नब्बे का दशक भारतीय कॉमिक्स की दुनिया का स्वर्ण युग था। यह वह समय था जब बच्चों और किशोरों के हाथों में वीडियो गेम कंसोल या स्मार्टफोन नहीं, बल्कि रंग-बिरंगी कॉमिक्स हुआ करती थीं। राज कॉमिक्स के नागराज और सुपर कमांडो ध्रुव जहाँ सुपरहीरो जॉनर पर राज कर रहे थे, वहीं डायमंड कॉमिक्स के चाचा चौधरी और बिल्लू पारिवारिक मनोरंजन का पर्याय थे। इसी दौर में, एक और प्रकाशन था जो चुपचाप लेकिन मजबूती से अपनी जगह बनाए हुए था – मनोज कॉमिक्स।
मनोज कॉमिक्स की खासियत थी उसकी विविधता। वे हॉरर, थ्रिलर, सस्पेंस, सामाजिक और जासूसी कहानियों का एक अनूठा मिश्रण प्रस्तुत करते थे। उनकी भूत-प्रेत तंत्र-मंत्र श्रृंखला उस समय के किशोरों के लिए रोमांच और सिहरन का दूसरा नाम थी। आज हम मनोज कॉमिक्स के उसी खजाने से निकले एक ऐसे ही नगीने की बात करेंगे, जिसका नाम है – मुर्दा नंबर 402।
16 रुपये की कीमत और एक मुफ्त मैग्नेट स्टीकर के वादे के साथ आने वाली यह कॉमिक्स अपने कवर पेज से ही पाठक को अपनी दुनिया में खींच लेती है। एक भयावह हंसी और हाथ में इंसानी दिल लिए एक शैतानी आकृति… यह कवर यह बताने के लिए काफी था कि अंदर के पन्नों में डर, रोमांच और रहस्य का एक खतरनाक कॉकटेल इंतजार कर रहा है।
नाजरा खान की लिखी और नरेश कुमार के चित्रों से सजी यह कॉमिक्स आज भी उतनी ही प्रभावशाली है, जितनी शायद अपने प्रकाशन के समय रही होगी। चलिए, इस कॉमिक्स की दुनिया में गहराई से उतरते हैं और इसकी कहानी, पात्रों और कला की परतें उधेड़ते हैं।
कथासार
कहानी का आगाज़ एक क्लासिक एक्शन सीन से होता है। हमारा नायक, इंस्पेक्टर विक्रम सिंह, एक जाँबाज़ और कर्तव्यपरायण पुलिस अधिकारी है जो गुंडों पर कहर बनकर टूट पड़ता है। इसी तरह की एक मुठभेड़ के दौरान, वह बुरी तरह घायल हो जाता है। एक गोली उसके हाथ में लगती है और ज़हर फैलने का खतरा पैदा हो जाता है।

डॉक्टरों के अनुसार, उसकी जान बचाने के लिए हाथ काटना ज़रूरी है। ठीक इसी निराशा के क्षण में, डॉक्टर रमन एक उम्मीद की किरण बनकर आते हैं, जो मानव अंगों के प्रत्यारोपण के विशेषज्ञ हैं। वे विक्रम को एक मृत डोनर का हाथ लगाकर उसे अपाहिज होने से बचा लेते हैं।
यहाँ तक कहानी एक मेडिकल चमत्कार लगती है, लेकिन असली हॉरर यहीं से शुरू होता है। घर लौटने के बाद विक्रम को भयानक सपने आने लगते हैं और उसे महसूस होता है कि उसका नया हाथ उसकी अपनी मर्ज़ी से काम नहीं कर रहा। यह हाथ उसे अनियंत्रित और हिंसक बना देता है, यहाँ तक कि एक रात वह नींद में अपनी ही पत्नी का गला घोंटने की कोशिश करता है। उसका अपना ही शरीर उसका दुश्मन बन जाता है।
रहस्य तब और गहरा हो जाता है जब विक्रम को अपने नए हाथ की कलाई पर 402 नंबर गुदा हुआ मिलता है। छानबीन करने पर उसे पता चलता है कि यह हाथ मुर्दा नंबर 402 का है, जो एक खूंखार और शातिर अपराधी था, जिसे फाँसी हो चुकी है। विक्रम यह समझ नहीं पाता कि एक मरे हुए अपराधी का हाथ उसे कैसे नियंत्रित कर सकता है।
इसी बीच, शहर में एक नए, चेहरे पर पट्टी बाँधे हुए अपराधी का आतंक शुरू हो जाता है, जिसे पुलिस राका के नाम से जानती है। वह शहर में हो रही हत्याओं का जिम्मेदार है—दरअसल वह उनकी हत्या कर उनके शरीर का कोई खास अंग काटकर ले जाता है। समस्त पुलिस महकमा परेशान हो जाता है और तब विक्रम राका के द्वारा की गई सभी हत्याओं की गहराई से छानबीन करता है।

यह तलाश उसे एक शैतानी दिमाग वाले वैज्ञानिक, डॉक्टर दयाल की खतरनाक दुनिया में ले जाती है, जहाँ उसे एक ऐसे सच का सामना करना पड़ता है जो विज्ञान और तर्क की सीमाओं से परे है। कहानी का क्लाइमेक्स इसी प्रयोगशाला में होता है, जहाँ विक्रम को न केवल बाहरी दुश्मनों से, बल्कि अपने ही हाथ से भी अंतिम लड़ाई लड़नी पड़ती है।
पात्र विश्लेषण – नायक, खलनायक और शैतानी विज्ञान
- इंस्पेक्टर विक्रम सिंह –
विक्रम सिंह कहानी की आत्मा है। वह एक आदर्श पुलिस नायक के रूप में शुरू होता है – बहादुर, ईमानदार और शक्तिशाली। लेकिन कहानीकार उसे बहुत जल्द इस आरामदायक स्थिति से निकालकर एक गहरे मनोवैज्ञानिक संकट में डाल देता है। उसका चरित्र-चित्रण शानदार है क्योंकि वह केवल एक एक्शन हीरो नहीं रह जाता, बल्कि एक ऐसा इंसान बन जाता है जो अपनी पहचान, अपनी स्वायत्तता और अपने शरीर पर नियंत्रण के लिए संघर्ष कर रहा है। - राका / अब्दुल –
राका एक यादगार खलनायक है। वह सिर्फ शारीरिक रूप से क्रूर नहीं है, बल्कि मानसिक रूप से भी शैतान है। उसका अपने पुराने हाथ को दूर से नियंत्रित करने का कॉन्सेप्ट इस कॉमिक्स को एक अनोखा हॉरर टच देता है। वह इस बात का प्रतीक है कि कैसे विज्ञान का दुरुपयोग मानवता के लिए सबसे बड़ा खतरा बन सकता है। - डॉक्टर नार्मन –
डॉक्टर नार्मन मैड साइंटिस्ट का एक क्लासिक उदाहरण है। वह ज्ञान और शक्ति की अपनी भूख में इतना अंधा हो चुका है कि उसे इंसानी जीवन की कोई परवाह नहीं है। वह कहानी का मुख्य षड्यंत्रकारी है, जिसकी वजह से यह सारा बखेड़ा खड़ा होता है। उसका चरित्र हमें मैरी शेली के फ्रेंकस्टीन की याद दिलाता है। - अन्य पात्र –
विक्रम की पत्नी और बेटे जैसे सहायक पात्रों को कहानी में ज्यादा जगह नहीं मिली है, लेकिन उनकी उपस्थिति महत्वपूर्ण है। वे विक्रम के जीवन में सामान्य स्थिति और मानवता का प्रतीक हैं, जिसे वह खोने के कगार पर है। उन्हीं को बचाने की प्रेरणा विक्रम को अंत तक लड़ने की ताकत देती है।
कला और चित्रांकन – 90 के दशक का विंटेज चार्म
नरेश कुमार का आर्टवर्क इस कॉमिक्स की जान है। उनकी शैली 90 के दशक की क्लासिक भारतीय कॉमिक्स शैली का सटीक प्रतिनिधित्व करती है। मोटी और स्पष्ट लाइनें, भावुक चेहरे और गतिशील एक्शन सीक्वेंस उनकी कला की पहचान हैं।
- एक्शन और हॉरर का चित्रण –
एक्शन दृश्यों में गति और ऊर्जा है। धड़ाक, आह, क्रैश जैसे ध्वनि प्रभाव वाले शब्द कहानी में जान डाल देते हैं। हॉरर के दृश्यों, खासकर जब विक्रम का हाथ अनियंत्रित हो जाता है या जब वह बुरे सपने देखता है, को प्रभावी ढंग से चित्रित किया गया है।
रंगों का प्रयोग भी कहानी के मूड को सेट करने में मदद करता है। चमकीले रंगों का उपयोग एक्शन के लिए और गहरे, ठंडे रंगों का उपयोग रहस्य और डर के क्षणों के लिए किया गया है।
- पैनल लेआउट –
कॉमिक्स का पैनल-दर-पैनल प्रवाह बहुत सहज है। कहानी बिना किसी रुकावट के आगे बढ़ती है। चित्रकार ने क्लोज-अप शॉट्स का बेहतरीन इस्तेमाल किया है, खासकर पात्रों के चेहरे के भावों को दिखाने के लिए, जिससे उनकी पीड़ा, गुस्सा और डर पाठक तक सीधे पहुँचता है।
कुल मिलाकर, चित्रांकन कहानी के साथ पूरा न्याय करता है। यह बहुत परिष्कृत या आधुनिक नहीं हो सकता है, लेकिन इसमें एक आकर्षण और ईमानदारी है जो आज की डिजिटल कला में अक्सर गायब मिलती है।
कहानी और पटकथा – विज्ञान, अपराध और अंधविश्वास का मिश्रण
नाजरा खान की पटकथा इस कॉमिक्स का सबसे मजबूत स्तंभ है। उन्होंने एक ऐसी कहानी बुनी है जो कई विधाओं को सफलतापूर्वक मिलाती है। यह एक क्राइम थ्रिलर है, एक साइंस-फिक्शन हॉरर है और इसमें थोड़ा-बहुत मनोवैज्ञानिक ड्रामा भी है।

- अद्वितीय कॉन्सेप्ट –
एक ट्रांसप्लांट किया हुआ अंग जो अपने पुराने मालिक के प्रति वफादार है – यह अपने समय के लिए एक बहुत ही ताज़ा और डरावना विचार था। यह कहानी को एक साधारण भूत-प्रेत की कहानी से ऊपर उठाकर बॉडी हॉरर के क्षेत्र में ले जाता है, जहाँ असली डर बाहर से नहीं, बल्कि आपके अपने अंदर से आता है। - गति और रोमांच –
पटकथा की गति तेज है। हर कुछ पन्नों के बाद एक नया मोड़ या संकट आता है, जो पाठक की रुचि को बनाए रखता है। कहानी कहीं भी धीमी या उबाऊ नहीं होती। विक्रम की लाचारी और राका की लगातार बढ़ती क्रूरता एक ऐसा तनाव पैदा करती है जो अंत तक बना रहता है। - विषय–वस्तु –
कहानी कई गहरे विषयों को छूती है। यह विज्ञान के नैतिक उपयोग पर सवाल उठाती है। यह पहचान के संकट को दर्शाती है – क्या हम सिर्फ हमारा शरीर हैं या हमारी चेतना? यह अच्छे और बुरे के शाश्वत संघर्ष को भी दिखाती है, लेकिन एक नए और अनोखे तरीके से।
निष्कर्ष – क्यों मुर्दा नंबर 402 आज भी पठनीय है?
मुर्दा नंबर 402 सिर्फ एक पुरानी कॉमिक्स नहीं है, बल्कि यह उस दौर की रचनात्मकता और कहानी कहने की कला का एक शानदार उदाहरण है। यह दिखाती है कि कैसे कम संसाधनों और सरल कला के बावजूद, एक मनोरंजक और विचारोत्तेजक कहानी गढ़ी जा सकती है।
यह कॉमिक्स उन लोगों के लिए एक ट्रीट है जो 90 के दशक की यादों को ताज़ा करना चाहते हैं। लेकिन यह नए पाठकों के लिए भी एक बेहतरीन अनुभव हो सकती है, जो यह देखना चाहते हैं कि भारतीय कॉमिक्स की जड़ें कितनी गहरी और विविध रही हैं।
इसकी कहानी में आज भी पाठक को बाँधे रखने की क्षमता है। यह डर, रोमांच, एक्शन और सस्पेंस का एक संतुलित मिश्रण है।
संक्षेप में, मुर्दा नंबर 402 मनोज कॉमिक्स का एक छिपा हुआ रत्न है जो समय की धूल में कहीं खो गया है। यदि आपको यह कॉमिक्स कहीं मिलती है, तो इसे पढ़ने का मौका न चूकें। यह आपको भारतीय कॉमिक्स के उस सुनहरे दौर में वापस ले जाएगी जब कहानियाँ कल्पना की ऊँची उड़ान भरती थीं और हर पन्ना एक नया रोमांच लेकर आता था।