तुलसी कॉमिक्स, जिसने ‘अंगारा’, ‘जम्बू’, ‘तौसी’ और ‘योशो’ जैसे कई यादगार नायक दिए। आज हम जिस कॉमिक्स की समीक्षा कर रहे हैं, वह है तुलसी कॉमिक्स डाइजेस्ट में प्रकाशित “आग का बेटा”, जो महानायक ‘योशो’ की कहानी है। लेखक रितुराज और चित्रकार संजय शिरोडकर की यह कृति विज्ञान, पौराणिकता और फंतासी का शानदार मिश्रण है, जो उस दौर की कॉमिक्स की खास पहचान थी।
कथावस्तु एवं कथानक
“आग का बेटा” की शुरुआत पृथ्वी पर होती है। अमेरिकी अंतरिक्ष संस्थान का एक युवा वैज्ञानिक माइकल, अपने वरिष्ठ सर जानसन को एक अविश्वसनीय किस्सा सुना रहा है। माइकल अभी-अभी ‘सूर्यग्रह’ नामक एक रहस्यमयी ग्रह से लौटा है, जो सूर्य के बहुत पास होने के कारण आग की भट्टी जैसा लगता है। पिछले बीस सालों में वहाँ भेजे गए तीन अंतरिक्षयानों में से सिर्फ माइकल का यान ही सुरक्षित लौट पाया है।
सर जानसन, जो तर्कवादी वैज्ञानिक हैं, उसकी बातों को मानने से इनकार कर देते हैं। तब माइकल बताता है कि सूर्यग्रह पर ‘योशो’ नाम का एक इंसान रहता है, जिसके शरीर से आग निकलती है और आँखों से गोलियाँ। यह शुरुआत ही कहानी को जबरदस्त रहस्य और रोमांच से भर देती है।
इसके बाद कहानी फ्लैशबैक में जाती है। माइकल बताता है कि कैसे उसने सूर्यग्रह पर उतरकर वहाँ के नज़ारे देखे—जहाँ आग के बीच हरे-भरे पेड़-पौधे और बर्फ जैसा ठंडा पानी मौजूद था। यह विरोधाभास ग्रह को और भी रहस्यमयी बना देता है।
अपनी खोज के दौरान, माइकल एक चौंकाने वाला दृश्य देखता है: एक युवक (योशो) को पेड़ से जंजीरों में बांधकर आग के ऊपर लटकाया गया है, और उसकी माँ उस आग में और लकड़ियाँ डाल रही है। यह दृश्य किसी को भी हिला देने वाला है।
योशो अपनी माँ से आग को और तेज करने के लिए कहता है, क्योंकि वह चाहता है कि आग उसकी रगों में इतनी गहराई तक समा जाए कि वह जब चाहे खुद आग पैदा कर सके। यहीं से हमें योशो का असली रूप दिखता है—एक ऐसा नायक जो दर्द और अग्नि को अपनी ताकत में बदल लेता है। उसका शरीर तपे सोने की तरह चमक उठता है और उससे चिंगारियाँ निकलने लगती हैं। यही उसकी शक्ति का मूल है, और इसी वजह से वह कहलाता है—“आग का बेटा”।
कहानी का नाटकीय मोड़ तब आता है जब एक अज्ञात हमलावर योशो की माँ पर एक अजीब गन से हमला करता है। माइकल अपनी जान पर खेलकर उसे बचाता है। इसी अफरातफरी में योशो अपनी असीम शक्ति से जंजीरें तोड़ देता है और उड़ते हुए उस हमलावर को हरा देता है।
इसके बाद, योशो की माँ (जो सूर्यग्रह की पूर्व महारानी हैं) अपनी दुखभरी कहानी माइकल को बताती हैं। वह बताती हैं कि उनके पति योद्वाराज दरअसल पृथ्वी से आए थे और योशो उन्हीं का बेटा है। योशो ही सूर्यग्रह का असली उत्तराधिकारी है। अग्नि-देवता ने योशो को विशेष शक्तियाँ इसलिए दी हैं ताकि वह अपने पिता से बदला ले सके।
क्योंकि जब योशो का जन्म हुआ था, उसके पिता योद्वाराज उसे और उसकी माँ को छोड़कर यान से वापस पृथ्वी लौट गए थे। जब योशो बड़ा हुआ और उसे यह सच पता चला, तो उसके मन में अपने धोखेबाज पिता से बदला लेने की आग जल उठी।
चरित्र-चित्रण
• योशो:
योशो उस दौर के भारतीय कॉमिक्स नायकों का आदर्श उदाहरण है। उसमें शक्ति, क्रोध, न्याय की तीव्र भावना और अपनी माँ के प्रति गहरा सम्मान है। उसका चरित्र “अग्नि” का प्रतीक है – जो विनाशकारी भी है और पवित्र भी। बदले की आग से प्रेरित होकर वह चलता है, लेकिन उसका अंतिम उद्देश्य केवल प्रतिशोध नहीं बल्कि न्याय और धर्म की स्थापना है। उसकी अलौकिक शक्तियाँ उसे भीड़ से अलग बनाती हैं, जबकि अपनी माँ के प्रति उसका समर्पण उसे मानवीय और भावनात्मक गहराई देता है।
• माइकल:
माइकल कहानी में पाठक का प्रतिनिधि कहा जा सकता है। वह एक साधारण इंसान है जो असाधारण घटनाओं का साक्षी बनता है। उसकी वैज्ञानिक सोच और योशो की अद्भुत शक्तियों का टकराव कहानी में यथार्थ और फंतासी के बीच संतुलन स्थापित करता है। केवल कथावाचक भर नहीं, बल्कि वह एक सच्चे मित्र और सहायक की भूमिका भी निभाता है, जो योशो की यात्रा और मिशन में हर कदम पर उसके साथ खड़ा रहता है।
• योशो की माँ (महारानी):
महारानी एक दृढ़ और सशक्त महिला चरित्र हैं। विधवा होने और राज्य से निर्वासन झेलने के बावजूद, उन्होंने अपने बेटे को योद्धा की तरह पाला। अपने बेटे को आग पर लटकाने जैसा कठोर और असहनीय कदम उठाने के पीछे उनका गहरा विश्वास और त्याग छिपा है। वह जानती हैं कि यही कठोर प्रक्रिया योशो को उसकी असली क्षमता तक पहुँचाएगी। उनका मातृत्व केवल कोमलता का प्रतीक नहीं है, बल्कि त्याग और कठोर अनुशासन का भी प्रतिनिधित्व करता है।
कलाकृति और चित्रांकन
भारतीय कॉमिक्स की पहचान हमेशा उसके अनूठे चित्रांकन से रही है। ‘आग का बेटा’ का चित्रांकन संजय शिरोडकर ने किया है, और उनका काम उस दौर की पारंपरिक शैली को शानदार ढंग से पेश करता है। चार मुख्य रंगों—सियान, मेजेन्टा, पीला और काला—के उपयोग से बनी यह कॉमिक्स एक खास ‘विंटेज लुक’ देती है, जो आज भी उसे अलग पहचान दिलाती है।

शिरोडकर का चित्रांकन गतिशील और स्पष्ट है। खासकर एक्शन दृश्यों में पात्रों की गति, भावनाएँ और तनाव बेहद जीवंत महसूस होते हैं। जब नायक दुश्मन पर छलांग लगाता है, तो उस पल का रोमांच पन्नों से बाहर छलक पड़ता है। तरल पदार्थ की धार हो या उससे निकलती आग की लपटें—हर दृश्य को इस तरह उकेरा गया है कि उसका असर सीधे पाठक तक पहुँचता है।
पात्रों के चेहरे के भाव भी बारीकी से उभारे गए हैं। सर जानसन की उलझन और संदेह, माइकल की आत्मविश्वास से भरी मुस्कान, या हमलावर का क्रूर चेहरा—ये सब इतने सटीक ढंग से चित्रित हैं कि पाठक तुरंत उनसे जुड़ जाता है। पैनल लेआउट भी सरल लेकिन असरदार है, जिससे कहानी का प्रवाह बिना किसी अटकाव के आगे बढ़ता है और पढ़ने का अनुभव सहज बना रहता है।
हालांकि, आधुनिक डिजिटल कॉमिक्स की तुलना में इस चित्रांकन में रंगों की गहराई और डिटेलिंग कम लग सकती है, लेकिन यही इसकी असली खूबसूरती है। इसमें हाथ से बने होने की एक सच्चाई और ईमानदारी झलकती है। यही कच्चापन और सादगी इसे आज के अत्यधिक परिष्कृत ग्राफिक्स से अलग और खास बनाते हैं।
संवाद और भाषा
इस कॉमिक्स की भाषा हिंदी है, और यही उस दौर की सबसे बड़ी खासियतों में से एक थी। संवाद सीधे, सरल और कहानी को आगे बढ़ाने वाले हैं। “कोरी गप्प!”, “धड़ाक!” जैसे शब्द न सिर्फ मज़ा बढ़ाते हैं बल्कि कहानी में ऊर्जा और जीवंतता भी भर देते हैं। इससे पाठक को ऐसा लगता है जैसे वह खुद उस घटनास्थल पर मौजूद हो।
संवादों का इस्तेमाल दो मुख्य तरीकों से होता है—एक तो सूचना देने के लिए और दूसरा एक्शन को ज़्यादा प्रभावी बनाने के लिए। माइकल और सर जानसन के बीच के संवाद पूरी कहानी की नींव रखते हैं, जबकि लड़ाई और टकराव वाले दृश्यों में संवाद पात्रों की प्रतिक्रियाएँ और उनके जज़्बात को सामने लाते हैं।

भाषा का सबसे अच्छा पहलू यह है कि यह हर उम्र के पाठकों के लिए सुलभ है। इसमें न कोई कठिन शब्दावली है और न ही भारी-भरकम वाक्य, बल्कि सीधी-सरल बोली है जो तुरंत जुड़ाव बना लेती है।
एक और दिलचस्प बात यह है कि शब्दों के ज़रिए पात्रों के भाव भी बखूबी उभारे गए हैं। जैसे—“माइकल मुस्करा रहा था।” यह केवल एक सीधा विवरण नहीं है, बल्कि उसके आत्मविश्वास और भीतर की खुशी को भी दर्शाता है। ऐसे छोटे-छोटे विवरण कहानी में गहराई और गर्माहट जोड़ते हैं।
निष्कर्ष
“आग का बेटा” तुलसी कॉमिक्स की उन बेहतरीन प्रस्तुतियों में से है जो आज भी पढ़ने पर उतनी ही मनोरंजक और प्रासंगिक लगती है। लेखक रितुराज की कसावट भरी पटकथा और संजय शिरोडकर का ऊर्जावान चित्रांकन मिलकर एक ऐसा अनुभव रचते हैं, जो पाठक को सीधे एक नई और अनोखी दुनिया में ले जाता है। यह कॉमिक्स विज्ञान-कथा, फंतासी और भारतीय पौराणिक तत्वों का शानदार संगम है, और यही इसकी असली ताकत है।
पुराने पाठकों के लिए यह एक नॉस्टैल्जिया ट्रिप है—बचपन के उन दिनों की याद, जब कॉमिक्स पढ़ते-पढ़ते हम घंटों अपनी ही कल्पना की दुनिया में खो जाया करते थे। वहीं, नई पीढ़ी के लिए यह एक शानदार अवसर है यह समझने का कि भारतीय कॉमिक्स की जड़ें कितनी गहरी, कल्पनाशील और विविधता से भरी रही हैं।
योशो का किरदार यह संदेश देता है कि विपत्ति को अवसर में बदला जा सकता है। भीतर की “आग”—चाहे वह गुस्से की हो, दर्द की या जुनून की—अगर सही दिशा में इस्तेमाल हो, तो किसी भी चुनौती को हराया जा सकता है।
कुल मिलाकर, “आग का बेटा” भारतीय कॉमिक्स इतिहास का एक गौरवशाली अध्याय है, जिसे हर कॉमिक्स प्रेमी को ज़रूर पढ़ना चाहिए। यह सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि उस दौर की सोच, कला और कल्पना का जश्न है।