“शैतान का अवतार” इंस्पेक्टर स्टील की कॉमिक्स सीरीज़ में एक ऐसा किस्सा है जिसे पढ़कर कोई भी कॉमिक्स फैन इसे याद रखे बिना नहीं रह सकता। ये कॉमिक सिर्फ एक सुपरहीरो की कहानी नहीं है, बल्कि इसमें विज्ञान, नैतिकता और धोखे जैसे गहरे मुद्दों पर भी रोशनी डाली गई है।
ये रिव्यू राज पॉकेट बुक्स की इंस्पेक्टर स्टील कॉमिक्स (नंबर 1019, कीमत ₹8.00) पर आधारित है। इसको लिखा है हनीफ अजहर ने और इसके चित्र बनाए हैं नरेश कुमार ने। “शैतान का अवतार” असल में एक ऐसी रोमांचक कहानी है जिसमें दिखाया गया है कि अगर विज्ञान का गलत इस्तेमाल हो जाए तो कितना खतरनाक हो सकता है, और साथ ही एक सुपरकॉप इंस्पेक्टर स्टील अपने फर्ज़ और इंसाफ के लिए किस हद तक लड़ता है। शुरुआत से ही कहानी इतनी डरावनी और चौंकाने वाली है कि पाठक तुरंत इस साइंस-फिक्शन थ्रिलर में खिंच जाता है।
कहानी की शुरुआत और रहस्य की एंट्री

कहानी का पहला सीन ही दिल दहला देने वाला है। वैज्ञानिक प्रोफेसर कुम्बले की बड़ी ही खौफनाक तरीके से हत्या हो जाती है। वो अपने घर पर थे जब अचानक ‘की होल’ (Key Hole) के रास्ते से सैकड़ों छोटे-छोटे बाज़, जो मक्खी जितने छोटे थे लेकिन आदमखोर थे, कमरे में घुस आते हैं। पलक झपकते ही वो प्रोफेसर के शरीर का मांस नोच डालते हैं और पीछे सिर्फ उनकी हड्डियों का ढांचा बचता है। प्रोफेसर की दर्दनाक चीखें सुनकर राजनगर पुलिस के सुपरकॉप इंस्पेक्टर स्टील तुरंत एक्टिव हो जाते हैं। इंस्पेक्टर स्टील, जिन्हें लोग ‘फर्ज़ की मशीन’ कहते हैं, मौके पर पहुंचकर इन खतरनाक छोटे बाज़ों को पकड़ लेते हैं। शुरुआती जांच से साफ हो जाता है कि ये हत्या प्रोफेसर के खास आविष्कार की वजह से हुई है और इन बाज़ों को किसी ने अच्छे से ट्रेन किया है।
“जिपर गन” का रहस्य और साथी का धोखा
जैसे-जैसे इंस्पेक्टर स्टील केस की गहराई में जाता है, वह प्रोफेसर कुम्बले की लैब तक पहुंचता है। वहां उसकी मुलाकात उनके साथी प्रोफेसर हर्ष और कुछ दूसरे वैज्ञानिकों से होती है। यहीं उसे पता चलता है कि प्रोफेसर कुम्बले ने एक जबरदस्त खोज की थी—जिपर गन। ये गन किसी भी चीज़ का घनत्व घटाकर उसे मक्खी जितना छोटा बना सकती है। इसी गन का इस्तेमाल करके उन्होंने आम बाज़ों को छोटा किया था और वही आगे जाकर खतरनाक हथियार बने।
इसी दौरान इंस्पेक्टर स्टील की मुलाकात होती है चायवाले लड़के गोलू से। गोलू अपनी मासूम और सीधी-सी बातों में बताता है कि प्रोफेसर कुम्बले अक्सर अपने दो साथियों—प्रोफेसर हर्ष और प्रोफेसर पुरी—के साथ किसी एक्सपेरिमेंट को लेकर चर्चा करते थे। वो कहते थे कि इसे देश की भलाई के लिए इस्तेमाल करेंगे।

लेकिन इंस्पेक्टर स्टील की समझ और गोलू की जानकारी मिलाकर साफ हो जाता है कि असली खेल किसी और का है। असल में प्रोफेसर हर्ष और पुरी ही वो लोग हैं जो लालच में अंधे होकर कुम्बले की हत्या के पीछे थे। यही दोनों असली “शैतान” निकले, जिन्होंने कुम्बले के शानदार आविष्कार को गलत तरीके से इस्तेमाल करने की साजिश रची।
संशोधित पात्रों का विश्लेषण
इंस्पेक्टर स्टील: फर्ज़ की मशीन कहलाने वाला इंस्पेक्टर स्टील इस कहानी का असली हीरो है। वह सिर्फ पुलिस वाला नहीं, बल्कि न्याय और कर्तव्य की मिसाल है। उसका एक डायलॉग – “बाइक को आदमी पर सवार मत बोल। बल्कि मशीन को मशीन पर सवार बोल” – उसकी सोच को साफ दिखाता है। उसमें भावनाओं की जगह तर्क है और यही उसे ऐसे खतरनाक और अजीब अपराधों को सुलझाने लायक बनाता है। स्टील का यही ठंडा दिमाग और फौलादी इरादा उसे दूसरों से अलग करता है।
गोलू: गोलू की एंट्री तो एक भोले-भाले चायवाले लड़के की तरह होती है। वह मासूमियत से बातें करता है और लगता है जैसे अनजाने में इंस्पेक्टर स्टील की मदद भी कर रहा है। लेकिन यही गोलू कहानी का सबसे बड़ा खलनायक निकलता है। उसकी सबसे बड़ी ताकत यही है कि वह अपनी मासूम छवि का फायदा उठाकर इंस्पेक्टर स्टील और पूरी पुलिस को बेवकूफ बना देता है। असल में वही मास्टरमाइंड है, जो प्रोफेसर कुम्बले की खोज ‘जिपर गन’ को अपने लालच और खतरनाक सपनों के लिए इस्तेमाल करना चाहता है। उसका सपना है – “दुनिया मेरी जेब में“ – और इसी पागलपन को पूरा करने के लिए वह सब कुछ दांव पर लगा देता है। गोलू का किरदार दिखाता है कि असली खतरा हमेशा सामने से नहीं आता, बल्कि अक्सर वहीं छिपा होता है जहाँ आप सबसे कम उम्मीद करते हो।
रचनात्मक और कलात्मक मूल्यांकन
लेखन शैली और अवधारणा
लेखक हनीफ अजहर ने ‘जिपर गन’ के जरिए एक बेहद हटकर और ओरिजिनल आइडिया पर कहानी गढ़ी है। ये कॉमिक्स हाई-कॉन्सेप्ट वाली लगती है क्योंकि इसकी सोच बहुत अलग है। कहानी का फ्लो तेज़ और पकड़ बनाने वाला है, जिससे ये एक बेहतरीन थ्रिलर का रूप ले लेती है। साथ ही ये भी साफ दिखता है कि विज्ञान हमेशा दोधारी तलवार की तरह होता है—जिससे भलाई भी हो सकती है और बर्बादी भी।

चित्रांकन और प्रस्तुति
नरेश कुमार का आर्टवर्क इंस्पेक्टर स्टील के फौलादी रूप और उसके दमदार एक्शन को बहुत अच्छे से दिखाता है। छोटे-छोटे बाज़ों का हमला और उसमें प्रोफेसर कुम्बले का कंकाल में बदल जाना—ये सीन इतना जबरदस्त और डरावना बना है कि पाठक के दिमाग में अटक जाता है। वहीं सुनील पाण्डेय के रंग कहानी के रहस्य और एक्शन को और निखारते हैं, जिससे कॉमिक्स का मज़ा कई गुना बढ़ जाता है।
संशोधित क्लाइमेक्स: फौलादी सुपरकॉप, छोटा और बेबस
कहानी का क्लाइमेक्स अचानक और हिला देने वाला है। इंस्पेक्टर स्टील जैसे ही अपराधी को पकड़ने के करीब पहुंचता है, असली रहस्य सामने आता है। सबको जो एक सीधा-सादा चायवाला बच्चा लगता था, वही गोलू असल में इस पूरे खेल का मास्टरमाइंड निकलता है। गोलू अपनी चालाकी दिखाते हुए इंस्पेक्टर स्टील पर प्रोफेसर कुम्बले की बनाई ‘जिपर गन’ का वार करता है।
और फिर होता है सबसे खतरनाक ट्विस्ट—फौलादी शरीर और मशीनी ताकत वाला इंस्पेक्टर स्टील इस गन की किरणों से सिकुड़कर मक्खी जितना छोटा हो जाता है। ये सीन पूरे कॉमिक्स का सबसे डरावना और झकझोर देने वाला पल है। छोटा हो चुका स्टील अब पूरी तरह बेबस है। गोलू, जो अब अपने असली शैतानी रूप में सामने है, उसे बेरहमी से उठाकर पास की रेल की पटरी पर बांध देता है।
“शैतान का अवतार” यहीं खत्म होता है—एक छोटे, बंधे और असहाय इंस्पेक्टर स्टील के साथ, जिसकी तरफ तेज़ रफ्तार ट्रेन दौड़ी चली आ रही है। उधर गोलू अपनी जीत का मज़ा ले रहा है। ये क्लिफहैंगर सीन पढ़ने वालों को अंदर तक हिला देता है और मजबूर कर देता है कि अगला भाग “दुनिया मेरी जेब में” ज़रूर पढ़ें—जहाँ ये राज खुलेगा कि क्या इंस्पेक्टर स्टील अपनी फौलादी मौत से निकल पाएगा या नहीं।