‘ध्रुव–शक्ति‘ भारतीय कॉमिक्स के इतिहास में एक बड़ा नाम है, जिसे राज कॉमिक्स की रचनात्मक ऊँचाइयों का प्रतीक माना जाता है। जॉली सिन्हा की लेखनी और अनुपम सिन्हा के दमदार चित्रों के साथ यह कहानी सुपर कमांडो ध्रुव और नारी–रक्षक शक्ति के टकराव पर आधारित है। यह सिर्फ दो सुपरहीरोज़ की भिड़ंत नहीं है, बल्कि न्याय के दो अलग नज़रियों—एक तरफ तर्क और कानून, दूसरी तरफ गुस्से और भावनाओं—के बीच का गहरा टकराव दिखाती है।
कॉमिक्स की शुरुआत में ही सबसे बड़ा सवाल खड़ा होता है: “लेकिन जिस लड़ाई में दोनों तरफ़ सिर्फ़ सच्चाई हो, उस लड़ाई का नतीजा क्या होगा?”
यह सवाल पढ़ते ही दिमाग में खटका लग जाता है—क्या शक्ति (चंदा), जो औरतों की इज़्ज़त बचाने के लिए हर हद तक जाती है, गलत है? या फिर ध्रुव, जो कानून और तर्क के सहारे न्याय देता है, वो चंदा के गुस्से और दर्द को सही से समझ ही नहीं पाया?
यह कॉमिक्स अपने समय की समाजिक और सांस्कृतिक सच्चाइयों को छूती है—खासतौर पर औरतों के खिलाफ बढ़ते अपराध और बदले की भावना को। इसे सुपरहीरो की नज़र से दिखाया गया है, जिससे यह कॉमिक्स सिर्फ मारधाड़ वाली एक्शन स्टोरी नहीं रह जाती, बल्कि समाज से जुड़ी गहरी बात भी कहती है।
यह वही दौर था जब राज कॉमिक्स अपने हीरो-हीरोइनों को ज्यादा गहराई और भावनाएं देने लगा था। ‘ध्रुव-शक्ति’ इस कोशिश की सबसे बड़ी मिसाल है। यह समीक्षा उसी को ध्यान में रखकर इस कॉमिक्स के हर पहलू को गहराई से समझाने की कोशिश है।
‘ध्रुव–शक्ति‘ की कहानी दो अलग ट्रैक पर चलती है, जो आखिर में जाकर मिलते हैं।
पुरातत्व चोरी का ट्रैक (लुटेरे और ध्रुव)

कहानी की शुरुआत होती है राजनगर के पास, जहाँ कुछ लुटेरे समुद्र में डूबे 16वीं सदी के पुर्तगाली जहाज का खजाना निकालने की कोशिश कर रहे हैं। ये लोग स्कूबा डाइविंग सूट पहनकर आए हैं और उनके पास टाइमर बम जैसे खतरनाक हथियार भी हैं। प्लान काफी चालाकी से बनाया गया है, लेकिन कोस्ट गार्ड्स की सतर्कता और खुद की एक ग़लती की वजह से वे फंस जाते हैं।
तभी एंट्री होती है सुपर कमांडो ध्रुव की। अपनी ट्रेनिंग वाली कबूतर (पालतू चिड़िया) की मदद से ध्रुव उनका पीछा करता है। ध्रुव के एक्शन सीन को अनुपम सिन्हा ने इतनी खूबसूरती से बनाया है कि हर पेज पर रोमांच बढ़ जाता है।
लुटेरे एक कार छीनकर भागते हैं, और ध्रुव अपनी मोटरसाइकिल पर उनका पीछा करता है। वह फ्लाई-ओवर से नीचे छलांग लगाता है, जिससे उसकी सर्कस की ट्रेनिंग और तेज दिमाग साफ झलकता है। जैसे ही वह लुटेरों की कार तक पहुँचता है और भिड़ता है, तभी उनमें से एक लुटेरा उस पर ‘हारपून गन’ से हमला करता है। ध्रुव उसकी चपेट में आने ही वाला होता है, लेकिन कबूतर की तेज़ आवाज़ से वह बच जाता है।
यही लड़ाई उसे धीरे-धीरे चंदा और शक्ति की कहानी से जोड़ देती है।
चंदा का अतीत और शक्ति का उदय
कहानी का दूसरा और ज्यादा भावुक हिस्सा चंदा से जुड़ा है, जो दरअसल शक्ति है। चंदा एक अस्पताल में रिसेप्शनिस्ट के तौर पर काम कर रही होती है। तभी अचानक उसका पुराना मेडिकल क्लासमेट तरुण उसे पहचान लेता है। तरुण अब एक कॉस्मेटिक सर्जन है, लेकिन उसका आना चंदा के अतीत को कुरेद देता है। यहाँ हमें पता चलता है कि चंदा विधवा है और मर्दों से नफरत करती है।
तरुण का लगातार पीछा करना और पास आने की कोशिश चंदा को इतना परेशान कर देता है कि वह भीड़ से दूर भाग जाती है, क्योंकि उसे डर है कि कहीं वह गुस्से में शक्ति में बदल न जाए।

लेकिन किस्मत उसे एक और मोड़ पर ले आती है। चंदा भागते-भागते उस जगह पहुँचती है जहाँ लुटेरों ने एक घायल आदमी को कार से बाहर फेंक दिया होता है। तभी उसे किसी औरत की चीख सुनाई देती है। और यहीं चंदा अपने आप को रोक नहीं पाती। उसके अंदर की “नारी-रक्षक” आत्मा उसे मजबूर कर देती है कि वह शक्ति बन जाए। गुस्से, दर्द और औरतों की सुरक्षा की भावना से भरी चंदा एक झटके में अपनी चेतना खोकर शक्ति का रूप ले लेती है।
ध्रुव और शक्ति का टकराव
शक्ति तुरंत लुटेरों को सजा देने पहुँचती है। लेकिन जब वह देखती है कि ध्रुव उन्हीं अपराधियों से भिड़ रहा है और उन्हें पकड़ने की कोशिश कर रहा है, तो उसे गलतफहमी हो जाती है। उसे लगता है कि ध्रुव अपराधियों का साथ दे रहा है। शक्ति के लिए, कोई भी मर्द जो औरत पर हाथ उठाता है—even अगर वह ध्रुव जैसा न्यायप्रिय इंसान ही क्यों न हो—सच्चाई और धर्म का पक्षधर नहीं हो सकता।
यहीं से असली टकराव शुरू होता है।
ध्रुव, जो हमेशा तर्क और कानून पर भरोसा करता है, शक्ति को डांटता है कि उसने अपनी ताकत गलत जगह इस्तेमाल की। वहीं शक्ति, जो भावनाओं और औरतों की सुरक्षा की भावना से चलती है, ध्रुव को भी सजा देने की ठान लेती है। दोनों ही अपने-अपने नजरिए से खुद को न्याय और सच्चाई का असली प्रतीक मानते हैं।
उनकी भिड़ंत सिर्फ मुक्कों और बिजली की नहीं है, बल्कि सोच और विचारों की भी है। ध्रुव अपनी मार्शल आर्ट्स (सर्कस ट्रेनिंग से सीखी हुई), तेज दिमाग और गैजेट्स का इस्तेमाल करता है। शक्ति अपनी ऊर्जा और बिजली जैसी ताकत से ध्रुव को रोकने की कोशिश करती है।
ध्रुव को मालूम है कि शक्ति कुछ समय बाद फिर से चंदा में बदल जाएगी। इसलिए वह चालाकी से लुटेरों के ऑक्सीजन टैंकों पर निशाना लगाता है। धमाका होता है, शक्ति का संतुलन बिगड़ता है और वह वापस चंदा बन जाती है। घायल चंदा को ध्रुव उसी अस्पताल ले जाता है जहाँ तरुण मौजूद है। और इस तरह कहानी के सारे धागे आपस में जुड़ जाते हैं।
चरित्रों का गहन अध्ययन: ध्रुव बनाम शक्ति
इस कॉमिक्स के दोनों मुख्य किरदारों को बहुत गहराई और बारीकी से गढ़ा गया है। शायद यही वजह है कि ये दोनों पाठकों के बीच इतने पॉपुलर हैं।
सुपर कमांडो ध्रुव: तर्क और संतुलन का प्रतीक
इस कहानी में ध्रुव ‘सत्य, पुण्य और धर्म’ का चेहरा बनकर सामने आता है। उसे पता है कि असली न्याय सिर्फ ताकत के दम पर नहीं मिलता, बल्कि सही सोच, विवेक और सही दिशा से मिलता है।
ध्रुव ऐसा हीरो है जो अपनी मसल्स से ज्यादा अपने दिमाग और गैजेट्स पर भरोसा करता है। उसका न्याय हमेशा तर्क पर और प्लानिंग पर आधारित होता है। जैसे, जब वह शक्ति जैसी ताकतवर विरोधी से भिड़ता है तो वह सीधे बल आज़माने की बजाय उसकी कमजोरी (समय सीमा) और हालात (ऑक्सीजन टैंक) का फायदा उठाता है।
उसके लिए अपराधी बस अपराधी है—चाहे कोई भी हो। यही वजह है कि वह शक्ति को भी दुश्मन मानकर उसे सही रास्ते पर लाने की कोशिश करता है। और ध्रुव सिर्फ अपराधियों को पकड़ने तक सीमित नहीं रहता, बल्कि लुटेरों का पीछा करते हुए घायल महिला को अस्पताल पहुंचाने की जिम्मेदारी भी निभाता है। यह उसके चरित्र की जिम्मेदारी और बड़े दिल की झलक दिखाता है।
शक्ति (चंदा): प्रतिशोध और भावनाओं का आवेग

शक्ति का किरदार भारतीय कॉमिक्स की दुनिया के सबसे जटिल और भावनात्मक रूप से गहरे पात्रों में से एक है।
उसका जन्म सामाजिक अन्याय और निजी त्रासदी से हुआ है। वह आम सुपरहीरो जैसी नहीं है। चंदा, पुरुषों के प्रति अपने गुस्से और अतीत के दर्द की वजह से शक्ति में बदलती है। यह बदलाव उसके लिए एक तरह की भावनात्मक ढाल है, जो उसे कमजोरियों से निकालकर एक अजेय योद्धा बना देता है।
लेकिन शक्ति का न्याय ध्रुव जैसा ठंडे दिमाग वाला नहीं है। उसका न्याय पूरी तरह भावनाओं और गुस्से पर आधारित होता है। वह तुरंत सजा देती है और कई बार सोच-समझ खो बैठती है—जैसा कि ध्रुव के साथ उसकी भिड़ंत में साफ दिखता है। शुरू में उसका मकसद सिर्फ औरतों की रक्षा करना होता है, लेकिन उसका प्रतिशोध कई बार सही और गलत की रेखा धुंधली कर देता है।
न्याय की द्वैतता: ध्रुव और शक्ति
‘ध्रुव-शक्ति’ सिर्फ एक कॉमिक्स स्टोरी नहीं है, बल्कि समाज और उसके मुद्दों पर एक गहरी टिप्पणी भी है। इसका असली थीम है—न्याय की द्वैतता।
इसमें ध्रुव का न्याय समाज के नियमों और कानून पर आधारित है। उसका नजरिया तर्कसंगत है और वह पूरे समाज की भलाई को ध्यान में रखता है। दूसरी तरफ, शक्ति का न्याय पूरी तरह निजी और भावनाओं से भरा हुआ है। उसके लिए, जो भी औरत के साथ अन्याय करेगा, उसे तुरंत और सख्त सजा मिलनी ही चाहिए।
लेखक ने जानबूझकर दोनों किरदारों को न्याय और सत्य के अलग-अलग रूप में दिखाया है। नतीजा यह है कि पाठक खुद सोच में पड़ जाते हैं कि सही कौन है।
कहानी का संदेश साफ निकलकर आता है:
आवेग और गुस्से से किया गया न्याय (शक्ति) कई बार रास्ता भटक सकता है, जबकि सोच-समझकर, शांत दिमाग से किया गया न्याय (ध्रुव) सही दिशा दिखाता है और समाज के लिए ज्यादा स्वीकार्य होता है।
नारीवाद और प्रतिशोध का विषय
शक्ति का जन्म समाज में औरतों की असुरक्षा के जवाब के रूप में हुआ है। उसका बाघ/चीता प्रिंट वाला कॉस्ट्यूम और सख्त रवैया ‘नारी शक्ति’ का प्रतीक है। यह कॉमिक्स साफ दिखाती है कि जब कानून और समाज औरतों को सुरक्षित रखने में नाकाम हो जाते हैं, तो प्रतिशोध की भावना एक ऐसे रक्षक को जन्म देती है, जो ताकतवर तो होता है, लेकिन पूरी तरह निर्दोष नहीं। इसीलिए कहानी बार-बार हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या कभी-कभी समाज को एक ट्रैजिक विजिलेंट की ज़रूरत पड़ती है?

चंदा का अतीत—उसका विधवा होना और मर्दों से नफरत करना—उसकी हर हरकत पर असर डालता है। तरुण का अचानक आना उसके पुराने घावों को फिर से हरा कर देता है। यही वजह है कि वह अपने अतीत में उलझ जाती है। इसके उलट ध्रुव का किरदार है, जो अपने अतीत से आज़ाद होकर सिर्फ वर्तमान जिम्मेदारी पर ध्यान देता है—लुटेरों को पकड़ना और घायल को बचाना। यही फर्क चंदा और ध्रुव के रास्ते अलग कर देता है।
कला और संवाद: अनुपम सिन्हा और जॉली सिन्हा का योगदान
अनुपम सिन्हा की कला: गति और करिश्मा
अनुपम सिन्हा की आर्ट इस कॉमिक्स की असली जान है। उनके पैनल्स में इतनी जान और एनर्जी है कि हर सीन मूवमेंट में लगता है। खासकर ध्रुव की एंट्री—जब वह मोटरसाइकिल का पहिया मोड़कर फ्लाई-ओवर से नीचे उतरता है—कमाल का रोमांच पैदा करती है। ध्रुव और शक्ति की भिड़ंत के सीन तो और भी धमाकेदार लगते हैं, जैसे स्क्रीन पर कोई बड़ी मूवी चल रही हो।
किरदारों का डिज़ाइन भी गजब का है। ध्रुव अपने क्लासिक लुक में नज़र आता है, जबकि शक्ति का चीता प्रिंट वाला बोल्ड कॉस्ट्यूम तुरंत ही फैन-फेवरेट बन गया। अनुपम के क्लोज़-अप पैनल्स में चंदा के दर्द और शक्ति के गुस्से को इतनी खूबसूरती से दिखाया गया है कि चेहरे खुद कहानी कहते हैं।
जॉली सिन्हा के संवाद: दर्शन और गहराई
जॉली सिन्हा के लिखे हुए संवाद कहानी को रफ्तार भी देते हैं और उसमें दार्शनिक गहराई भी जोड़ते हैं। शुरुआत के पन्नों में न्याय और धर्म पर जो लाइनें आती हैं, वे कॉमिक्स को एक तरह का महाकाव्य अहसास देती हैं। हाँ, कुछ जगह पर संवाद थोड़े ज्यादा समझाने वाले हो जाते हैं—मतलब पात्र सीधे अपने दिल की बात बोल देते हैं—जिससे कभी-कभी चित्रों का असर थोड़ा हल्का पड़ जाता है।
निष्कर्ष और भारतीय कॉमिक्स में स्थान
‘ध्रुव-शक्ति’ उन गिनी-चुनी कहानियों में से है जो सिर्फ एक्शन पर ही नहीं, बल्कि किरदारों की भावनाओं और सोच पर भी उतना ही ध्यान देती है। यह कॉमिक्स दिखाती है कि न्याय सीधा-सपाट नहीं होता, उसके पीछे भावनाएं और नैतिक उलझनें भी छिपी होती हैं। ध्रुव का तर्क और संतुलन, और शक्ति का गुस्सा और आवेग—दोनों अपनी-अपनी जगह सही लगते हैं। लेकिन आखिर में जीत संतुलित और शांत दिमाग वाले नज़रिए (ध्रुव) की ही होती है।
कहानी की जटिलता, पात्रों की गहरी भावनाएं और अनुपम सिन्हा की ज़बरदस्त कला ने इसे एक क्लासिक बना दिया। इसने ध्रुव और शक्ति दोनों को नए आयाम दिए और यह साबित किया कि भारतीय कॉमिक्स सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि गंभीर और दार्शनिक कहानियों को भी खूबसूरती से पेश कर सकती है।
आज भी यह राज कॉमिक्स का एक यादगार और कलेक्ट करने लायक विशेषांक माना जाता है। इसकी कथा, जो विस्तार से लगभग 1500 शब्दों में फैली है, बताती है कि यह कॉमिक्स सिर्फ एक्शन का पुलिंदा नहीं, बल्कि अपने आप में एक पूरा साहित्यिक और दार्शनिक संसार समेटे हुए है।