राज कॉमिक्स की ‘नागायण’ सीरीज भारतीय कॉमिक्स के इतिहास में एक बहुत ही अहम और यादगार पड़ाव है। ‘वरण काण्ड’ के बाद सीरीज का दूसरा भाग ‘ग्रहण काण्ड’ कहानी को उस स्तर तक ले जाता है, जहाँ सिर्फ लड़ाइयाँ ही नहीं होतीं, बल्कि किरदारों के दिल-दिमाग में चल रहा संघर्ष भी अपने चरम पर पहुँच जाता है। संजय गुप्ता की कहानी और अनुपम सिन्हा की शानदार कला से सजी यह कॉमिक नागराज, सुपर कमांडो ध्रुव और विसर्पी के जीवन के सबसे मुश्किल और भावनात्मक दौर को सामने लाती है। अगर ‘वरण काण्ड’ को ‘चयन’ की कहानी कहा जाए, तो ‘ग्रहण काण्ड’ उस अंधकार की कहानी है जो रिश्तों, फैसलों और पूरी दुनिया की सुरक्षा पर छाने वाला है।
यह समीक्षा इस 74 पन्नों के महाकाव्य जैसे कॉमिक का गहराई से विश्लेषण करती है, जिसमें कहानी, कला, पात्रों की बनावट और इसके पीछे छिपे दार्शनिक भावों पर विस्तार से बात की गई है।
कथानक का सारांश और अध्याय विश्लेषण
‘ग्रहण काण्ड’ को पाँच मुख्य अध्यायों में बाँटा गया है: ‘विवाह’, ‘षड्यंत्र’, ‘विदाई’, ‘काली छाया’ और ‘गृह प्रवेश’।
अध्याय 1: विवाह (The Wedding)
कहानी ठीक वहीं से शुरू होती है, जहाँ ‘वरण काण्ड’ खत्म हुआ था। नागद्वीप, यानी नागों के मूलक्षेत्र में, विसर्पी का स्वयंवर चल रहा है। शर्त साफ है—जो भी ‘गभीरा’ नाम की तलवार से ‘नागफन’ को काट देगा, वही विसर्पी से विवाह करेगा। लेकिन यह तलवार कोई साधारण हथियार नहीं है। यह ‘ब्लैक मैटर’ से बनी है, जिसका वजन ब्रह्मांड की सबसे भारी चीज़ों के बराबर बताया गया है। अपनी पूरी काली शक्तियों के बावजूद क्रूरपाशा, जो नागपाशा का नया रूप है, इस तलवार को उठाने में असफल रहता है।

जब नागराज की बारी आती है, तो वह न सिर्फ इस भारी तलवार को उठा लेता है, बल्कि ध्रुव के रणनीतिक इशारे को समझकर नागफन को काट भी देता है। यहाँ नागराज की जीत केवल ताकत की नहीं, बल्कि उसकी एकाग्रता और ध्रुव के साथ उसके बेहतरीन तालमेल की जीत है। लेकिन इस जीत के बाद असली उलझन शुरू होती है, क्योंकि नागराज पहले से ही भारती से कानूनी रूप से विवाहित है। विसर्पी, जो नागराज से प्रेम करती है लेकिन उसके भारती से विवाह की वजह से अंदर से टूट चुकी है, शुरुआत में इस विवाह को मानने से इनकार कर देती है।
अध्याय 2: षड्यंत्र (The Conspiracy)
दूसरी ओर, नगीना और क्रूरपाशा ऐसे लोग नहीं हैं जो हार मानकर बैठ जाएँ। स्वयंवर में मिली हार का बदला लेने के लिए वे एक बड़ा और खतरनाक षड्यंत्र रचते हैं। नगीना अपनी ‘ब्लैक पावर्स’ की मदद से दुनिया भर में फैले ‘इच्छाधारी एजेंटों’ को सक्रिय कर देती है। उन्हें पता है कि जल्द ही पूर्ण सूर्य ग्रहण आने वाला है, और यह ग्रहण उनकी काली शक्तियों को कई गुना बढ़ा देगा। इसी दौरान ध्रुव के निजी जीवन में भी भारी उथल-पुथल मची हुई है। नताशा और रिचा, यानी ब्लैक कैट, के बीच ऋषि की कस्टडी को लेकर एक खतरनाक और हिंसक टकराव शुरू हो जाता है, जो कहानी में एक नया तनाव और भावनात्मक बोझ जोड़ देता है।

अध्याय 3: विदाई (The Farewell)
स्वयंवर के बाद विसर्पी की विदाई का दृश्य बेहद भावुक और दिल को छू लेने वाला है। अपने भाई विषांक और पूरी नागजाति के प्रति विसर्पी का लगाव पाठकों की आँखें नम कर देता है। नागराज और विसर्पी के बीच होने वाला संवाद उनके सच्चे प्रेम और हालात की मजबूरी को साफ-साफ दिखाता है। दोनों नागद्वीप छोड़कर ‘महानगर’, यानी अंडरग्राउंड सिटी की ओर बढ़ते हैं, लेकिन वे यह भी जानते हैं कि आगे का रास्ता आसान नहीं, बल्कि काँटों से भरा हुआ है।
अध्याय 4: काली छाया (The Dark Shadow)
यह अध्याय पूरी तरह से एक्शन और सुपरपावर से भरा हुआ है। सूर्य ग्रहण शुरू हो चुका है और काली शक्तियाँ ‘रक्ष–वृक्ष’, यानी राक्षसी पेड़ों के रूप में नागराज और ध्रुव का रास्ता रोक लेती हैं। इसी दौरान ‘वनपुत्र’ नाम का एक नया और बेहद शक्तिशाली किरदार सामने आता है, जो जंगल का रक्षक है। नागराज, ध्रुव और वनपुत्र मिलकर इन काली ताकतों से जबरदस्त मुकाबला करते हैं। अनुपम सिन्हा ने इस हिस्से में ‘तत्वास्त्रों’ और ‘ऊर्जास्त्रों’ का जो शानदार प्रयोग दिखाया है, वह किसी बड़ी हॉलीवुड साइंस-फिक्शन फिल्म से कम नहीं लगता।
अध्याय 5: गृह प्रवेश (The Home Entry)
आखिरी अध्याय में विसर्पी ‘महानगर’ पहुँचती है, जहाँ उसका सामना भारती से होता है। एक तरफ विसर्पी है, वह स्त्री जिससे नागराज सच्चा प्रेम करता है, और दूसरी तरफ भारती है, जिससे उसने समाज और कानून की खातिर विवाह किया है। भारती द्वारा विसर्पी का सम्मान के साथ स्वागत करना और विसर्पी का महानगर में प्रवेश करना कहानी को एक ऐसे मोड़ पर छोड़ देता है, जहाँ से अगले भाग ‘हरण काण्ड’ की मजबूत नींव पड़ती है।
चरित्र चित्रण: वीरता और मानवीय भावनाएँ
नागराज: त्याग की प्रतिमूर्ति
इस भाग में नागराज को एक ऐसे नायक के रूप में दिखाया गया है, जो अपनी निजी खुशियों को दुनिया की भलाई के लिए खुशी-खुशी कुर्बान करने को तैयार रहता है। उसका ‘गभीरा’ तलवार उठाना सिर्फ उसकी ताकत दिखाने का दृश्य नहीं है, बल्कि यह संकेत देता है कि वह पूरे ब्रह्मांड का बोझ उठाने का हौसला रखता है। विसर्पी के लिए उसके मन में गहरा प्रेम है और भारती के प्रति वह अपनी जिम्मेदारी को भी पूरी ईमानदारी से निभाता है। यही द्वंद्व उसे एक ऐसे नायक के रूप में खड़ा करता है, जिसे सही मायनों में ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ कहा जा सकता है।

सुपर कमांडो ध्रुव: संकट का साथी
ध्रुव इस पूरी कहानी का दिमाग है, जो हर हालात में सही रणनीति सोचता है। उसे अच्छे से पता है कि नागराज कब भावनात्मक रूप से कमजोर पड़ रहा है और उसे कब सहारे की जरूरत है। लेकिन इसी दौरान उसका खुद का घर भी मुश्किलों में घिरा हुआ है। रिचा और नताशा के बीच चल रहा टकराव ध्रुव को अंदर से तोड़ देता है, फिर भी वह अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हटता। वह दर्द सहकर भी देश और दोस्तों के लिए खड़ा रहता है, जो उसके चरित्र को और मजबूत बनाता है।
विसर्पी: स्वाभिमान और समर्पण
‘ग्रहण काण्ड’ में सबसे ज्यादा विकास विसर्पी के चरित्र में देखने को मिलता है। वह सिर्फ एक राजकुमारी नहीं है, बल्कि एक स्वाभिमानी स्त्री है, जो किसी भी हाल में खुद को ‘दूसरी पत्नी’ के रूप में स्वीकार नहीं करना चाहती। लेकिन जब उसे यह समझ आता है कि नागराज का भारती से विवाह प्रेम नहीं, बल्कि परिस्थितियों और समझौते का नतीजा है, तब वह अपने प्रेम के लिए झुकने का फैसला करती है। उसका त्याग, उसका डर और महानगर को लेकर उसकी आशंकाएँ उसे बेहद मानवीय और वास्तविक बना देती हैं।
भारती: एक महान हृदय
भारती का किरदार भले ही ज्यादा समय के लिए न आए, लेकिन उसका प्रभाव बहुत गहरा है। वह विसर्पी को अपनी सौतन की तरह नहीं, बल्कि नागराज के जीवन के एक अहम हिस्से के रूप में स्वीकार करती है। उसका धैर्य, उसकी समझदारी और उसका शांत स्वभाव उसे इस पूरी सीरीज का एक बेहद सम्मानजनक और मजबूत पात्र बना देता है।
नगीना और क्रूरपाशा: बुराई का नया आयाम
क्रूरपाशा का ‘काले काल’ के रूप में बदलना डर और खौफ पैदा करता है। वहीं नगीना की चालाकी, उसकी साजिशें और तंत्र-मंत्र की शक्तियाँ यह साफ कर देती हैं कि नायक इस कहानी में कभी चैन से नहीं बैठ पाएंगे। ये दोनों मिलकर बुराई को एक नए और ज्यादा खतरनाक रूप में सामने लाते हैं।
कला और चित्रांकन (Art and Illustration)

‘ग्रहण काण्ड’ में अनुपम सिन्हा की कला इस कॉमिक की सबसे बड़ी ताकत बनकर सामने आती है। उनकी ड्रॉइंग नागद्वीप की भव्यता और ‘गभीरा’ तलवार के विशाल और भारी स्वरूप को बेहद प्रभावशाली तरीके से दिखाती है। उनके बनाए गए पात्रों के चेहरे के भाव—चाहे वह क्रूरपाशा का घमंड हो, विसर्पी की बेचैनी या नागराज का अडिग इरादा—पाठक को भावनात्मक रूप से कहानी से जोड़ देते हैं। सूर्य ग्रहण के समय इस्तेमाल की गई गहरी लाल रंगत और डरावने ‘रक्ष-वृक्षों’ का डिजाइन पूरे माहौल में एक रहस्यमय और डरावना असर पैदा करता है। वहीं नागराज के सर्प-अस्त्रों और ध्रुव की फुर्ती को दिखाने वाले एक्शन पैनल इतने फिल्मी और तेज हैं कि कहानी का बहाव कहीं भी धीमा नहीं पड़ता। विसर्पी की विदाई और महानगर में प्रवेश के समय दिखाए गए क्लोज-अप दृश्य पात्रों के दर्द और अंदरूनी संघर्ष को सीधे पाठक के दिल तक पहुँचा देते हैं।
दार्शनिक और सामाजिक पहलू
‘ग्रहण काण्ड’ सिर्फ एक सुपरहीरो कॉमिक नहीं है, बल्कि यह समाज और मानवीय मूल्यों के बीच चल रहे टकराव को भी गहराई से दिखाती है। नागराज का भारती से विवाह ‘आधुनिक कानून’ का प्रतीक है, जबकि विसर्पी के साथ उसका रिश्ता ‘प्राचीन परंपरा और दिल के जुड़ाव’ को दर्शाता है। यह वही द्वंद्व है, जो आज के समाज में भी कई बार देखने को मिलता है। सूर्य ग्रहण को बुराई की बढ़ती ताकत के रूप में दिखाकर यह संदेश दिया गया है कि मुश्किल समय में केवल सत्य और धैर्य ही इंसान का साथ देते हैं। इसके साथ ही यह कॉमिक विसर्पी, भारती, नताशा और रिचा जैसे किरदारों के जरिए नारी शक्ति को मजबूती से सामने रखती है, जहाँ महिलाएँ सिर्फ सहायक पात्र नहीं, बल्कि कहानी को आगे बढ़ाने वाली अहम ताकत बनकर उभरती हैं।

विशेष आकर्षण: रिचा बनाम नताशा उप–कथानक
कहानी के बीच रिचा यानी ब्लैक कैट और नताशा के बीच चलने वाला उप-कथानक काफी रोमांचक है। यह ध्रुव के अतीत और वर्तमान की सीधी टक्कर है, जिसमें ऋषि, यानी ध्रुव का बेटा, इस संघर्ष का केंद्र बन जाता है। यह हिस्सा दिखाता है कि चाहे नायक कितना भी महान क्यों न हो, वह अपने पारिवारिक झगड़ों से बच नहीं सकता। नताशा का ‘रोबो फोर्स’ का सहारा लेना और रिचा का अपनी जान जोखिम में डालकर ऋषि को बचाना पाठकों को आखिरी पल तक सस्पेंस में बाँधे रखता है।
समीक्षा का निष्कर्ष
‘नागायण: ग्रहण काण्ड’ एक पूरा और दमदार पैकेज है। इसमें रहस्य भी है, रोमांच भी है, भावनाएँ भी हैं और जबरदस्त स्तर का एक्शन भी देखने को मिलता है। यह कॉमिक सीरीज के पहले भाग ‘वरण काण्ड’ से बनी उम्मीदों पर न सिर्फ खरी उतरती है, बल्कि कई जगह उनसे आगे भी निकल जाती है।
सकारात्मक पक्ष:
कहानी की रफ्तार काफी तेज है और कहीं भी बोरियत महसूस नहीं होने देती। पात्रों के बीच होने वाले संवाद गहरे हैं और हर बात का एक मतलब है। पूरी दुनिया को रचने का तरीका, यानी वर्ल्ड बिल्डिंग, और तकनीक का पौराणिक कथाओं के साथ जो मेल दिखाया गया है, वह वाकई शानदार है। कला की बात करें तो चित्रांकन भारतीय कॉमिक्स इंडस्ट्री के बेहतरीन स्तर पर नजर आता है और हर पैनल मेहनत और कल्पनाशीलता को दिखाता है।
नकारात्मक पक्ष:
कहानी में एक साथ कई उप-कथानक चलते रहते हैं, जिसकी वजह से कुछ जगह पाठक को हल्का-सा भ्रम हो सकता है, हालांकि अंत तक पहुँचते-पहुँचते सभी कड़ियाँ आपस में जुड़ जाती हैं। कुछ पाठकों को ध्रुव और नताशा के तलाक से जुड़ा पहलू थोड़ा असहज भी लग सकता है, क्योंकि उन्हें लंबे समय से एक आदर्श जोड़ी के रूप में देखा जाता रहा है।
अंतिम शब्द:
‘ग्रहण काण्ड’ यह साफ साबित करती है कि राज कॉमिक्स की ‘नागायण’ सीरीज सिर्फ रामायण का आधुनिक रूप नहीं है, बल्कि इसकी अपनी अलग पहचान और आत्मा है। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि चाहे अंधकार या ग्रहण कितना भी गहरा क्यों न हो, प्रकाश और सत्य हमेशा किसी न किसी रास्ते से सामने आ ही जाते हैं। यह कॉमिक हर उम्र के पाठकों के लिए एक सच्ची मायनों में ‘मस्ट-रीड’ है।
यह महागाथा यहीं खत्म नहीं होती, बल्कि असल में तो यहीं से आगे बढ़ती है। ‘ग्रहण काण्ड’ के अंत में छोड़ा गया सस्पेंस पाठकों को अगले भाग ‘हरण काण्ड’ के लिए बेहद उत्सुक और बेचैन कर देता है। अनुपम सिन्हा और संजय गुप्ता की इस मेहनत को सलाम है, जिन्होंने भारतीय बच्चों और युवाओं को नागराज और ध्रुव जैसे ऐसे सुपरहीरो दिए, जो हमारे अपने लगते हैं और हमारी संस्कृति से गहराई से जुड़े हुए हैं।
