वो दौर कुछ और ही था! अस्सी और नब्बे के दशक को भारतीय कॉमिक्स का स्वर्ण युग कहा जाता है। उस वक्त छोटे शहरों से लेकर बड़े महानगरों तक, बच्चे अपनी गर्मी की छुट्टियाँ और जेब खर्च राज कॉमिक्स, डायमंड कॉमिक्स, तुलसी कॉमिक्स और मनोज कॉमिक्स की दुनियाओं में खोकर बिताया करते थे।
इन्हीं में से एक मशहूर प्रकाशन था – मनोज कॉमिक्स, जिसने हमें कई मज़ेदार और यादगार किरदार दिए। इन्हीं में से एक है – महाबली शेरा। आज हम बात करेंगे उसी दौर की एक क्लासिक कॉमिक – “महाबली शेरा और मुर्दों का खज़ाना” की।
यह कॉमिक्स बिमल चटर्जी ने लिखी है और सुरेंद्र सुमन ने इसे अपने शानदार चित्रों से ज़िंदा किया है। ये सिर्फ़ एक कॉमिक्स नहीं, बल्कि एक टाइम मशीन जैसी है – जो हमें हमारे बचपन की उन प्यारी यादों में ले जाती है, जहाँ अच्छाई हमेशा बुराई पर भारी पड़ती थी, और एक हीरो दुनिया बचाने के लिए किसी भी हद तक जा सकता था।
कथानक: साहस, जादू और रहस्य से भरी कहानी
कहानी की शुरुआत होती है सोना के घने जंगलों से। वहीं जंगल का राजा, महाबली शेरा, आराम कर रहा होता है। उसका प्यारा दोस्त और साथी चिम्पी – जो एक वन-मानुष है – उसे जगा देता है और किसी गड़बड़ी का एहसास कराता है। यहीं से शुरू होता है रोमांच और रहस्य से भरा सफ़र, जो शुरुआत से अंत तक पाठक को बांधे रखता है।

शेरा को जंगल में एक लावारिस घोड़ा मिलता है। वो घोड़ा उसे एक ऐसी जगह ले जाता है, जहाँ एक आदमी – शिकारी अजीत – को सूली पर चढ़ाया गया होता है। मरते-मरते अजीत एक नाम लेता है – गोलकुंडा। यही नाम कहानी का नया डर और रहस्य लेकर आता है, क्योंकि यही शैतानी जादूगर इस कहानी का असली विलेन है।
कहानी में अगला ट्विस्ट तब आता है, जब शेरा एक खूबसूरत युवती की चीख सुनता है। वह देखता है कि एक रथ के घोड़े बेकाबू होकर खाई की ओर भाग रहे हैं। शेरा अपनी असाधारण ताकत दिखाते हुए पूरा पेड़ उखाड़कर रथ का रास्ता रोक देता है और उस युवती की जान बचा लेता है। वह युवती निकलती है – राजकुमारी शिवाली।
लेकिन कहानी यहीं मोड़ लेती है! राजकुमारी के सैनिक सोचते हैं कि शेरा ही अपहरणकर्ता है, और वे उसे पकड़कर बंदी बना लेते हैं।
इसके बाद कहानी और मज़ेदार हो जाती है। शेरा को अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए एक विशालकाय और खूंखार भालू से लड़ना पड़ता है। यह सीन महाबली शेरा की ताकत और हिम्मत दोनों दिखाता है। वह न सिर्फ़ भालू को हरा देता है, बल्कि अपनी वीरता से राजकुमारी और उसके सेनापति दोनों का दिल जीत लेता है।

सच्चाई सामने आने के बाद राजकुमारी शिवाली बताती है कि दुष्ट जादूगर गोलकुंडा उसे अगवा करना चाहता है ताकि वह ‘मुर्दों का खज़ाना’ हासिल कर सके। कहा जाता है कि इस खज़ाने में ऐसी असीम शक्तियाँ छिपी हैं जो किसी को भी अजेय बना सकती हैं।
कहानी अपने चरम पर तब पहुँचती है जब गोलकुंडा अपनी जादुई शक्तियों से राजकुमारी का अपहरण कर लेता है। अब शेरा का एक ही मकसद रह जाता है – राजकुमारी को बचाना और गोलकुंडा के आतंक का अंत करना।
चरित्र–चित्रण
महाबली शेरा: शेरा का किरदार थोड़ा टार्जन और कॉनन द बारबेरियन जैसे नायकों से मिलता-जुलता है। वो जंगल का राजा है — जिसकी ताकत की कोई हद नहीं। पेड़ उखाड़ देना, बड़े-बड़े जानवरों से भिड़ जाना और जानवरों की भाषा समझ लेना उसके लिए आम बात है।
लेकिन सिर्फ़ ताकत ही उसकी पहचान नहीं है। शेरा दयालु, न्यायप्रिय और हमेशा कमज़ोरों की मदद करने के लिए तैयार रहता है। वो सभ्यता की भीड़ से दूर रहता है, लेकिन जब भी इंसानियत पर खतरा आता है, वो एक सच्चे रक्षक की तरह सामने खड़ा हो जाता है।
उसका किरदार साहस, इंसानियत और निस्वार्थता का प्रतीक है — एक ऐसा हीरो जो बिना किसी स्वार्थ के लड़ता है।
जादूगर गोलकुंडा: गोलकुंडा एक क्लासिक खलनायक है — क्रूर, चालाक और ताकत का भूखा। उसे बस सत्ता और ताकत चाहिए, चाहे इसके लिए उसे कुछ भी करना पड़े। वो काले जादू का इस्तेमाल करता है, निर्दोषों की जान लेता है और अपने मकसद के लिए किसी भी हद तक गिर सकता है।
उसकी जादुई ताकतें उसे एक खतरनाक दुश्मन बनाती हैं, लेकिन उसका अहंकार और बुराई की सोच ही उसके विनाश का कारण बन जाती है।
वो अच्छाई के सामने बुराई के प्रतीक के रूप में खड़ा है — और यही उसे एक यादगार विलेन बनाता है।

राजकुमारी शिवाली: राजकुमारी शिवाली सिर्फ़ एक “मुसीबत में फंसी राजकुमारी” (damsel in distress) नहीं है। वो बहादुर है, और सही-गलत में फर्क करना अच्छी तरह जानती है।
वो शेरा की ताकत और उसकी सच्चाई को पहचान लेती है और उस पर भरोसा करती है। उसके कारण कहानी में भावनात्मक गहराई आती है — जिससे ये सिर्फ़ एक एक्शन कहानी नहीं, बल्कि इंसानियत और भरोसे की कहानी भी बन जाती है।
कला और चित्रकारी
इस कॉमिक्स की जान है इसके आर्टिस्ट सुरेंद्र सुमन की बेहतरीन कला। उनकी ड्रॉइंग्स में वो एनर्जी है जो कहानी को ज़िंदा कर देती है।
शेरा के मजबूत शरीर, उसकी मांसपेशियों का तनाव, और हर एक्शन सीन में उसका जोश — सब कुछ इतना साफ दिखता है कि हर पैनल में एक्शन का धमाका महसूस होता है।
खास तौर पर भालू से लड़ाई वाला सीन तो शानदार बना है — हर फ्रेम में ताकत और जंग का अहसास होता है।
रंगों का इस्तेमाल भी उस दौर की कॉमिक्स की तरह ही चमकीला और जोश से भरा है। गोलकुंडा का किला, उसके जादुई जीव और डरावना माहौल — सब मिलकर एक रहस्यमयी दुनिया बनाते हैं।
किरदारों के चेहरों के भाव भी बेमिसाल हैं — चाहे वो शेरा का गुस्सा हो, राजकुमारी का डर हो या गोलकुंडा की दुष्ट मुस्कान — हर भाव कहानी को आगे बढ़ाता है, बिना ज़्यादा शब्दों के।
कॉमिक के पैनल्स का लेआउट भी सरल और साफ है, जिससे कहानी पढ़ते वक्त सब कुछ बहुत स्मूथ लगता है।
लेखन और संवाद
लेखक बिमल चटर्जी की लिखावट सीधी, आसान और असरदार है। कहानी की रफ़्तार तेज है — हर पेज पर कुछ नया होता है, जिससे बोरियत की कोई गुंजाइश नहीं रहती।
संवाद छोटे हैं लेकिन दमदार — वो न सिर्फ़ कहानी को आगे बढ़ाते हैं बल्कि किरदारों की शख्सियत भी दिखाते हैं।
भाषा में उस दौर की थोड़ी “नाटकीय झलक” ज़रूर है, जो आज के पाठकों को पुरानी याद दिला देती है। जैसे कि —
“हे देवता! कौन हो सकता है वह अभागा?”
ऐसे संवाद कहानी में एक पौराणिक और महाकाव्य जैसा एहसास भर देते हैं।
कहानी का बेसिक थीम भले ही अच्छाई बनाम बुराई हो, लेकिन इसे जिस रोमांचक और जोश भरे अंदाज़ में दिखाया गया है, वही इसे यादगार बना देता है।
