भारतीय कॉमिक्स की दुनिया में राज कॉमिक्स ने सालों तक पाठकों को एंटरटेन किया है और उन्हें कई ऐसे किरदार दिए हैं जो कभी भूले नहीं जा सकते। इन्हीं में से दो सबसे बड़े और दिलचस्प किरदार हैं – कोबी और भेड़िया। ये दोनों सिर्फ अपनी तगड़ी ताकत के लिए ही नहीं जाने जाते, बल्कि अपनी अजीब दोस्ती, कड़वी दुश्मनी और जटिल रिश्ते के लिए भी मशहूर हैं। संजय गुप्ता की प्रस्तुति और तरुण कुमार वाही की लिखी हुई कॉमिक्स ‘थू थू’, कोबी-भेड़िया सीरीज़ का एक बड़ा मील का पत्थर है। यह सिर्फ एक्शन से भरी कॉमिक्स नहीं, बल्कि किरदारों के मनोविज्ञान, बदलाव और अहंकार की टक्कर की गहरी कहानी है, जिसे धीरज वर्मा की जबरदस्त आर्टवर्क ने और भी जिंदा कर दिया है।
परिवर्तन ही संसार का नियम है
कहानी का असली हीरो है कोबी। पहले वह जंगल का खूंखार और स्वार्थी जानवर माना जाता था, लेकिन उसमें आता है एक हैरान कर देने वाला बदलाव। जेन का सपना पूरा हो चुका था; अब उसके पास सिर्फ भेड़िया ही नहीं, बल्कि कोबी भी “उसके असली दो हाथ” बनने की राह पर था।
कहानी शुरू होती है तमस मुखपर्वत से। यहाँ जंगलवासी अपने ‘तमस देवता’ को भेंट देने के लिए जमा हुए हैं। यह वही परंपरा थी जिसे कभी कोबी ने तोड़ा था। लेकिन आज कुछ अलग था। जैसे ही जंगलवासी भेंट चढ़ाकर लौट रहे होते हैं, अचानक उनका सामना खुद कोबी से हो जाता है। उसका नाम ही लोगों को डराने के लिए काफी था, और जब लोग उसे सामने देखते हैं तो भागमभाग मच जाती है। इस भगदड़ में कुछ लोग तमस मुख में गिर जाते हैं।

यहाँ आता है पहला बड़ा ट्विस्ट। पहले वाला कोबी शायद हँस देता, लेकिन अब बदला हुआ कोबी अपनी पूंछ से उन्हें बचा लेता है। इतना ही नहीं, वह अपने सैकड़ों भेड़ियों के साथ मिलकर तमस देवता को फल और कंद-मूल की भेंट भी चढ़ाता है।
यह खबर जंगल में आग की तरह फैल जाती है। सरदार जंगूरा, जो सब देख रहा था, जाकर फुज्जो बाबा को बताता है। बाबा को पहले यकीन नहीं होता। लेकिन जंगूरा तो रुकने वाला नहीं था। उसने ऐलान कर दिया कि अब जंगल के रक्षक दो हैं – भेड़िया और कोबी। और उसने अपने कबीले के दरवाजे पर ‘भेड़िया मुख’ के साथ-साथ ‘कोबी मुख’ का निशान भी लगा दिया।
यहीं से शुरू होता है असली द्वंद्व। भेड़िया, जो हमेशा से जंगल का एकमात्र रक्षक कहलाता था, यह बर्दाश्त नहीं कर पाता। जब जंगूरा उससे यह बताने आता है, तो भेड़िया तमतमा जाता है। वह कहता है – “यह जंगल मेरा है! यहाँ सिर्फ मेरा कानून चलेगा।” और गुस्से में वह जंगूरा पर हमला कर देता है और उसे बुरी तरह घायल कर देता है।
दूसरी तरफ, कोबी का अच्छा बर्ताव जारी रहता है। वह बच्चों को अपनी पूंछ से झूला झुलाता है, उनके साथ खेलता है और उनकी मदद करता है। जो बच्चे पहले उसके नाम से डरते थे, अब उसे अपना दोस्त मानने लगते हैं। यह देखकर भेड़िया का गुस्सा और जलन सातवें आसमान पर पहुँच जाती है। वह बच्चों के झूले को तीर से काट देता है और कोबी पर हमला कर देता है।
लेकिन कोबी अब बदल चुका था। वह लड़ने के बजाय शांति से बात करने की कोशिश करता है। मगर भेड़िया सुनने को तैयार ही नहीं होता।
धीरे-धीरे, दूसरे कबीले भी कोबी को रक्षक मानने लगते हैं और ‘कोबी मुख’ का निशान लगाने लगते हैं। भेड़िया गुस्से से उन कबीलों पर हमला करता है, उनके निशान जला देता है और साफ कहता है कि जो भी कोबी का नाम लेगा, वह उसे मार डालेगा।

आखिरकार, कहानी पहुँचती है कोबी और भेड़िया की सीधी भिड़ंत पर। भेड़िया कोशिश करता है कोबी की पूंछ जड़ से उखाड़ने की, क्योंकि उसे लगता है यही उसकी ताकत का राज़ है। लेकिन पूंछ और लंबी होती जाती है। भेड़िया हैरान रह जाता है।
तभी जेन बीच में आती है। वह भेड़िया को समझाने की कोशिश करती है कि कोबी सच में बदल चुका है, अब उससे लड़ने की कोई जरूरत नहीं है। लेकिन भेड़िया का अहंकार इतना बड़ा हो चुका था कि वह यह मान ही नहीं पाता। उल्टा, वह जेन को भी धमकाता है। और आखिर में, अपनी हार और अपमान बर्दाश्त न कर पाने की वजह से भेड़िया वहाँ से चला जाता है।
कहानी के आखिर में, कोबी जंगलवासियों का नया नायक बन जाता है। और भेड़िया… वो अपने अहंकार की आग में अकेला रह जाता है।
नायकत्व का असली टकराव
कोबी: असली हीरो कोबी है। यह साबित करता है कि कोई भी इंसान (या जानवर) बदल सकता है। अब वह अपनी ताकत दूसरों को डराने में नहीं, बल्कि उनकी मदद करने में लगाता है। उसके डायलॉग्स में भोलेपन की झलक है, जैसे – “अरे! मुझे देखते ही ये भाग क्यों गए?”। वह बच्चों के साथ बच्चा बन जाता है और बड़ों का सम्मान करता है। फुज्जो बाबा के पैर दबाने वाला सीन उसकी असली इंसानियत दिखाता है।
भेड़िया: यहाँ भेड़िया खलनायक के रूप में है, लेकिन वह सामान्य विलेन जैसा नहीं है। असल में वह रक्षक है, लेकिन उसका नायकत्व अहंकार और असुरक्षा में डूबा हुआ है। उसे यह मंजूर नहीं कि कोई और भी उसके बराबर आए। कोबी का बदलाव उसे अपनी पहचान के लिए खतरा लगता है। उसकी जलन, गुस्सा और हिंसा – सब उसके टूटे हुए अहंकार से निकलते हैं।
जेन और फुज्जो बाबा: जेन इस बदलाव की असली वजह है और बीच-बचाव करने वाली शख्सियत है। वहीं, फुज्जो बाबा अनुभव और समझदारी का प्रतीक हैं। शुरू में वे शक करते हैं, लेकिन धीरे-धीरे कोबी को मान लेते हैं। यही दिखाता है कि समाज भी धीरे-धीरे बदलाव को अपनाता है।
आर्टवर्क: धीरज वर्मा का कमाल

धीरज वर्मा की आर्ट इस कॉमिक्स की जान है।
- एक्शन सीन: कोबी और भेड़िया की लड़ाइयाँ जबरदस्त लगीं। हर फ्रेम में तेज़ी और दम दिखता है। पूंछ से लड़ने वाले सीन तो खास तौर पर याद रह जाते हैं।
- इमोशन: भेड़िया का गुस्सा, उसकी आँखों में जलन, कोबी का भोला चेहरा और जेन की चिंता – सबकुछ चेहरे के हावभाव में साफ झलकता है।
- पैनलिंग: तेज़ एक्शन के लिए छोटे पैनल, और इमोशनल सीन्स के लिए बड़े पैनल – बैलेंस शानदार है। जंगल और तमस मुखपर्वत का रहस्यमय माहौल कहानी में और गहराई जोड़ता है।
लेखन और संदेश: बदलाव को अपनाना
तरुण कुमार वाही की लिखावट इस कॉमिक्स की असली ताकत है।
- संवाद: छोटे, सरल और असरदार। जैसे – “आज से हमारा रक्षक सिर्फ एक है… कोबी!”
- मुख्य थीम: असली संदेश है – बदलाव को स्वीकार करना। अगर कोई बुरा आदमी अच्छाई की राह पर आता है, तो समाज को उसे मानने में वक्त लगता है। कहानी यह भी बताती है कि अहंकार और जलन कैसे इंसान को बर्बाद कर देती है।
निष्कर्ष
‘थू थू’ सिर्फ कोबी और भेड़िया की एक और लड़ाई नहीं है। यह उनके रिश्ते का बड़ा मोड़ है। यह बताती है कि सच्चा हीरो वही है जिसमें ताकत के साथ-साथ करुणा और विनम्रता भी हो।
एक्शन, गहरे किरदार, शानदार आर्ट और सीख देने वाली थीम – सबकुछ मिलकर इसे राज कॉमिक्स की सबसे यादगार और ज़रूरी कहानियों में से एक बना देता है। यह आज भी उतनी ही असरदार है जितनी उस समय थी। और सच मानिए, अगर आप राज कॉमिक्स के फैन हैं तो ‘थू थू’ आपको ज़रूर पढ़नी चाहिए।