिर्फ बंदूक या डंडे से लैस नहीं, बल्कि एडवांस्ड साइंस के हथियारों से भी लैस हो चुके हैं।
खतरनाक सौदा: माइक्रोचिप और ध्रुव की चुनौती
पनडुब्बी में सफर करते हुए, बौना वामन ट्रॉनिका से पूछता है कि आखिर उसने उसे छुड़ाया ही क्यों। तब ट्रॉनिका अपने असली मकसद का खुलासा करता है—वो जापान की एक इलेक्ट्रॉनिक कंपनी यूकाहारो इलेक्ट्रॉनिक्स से नई माइक्रोचिप चुराना चाहता है। खुद को इलेक्ट्रॉनिक्स का माहिर समझने वाला ट्रॉनिका मानता है कि इस कंपनी की सिक्योरिटी उसके बस से बाहर है। इसी वजह से उसे बौना वामन जैसे चालाक मास्टरमाइंड की जरूरत पड़ी।
बौना वामन, जो हमेशा “काम के बदले पैसा” की नीति पर चलता है, तुरंत अपनी कीमत बताता है—दस करोड़ रुपये। ट्रॉनिका वहीं पर उसे एडवांस के तौर पर पाँच करोड़ रुपये थमा देता है।
लेकिन बौना वामन तुरंत एक बड़ी समस्या की ओर इशारा करता है—सुपर कमांडो ध्रुव। क्योंकि जब तक ध्रुव राजनगर में है, इस मिशन की सफलता लगभग नामुमकिन है। इस पर ट्रॉनिका अपनी योजना बताता है कि वो ध्रुव को उस वक्त राजनगर से दूर खींच ले जाएगा, जब असली चोरी होगी। इस सौदे से कहानी का मुख्य टकराव जन्म लेता है। बौना वामन की शातिर मांग और ट्रॉनिका की चालाक योजना मिलकर कहानी को एक धमाकेदार क्राइम-थ्रिलर बना देती हैं।
ध्रुव की जाँच और श्वेता का परिचय
इधर ध्रुव और पुलिस कमिश्नर (जो कि श्वेता के पिता हैं) नारका जेल से वामन के भाग जाने की खबर से परेशान हो जाते हैं। वे सीधे यूकाहारो इलेक्ट्रॉनिक्स के मैनेजिंग डायरेक्टर, मिस्टर हराकी, के दफ्तर पहुँचते हैं, क्योंकि नारका जेल की इलेक्ट्रॉनिक सिक्योरिटी सिस्टम इसी कंपनी ने बनाई थी।
ध्रुव अपनी तेज दिमागी काबिलियत दिखाते हुए मिस्टर हराकी से पूछता है कि क्या उन्हें किसी पर शक है। हराकी जवाब देते हैं कि ये काम शायद जेल के किसी अधिकारी का हो सकता है, क्योंकि वही लोग सिक्योरिटी सिस्टम के बारे में जानते थे। लेकिन ध्रुव तुरंत उनकी बात काटता है और बताता है कि वामन को छुड़ाने वाला इंसान स्टील के खास बख्तर में था। ऐसा सूट जेल का कोई अधिकारी तो ला ही नहीं सकता, लेकिन हाँ—यूकाहारो इलेक्ट्रॉनिक्स जैसी बड़ी टेक कंपनी में जरूर ऐसा बन सकता है। ये सीन साफ दिखाता है कि ध्रुव सिर्फ बलशाली ही नहीं, बल्कि उसकी नजरें गजब की तेज और दिमाग बेहद तार्किक है।
इसी दौरान सामने आता है कि कमिश्नर की बेटी श्वेता भी इसी कंपनी में समर ट्रेनिंग कर रही है। उसने वहाँ वैज्ञानिकों की टीम को नई माइक्रोचिप बनाने में बड़ा योगदान दिया है। इस चिप की ताकत देखकर हर कोई हैरान है—इसे अगर किसी रोबोटिक खिलौने में लगा दिया जाए, तो इंसान सिर्फ सोचकर ही उसे कंट्रोल कर सकता है। यानी ये कोई मामूली चीज़ नहीं, बल्कि एक ऐसा टॉप सीक्रेट प्रोजेक्ट है, जिसकी कीमत पैसों में नापी ही नहीं जा सकती।

श्वेता का इस प्रोजेक्ट में अहम योगदान और साथ ही उसका कमिश्नर की बेटी तथा ध्रुव की बहन होना, उसे ट्रॉनिका और बौना वामन की चालबाजियों के लिए एक आसान और खतरनाक निशाना बना देता है।
संघर्ष की शुरुआत: जाल और बंधक
पहले पन्ने पर ही ध्रुव को एक निन्जा से लड़ते हुए दिखाया गया है, जबकि बौना वामन एक रिमोट कंट्रोल पकड़े धमकी देता है कि अगर ध्रुव एक सेकंड के लिए रुका तो उसकी दोस्त नीचे कूद जाएगी। दरअसल, वह इस वक्त बौना वामन के रिमोट पर नाच रही है। इस सीन से साफ हो जाता है कि ट्रॉनिका ने ध्रुव को राजनगर से दूर रखने के लिए किसी और को नहीं, बल्कि श्वेता को बंधक बनाया है और उसे माइक्रोचिप की तकनीक के ज़रिए नियंत्रित किया।
ये घटनाक्रम कहानी को सिर्फ एक थ्रिलर नहीं, बल्कि व्यक्तिगत और भावनात्मक स्तर पर भी खड़ा कर देता है। ध्रुव को अब केवल तकनीकी अपराधी से नहीं, बल्कि अपनी दोस्त (संभवतः श्वेता) की जान बचाने के लिए भी लड़ना पड़ता है। शेष कॉमिक्स इसी तकनीकी खतरे, ध्रुव की त्वरित कार्रवाई और बौना वामन व ट्रॉनिका के साथ निर्णायक टकराव पर केंद्रित है।
पात्रों का गहन चरित्र–चित्रण (Character Study)
1. सुपर कमांडो ध्रुव (Super Commando Dhruva)
इस कहानी में ध्रुव अपनी दो सबसे बड़ी ताकतें दिखाता है—बुद्धि और तेज़ कार्रवाई। वह कोई अलौकिक शक्ति वाला नायक नहीं है, बल्कि अपनी तेज सोच, तार्किक दिमाग और गैजेट्स पर भरोसा करता है। नारका जेल की सुरक्षा प्रणाली को भंग करने की घटना में, जब कमिश्नर एक साधारण अधिकारी पर शक करते हैं, ध्रुव तुरंत समझ जाता है कि अपराधी ने जिस स्टील सूट का इस्तेमाल किया, वह केवल यूकाहारो इलेक्ट्रॉनिक्स जैसी बड़ी टेक कंपनी में ही बनाया जा सकता है। वह राजनगर का निस्वार्थ रखवाला है, और यही वजह है कि ट्रॉनिका को भी मानना पड़ता है कि ध्रुव के रहते उसका काम आसान नहीं होगा। उसकी यह तार्किक और खोजी प्रवृत्ति उसे इस तकनीकी थ्रिलर के लिए एकदम सही नायक बनाती है।
2. बौना वामन (Bauna Waman)
बौना वामन हिंदी कॉमिक्स के सबसे जटिल और यथार्थवादी खलनायकों में से एक है। उसका बौनापन उसकी तकनीकी दक्षता और मानसिक क्रूरता से पूरा होता है। उसका तरीका सीधे है: “काम के बदले पैसा”। वह किसी के एहसान का बोझ नहीं उठाता। ट्रॉनिका के “उपकार” के बदले भविष्य में जेल से छुड़ाने का वादा उसे तुरंत एक व्यावसायिक लेन-देन में बदल देता है। यही विशेषता उसे एक चालाक और पेशेवर अपराधी बनाती है, जिसकी निष्ठा सिर्फ मुनाफे पर टिकी है।
3. ट्रॉनिका (Tronica)
ट्रॉनिका एक रहस्यमयी ‘टेक्नो-क्राइम’ एक्सपर्ट है, जिसकी प्रेरणा सिर्फ पैसा है। वह अपने मिशन को पूरा करने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। वह बौना वामन को नारका जेल जैसी अभेद्य जगह से छुड़ाने के लिए एक खतरनाक और जटिल योजना बनाता है। उसका स्टील सूट और इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल ब्लॉक करने की क्षमता उसे ध्रुव के सामने एक कठिन तकनीकी चुनौती बनाती है। बौना वामन के साथ मिलकर वह एक खतरनाक जोड़ी बनाता है—एक मास्टरमाइंड और एक तकनीकी विशेषज्ञ।
कला और प्रस्तुति: अनुपम सिन्हा का चित्रांकन जादू
इस कॉमिक्स के चित्रांकन का श्रेय अनुपम सिन्हा को जाता है, जो राज कॉमिक्स के सबसे प्रतिष्ठित कलाकारों में गिने जाते हैं। यहाँ भी उनका योगदान इस थ्रिलर को एक अलग पहचान देता है। उन्होंने नारका जेल की हाई-टेक संरचना, ट्रॉनिका के जटिल स्टील सूट और माइक्रोचिप से नियंत्रित रोबोटिक खिलौनों को जिस बारीकी से उतारा है, वह उस दौर की भारतीय कॉमिक्स में साइंस-फाई तत्वों की मज़बूत एंट्री को दिखाता है।
ध्रुव और निन्जा की शुरुआती भिड़ंत (पृष्ठ 3) से लेकर ट्रॉनिका का बौना वामन की कोठरी का दरवाज़ा मेल्टिंग बीम से काटना—हर सीन में एक्शन और डायनामिक्स को शानदार तरीके से पेश किया गया है। पात्रों की शारीरिक बनावट भी बेहद सटीक है—ध्रुव का सुगठित शरीर, वामन का छोटा कद और क्रूर चेहरे के भाव, तथा ट्रॉनिका का रोबोटिक कवच—ये सभी किरदारों को तुरंत पहचानने लायक बनाते हैं।
साथ ही, विट्ठल कांबले की इंक़िंग और सुनील पांडेय का रंग-कार्य इस विज़ुअल ट्रीट को और गहराई देता है, खासकर जेल ब्रेक के दौरान इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के ध्वस्त होने के दृश्यों में। वहां ऊर्जा और तरंगों का चित्रण कहानी के तकनीकी माहौल को और ज़्यादा जीवंत बना देता है।

निष्कर्ष और अंतिम विचार: विज्ञान, नैतिकता और रोमांच का संगम
“बौना वामन” एक ऐसी कॉमिक्स है जो अपने समय से बहुत आगे थी। यह सिर्फ एक सुपरहीरो की कहानी नहीं है, बल्कि विज्ञान, नैतिकता और अपराध के बीच के जटिल रिश्तों को दिखाती है।
कहानी आधुनिक सुरक्षा प्रणालियों की कमज़ोरियों पर भी एक जोरदार टिप्पणी है। नारका जेल की अत्याधुनिक तकनीकी सुरक्षा को ट्रॉनिका के एक ही गैजेट ने ध्वस्त कर दिया। यह साबित करता है कि किसी भी सुरक्षा प्रणाली की ताकत उतनी ही होती है, जितना उसे बनाने वाले का ज्ञान। ध्रुव का कमिश्नर को यह बताना कि अपराधी का सूट कंपनी के अंदर ही बन सकता है, इस बात की पुष्टि करता है कि सबसे बड़ी सुरक्षा चुनौती अक्सर आंतरिक दुरुपयोग या भेदभाव से आती है।
बौना वामन का चरित्र व्यावसायिक नैतिकता और अपराध के बीच की सीमा को धुंधला करता है, जबकि ट्रॉनिका आधुनिक युग के “हायर-गन” (किराए के अपराधी) का प्रतीक है, जिसकी वफादारी केवल पैसे के लिए है।
कुल मिलाकर, “बौना वामन” सुपर कमांडो ध्रुव के बेहतरीन विशेषांकों में से एक है। यह तकनीकी थ्रिलर, तेज़ कहानी और शानदार चरित्र-चित्रण का आदर्श मिश्रण प्रस्तुत करता है। 64 पन्नों की यह कॉमिक्स, सिर्फ ध्रुव के प्रशंसकों के लिए ही नहीं, बल्कि अच्छी अपराध कथा के शौकीनों के लिए भी आज भी उतनी ही रोमांचक और प्रासंगिक है।