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    Home » क्रूकबॉन्ड और सभी दीवाने जूतों के – मनोज कॉमिक्स की भूली-बिसरी हास्य जासूसी का पूरा रिव्यू
    Hindi Comics World Updated:6 September 2025

    क्रूकबॉन्ड और सभी दीवाने जूतों के – मनोज कॉमिक्स की भूली-बिसरी हास्य जासूसी का पूरा रिव्यू

    हँसी, जासूसी और नॉस्टैल्जिया का ज़बरदस्त तड़का – एक मज़ेदार कॉमिक्स की विस्तृत समीक्षा
    ComicsBioBy ComicsBio6 September 2025Updated:6 September 202506 Mins Read
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    क्रूकबॉन्ड और सभी दीवाने जूतों के | मनोज कॉमिक्स समीक्षा और पूरी कहानी
    क्रूकबॉन्ड की सबसे मज़ेदार जासूसी – जब पूरा शहर जूतों के पीछे पागल हो गया!
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    भूमिका

    भारतीय कॉमिक्स की दुनिया एक समय सच में सुनहरे दौर से गुज़री है। वो जमाना था जब बच्चों और टीनएजर्स के लिए सबसे बड़ा एंटरटेनमेंट होता था रंग-बिरंगे पन्नों में छपी कहानियाँ। राज कॉमिक्स के नागराज और सुपर कमांडो ध्रुव अपनी सुपरपावर से रोमांचित करते थे, तो वहीं डायमंड कॉमिक्स के चाचा चौधरी और साबू अपनी समझदारी से गुदगुदाते थे।

    इसी दौर में मनोज कॉमिक्स भी अपनी अलग पहचान बनाने में कामयाब रही—खासकर कॉमेडी और जासूसी का जबरदस्त कॉम्बिनेशन दिखाकर। इसी पब्लिकेशन का एक यादगार किरदार है क्रूकबॉन्ड यानी अनोखेलाल। आज हम इसी सीरीज़ की एक बेहद मज़ेदार और फुल-ऑन एंटरटेनिंग कॉमिक्स ‘क्रूकबॉन्ड और सभी दीवाने जूतों के’ की पूरी समीक्षा करेंगे।

    बिमल चटर्जी ने इसे लिखा है और आर्टवर्क किया है त्रिशूल कॉमिको आर्ट ने। ये कॉमिक्स अपने टाइम में ना सिर्फ धमाकेदार एंटरटेनमेंट थी, बल्कि उस दौर की सिंपल और सीधे-सादे लेकिन असरदार स्टोरीटेलिंग का बेहतरीन नमूना भी है।

    ये कॉमिक्स उस दौर की याद दिलाती है जब कहानियों में भारी-भरकम मनोविज्ञान या डार्क रियलिटी नहीं होती थी—बस हल्का-फुल्का सीधा-सादा हास्य होता था। हर पन्ना, हर डायलॉग और हर सीन आपको एक ऐसी दुनिया में ले जाता है जहाँ एक बेवकूफ और नासमझ जासूस अपनी ही गलतियों से सबसे बड़े केस सॉल्व कर देता है।

    इस रिव्यू में हम इस कॉमिक्स की कहानी, इसके मज़ेदार कैरेक्टर्स, आर्टवर्क और कॉमेडी के हर पहलू पर बात करेंगे और समझने की कोशिश करेंगे कि आखिर क्यों ये कॉमिक्स आज भी पुराने रीडर्स के दिलों में अपनी खास जगह बनाए हुए है।

    कहानी का सार: कुत्ते और कीमती जूतों की मज़ेदार दास्तान

    कहानी शुरू होती है हमारे हीरो अनोखेलाल उर्फ क्रूकबॉन्ड से। दसवीं क्लास में कई बार फेल होने के बाद इस पर जासूसी का चस्का चढ़ जाता है। पिछले एक कारनामे में गलती से कुछ बदमाश पकड़वा देने के बाद ये खुद को बड़ा जासूस समझ बैठता है और खोल लेता है “मॉडर्न प्राइवेट डिटेक्टिव एजेंसी”।

    इसके साथ है इसका ममेरा भाई मोटू, लेकिन हफ्तों तक दोनों के पास कोई काम नहीं आता—बस दफ्तर में मक्खियाँ मारते रहते हैं।

    फिर कहानी में ट्विस्ट आता है। अखबार में खबर छपती है—“अंधेर नगरी के चौपट राजा पोपटसिंह के 500 साल पुराने, लाखों के कीमती जूते म्यूज़ियम से चोरी। इन्हें ढूँढने वाले को मिलेगा एक लाख का इनाम।”

    क्रूकबॉन्ड तुरंत ये केस लेने का सोचता है, लेकिन तभी दफ्तर में एंट्री होती है एक खूबसूरत लड़की मालती की। वो अपना खोया हुआ कुत्ता ढूँढने का केस देती है और एडवांस में पाँच सौ रुपये भी पकड़ा देती है। काम के लिए तरसे क्रूकबॉन्ड तुरंत तैयार हो जाता है।

    इसके बाद शुरू होती है उसकी बेवकूफी भरी जासूसी। मालती का दिया हुआ रूमाल सूंघकर शहरभर में कुत्ते ढूँढना, गलत कुत्तों के पीछे भागना, लोगों का हँसी उड़ाना—सब चलता रहता है।

    आखिर एक काला कुत्ता उसे एक बंगले तक ले जाता है (बंगला नंबर 420)। क्रूकबॉन्ड को शक होता है कि यहाँ ही कुत्ते को छुपाया गया है। वो अपने पिता हवलदार धमाका सिंह को फोन करता है, लेकिन वे डाँटकर भगा देते हैं।

    कहानी का असली रहस्य तब खुलता है जब क्रूकबॉन्ड उस बंगले में घुसता है। उसे पता चलता है कि यह बंगला उन्हीं अपराधियों का अड्डा है जिन्होंने राजा पोपटसिंह के कीमती जूते चुराए थे। और ये सब अनजाने में होता है क्योंकि क्रूकबॉन्ड मालती के कुत्ते का पीछा करते हुये उस बंगले में पहुंच जाता जहां वो जूता चोर गिरोह उसी रात जूता देश से बाहर बेचने वाले थे। लेकिन क्रूकबॉन्ड की बेवकूफी भरी हरकतों के कारण उनका सारा प्लान चौपट हो जाता है।

    इसके बाद शुरू होती है धमाकेदार और हास्यास्पद चेज़। कुत्ता जूतों के साथ भाग रहा है, पीछे क्रूकबॉन्ड, उसके पीछे गुंडे और उन सबके पीछे पब्लिक—क्योंकि सबको लग रहा है कि जूतों में कुछ खास बात है।

    ये दौड़ गलियों, सड़कों और शहरभर में हंगामा मचाती हुई एक मज़ेदार क्लाइमेक्स तक पहुँचती है, जहाँ आखिरकार क्रूकबॉन्ड अपनी किस्मत और नासमझी के दम पर जूते बरामद कर लेता है और अपराधियों को भी पकड़वा देता है। और फिर से गलती से ही सही, शहर का हीरो बन जाता है।

    यादगार कैरेक्टर्स

    इस कॉमिक्स का मज़ा इसके कैरेक्टर्स से ही है।

    • क्रूकबॉन्ड (अनोखेलाल): हीरो होते हुए भी ये नायक टाइप नहीं है। ना समझदार, ना बहादुर, ना ताकतवर—बल्कि इसके उलट एकदम मूर्ख, आलसी और घमंडी। इसकी जासूसी की समझ बस फिल्मों और किताबों तक सीमित है। पाइप पीना, मैग्निफाइंग ग्लास लेकर घूमना और बड़ी-बड़ी डींगे मारना इसका शौक है। लेकिन असल में ये एकदम अनाड़ी है। मज़े की बात ये कि इसकी मूर्खताएँ ही इसे हर बार हीरो बना देती हैं।
    • मोटू (टिल्लू): क्रूकबॉन्ड का ममेरा भाई और असिस्टेंट। सिंपल और जमीन से जुड़ा इंसान। ये अक्सर क्रूकबॉन्ड की बेवकूफियों पर सवाल उठाता है, लेकिन साथ भी देता है। इन दोनों का आपसी संवाद, खासकर पाँच सौ रुपये की जगह पाँच का नोट देने वाला सीन, कॉमिक्स के सबसे मज़ेदार हिस्सों में से है।
    • हवलदार धमाका सिंह: क्रूकबॉन्ड के पिता। ईमानदार और गुस्सैल पुलिसवाले। बेटे की जासूसी की आदत से बेहद परेशान, चाहते हैं कि बेटा पढ़ाई करे और कुछ ढंग का काम पकड़े। पिता-पुत्र की नोकझोंक कहानी को और मज़ेदार बना देती है।
    • अपराधी गैंग: ये खलनायक डरावने कम, कॉमिक ज्यादा लगते हैं। उनकी चालाकी क्रूकबॉन्ड की बेवकूफियों के सामने बेकार हो जाती है। उनका गुस्से में सर पटकना ही पाठकों के लिए हँसी का कारण है।

    हास्य और व्यंग्य – कहानी की जान

    इस कॉमिक्स की सबसे बड़ी ताकत इसका हास्य है।

    1. परिस्थितिजन्य कॉमेडी: जासूस का कुत्तों के पीछे भागना, अपराधियों का उससे परेशान होना और पब्लिक का जूतों के पीछे भागना—सब अपने आप में मजेदार सिचुएशंस हैं।
    2. संवाद: क्रूकबॉन्ड की डींगे, मोटू की मासूमियत और धमाका सिंह का गुस्सा—डायलॉग्स पढ़कर हँसी रुकती ही नहीं।
    3. चरित्र-आधारित हास्य: क्रूकबॉन्ड का खुद को जेम्स बॉन्ड समझना और हरकतें मसखरे जैसी करना—यही इसका कॉमिक चार्म है।
    4. हल्का-फुल्का व्यंग्य: “अंधेर नगरी, चौपट राजा” का ज़िक्र और लोगों का बिना सोचे-समझे भीड़ की तरह भागना समाज पर मज़ेदार तंज है।

    आर्टवर्क – कहानी का रंगीन रूप

    त्रिशूल कॉमिको आर्ट का काम कॉमिक्स को ज़िंदा बना देता है। आर्टवर्क सिंपल लेकिन साफ-सुथरा है, जो हास्य कहानी के लिए परफेक्ट बैठता है।

    क्रूकबॉन्ड के चेहरे पर मूर्खता और आत्मविश्वास का मिक्स, धमाका सिंह का गुस्सा और मोटू की हैरानी—सब शानदार ढंग से दिखाए गए हैं। खासकर क्लाइमेक्स की भाग-दौड़ वाली सीन में आर्टवर्क की एनर्जी दिखती है।

    कलर्स उस दौर के हिसाब से चमकीले और फुल अट्रैक्टिव हैं, जो हल्की-फुल्की कॉमिक्स के मूड को पूरा सूट करते हैं।

    निष्कर्ष

    ‘क्रूकबॉन्ड और सभी दीवाने जूतों के’ मनोज कॉमिक्स की एक क्लासिक पेशकश है। आज भी इसे पढ़ने पर वही मज़ा आता है।

    बिमल चटर्जी का लेखन चुटीला और मजेदार है, वहीं त्रिशूल कॉमिको आर्ट का आर्टवर्क कॉमिक्स को पन्नों पर जिंदा कर देता है।

    क्रूकबॉन्ड हमें ये सिखाता है कि हीरो बनने के लिए हमेशा ताकत या समझदारी की ज़रूरत नहीं—कभी-कभी किस्मत और सही वक्त पर की गई बेवकूफी भी आपको हीरो बना सकती है।

    ये कॉमिक्स पुराने रीडर्स के लिए नॉस्टैल्जिया ट्रिप है और नई जेनरेशन के लिए इंडियन कॉमिक्स का मज़ा जानने का शानदार मौका।

    कुल मिलाकर, ये कॉमिक्स हर कॉमिक्स फैन को पढ़नी चाहिए—हँसी की पूरी गारंटी के साथ।

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