नागराज, सुपर कमांडो ध्रुव, और डोगा जैसे किरदारों ने जहाँ शहर के अपराध और फैंटेसी की दुनिया में अपना जलवा दिखाया, वहीं जंगल के बीचोंबीच एक ऐसा हीरो भी था जिसकी कहानियाँ किसी और ही लेवल की थीं — रहस्यमयी कबीलों, पुरानी शक्तियों और डरावने जादू से भरी हुई। हम बात कर रहे हैं ‘भेड़िया’ की।
भेड़िया की कॉमिक्स सिर्फ एक सुपरहीरो की कहानी नहीं होती थीं, बल्कि जंगल की उस रहस्यमयी दुनिया की झलक दिखाती थीं, जहाँ आज भी प्रकृति के अपने नियम और पुराने जादू का राज चलता है।
इसी तरह की एक शानदार कहानी है ‘कोबी और भेड़िया’ सीरीज़ का खास इश्यू — ‘डोमा’। विक्की खन्ना की लिखी और धीरज वर्मा की जबरदस्त ड्रॉइंग से सजी ये कॉमिक सिर्फ एक्शन से भरी कहानी नहीं है, बल्कि हॉरर, सस्पेंस और फैंटेसी का ऐसा जबरदस्त मिक्स है जो पहले ही पेज से आपको पकड़ लेती है और आखिरी तक छोड़ती नहीं। ये समीक्षा इस कॉमिक के अलग-अलग पहलुओं — कहानी, किरदार, आर्टवर्क और इसके गहरे मतलब — पर रोशनी डालेगी।
जब जंगल में जागा एक पुराना अभिशाप
कहानी की शुरुआत बहुत ही शांत और सुकून भरे सीन से होती है — जहाँ भेड़िया अपनी दोस्त जेन के साथ जंगल में जामुन खा रहा होता है।
लेकिन ये शांति ज़्यादा देर नहीं टिकती। अचानक उन्हें एक ऐसा नज़ारा दिखता है जो किसी भी इंसान के रोंगटे खड़े कर दे।
एक आदमी पर लकड़बग्घों का झुंड टूट पड़ा है, वो उसे बेरहमी से नोच रहे हैं — पर हैरानी की बात ये है कि उस आदमी के चेहरे पर न दर्द है, न डर! वो बिल्कुल एक चलती-फिरती लाश की तरह खड़ा रहता है, जैसे उसे कुछ महसूस ही नहीं हो रहा हो। भेड़िया तुरंत उस पर झपटता है और उसे बचा लेता है। लेकिन इससे पहले कि वो कुछ पूछे, वो रहस्यमयी आदमी बिना एक शब्द बोले पास में पड़े एक विशाल जंगली भैंसे का मरा हुआ शरीर ऐसे उठा लेता है जैसे कोई हल्की चीज़ हो — और बिना पीछे देखे वहाँ से चला जाता है। इस अजीब घटना के बाद भेड़िया के मन में कई सवाल उठते हैं। कौन था वो आदमी? उसमें ऐसी ताकत कहाँ से आई? और वो गया कहाँ?

इधर भेड़िया उस रहस्यमयी आदमी की गुत्थी सुलझाने के लिए अपने गुरु फूजो बाबा के पास पहुँचता है। फूजो बाबा पुराने ग्रंथों और इतिहास के पन्नों को पलटते हैं, और धीरे-धीरे एक बहुत बड़ा और डरावना राज़ सामने लाते हैं — ‘डोमा’ का रहस्य। वे बताते हैं कि ‘डोमा’ किसी इंसान का नाम नहीं, बल्कि एक अवस्था है।
हज़ारों साल पहले एक खतरनाक तांत्रिक ‘खुंखार’ था, जो अपने ही कबीले के लोगों पर जुल्म करता था।
उसके पास ऐसी ताकत थी कि वो मरे हुए लोगों को ज़िंदा कर देता था — लेकिन वो लोग ज़िंदा होकर भी बस उसकी आज्ञा मानने वाली, भावहीन लाशें बन जाते थे। इन चलती-फिरती लाशों को कहा जाता था ‘डोमा’। आखिरकार खुंखार की आत्मा को बड़ी मुश्किल से काबू किया गया और एक ताबूत में बंद कर दिया गया। साथ ही चेतावनी दी गई कि अगर वो आत्मा कभी आज़ाद हुई, तो किसी इंसान के शरीर पर कब्जा कर लेगी और फिर से तबाही मचाएगी।
अब सारा मामला भेड़िया के सामने साफ हो जाता है। उसे समझ आता है कि किसी ने उस पुरानी शैतानी आत्मा को आज़ाद कर दिया है — और जंगारू उसी का सेवक है। वो रहस्यमयी आदमी, शाकाल, असल में खुंखार की आत्मा का नया ‘डोमा’ है।
यानि अब भेड़िया का सामना किसी साधारण कबीले से नहीं, बल्कि एक ऐसी पुरानी और खतरनाक ताकत से है, जिसे न दर्द का एहसास होता है और न मौत का डर।
कहानी का बीच वाला हिस्सा अब एक ज़बरदस्त तीन-तरफा जंग में बदल जाता है — भेड़िया, कोबी और डोमा के बीच।
कोबी अपने अपमान का बदला लेने के लिए जंगारू से भिड़ता है, जबकि भेड़िया जंगल को डोमा के कहर से बचाने के लिए जंगारू और शाकाल से टकराता है।
यह लड़ाई इतनी रोमांचक है कि रीडर पूरी तरह कहानी में डूब जाता है। शाकाल, जो डोमा की शक्तियों से नियंत्रित है, लगभग अजेय दिखता है। भेड़िया उस पर दीमकें छोड़ता है, उसे कीचड़ में फँसाता है, पर डोमा हर बार किसी न किसी तरह बच निकलता है।

कहानी का क्लाइमेक्स आता है तो माहौल और भी डरावना और जबरदस्त हो जाता है। डोमा अब अपनी असली और सबसे भयानक शक्ति दिखाता है — वो पास की एक गुफा में दफन एक पुराने विशाल सफेद बाघ ‘कोपजिला’ के मरे हुए शरीर को फिर से ज़िंदा कर देता है! अब कोपजिला, जिसमें डोमा की आत्मा समा चुकी है, एक प्रलयंकारी दैत्य बन जाता है।
उसकी ताकत के आगे भेड़िया और कोबी दोनों की शक्तियाँ छोटी पड़ जाती हैं।
लेकिन यहीं कहानी एक नया मोड़ लेती है। अपने साझा दुश्मन को हराने के लिए दो दुश्मन — भेड़िया और कोबी — एक साथ लड़ने का फ़ैसला करते हैं। ये गठबंधन अस्थायी है, लेकिन इसी में उनकी एकमात्र उम्मीद है।
कहानी का आख़िरी हिस्सा पूरी तरह धमाकेदार है। भेड़िया और कोबी, दोनों मिलकर अपनी पूरी ताकत से कोपजिला पर टूट पड़ते हैं। ये लड़ाई इतनी विनाशकारी और रोमांचक है कि हर पेज पर दिल की धड़कन बढ़ती जाती है। लंबे और मुश्किल संघर्ष के बाद आखिरकार दोनों उस दैत्य को हराने में सफल हो जाते हैं। जैसे ही कोपजिला का शरीर टूटकर बिखरता है, डोमा की आत्मा आज़ाद हो जाती है — और सीधा भेड़िया के शरीर पर कब्जा करने की कोशिश करती है। लेकिन भेड़िया के फौलादी इरादों और उसकी पवित्र आत्मा के सामने वो कुछ नहीं कर पाती। आख़िर में डोमा की आत्मा को फिर से कैद कर लिया जाता है — और जंगल एक बार फिर बड़े संकट से बच जाता है।
पात्र विश्लेषण
भेड़िया: इस कहानी में भेड़िया अपने नायकत्व के चरम पर है। वो सिर्फ़ ताकतवर योद्धा नहीं है, बल्कि समझदार, रणनीतिक और जंगल का सच्चा रखवाला है। उसकी चिंता अपनी शक्ति या शासन के लिए नहीं, बल्कि जंगल के हर जीव-जंतु के संतुलन और सुरक्षा के लिए है। उसका किरदार धैर्य, न्याय और धर्म का प्रतीक बन जाता है।
कोबी: कोबी इस कहानी का परफेक्ट एंटी-हीरो है। वो घमंडी है, गुस्सैल है और सत्ता का भूखा भी।
कहानी की शुरुआत में वो सिर्फ़ अपने अहंकार और स्वार्थ के लिए लड़ता है, लेकिन जब डोमा जैसा बड़ा खतरा सामने आता है, तो उसमें बदलाव दिखता है। वो भेड़िया के साथ मिलकर लड़ता है — जो ये दिखाता है कि जब मुश्किल वक्त आता है, तो पुराने झगड़े भुलाकर एकजुट होना ही असली बहादुरी है।

डोमा (और जंगारू): डोमा कहानी का असली खलनायक है — एक ऐसी बुराई जो न पूरी तरह इंसान है, न पूरी तरह आत्मा।
वो अपनी आत्मा और जादू से लड़ता है, और विनाश, डर और नियंत्रण का प्रतीक है। उसका अनुयायी जंगारू, अंधभक्ति और अंधविश्वास का प्रतीक है। वो अपनी इच्छा से एक शैतानी ताकत का गुलाम बन जाता है — ये दिखाता है कि गलत आस्था कैसे किसी इंसान को बर्बादी के रास्ते पर ले जा सकती है।
शाकाल: शाकाल इस कहानी का सबसे यादगार और डरावना किरदार है। वो एक ऐसा हथियार है जिसकी अपनी कोई सोच या भावना नहीं है। उसे दर्द का एहसास नहीं होता — और यही बात उसे और भी भयानक बना देती है। वो इस बात का प्रतीक है कि जब किसी इंसान में आत्मा या चेतना नहीं बचती, तो वो सिर्फ़ एक चलता-फिरता विनाश बन जाता है।
कला और चित्रांकन: धीरज वर्मा का जादू
धीरज वर्मा का नाम राज कॉमिक्स के साथ लगभग पर्याय बन चुका है — और ‘डोमा’ में उन्होंने अपने आर्ट का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है। भेड़िया और कोबी जैसे पात्रों की मांसल बनावट, उनकी जंगली शक्ति, और हर पैनल में भरी हुई कच्ची ऊर्जा कहानी को नई ऊँचाइयों तक ले जाती है।
एक्शन सीन में धीरज वर्मा की पकड़ तो जैसे जादू है —चाहे लकड़बग्घों का शाकाल को नोचना हो, कोबी और जंगारू की आग जैसी भिड़ंत हो,या फिर कोपजिला का दानवी आकार, हर दृश्य इतना जीवंत लगता है कि लगता है जैसे कॉमिक के पन्नों से आवाज़ निकलने लगेगी।
चेहरे के भाव — खासकर क्रोध, दर्द और डर — बिना किसी संवाद के भी बोल उठते हैं। कलरिंग स्कीम में 90 के दशक की वो चटख और बोल्ड टोन झलकती है जो आज भी पुरानी यादों को ताज़ा कर देती है। हर पेज पर एक ऐसा विजुअल इम्पैक्ट है जो ‘डोमा’ को सिर्फ़ पढ़ने लायक नहीं, देखने लायक अनुभव बना देता है।
लेखन और संवाद: विक्की खन्ना की कसावट
विक्की खन्ना की कहानी कहने की शैली तेज़, रहस्यमय और हर मोड़ पर रोमांच से भरी हुई है।
‘डोमा’ की स्क्रिप्ट में रहस्य, डर और एक्शन का शानदार संतुलन है। कहानी की शुरुआत से जो सस्पेंस बुना जाता है, वह धीरे-धीरे खुलता है — और पाठक को आख़िरी पेज तक थामे रखता है।
फूजो बाबा के ज़रिए डोमा की प्राचीन पृष्ठभूमि का खुलासा, खलनायक को एकदम अलग ऐतिहासिक गहराई देता है। वह सिर्फ़ “बुरा आदमी” नहीं लगता, बल्कि एक प्राचीन अभिशाप बन जाता है — यही इस कहानी की ताकत है।
संवादों की बात करें तो वो छोटे, धारदार और प्रभावशाली हैं — बिलकुल वैसे जैसे 90 के दशक की कॉमिक्स में हुआ करते थे।
जैसे कि वो यादगार लाइन — “अब तेरा मुँह आग नहीं, खून उगलेगा!”
ऐसे संवाद न सिर्फ़ एक्शन को और तीखा बनाते हैं, बल्कि पात्रों की रगों में बहती गुस्से की गर्मी तक महसूस करा देते हैं।
निष्कर्ष: क्यों ‘डोमा’ आज भी एक पठनीय क्लासिक है
‘डोमा’ सिर्फ़ भेड़िया और कोबी की एक और लड़ाई की कहानी नहीं है — ये उससे कहीं ज़्यादा गहरी और परतदार कहानी है।
ये हमें बताती है कि कुछ बुराइयाँ इतनी पुरानी होती हैं कि वो कभी पूरी तरह मिटती नहीं… बस सही वक्त का इंतज़ार करती रहती हैं ताकि फिर से लौट सकें।
कहानी के भीतर अंधभक्ति के खतरों और सत्ता के अहंकार पर भी सीधी चोट की गई है।
लेकिन सबसे अहम बात — ‘डोमा’ हमें सहयोग और एकता का संदेश देती है।
जब भेड़िया और कोबी जैसे कट्टर दुश्मन भी एक बड़े खतरे को रोकने के लिए साथ खड़े हो सकते हैं, तो ये हमें सिखाता है कि इंसानियत के सामने आने वाले असली संकटों से निपटने के लिए हमें भी अपने मतभेद भूलने पड़ते हैं।
कहानी, कला और पात्र — तीनों का ऐसा मेल ‘डोमा’ को राज कॉमिक्स की दुनिया का एक अनमोल रत्न बना देता है।
यह न केवल पुराने प्रशंसकों के लिए, बल्कि उन नए पाठकों के लिए भी एक बेहतरीन अनुभव है जो भारतीय कॉमिक्स की गहराई को महसूस करना चाहते हैं।
‘डोमा’ पढ़ना ऐसा है जैसे आप उस दौर में लौट जाएँ जब कहानियाँ सीधी-सादी होते हुए भी दिल में उतर जाती थीं — और जब नायक अपनी शक्तियों से ज़्यादा, अपने मूल्यों के लिए पहचाने जाते थे।
तो अगर आपके हाथ कभी ये कॉमिक लग जाए — इसे ज़रूर पढ़ें।
ये जंगल के रहस्यमय अंधेरे, प्राचीन बुराई और अदम्य साहस की ऐसी गाथा है जो आपके ज़ेहन में लंबे समय तक गूंजती रहेगी।