यहाँ राज कॉमिक्स के दिग्गज नायक ‘भोकाल’ की रोमांचक कॉमिक “कालकूट” की विस्तृत समीक्षा प्रस्तुत है। यह समीक्षा कहानी, चित्रांकन, किरदारों और इसके पौराणिक महत्व को ध्यान में रखते हुए लिखी गई है।
कॉमिक समीक्षा: कालकूट (भोकाल) – राज कॉमिक्स, प्रकाशक: राज कॉमिक्स, सीरीज: महाबली भोकाल
लेखक: संजय गुप्ता, संपादक: मनीष गुप्ता, चित्रांकन: दिलीप कदम, प्रकाशन वर्ष: 1997 (डबल एक्शन वर्ष)
एक महागाथा का आरंभ
आज हम जिस कॉमिक “कालकूट” की बात कर रहे हैं, वह भोकाल की उन क्लासिक कहानियों में से एक है जो mythology, fantasy और जबरदस्त ऐक्शन का शानदार मिलाजुला रूप है। 1997 में आई यह कॉमिक न सिर्फ भोकाल की वीरता को दिखाती है बल्कि यह भी बताती है कि जब बुराई अपने चरम पर पहुँच जाती है, तब दिव्य शक्तियाँ भी सच और न्याय का साथ देती हैं। लेखक संजय गुप्ता और चित्रकार दिलीप कदम ने इस कॉमिक में कमाल का काम किया है।
विनाश का पर्वत
कहानी की शुरुआत एक बहुत ही grand और सोचने पर मजबूर करने वाले दृश्य से होती है। ब्रह्मांड के रचयिता खुद देवता इस बात पर चर्चा कर रहे हैं कि पृथ्वी पर मौजूद करोड़ों लोगों में सबसे “श्रेष्ठ” कौन है। देवताओं की नजर आखिरकार भोकाल पर जाकर रुकती है। उनके हिसाब से भोकाल में साहस, दिमाग और सही व्यवहार—तीनों का perfecta मेल है। इसलिए वे उसे दिव्य अस्त्रों का अधिकारी मानते हैं।

लेकिन जैसे ही देवताओं की कृपा भोकाल पर होती है, धरती पर एक नई मुसीबत जाग जाती है। एक शांत, विशाल पर्वत अचानक जीवित हो उठता है। पत्थरों और चट्टानों से बना यह रूप कोई साधारण चीज नहीं है, बल्कि “कालकूट” नाम का एक भयानक महा-राक्षस है। कालकूट का जागना कोई साधारण घटना नहीं, बल्कि उसके गुस्से का नतीजा है। किसी ने उसकी हजारों साल की तपस्या भंग कर दी है, और अब वह बदले की आग में जल रहा है।
कहानी का पहला बड़ा मोड़ तब आता है जब कालकूट अपनी ताकतें दिखाना शुरू करता है। वह सिर्फ एक विशाल पत्थर जैसा दानव नहीं है; उसके पास प्रकृति को अपने हिसाब से बदलने की शक्ति है। वह तूफान खड़ा कर सकता है, धरती हिला सकता है और डरावने जीवों को पैदा कर सकता है।
उधर भोकाल, जो पास के जंगल में भील कबीले की रक्षा कर रहा होता है, कालकूट की तबाही देखता है। भोकाल का कालकूट से पहला सामना ही उसे समझा देता है कि यह लड़ाई सिर्फ तलवार और ढाल से नहीं जीती जा सकती। कालकूट का आकार और उसकी शक्ति भोकाल से कई गुना ज्यादा है। इसके अलावा कालकूट के पास ‘कालभुजंग’ (उड़ने वाला सर्प-राक्षस) और ‘काल कंकड़’ (पत्थर के सैनिक) जैसी खतरनाक मदद भी है, जो उसे लगभग अजेय बना देती है।
कहानी का एक और अहम मोड़ तब आता है जब भोकाल की मदद के लिए एक रहस्यमय बूढ़े साधु—पवनाचार्य—आते हैं। यह साधु भोकाल को बताते हैं कि कालकूट ने माँ काली की घोर तपस्या से वरदान पाया है, जिसकी वजह से उसका शरीर वज्र की तरह अटूट हो गया है।

युद्ध का रोमांच तब और बढ़ जाता है जब कालकूट जंगल की नदी को ज़हरीला बना देता है। इससे मासूम कबीले वाले और जानवर मरने लगते हैं। यहाँ लेखक ने भारतीय पौराणिक कथाओं का बहुत सुंदर और भावुक इस्तेमाल किया है। जब हालात भोकाल के नियंत्रण से बाहर होने लगते हैं, तो महाबली हनुमान का आह्वान किया जाता है। हनुमान जी का आना और संजीवनी बूटी का जिक्र कहानी को एक अलग ही आध्यात्मिक ऊँचाई दे देता है।
अंततः, एक जबरदस्त और थका देने वाली लड़ाई के बाद, जिसमें भोकाल को अपनी समझ और ताकत—दोनों का पूरा इस्तेमाल करना पड़ता है, वह कालकूट और उसकी आसुरी शक्तियों का अंत कर देता है।
चरित्र विश्लेषण (Character Analysis)
महाबली भोकाल:
इस कॉमिक में भोकाल को सिर्फ एक योद्धा नहीं, बल्कि एक सच्चा रक्षक और भक्त के रूप में दिखाया गया है। जब उसे एहसास होता है कि उसकी शारीरिक शक्ति कालकूट के सामने कम पड़ रही है, तो वह ज़िद या घमंड नहीं दिखाता। वह पवनाचार्य की बात मानता है और संकट के समय हनुमान जी को याद करता है। यह उसकी विनम्रता को दिखाता है।
उसके पास उड़ने की ताकत (जो यहाँ किसी जादुई जूते या पंख से जुड़ी लगती है) और ‘प्रहारा’ जैसी तलवार भी है, लेकिन उसकी असली शक्ति उसकी “कभी हार न मानने वाली” जिद और हिम्मत है।
कालकूट (खलनायक):
कालकूट राज कॉमिक्स के सबसे अलग किस्म के विलेन में से एक है। वह मांस-हड्डी का इंसान नहीं, बल्कि एक जीवित पर्वत है। उसका किरदार डर पैदा करता है। उसका अहंकार और गुस्सा उसे और भी विनाशकारी बना देता है। लेखक ने उसे सिर्फ बुरा दिखाने के बजाय यह भी बताया है कि तपस्या से उसे शक्तियाँ मिलीं, लेकिन उसने उनका गलत इस्तेमाल किया।
उसके हमले भी अलग-अलग तरह के हैं—जैसे मुंह से कीचड़ फेंकना, पत्थर के गोले बरसाना, और मौसम बदल देना।

सहायक पात्र (पवनाचार्य और हनुमान):
पवनाचार्य कहानी में ज्ञान और तजुर्बे का प्रतीक हैं। वे भोकाल को सही रास्ता दिखाते हैं। वहीं भगवान हनुमान की एंट्री कहानी में “तुरुप का इक्का” जैसी है। जब लगता है कि अब सब खत्म हो सकता है, तभी हनुमान जी का आना नई उम्मीद देता है। यह पल भारतीय पाठकों के धार्मिक जुड़ाव को और मजबूत बनाता है।
चित्रांकन और कला (Artwork and Illustrations)
दिलीप कदम भारतीय कॉमिक्स दुनिया के दिग्गज कलाकार हैं, और “कालकूट” में उनका काम इसे पूरी तरह साबित करता है।
भोकाल और कालकूट के बीच की लड़ाई के सीन कमाल के हैं। पेज 25-28 पर जब भोकाल हवा में कालकूट के वार से बचता है और तुरंत पलटवार करता है, तो आपको सच में मूवमेंट महसूस होता है। ऐसा लगता है कि पैनल चल रहे हों। कालकूट के विशाल आकार को दिखाने के लिए दिलीप कदम ने शानदार एंगल्स का इस्तेमाल किया है। जब कालकूट भोकाल के सामने खड़ा होता है, तो भोकाल सच में एक छोटी चींटी जैसा लगता है। इससे खलनायक का खतरा और ताकत दोनों कई गुना ज्यादा महसूस होते हैं। 1997 की प्रिंटिंग के हिसाब से रंग बहुत चमकीले और अच्छे हैं। कालकूट को मटमैले और भूरे रंगों में दिखाया गया है, जबकि भोकाल को ज्यादा चमकदार रंग दिए गए हैं, जिससे दोनों किरदारों का फर्क तुरंत समझ आता है। जंगल, पहाड़ और आसमान के दृश्य भी बहुत ही डीटेल्ड हैं। भोकाल के चेहरे पर उसका आत्मविश्वास, भीलों के चेहरों पर डर, और कालकूट के चेहरे पर क्रूरता—इन सबको लाइनों और शेडिंग से बहुत ही जीवंत तरीके से दिखाया गया है।
लेखन और संवाद (Writing and Dialogues)
संजय गुप्ता की लिखावट हमेशा से ही टाइट और असर करने वाली रही है।
संवाद: इस कॉमिक में संवाद थोड़े नाटकीय और भारी लगते हैं, जो उस दौर की कॉमिक्स की खासियत थे। जैसे कालकूट का डायलॉग—”किसने मेरी तपस्या भंग की? किसने मुझे तपनिद्रा से जगाया?”—सीधे पाठक में डर पैदा कर देता है। वहीं भोकाल के संवाद बहादुरी और आत्मविश्वास से भरे हुए हैं।

कथा प्रवाह: कहानी की गति (Pacing) बहुत बढ़िया है। शुरू से ही रहस्य और एक्शन का मज़ेदार तड़का लग जाता है और यह आख़िर तक बना रहता है। लेखक ने कहीं भी कहानी को धीमा या बोरिंग नहीं होने दिया। कुछ पन्नों बाद कोई नई मुसीबत—जैसे कालभुजंग या ज़हरीला पानी—सामने आ जाती है, जो पाठक को लगातार जोड़कर रखती है।
पौराणिकता का समावेश: कहानी में ‘ब्रह्मा’, ‘काली’, ‘संजीवनी बूटी’ और ‘हनुमान’ जैसे तत्व जोड़ना एक स्मार्ट कदम था। इससे कहानी सिर्फ फिक्शन नहीं रहती, बल्कि भारतीय संस्कृति और माइथोलॉजी से गहराई से जुड़ जाती है।
आलोचनात्मक दृष्टि (Critical Analysis)
सकारात्मक पक्ष:
अनोखा विलेन: एक पूरे पहाड़ को विलेन बनाना बेहद क्रिएटिव आइडिया था। यह आम राक्षसों से बिल्कुल अलग लगा।
धार्मिक स्पर्श: हनुमान जी का आना कहानी को एक ‘दैवीय हस्तक्षेप’ जैसा शानदार मोड़ देता है, जो भारतीय पाठकों को काफी पसंद आता है।

एक्शन: पूरी कॉमिक nonstop एक्शन से भरी है। तलवारबाज़ी, हवा में लड़ाई, और जादुई ताकतों का खूब इस्तेमाल हुआ है।
नकारात्मक पक्ष:
तर्क की कमी: कुछ जगह लॉजिक कमज़ोर लगता है। जैसे कालकूट इतना शक्तिशाली था कि चाहे तो पल भर में सब खत्म कर सकता था, लेकिन वह भोकाल को मारने के बजाय उसे डराता रहता है या लंबे भाषण देता है। यह classic villain syndrome जैसा लगता है।
भोकाल की निर्भरता: कहानी के बीच में लगता है कि भोकाल अपनी ताकत से ज़्यादा बाहरी मदद (साधु और हनुमान जी) पर निर्भर है। हालांकि आखिर में वह अपनी क्षमता साबित कर देता है, लेकिन बीच में वह थोड़ा कमजोर और असहाय दिखता है।
निष्कर्ष (Conclusion)
“कालकूट” राज कॉमिक्स के इतिहास का एक बहुत अहम हिस्सा है। यह वह दौर था जब कॉमिक्स सिर्फ बच्चों के लिए नहीं, बल्कि हर उम्र के लोगों के लिए लिखी जा रही थीं। दिलीप कदम का बेहतरीन आर्टवर्क और संजय गुप्ता की कसी हुई कहानी इसे सच में एक ‘मस्ट रीड’ बनाती है।
यह कॉमिक यह भी सिखाती है कि शक्ति का घमंड विनाश लाता है (कालकूट), जबकि शक्ति का विनम्रता के साथ इस्तेमाल (भोकाल) लोगों का भला करता है। साथ ही यह भरोसा दिलाती है कि बड़ा संकट भी धैर्य, हिम्मत और भक्ति से टाला जा सकता है।
अगर आप 90 के दशक की कॉमिक्स के फैन हैं, तो यह कॉमिक आपको पुरानी यादों में डुबो देगी। और अगर आप नए पाठक हैं, तो यह आपको दिखाएगी कि भारतीय सुपरहीरोज़ की जड़ें कितनी मजबूत और सांस्कृतिक रूप से कितनी गहरी हैं।
अंतिम निर्णय:
यह एक दमदार, एक्शन से भरी, फैंटेसी और माइथोलॉजी का सही मिश्रण वाली कहानी है। भोकाल के फैंस के लिए यह एक संग्रहणीय (Collector’s Edition) अंक है।
रेटिंग: 4.5 / 5
