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Home » मनोज कॉमिक्स विशेषांक 99: ‘Bomb’ – इंस्पेक्टर स्पीड और कांगा(Kanga) के साथ धमाकेदार Comic Review
Editor's Picks Updated:25 October 2025

मनोज कॉमिक्स विशेषांक 99: ‘Bomb’ – इंस्पेक्टर स्पीड और कांगा(Kanga) के साथ धमाकेदार Comic Review

Inspector Speed और Kanga के साथ हाई-ऑक्टेन डिजास्टर थ्रिलर और तबाही का काउंटडाउन
ComicsBioBy ComicsBio25 October 2025Updated:25 October 202507 Mins Read
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मनोज कॉमिक्स विशेषांक 99 ‘बम’ समीक्षा | इंस्पेक्टर स्पीड और कांगा की हाई-ऑक्टेन थ्रिलर कॉमिक्स
मनोज कॉमिक्स का विशेषांक 99 ‘बम’ एक हाई-ऑक्टेन डिजास्टर थ्रिलर कॉमिक्स है जिसमें इंस्पेक्टर स्पीड और कांगा (Kanga) की बहादुरी, आतंकवादियों की चालाकी और रहस्यमय ट्विस्ट के साथ पाठकों के लिए सस्पेंस और एड्रेनालिन से भरी रोमांचक कहानी है।
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भारतीय कॉमिक्स के सुनहरे दौर में, ‘मनोज कॉमिक्स’ ने अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई थी। उनका ‘विशेषांक’ (स्पेशल इश्यू) अकसर पाठकों के लिए कुछ नया और धमाकेदार लेकर आता था। इसी कड़ी में, अंक संख्या 99, जिसका मूल्य 16.00 रुपये था,’बम’ (Bomb) नामक दो पात्रों की कहानी प्रस्तुत करता है। यह कॉमिक्स सिर्फ एक साधारण सुपरहीरो गाथा नहीं है, बल्कि यह एक हाई-ऑक्टेन डिजास्टर-थ्रिलर, एक आतंकवादी षड्यंत्र और एक अलौकिक रहस्य का बेजोड़ मिश्रण है। ‘बारुदी लेखन’ का श्रेय तिलक को, ‘गोलीदार सम्पादन’ संदीप गुप्ता को और ‘चित्रांकन’ कदम स्टुडिओ को दिया गया है। यह विशेषांक अपनी तीव्र गति, तनावपूर्ण माहौल और एक बेहद अप्रत्याशित (और कुछ हद तक भ्रमित करने वाले) अंत के लिए याद किया जाएगा।

कहानी का सार ‘तबाही के काउंटडाउन’ से शुरू होता है

 एक आदमी (जो बाद में इंस्पेक्टर स्पीड निकलता है) एक लाल कार में फंसा है, जिसमें लगा बम सिर्फ आधे घंटे में फटने वाला है। उसका मकसद ‘कौआ लड़की’ (Kanga) को बचाना है, लेकिन उसकी कार को खूंखार, भूखे शिकारी कुत्तों के झुंड ने घेर रखा है; अगर वह बाहर निकला, तो कुत्ते उसे नोच डालेंगे। “अब मैं करूं क्या?”—उसकी यह दुविधा एक पहेली की तरह पाठक के ज़ेहन में बैठ जाती है

जिसके बाद कहानी फ्लैशबैक में ‘बम की दहशत’ की शुरुआत पर लौटती है। यहाँ ‘फ्लैटिड फैक्टरी कॉम्प्लेक्स’ नामक 18 मंज़िला इमारत के सामने पुलिस और फायर ब्रिगेड पहुँचती है और इंस्पेक्टर स्पीड के नेतृत्व में एक टीम सीधे 18वीं मंज़िल पर ‘बैंक ऑफ करोड़पति’ को ग्राहकों और कर्मचारियों से तुरंत खाली कराती है, जिससे घबराहट और अफरा-तफरी फैल जाती है। जब बैंक मैनेजर मिस्टर अधिकारी कारण पूछते हैं, तो स्पीड एक खतरनाक साज़िश का खुलासा करते हैं: आतंकवादी ग्रुप ‘हैंड ग्रेनेड’ के मुखिया ‘टाइगर’ को गिरफ्तार कर लिया गया है, और बदले में उसके खूंखार साथी ‘बकरा’ ने बैंक के किसी लॉकर में टाइम बम लगा दिया है। तनाव तब चरम पर पहुँच जाता है जब स्पीड बताते हैं कि अभी साढ़े बारह बजे हैं और बम ठीक दो बजे फटेगा, यानी उनके पास सिर्फ डेढ़ घंटा है। ‘बकरा’ की मांग है कि दो घंटे के भीतर टाइगर को छोड़ा जाए, वरना पूरा बैंक उड़ जाएगा, लेकिन भयानक भगदड़ के डर से इस पूरे ऑपरेशन को गुप्त रखा गया है।

नाकाम कोशिशें और बढ़ता खतरा

स्पीड की टीम, जिसमें मिस्टर स्वामी और मिस्टर ठाकरे शामिल हैं, मैटल डिटेक्टर से लगभग 2000 लॉकरों की तलाशी शुरू करती है, लेकिन डिटेक्टर से बम का कोई संकेत नहीं मिलता। मैनेजर अधिकारी को यह अजीब लगता है, लेकिन स्पीड को यकीन है कि बम वहीं है, यह कहते हुए कि “मशीनें धोखा दे सकती हैं, मगर कुत्ते नहीं!” वह तुरंत स्निफर डॉग्स बुलाता है, लेकिन उनके आने में देर हो जाती है, जिससे कीमती वक्त बर्बाद होता है। कुत्तों के आते ही वे तेजी से लॉकरों को सूंघना शुरू करते हैं और जब बम फटने में सिर्फ पांच मिनट बचे होते हैं, तब एक कुत्ता लॉकर नंबर 100 को खुरचने लगता है। “मिल गया!” स्पीड चिल्लाता है, मगर अब उनके पास सिर्फ तीन मिनट हैं। मिस्टर स्वामी की ड्रिल मशीन हड़बड़ी में टूट जाती है और जब सिर्फ पचास सेकंड बचते हैं, स्पीड समझ जाता है कि बम डिफ्यूज करना नामुमकिन है। वह फ्लोर खाली करने का आदेश देता है, लेकिन कोई नहीं सुनता, मजबूरन वह चिल्लाता है, “इस फ्लोर पर बम है! बम फटने में सिर्फ तीस सेकंड बचे हैं!”

‘कांगा’ का आगमन

“बम!” शब्द सुनते ही पूरी इमारत में हड़कंप मच जाता है और लोग चीखते-चिल्लाते भागने लगते हैं, जिससे स्पीड की योजना फेल हो जाती है। तभी “भड़ाम!” की आवाज़ के साथ एक जोरदार धमाका होता है, जो 18 मंजिला इमारत को हिला देता है। यह तबाही की बस शुरुआत थी, क्योंकि धमाके की आग नीचे ‘इंडो केमिकल्स इंडस्ट्रीज’ के ज्वलनशील केमिकल्स तक पहुँचकर “भाआक्!” की आवाज़ के साथ सब कुछ लपेट लेती है। यह लपटें सामने ‘जॉनसन इंजीनियरिंग वर्क्स’ तक पहुँचती हैं, जहाँ गैस सिलेंडर “भड़ाम! भड़ाम!” करके फटने लगते हैं और पूरी इमारत जलते हुए नरक में बदल जाती है। सीढ़ियों में आग और धुआं भरने, बिजली जाने और लिफ्ट के 16वीं-17वीं मंजिल के बीच फंसने से सैकड़ों लोग छत पर मदद के लिए चिल्लाने लगते हैं। जब दमकल की सीढ़ियां ऊंचाई तक नहीं पहुँच पातीं, तो स्पीड पास की ‘फ्लैट-रेट वैलोसिटी कॉम्प्लेक्स’ और जलती इमारत की छत के बीच सीढ़ियों का अस्थायी पुल बनाने का आदेश देता है। जैसे ही लोग डरते-डरते पुल पार करने लगते हैं, तभी आसमान से एक रहस्यमय आकृति ‘कौआ लड़की’ यानी ‘कांगा’ उतरती है। कांगा अपने पंखों से उड़कर लोगों को सुरक्षित पहुँचाने लगती है और 16वीं-17वीं मंजिल के बीच फंसी लिफ्ट का दरवाजा तोड़कर उसमें फंसे बच्चों और लोगों को भी रस्सी की सीढ़ी के ज़रिए बचा लेती है।

कहानी का विश्लेषण: कला, लेखन और पात्र

यह विश्लेषण ‘तबाही का काउंटडाउन’ कॉमिक्स के पात्रों, लेखन शैली और कलात्मक प्रस्तुति के महत्वपूर्ण पहलुओं को उजागर करता है।

पात्रों का चित्रण

इंस्पेक्टर स्पीड: कहानी के मुख्य नायक, स्पीड को बहादुर, समझदार और तुरंत फैसला लेने वाले पुलिस ऑफिसर के रूप में प्रस्तुत किया गया है। उनका “सीढ़ियों का पुल बनाने” का रचनात्मक प्लान उनकी सूझबूझ को दर्शाता है। साथ ही, उनका “कुत्तों पर मशीन से ज़्यादा भरोसा” करने का दिलचस्प दृष्टिकोण उनके मानवीय और सहज पक्ष को दिखाता है।

कांगा (कौआ लड़की): यह कहानी का सबसे रहस्यमय किरदार है। वह पंखों वाली सुपरहीरोइन बनकर लोगों की जान बचाती है, लेकिन कहानी का अंत उसे एक दुखद और डरावने मोड़ पर ले आता है। यह अस्पष्टता कि वह हीरो थी, कोई आत्मा, बदला लेने वाली शक्ति या गलत समझी गई औरत—उसे यादगार बनाती है।

टाइगर और बकरा: ये दोनों आतंकवादी क्रूर, चालाक और निडर दिखाए गए हैं। विशेष रूप से बकरा का “दो बमों वाला प्लान” उसे एक खतरनाक और होशियार विलेन साबित करता है।

लेखन और निर्देशन (तिलक)

लेखक तिलक ने अपनी कहानी को एक दमदार, तेज़ रफ्तार थ्रिलर के रूप में सफलतापूर्वक गढ़ा है, जिसमें काउंटडाउन का प्रभावी प्रयोग एक प्रमुख विशेषता है। कहानी में समय का निरंतर सिकुड़ता अंतराल—पहले 30 मिनट, फिर 1.5 घंटे, 5 मिनट, 3 मिनट, 50 सेकंड, और अंत में 30 सेकंड—पाठक को ज़रा भी मोहलत नहीं देता और निरंतर सस्पेंस बनाए रखता है। कथानक की बनावट यानी नैरेटिव स्ट्रक्चर भी काफी साहसी और स्मार्ट है; कहानी को बीच से शुरू करना (In Media Res) और फिर उसे टाइम लूप के रूप में जोड़ना इसे एक साधारण बम डिफ्यूज़ल की घटना से उठाकर साइंस–फिक्शन मिस्ट्री में बदल देता है, जो निस्संदेह इसका सबसे मजबूत पहलू है। हालाँकि, कहानी का अंत कुछ कमजोर और उलझा हुआ महसूस होता है। कांगा का कंकाल, सोना की अस्पष्ट बातें, और अखबार की खबर जैसे तत्व मिलकर कहानी को एक अस्पष्ट और अधूरा एहसास देते हैं, जिससे पाठक के मन में संतोषजनक जवाबों के बजाय अधिक सवाल ही शेष रह जाते हैं।

कला (कदम स्टूडियो)

क़दम स्टूडियो का कला कार्य (आर्टवर्क) निःसंदेह अपने समय के हिसाब से बहुत प्रभावशाली और ज़िंदा है, जिसने कहानी के थ्रिलर तत्व को ज़बरदस्त सहारा दिया है। स्टूडियो ने सजीव और यादगार दृश्यों के सृजन में असाधारण कौशल दिखाया है; विशेष रूप से आग, धमाके और भगदड़ के दृश्य बेहद जोरदार और प्रामाणिक महसूस होते हैं। कुछ पैनल तो पाठक के मन में अमिट छाप छोड़ते हैं, जैसे कुत्तों द्वारा कार को घेरने वाला पहला सीन और कांगा के उड़ान भरने वाले दृश्य। इसके अतिरिक्त, आर्टिस्ट ने भावनाओं के प्रदर्शन पर भी बारीक ध्यान दिया है। पात्रों के चेहरों पर डर, तनाव और थकान की अभिव्यक्ति बहुत अच्छे ढंग से की गई है, जहाँ मिस्टर स्वामी के चेहरे पर पसीने की बूंदें जैसी सूक्ष्मताएँ भी कहानी के दबाव और माहौल को गहनता प्रदान करती हैं। यह कला कार्य कहानी के कथात्मक प्रभाव को कई गुना बढ़ा देता है।

निष्कर्ष: एक रोमांचक और रहस्यमय सफर

‘मनोज कॉमिक्स विशेषांक: सम और कांगा’ एक नॉन–स्टॉप एक्शन थ्रिलर है जिसे भूलना मुश्किल है। इसकी सबसे बड़ी ताकत इसकी तेज़ रफ्तार कहानी और टाइम–लूप वाला चतुर ट्विस्ट है। यह कॉमिक्स सस्पेंस और ऐड्रेनालिन से भरी रहती है। हाँ, इसका अंत थोड़ा उलझा और रहस्यमय है, पर यही बात इसे और दिलचस्प बना देती है। यह कॉमिक्स साबित करती है कि 80–90 के दशक में भी भारतीय लेखक क्रिएटिव सोच रखने और जोखिम लेने से नहीं डरते थे। यह सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि एक पहेली, एक धमाका और एक रोमांचक सफर है, जो तेज़ गति वाले डिजास्टर थ्रिलर प्रेमियों के लिए एकदम परफेक्ट है।

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