सुपरहीरो की इस भीड़ में ‘डोगा’ का स्टाइल सबसे अलग और अनोखा है। जहाँ नागराज और सुपर कमांडो ध्रुव अपनी आदर्शवादी और अलौकिक शक्तियों के लिए जाने जाते हैं, वहीं डोगा एक ‘एंटी-हीरो’ है। वह सिस्टम बदलने में विश्वास नहीं रखता, बल्कि गंदगी और अपराध को जड़ से मिटाने में यकीन करता है।
“चीख डोगा चीख” डोगा सीरीज़ का एक बहुत महत्वपूर्ण और भावनात्मक इश्यू है। यह कॉमिक्स डोगा की क्रूरता दिखाती है, लेकिन साथ ही उसके भीतर छिपी संवेदनशीलता और प्यार को भी सामने लाती है — खासकर मूक पशुओं, और सबसे ज़्यादा कुत्तों के लिए। यह कहानी वफ़ादारी बनाम गद्दारी और क्रूरता बनाम न्याय की बेहतरीन मिसाल पेश करती है।
कथानक और कहानी का विस्तार (Plot Summary)
कहानी की शुरुआत सूरज (डोगा का इंसानी रूप) के जिम “लॉयन जिम” और उसके अतीत के डरावने सपनों से होती है। सूरज इंसानों की तुलना में कुत्तों पर ज़्यादा भरोसा करता है। जैसा कि अदरक चाचा कहते हैं, “सूरज ने गली के कुत्तों को सिर पर चढ़ा रखा है।” यह डोगा के चरित्र की नींव रखता है। सूरज का मानना है कि कुत्ते वफ़ादार होते हैं, जबकि इंसान धोखेबाज।

कहानी में सबसे बड़ा मोड़ तब आता है जब सूरज एक घायल कुत्ते ‘टाइगर’ को बचाता है। उसे इलाज के लिए पशु चिकित्सक के पास ले जाता है और उसकी देखभाल करता है। यहीं पर हमसे मिलते हैं इंसाफ़चंद नामक व्यक्ति से, जिसे कुत्तों से गहरी नफ़रत है। वह सूरज से कहता है कि वह अपनी लाइसेंसी राइफल से कुत्ते को मार सकता है। यह दृश्य समाज में मौजूद पशु-क्रूरता का एक कड़वा सच दिखाता है।
दूसरी तरफ, शहर में अपराध की नई लहर चल रही है। तीन अपराधी — ‘लेब्रा’, ‘चाबी’, और ‘गोटी’ — सक्रिय हैं। पात्रों के नाम भी बहुत सोच-समझकर रखे गए हैं। ‘चाबी’ वह है जो कोई भी ताला खोल सकती है, और ‘लेब्रा’ (शायद लैब्राडोर कुत्ते से प्रेरित नाम) इस गिरोह का सरगना है। विरोधाभास यह है कि लेब्रा कुत्ते का मास्क पहनता है और खुद को ‘कुत्ता’ कहता है, लेकिन उसके काम वफ़ादारी के बिल्कुल विपरीत, चोरी और हिंसा से भरे हैं।
कहानी का सबसे दर्दनाक हिस्सा वह है जब ‘टाइगर’ की निर्मम हत्या हो जाती है। उसे तेजाब से जलाया जाता है और किसी भारी चीज़ से कुचला जाता है। जब डोगा (सूरज) टाइगर की लाश देखता है, उसका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच जाता है। यह सिर्फ़ एक जानवर की मौत नहीं थी, बल्कि एक वफ़ादार साथी की हत्या थी। डोगा का यह रूप — जो अपनी प्रतिशोध की आग में जल रहा है — पाठकों के रोंगटे खड़े कर देता है।
डोगा को पहले शक इंसाफ़चंद पर होता है क्योंकि वह कुत्तों से नफ़रत करता था, लेकिन जल्दी ही उसे पता चलता है कि असली अपराधी लेब्रा और उसका गिरोह है। इसके बाद शुरू होता है डोगा का खूनी खेल। वह जिस तरह से अपराधियों का शिकार करता है, वह इस कॉमिक्स को एक्शन से भरपूर और थ्रिलर बनाता है।

अंत में डोगा और लेब्रा आमने-सामने होते हैं। यहाँ डोगा लेब्रा को यह सिखाता है कि असली “कुत्ता” कौन है — वफ़ादार और रक्षक, और मुखौटा पहनने वाला बहरूपिया कौन।
चरित्र चित्रण और विश्लेषण (Character Analysis)
डोगा (सूरज):
इस कॉमिक्स में डोगा का मानवीय पहलू बहुत साफ़ दिखता है। आमतौर पर हम उसे गोलियाँ बरसाते हुए देखते हैं, लेकिन यहाँ हम उसे एक बीमार कुत्ते को गोद में उठाकर अस्पताल ले जाते हुए देखते हैं। यह दिखाता है कि उसका दिल पत्थर का नहीं है; वह सिर्फ अपराधियों के लिए कठोर है। उसका अतीत — बचपन और सोनू जैसी यादें — हमेशा उसे कचोटती रहती हैं, और शायद इसलिए वह उन बेज़ुबान जानवरों में अपना परिवार ढूंढता है, जो बिना शर्त प्यार करते हैं।

लेब्रा (खलनायक):
लेब्रा एक दिलचस्प और ताक़तवर खलनायक है। वह मार्शल आर्ट्स में माहिर है और शारीरिक रूप से भी मजबूत है। उसका कुत्ते का मुखौटा सिर्फ़ दिखावे का नहीं, बल्कि प्रतीकात्मक अर्थ रखता है। वह डोगा का ‘डार्क मिरर इमेज’ है — डोगा भी मुखौटा पहनता है, लेकिन न्याय के लिए, जबकि लेब्रा वही मुखौटा पहनता है, लेकिन अपराध और धोखाधड़ी के लिए। यह द्वंद्व कहानी को और गहराई देता है।
इंसाफ़चंद:
यह पात्र उस समाज का प्रतिनिधित्व करता है जो अपनी सुविधा और आराम के लिए किसी बाधा को बर्दाश्त नहीं करता। उसका नाम ही व्यंग्य है — ‘इंसाफ़चंद’ — क्योंकि वह एक बेज़ुबान जानवर के प्रति बिल्कुल भी इंसाफ नहीं करता।
विषय वस्तु और सामाजिक संदेश (Themes and Social Message)
“चीख डोगा चीख” सिर्फ़ मार-धाड़ वाली कॉमिक्स नहीं है। इसकी असली ताक़त है इसके पीछे का सामाजिक संदेश और भावनात्मक गहराई।

पशु क्रूरता:
लेखक संजय गुप्ता और तरुण कुमार वाही ने बड़े ही बेबाक तरीके से दिखाया है कि कैसे इंसान अपने स्वार्थ या नफ़रत के लिए बेज़ुबान जानवरों को तड़पाते हैं। टाइगर की मौत का दृश्य पाठक को विचलित कर देता है और सोचने पर मजबूर करता है।
वफ़ादारी की परिभाषा:
कहानी में बार-बार “कुत्ता” शब्द का इस्तेमाल होता है। डोगा गर्व से खुद को कुत्ता कहता है, क्योंकि उसके लिए इसका मतलब है ‘वफ़ादारी’ और ‘रक्षक’। वहीं अपराधी इसे गाली या अपनी चालाकी छिपाने के लिए इस्तेमाल करते हैं। कॉमिक्स यही बताती है कि जानवर होना शर्म की बात नहीं, बल्कि जानवरों जैसा वफ़ादार और ईमानदार व्यवहार करने वाले इंसान ही असली ‘कुत्ते’ हैं।
चित्रांकन और कला (Artwork and Visuals)
कलाकार मनु का काम इस कॉमिक्स में शानदार है। 90 के दशक की राज कॉमिक्स की शैली को उन्होंने बखूबी निभाया है।

एक्शन दृश्य:
डोगा की लड़ाई के सीन बहुत डायनामिक हैं। जब वह लेब्रा के गुर्गों (चाबी और गोटी) से निपटता है, हर पैनल में गति (Movement) महसूस होती है।
भाव–भंगिमाएं:
टाइगर की मौत के बाद सूरज के चेहरे पर जो दर्द और गुस्सा दिखता है, उसे मनु ने बहुत बारीकी से उकेरा है।
वातावरण:
रात के दृश्य, जिम का माहौल और सुनसान सड़कें — सब कहानी के ‘डार्क टोन’ के साथ पूरी तरह न्याय करते हैं। रंगों का चुनाव भी उस समय की प्रिंटिंग तकनीक के हिसाब से बहुत जीवंत और प्रभावशाली है।
संवाद और लेखन (Dialogue and Writing)
संजय गुप्ता और तरुण कुमार वाही की जोड़ी ने हमेशा बेहतरीन काम किया है। इस कॉमिक्स के संवाद सीधे दिल पर चोट करते हैं।
डोगा का संवाद:
“कुत्ते का काम होता है चौकीदारी और वफ़ादारी। कुत्ते का मास्क धारण करने के बाद तू ये दोनों बातें क्यों भूल गया, लेब्रा?”
यह सीधे उस सोच पर हमला करता है जहाँ लोग सिर्फ़ दिखावा करते हैं, लेकिन असली गुण नहीं अपनाते।
पटकथा (Screenplay):
कहानी बहुत कसी हुई है। हर पेज पलटने पर पाठक को उत्सुकता बनी रहती है कि अब डोगा अपराधियों का क्या हाल करेगा। कहानी कहीं भी उबाऊ नहीं होती।
क्यों यह कॉमिक्स आज भी प्रासंगिक है? (Relevance)
आज के समय में, जब सोशल मीडिया पर अक्सर पशु क्रूरता की घटनाएँ देखी जाती हैं, “चीख डोगा चीख” और भी ज़्यादा प्रासंगिक हो जाती है। यह कहानी हमें याद दिलाती है कि एक समाज की जिम्मेदारी सिर्फ इंसानों तक नहीं है।

डोगा का न्याय का तरीका भले ही कानून के दायरे से बाहर हो, लेकिन उसका मक़सद — कमजोरों की रक्षा करना — हर पाठक के दिल में संतोष और प्रेरणा का भाव जगाता है।
यह कॉमिक्स इसलिए भी खास है क्योंकि यह डोगा के “ओरिजिन” यानी उसके मूल व्यक्तित्व को दिखाती है। डोगा सिर्फ इसलिए डोगा नहीं है कि उसे अपराध से नफ़रत है, बल्कि इसलिए है क्योंकि उसने खुद दर्द सहा है और दूसरों का दर्द महसूस कर सकता है — चाहे वह इंसान हो या जानवर।
समीक्षात्मक दृष्टिकोण (Critical Viewpoint)
अगर आलोचनात्मक नजर से देखें, तो कहानी में हिंसा का स्तर काफी ऊँचा है, जो डोगा कॉमिक्स की पहचान रही है। कुछ पाठकों को तेजाब से जलने या हड्डियों के टूटने वाले दृश्य परेशान कर सकते हैं।
कहानी थोड़ी ‘सीधी’ (लीनियर) है — अपराध हुआ, डोगा को पता चला, और उसने बदला लिया। इसमें बहुत जासूसी या सस्पेंस के पेंच नहीं हैं, लेकिन भावनाओं का ज्वार इतना तेज़ है कि पाठक को इसकी कमी महसूस नहीं होती।
एक छोटी सी कमी यह भी है कि पुलिस (इंस्पेक्टर चीता) की भूमिका सीमित है, क्योंकि पूरी लाइमलाइट डोगा और उसके व्यक्तिगत प्रतिशोध पर है। लेकिन यह डोगा की कहानियों का स्वभाव है — वह हमेशा “वन मैन आर्मी” है।
निष्कर्ष (Conclusion)
“चीख डोगा चीख” राज कॉमिक्स के सुनहरे दौर का एक चमकता सितारा है। यह केवल मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि संवेदनाओं का एक दस्तावेज़ भी है।
- कहानी: 4.5/5 (भावनात्मक और तेज़तर्रार)
- आर्टवर्क: 4/5 (क्लासिक 90s स्टाइल)
- मनोरंजन: 5/5
अगर आप डोगा के फैन हैं, तो यह कॉमिक्स आपके कलेक्शन में होनी चाहिए। और अगर आपने कभी डोगा नहीं पढ़ा, तो उसके चरित्र को समझने के लिए यह एक बेहतरीन शुरुआत है।
यह कॉमिक्स आपको रुलाएगी, गुस्सा दिलाएगी और अंत में न्याय मिलने पर सुकून भी देगी। लेब्रा का अंत और टाइगर को मिला न्याय इस बात का प्रमाण है कि मुंबई की सड़कों पर जब तक डोगा है, तब तक “पाप का घड़ा” भरने पर उसे फोड़ने वाला कोई न कोई मौजूद है।
“चीख डोगा चीख” — सचमुच, यह कॉमिक्स अपराधियों की चीख और डोगा की दहाड़ का एक अद्भुत संगम है।
